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अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

  • विनीता शुक्ला
  • वह तथाकथित जिम सीलन से भरा था. जमीन पर बिछा, टाट के बोरे जैसा कारपेट, हवाओं में रेडियो मिर्ची के सुरों की धमक और यहाँ वहां उड़ने वाले पसीने के भभके. कसरत- वर्जिश वाला यह औरतों का स्लॉट था. थुलथुल देह वाली स्त्रियाँ, ट्रेडमिलों और एक्सरसाइजिंग साइकलों पर जुटीं- दौड़तीं, हांफतीं, साँसें भरतीं. स्पीडोमीटर के ग्राफ, उनकी ‘पुअर परफॉरमेंस’ की चुगली करते हुए! सुनन्दा ने बौखलाहट में, कमरे का मुआइना किया. ‘टारगेट’ पूरा करने को, जूझती महिलायें...परस्पर मशीन और बदन के नट- बोल्टों की जुगलबन्दी ... असाध्य करतब...चित्र- विचित्र मुद्राओं में अटकती, लटकती, मटकती बालाएं! ट्विस्टर पर कमर फिरकनी सी नचातीं, नटी की तरह बैलेंसिंग बीम पर, पैर जमातीं या फिर रोइंग- मशीन पर, जोर- आजमाइश करतीं.

    सुनन्दा ने बोतल का पानी, एक ही सांस में गटक लिया. माथे पर उभर आयी पसीने की बूंदों को नैपकिन से पोंछा. बिना कुछ किये ही, उनका ये हाल था. सहसा फ्लोर एक्सरसाइज कर रही युवती का ध्यान, उनकी तरफ खिंचा. वह फौरन उठ खड़ी हुई और सुनन्दा से पूछा, “आप न्यू- मेम्बर हैं?” उन्होंने बिन बोले ही, अपना परिचय- पत्र, उसकी तरफ बढ़ा दिया. वह औचक ही मुस्कराई, “सो यू आर मिसेज सुनंदा शर्मा ...टुडे इटसेल्फ यू कैन स्टार्ट. शुरू शुरू में १५ मिनट का वार्मअप और ३० मिनट का वर्कआउट काफी रहेगा. उसके बाद धीरे धीरे, ड्यूरेशन बढ़ाना होगा”

    “ओह...अच्छा” प्रौढ़ा मिसेज शर्मा की, स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया थी. युवती ने उन्हें कुछ शुरुआती व्यायाम करवाए; फिर वेट लिफ्टिंग और पैडलिंग भी. उनकी सांस बेतरह फूलने लगी. “अरे आंटी”, किसी ने कहा, “आपको ज्यादा ही मेहनत करवा दी” उन्होंने पास खड़ी लड़की को गौर से देखा. उसने अपनी कई सारी लटों को, लाल रंग से रंग रखा था. वह कमर में छल्ले डाल, उन्हें फिरकी की तरह घुमा रही थी. कसी हुई जालीदार टी. शर्ट और मटमैले शॉर्ट्स, पसीने में तर, बदन से चिपके हुए. लड़की के रंग ढंग देख, कुछ हिकारत जैसी महसूस हुई. तो भी लोकाचार के नाते, एक संक्षिप्त मुस्कान, उसकी तरफ उछालनी ही पड़ी.

    “बेटा क्या नाम है तुम्हारा?” मुस्कान के साथ ही शब्द भी फूट पड़े.

    “तरंग आंटीजी”

    “ओह” सुनंदा जी पुनः मुस्करायीं और अपने काम में लग गयीं. कन्या निहायत बातूनी थी. वह इतने में ही पीछा नहीं छोड़ने वाली थी, “ आप कहाँ से आती हैं”

    “गुलाबगंज से”

    “आई सी...मैं तो अक्सर, उधर जाती हूँ... नटराज रंगशाला है ना- वहीं पर”

    “हूँ” सुनंदा ने बेमन से कहा. “वहां मेरे प्ले होते रहते हैं” सुनंदा जी के लिए, वार्तालाप कठिन होता जा रहा था- श्वास अनियंत्रित और स्वेद में नहाई देह. संयोग से तरंग की सहेली वहां आ धमकी और तब जाकर उसकी बकबक बंद हुई.

    “हाय मोनिला” तरंग ने उछलकर और चहककर उस ‘सो कॉल्ड’ मोनिला को गले से लगा लिया. आगन्तुक लड़की को देख, सुनंदाजी बुरी तरह चौंक पडीं. वही मुखड़ा...वही चेहरे की गढ़न, आँख, नाक होंठ- सब वही! अतीत में खो गयी, सुपरिचित आत्मीय छवि पुनः जीवंत हो उठी!! मोनिला हंस रही थी. मन के सोये तार, उस हंसी से झनझना पड़े. इस सबसे बेखबर, वह कहे जा रही थी, “यू नो...आज आशू के साथ, मेरी डेट है’

    “वाऊ यू लकी गर्ल! ही इज़ सो डैशिंग. तमाम लड़कियों का दिल, जेब में लिए घूमता है. एक बार आया था थियेटर में... रेनोवेशन के सिलसिले में. यू नो- थिएटर को रेनोवेट करने का कॉन्ट्रैक्ट, उसके फादर को मिला है!”

    “ओह...फिर?”

    “फिर क्या?! अपनी सोफ़िया मैम तो बिलकुल लट्टू हो गयीं उस पर!”

    “इज़ दैट सो?”

    “येस ऑफ़ कोर्स! कहने लगीं कि हमारे नये एक्ट में हीरो का रोल प्ले कर लो. पर बंदे ने टका सा जवाब दे दिया- यू सी. ही हैड बीन रूड टु हर! मना करने के हजार तरीके होते हैं. वह चाहता तो कोई बहाना भी बना सकता था... सच इन्सोलेंस, सच एरोगेन्स!!”

    “व्हाट इज दिस?? यू आर क्रिटिसाइजिंग माय बिलवेड ऑन माय फेस?!” मोनिला के मुख पर चढ़ते- उतरते रंग, सुनंदा को फिर उसी पुरानी छवि की याद दिला गये- वैसे ही तेवर! होंठों का खुलना और बंद होना ...टेढ़ी भंवें और आँखों से टपकता आक्रोश, “ये मां बाप भी! हम लडकियों की फीलिंग्स कभी नहीं समझ पायेंगे...जनरेशन गैप ही तो है, और क्या!”

    “क्यों क्या हुआ?” सुनंदा ने तब अचरज से पूछा था. “देख जब हाई- एजुकेशन की बात आती है तो पल्ला झाड़ लेते हैं. कहते हैं- ‘लड़की जात हो. कोचिंग- ट्यूशन जाओगी तो एक जने को संग चलना पड़ेगा. हर बखत पहरेदारी कौन करे?!’ इनके हिसाब से तो, घर के बगल वाले कॉलेज में एडमिशन ले लो. लिखाई- पढ़ाई सिफर हो तो हो- इनके ठेंगे से!”

    “ये बात कहाँ आ गयी री?! तू तो बी. कॉम. के बाद, जॉब भी करने लगी...फिर??”
    “देखो डिअर, बात तो यहीं से शुरू होती है. लड़कियों को पढ़ने न दो. फीस के लिए, गाँठ मत ढीली करो; भले दहेज में, पगड़ी नीलाम हो जाए!... ऊंची तालीम लेकर क्या करेंगी- जब रसोईं में ही मरना- खपना है! इस ‘ट्रांजीशन पीरियड’ में, जब लडकियाँ हर फील्ड में, लड़कों को चुनौती दे रही हैं; ये लोग पुराणपंथी बने बैठे हैं.” सुनंदा एक झटके में, अतीत से वर्तमान में आ गयी. संक्रमण का वह युग- जब जीवन- मूल्य, नये सिरे से परिभाषित हो रहे थे. ‘रीमिक्स’ वाली सभ्यता, सांस्कृतिक मान्यताओं को नकार रही थी...मोनिषा रवि से विवाह करना चाहती थी. जिस कोचिंग में वह पढ़ाती थी, रवि वहां के संचालक थे.

    मोनिषा के मां- बाप ‘विलेन’ बनकर खड़े हो गये. साफ़ कह दिया, “तुम उस दो कौड़ी के मास्टर से ब्याह नहीं करोगी. अफसर बाप की बेटी हो, गली के भिखारी की नहीं! अपने बाऊजी की इज्जत का कुछ तो ख़याल करो...बिरादरी में थू थू होगी; क्या तुम्हें अच्छा लगेगा?!” यहीं पर मोनिषा अड़ गयी. अपने समान मानसिक और शैक्षणिक स्तर वाला रवि उसे भाता था. रवि उसको बहुत मानता था, सम्मान देता था. घरवालों का सुझाया लड़का, क्या वाकई उसे प्रेम करेगा? पिता को अफसर जंवाई ही चाहिए था. किन्तु जो व्यक्ति, दहेज़ के लिए, अपने पद, अपनी काबिलियत की बोली लगाता हो; उसको खुश रख सकेगा??

    गहरा प्रेम तो समान बौद्धिकता, समान अंतर्दृष्टि वाले इंसान से ही हो सकता था. उसके अपने घर में, मां और अन्य स्त्रियाँ, कम पढ़ी लिखी होने की प्रताड़ना झेलती थीं. ठसकदार पति का रुआब, उनके वजूद को नगण्य कर देता. घरवालों की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए, उसे किसी उच्च पदस्थ अधिकारी के साथ फेरे लेने थे- पितृसत्ता की रची रचाई साजिश के तहत, चहारदीवारी का गुलाम बनना था. गर उसे भी काबिल बनने दिया होता; पढ़ाई के बजाय, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सीखने का हठ न किया होता तो तस्वीर कुछ और ही होती! बदलाव के उस दौर में, मोनिषा अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ रही थी और बदलाव के ही दूसरे दौर में, हूबहू मोनिषा जैसी दिखने वाली मोनिला अपनी छद्म स्वतंत्रता के लिए. इतनी उच्छ्र्न्खलता...इतना खुलापन ...निजी मसलों की सरेआम नुमाइश!

    आखिर सुनंदा की ख़ास सहेली, मोनिषा जैसी सूरत वाली मोनिला थी कौन? घंटे की कानफोडू आवाज़ के साथ ही, स्लॉट ख़त्म हुआ और सुनंदा शर्मा का विचारक्रम टूटा. उन्होंने मन ही मन कुछ निश्चय किया. अगले दिन वे, उन दो लड़कियों के पास जाकर ही, ‘पुश- अप्स’ करने करने लगीं. “हाय आंटी” तरंग ने उन्हें विश किया तो वह भी प्यार से “हलो बेटा” बोलीं. “आंटीजी, आप देसी घी खाती हैं क्या?” तरंग की बात सुनकर इस बार, मोनिला ने भी उन्हें ध्यान से देखा. ‘वार्मअप’ की मशक्कत से, उसके गुलाबी गाल, लाल हो रहे थे. सुनंदा जानकर मुस्करायीं. दिल को दिल से राह मिली, “हलो आंटी, मैं मोनिला हूँ”

    “बेटा, आप बहुत क्यूट हो...जरूर आपकी ममा भी बहुत सुंदर होंगी; ऍम आई राईट?” मोनिला हिचकिचाकर बोली, “लोग कहते हैं कि मैं अपनी मॉम की कार्बन कॉपी हूँ- मोनिषा वर्मा की बेटी मोनिला वर्मा!” उत्तेजना में वह अपनी मां का नाम बता गयी थी. अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गयी थी. मोनिला की मां मोनिषा ही, उनकी प्रिय सखी थी. सुनंदा जी ने घर जाकर, अपने सम्पर्क सूत्रों को टटोला. पुरानी डायरी से, पुराने पतों को नोट किया. दूसरे दिन कान, उन कन्याओं की बातचीत पर ही लगे थे.

    “क्या हाल हैं आशू के?”

    “जल्द ही हम दोनों फ्रेंडबुक पर, अपनी रिलेशनशिप एनाउन्स करने वाले हैं”

    “वाऊ इट्स ग्रेट...सो यू विल बी लिविंग टुगेदर!” सुनंदा जी के कान खड़े हो गये और दिल जोरों से धड़कने लगा. उस दिन उनका मन, किसी वर्जिश में नहीं लगा. उस दिन ही क्यों- दिनोंदिन, बेचैनी उन्हें घेरे रही. खुद को ठेलकर, वे जैसे- तैसे जिम जाती रहीं; पर सप्ताह भर तक मोनिला के दर्शन नहीं हुए. हफ्ते भर बाद वह अचानक प्रकट हुई तो तरंग ने उससे पूछा, “क्यों जी, आशू के साथ कुछ ज्यादा बिजी थीं?” कहते हुए अपनी एक आँख भी दबाई. इस बार, मोनिला की प्रतिक्रिया, सर्वथा भिन्न थी. वह आशू का नाम सुनकर उछली नहीं बल्कि लजाकर बोली, “ही इज माय फियॉन्सी नाऊ...ममा ने कहा है- शादी के पहले ज्यादा मिलना जुलना ठीक नहीं”

    “पर ये चमत्कार हुआ कैसे?!” तरंग बेहद चकित थी. “ना जाने कैसे मॉम को मेरे और आशू के बारे में पता चल गया. उन्होंने आशू की फॅमिली हिस्ट्री छान मारी...आशू के घर में एस्टेब्लिश्ड बिसनेस है. वे उन लोगों से बेहद इम्प्रेस्ड हुईं. तुम तो जानती हो –मां एक जानी मानी पॉलिटिशियन हैं. दैट इज व्हाई, उन लोगों को भी हमारा रिश्ता पसंद आया.”

    ‘विवाह को लेकर मोनिषा ने, बेटी की पसंद को जाना और परखा...उसकी भावनाओं की कद्र की; इसमें आश्चर्य कैसा?! वह स्वयम खुले दिमाग की है...प्रेम और निजी सम्बन्धों में, स्वतंत्रता की हिमायती रही है’ सुनंदा ने अपनेआप से कहा. मोनिला ने एक सांस में, पूरी कहानी उगल दी; फिर भी, तरंग की तीसरी इन्द्रिय कुलबुला रही थी, “लेकिन उन्हें, तुम दोनों प्रेमियों के प्रेम का पता कैसे चला?!” सहेली के प्रश्न पर मोनिला चुप थी. इस पहेली में, वह भी उलझ गयी थी.... जिज्ञासा का समाधान, उसको भी चाहिए था. उस समय, यदि सुनन्दाजी की रहस्यमय मुस्कान को देखा होता तो प्रश्न अनुत्तरित न रहता. लड़कियों को अपने सवाल का जवाब, मिल ही गया होता!

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