बंटी और शेरू पुरानी हवेली का रहस्य Ashish Kumar Trivedi द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बंटी और शेरू पुरानी हवेली का रहस्य

बंटी और शेरू

पुरानी हवेली का रहस्य

बंटी बहुत उत्साहित था। पहली बार वह गांव जा रहा था। उसने अपने मम्मी पापा से गांव के जीवन के बारे में बहुत कुछ सुना था। उसका बहुत मन करता था कि वह भी गांव जाए। खुले खुले मैदान और खेत खलिहान देखे। तालाब में नहाए। अब उसकी यह इच्छा पूरी होने वाली थी।

वह मम्मी पापा के साथ लक्ष्मी मौसी के घर जा रहा था। उसकी मम्मी की चचेरी बहन किसनपुर में रहती थीं। वह कई बार उन लोगों को अपने घर आने का न्यौता दे चुकी थीं। इस बार उसकी मम्मी ने वहाँ जाने का प्लान बना लिया।

ट्रेन से जाना था। बंटी ने रेलवे की वेबसाइट पर जाकर पता कर लिया था कि साथ में अपने पालतू कुत्ते को ट्रेन में ले जाने के क्या प्रावधान हैं। उसके पापा ने उन्हीं प्रावधानों के अनुसार टिकट बुक करा लिए थे।

सारी तैयारी हो गई थी। अगले दिन सुबह आठ बजे की ट्रेन थी। वह अपनी मम्मी के साथ मिल कर इस बात पर विचार कर रहा था कि वह लोग लक्ष्मी मौसी की बेटी नंदिनी जो बंटी से एक साल बड़ी थी के लिए क्या उपहार ले जाएं। नंदिनी को किताबें पढ़ने का शौक था। बंटी का सुझाव था कि उसके लिए कोई किताब ले जाएं। जबकी उसकी मम्मी चाहती थीं कि नंदिनी के लिए कपड़े ले जाएं। कुछ तय नहीं हो पा रहा था। तभी सिद्दिकी आंटी आ गईं। उन्होंने बंटी की बात का समर्थन करते हुए कहा।

"बहनजी बंटी की बात ठीक है। कपड़े ले जाने में दो समस्याएं हैं। एक तो वह किस तरह के कपड़े पसंद करेगी यह आपको नहीं पता है। दूसरा आप जो कपड़े ले जाएं वह उसे फिट आएं या नहीं। इसलिए किताब ले जाना ही ठीक है।"

बंटी की मम्मी को भी उनकी बात समझ में आ गई। बंटी ने कहा कि वह अभी जाकर बुक स्टोर से एक अच्छी सी किताब ले आता है।

पाँच घंटों के सफर के बाद ट्रेन किसनपुर से करीब चार किलोमीटर दूर स्टेशन माधवगंज में रुकी। बंटी उसके मम्मी पापा और शेरू सभी ट्रेन से उतर कर स्टेशन के बाहर आ गए। यहाँ बंटी के मौसा बलराज उन लोगों को लेने के लिए आने वाले थे। सब उनके आने की राह देखने लगे।

कुछ ही देर में एक बोलेरो आकर रुकी। उसमें से एक लंबा चौड़ रोबीला सा व्सक्ति उतर कर उनकी तरफ बढ़ा। वह बलराज मौसा थे।

"माफ कीजिएगा कुछ देर हो गई।"

उन्होंने बंटी के पापा से कहा।

"अरे कोई खास देर नहीं हुईं।"

बंटी ने आगे बढ़ कर उनके पांव छुए। उसे देख कर मौसाजी बोले।

"अरे बंटी ...कितना बड़ा हो गया। पिछली बार देखा था तो छोटा सा था।"

तभी नंदिनी और उसके साथ एक लड़का भी वहाँ आ गया। मौसाजी ने परिचय दिया।

"इसे तो पहचान लिया होगा। यह नंदिनी है और यह मेरे छोटे भाई धनराज का बेटा महेंद्र है।"

नंदिनी दौड़ कर बंटी की मम्मी से लिपट गई। महेंद्र ने सबको नमस्ते किया। सामान जीप में रख दिया गया। बंटी जब शेरू के साथ बैठने जा रहा था तब नंदिनी बोली।

"बंटी हम उससे चलेंगे।"

नंदिनी ने पास खड़े ट्रैक्टर की तरफ इशारा किया। उसमें एक ट्राली लगी हुई थी।

"बहुत मज़ा आएगा।"

बलराज मौसा ने टोंका।

"अरे उसकी आदत नहीं है उसमें बैठने की। उसे हमारे साथ आने दे।"

उसके बाद सफाई देते हुए बोले।

"वो कोल्ड स्टोरेज में आलू की कुछ बोरियां रखवानी थीं। इसलिए ट्रैक्टर ले आया। ये और महेंद्र ज़िद करके उसमें बैठ गए।"

लेकिन बंटी को ट्रैक्टर बहुत दिलचस्प लगा। वह बोला।

"मौसाजी मैं तो ट्रैक्टर में ही जाऊँगा। मुझे बड़ा मज़ा आएगा।"

बंटी शेरू के साथ ट्रैक्टर में लगी ट्राली में बैठ गया। मम्मी पापा मौसाजी के साथ बोलेरो में चले गए।

बंटी को ट्रैक्टर की सवारी में बड़ा मज़ा आ रहा था। पहली बार उसने दूर तक फैले हुए खेत देखे थे। नंदिनी उसे बहुत सारी चीज़ों के बारे में बता रही थी। बंटी ने देखा कि महेंद्र शेरू को देख कर कुछ सहम रहा था। उसका डर दूर करने के लिए वह बोला।

"डरो नहीं। इसका नाम शेरू है। यह बहुत समझदार है। किसी को नुकसान नहीं पहुँचता है।"

उसकी बात सुन कर नंदिनी बोली।

"महेंद्र शेरू सचमुतच बहुत समझदार है। बंटी और शेरू की बहादुरी के तो किस्से मशहूर हैं।"

बंटी ने शेरू से कहा कि वह महेंद्र से हाथ मिलाए। शेरू ने अपना पंजा उसकी तरफ बढ़ा दिया। पहले तो महेंद्र हिचकिचाया फिर नंदिनी के कहने पर उसे पकड़ लिया। अब उसका डर खत्म हो गया था। वह बंटी की गर्दन सहला कर उससे दुलार करने लगा। वह बंटी से भी खुल गया। बंटी महेंद्र और नंदिनी तीनों रास्ते भर बातें करते रहे।

घर पहुँचने पर लक्ष्मी मौसी ने उन लोगों का स्वागत किया। उन्होंने बंटी की मम्मी को गले लगा लिया। उनका संयुक्त परिवार था। परिवार में बलराज मौसा के दो और छोटे भाई धनराज और धर्मराज भी अपने परिवारों के साथ रहते थे। मौसी ने उन लोगों का सबसे परिचय कराया।

बंटी के पापा बलराज मौसा और उनके दोनों भाइयों के साथ बातें करने लगे। मम्मी लक्ष्मी मौसी और दोनों चाचियों के साथ बातें करने लगीं। नंदिनी ने बंटी को अपने दो और भाई बहनों से मिलवाया। एक महेंद्र से छोटा नरेंद्र और दूसरी धर्मराज चाचा की बेटी दीप्ती से जिसे सब प्यार से पिंकी कहते थे। पिंकी भाई बहनों में सबसे छोटी थी। पर वह सबसे अधिक शरारती थी। बंटी ने उन दोनों की भी दोस्ती शेरू से करवा दी।

सब बच्चे मिल कर बंटी को उनका घर दिखाने लगे। उनका घर बहुत बड़ा था। घर के बीच में एक बड़ा सा आंगन था। उसके चारों तरफ किनारे कमरे बने थे। हर कमरे के सामने एक बरामदा था। घर में एक छोटा लेकिन सुंदर सा मंदिर भी था।

कुछ ही देर में सबको खाना खाने के लिए बैठाया गया। रसोई से लगा एक कमरा था। कमरे की फर्श पर दोनों तरफ लंबी चटाई बिछी थी। सब उनमें बैठ गए। सबके सामने चौकी पर थाली रखी थी। बंटी पहली बार इस तरह जमीन पर बैठ कर खा रहा था। पर उसे सबके साथ खाते हुए बहुत अच्छा लगा।

खाने के बाद सब आराम करने लगे। बंटी बच्चों के साथ था। शेरू भी खाने के बाद बंटी के साथ आराम कर रहा था। महेंद्र ने कहा।

"बंटी भइया रास्ते में दीदी ने बताया था कि आपके और शेरू के कई बहादुरी के किस्से मशहूर हैं। हमें भी कोई किस्सा सुनाइए।"

नरेंद्र ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई। बंटी ने उन्हें बैंक डकैती वाला किस्सा सुना दिया। किस्सा सुन कर सब उसकी व शेरू की तारीफ करने लगे। बंटी बोला।

"मैं नंदिनी दीदी के लिए एक किताब लाया हूँ। उसमें दुनिया के कई देशों के बच्चों की बहादुरी के किस्से हैं। दीदी तुम लोगों को पढ़ कर सुनाएगी।"

बंटी ने अपने बैग से निकाल कर किताब नंदिनी को दे दी। सब बच्चे बहुत खुश हुए। बंटी चाहता था कि वह गांव देखने के लिए जाए। लेकिन नंदिनी ने कहा कि सूरज ढल चुका है। कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा। हम सब कल सुबह तुम्हें पूरा गांव दिखाएंगे।

अगले दिन नाश्ते के बाद नंदिनी और सब बच्चे बंटी को गांव दिखाने ले गए। सबसे पहले उन्होंने बंटी को अपने खेत और बाग दिखाए। ट्यूबवेल देख कर बंटी को बहुत अच्छा लगा। नरेंद्र ने बताया कि गर्मी के दिनों में वह लोग ट्यूबवेल में नहाते हैं। बड़ा मज़ा आता है। बंटी का मन भी ट्यूबवेल में नहाने को ललचा गया।

वहाँ से वह लोग बाकी का गांव देखने के लिए गए। गांव बहुत सुंदर था। शेरू को भी बहुत मज़ा आ रहा था। पिंकी बोली।

"चलो हम सब बंटी भइया को पहाड़ी वाले मंदिर ले चलें।"

उसकी बात सुन कर नंदिनी बोली।

"मैं भी यही सोंच रही थी।"

गांव के बाहर एक पहाड़ी थी। उसके ऊपर दुर्गा देवी का एक मंदिर था। लोगों का मानना था कि वह करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। सब पहाड़ी पर चढ़ कर मंदिर पहुँचे। मंदिर बहुत सुंदर था। दर्शन करने के बाद सब वापस लौटने लगे।

पहाड़ी से उतर कर सब घर वापस लौट रहे थे तभी शेरू ना जाने क्या देख कर उन सबसे अलग बाईं तरफ भागने लगा। बंटी उसे पुकारता हुआ उसके पीछे भागा। बाकी सब भी उसके पीछे भागे। कुछ दूर जाने के बाद शेरू रुक गया। बंटी ने देखा कि उसके बाद पेड़ों का एक झुरमुट है। उसे कौतुहल हुआ कि इसके आगे क्या है। वह नंदिनी से कहने जा रहा था कि वहाँ चल कर देखते हैं तभी नंदिनी घबरा कर बोली।

"यहाँ से जल्दी चलो।"

बाकी सबके चेहरों पर भी घबराहट दिख रही थी। बंटी उसका कारण नहीं समझ सका। वह बोला।

"क्यों मेरा तो मन आगे जाने का हो रहा है। जल्दी क्या है। थोड़ा और घूमते हैं।"

नंदिनी उसी हड़बड़ी में बोली।

"नहीं यहाँ से कोई आगे नहीं जाता है। वहाँ जाना मना है।'

" पर क्यों ?"

"सब घर चल कर बताएंगे। अभी यहाँ से चलो।"

बंटी ने आगे कोई बहस नहीं की। वह सबके साथ घर लौट आया। लेकिन उसका मन यह जानने के लिए बेचैन था कि आखिर वह सब वहाँ जाने से इतना घबरा क्यों रहे थे। दोपहर के खाने के बाद जब सब आराम कर रहे थे तब उसने नंदिनी से पूँछा।

"दीदी अब बताओ कि सुबह तुम लोग वहाँ जाने से इतना डर क्यों रहे थे ?"

नंदिनी कुछ रुक कर बोली।

"क्योंकी वहाँ आगे जाकर एक पुरानी हवेली है। उस हवेली में एक प्रेत रहता है। वह लोगों को मार देता है।"

नंदिनी की बात सुन कर बंटी बोला।

"दीदी आपको सचमुच लगता है कि वहाँ कोई प्रेत है।"

"हाँ अगर बड़े कहते हैं तो ज़रूर होगा। बड़ों के मना करने पर हम तो उधर जाते ही नहीं हैं।"

बंटी कुछ देर सोंचता रहा फिर बोला।

"क्या उस हवेली में यह प्रेत हमेशा से था।"

"नहीं पहले ऐसा कुछ नहीं था। लोग उधर आराम से अपने जानवर चरने के लिए छोड़ देते थे। अनवरपुर गांव की बाजार के लिए लोग वहीं से जाते थे। वहाँ से जल्दी पहुँच जाते थे। आधी रात को भी लोग बेखौफ उधर से गांव आ जाते थे।"

बंटी ध्यान से सब सुन रहा था। वह बोला।

"तो फिर प्रेत होने की बात कब पता चली ?"

"करीब तीन साल पहले सब शुरू हुआ। लोगों के जानवर जो वहाँ चरने जाते थे अचानक मरे पाए जाने लगे। जबकी उन पर किसी जंगली जानवर ने हमला नहीं किया होता था। उसके बाद उस तरफ से गुजरने वाले इंसान गायब होने लगे। एक दिन सरपंच जी का सबसे छोटा बेटा श्याम बदहवास सा गांव में आया। उसने सबको बताया कि पुरानी हवेली में प्रेत है। उसने शहर में एक तांत्रिक बाबा से कुछ मंत्र सीखे थे। उन्हीं की बदौलत वह बच कर आ गया।"

नंदिनी की बात सुन कर बंटी कुछ सोंचने लगा। फिर बोला।

"ये श्याम पहले शहर में रहता था।"

"हाँ वहाँ किसी दफ्तर में काम करता था। अचानक एक दिन नौकरी छोड़ कर गांव आ गया। तब से गांव में ही है। कुछ करता नहीं है।"

"तो ये सब श्याम के शहर से लैटने के बाद शुरू हुआ।"

"हाँ श्याम के लौटने के कोई एक महीने बाद ही।"

नंदिनी ने बंटी को समझाया।

"अब तुम समझ गए ना कि वहाँ जाना खतरनाक है। अब उधर जाने की ज़िद ना करना।"

"हाँ दीदी मैं सब समझ गया।"

रात को सबके सोने के बाद भी बंटी को नींद नहीं आ रही थी। दोपहर में जब से नंदिनी ने उसे हवेली के प्रेत के बारे में बताया था तब से पूरा दिन उसका दिमाग हवेली में ही अटका था। उसे पूरा यकीन था कि यह प्रेत वाली बात सिर्फ डराने के लिए है। वहाँ अवश्य कोई गड़बड़ है। वह खुद हवेली जाकर देखना चाहता था।

बंटी चुपचाप उठा। शेरू को साथ लिया और सावधानी से दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गया। दरवाज़े को बाहर से अच्छी तरह भेड़ कर वह उसी जगह की तरफ चल दिया जहाँ सुबह शेरू जाकर रुका था। पूनम की रात थी। चांदनी में सबकुछ दिखाई दे रहा था।

पेड़ों के झुरमुट के पास पहुँच कर बंटी और शेरू सावधानी रखते हुए आगे बढ़ने लगे। करीब पंद्रह मिनट तक आगे जाने के बाद बंटी को पेड़ों के बीच पुरानी हवेली दिखाई दी। वह एक पेड़ के पीछे छिप कर स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था तभी उसे किसी गाड़ी के आने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह सावधान होकर पेड़ के पीछे से देखने लगा।

एक वैन आकर हवेली के सामने रुकी। उसमें से एक आदमी उतरा। उसने वैन के अंदर से पाँच बच्चों को उतरा। इनमें चार लड़के और एक लड़की थी। वह आदमी बच्चों को लेकर हवेली के अंदर चला गया। करीब बीस मिनट के बाद वह अकेला वापस आया और वैन में बैठ कर चला गया।

बंटी ने अंदाज़ा लगाया कि यह लोग बच्चों को अगवा कर यहाँ लाकर रखते हैं। उसके बाद उन्हें बेच देते होंगे। बंटी हवेली के अंदर जाकर देखना चाहता था। उसने शेरू से कहा कि वह वहीं छिप कर रहे। वह अंदर जाकर देखता है। शेरू पास की झाड़ी में जाकर छिप गया।

सधे कदमों से चलता हुआ बंटी हवेली के भीतर पहुँचा। हवेली के पिछले हिस्से में एक बड़ा सा कमरा था। बंटी ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा। अंदर करीब दस बच्चे थे। सब डरे सहमे से थे। दो आदमी जिनके पास बंदूक थी उन पर नज़र रखे थे। सब देखने के बाद बंटी वापस लौटने लगा। लेकिन हड़बड़ी में वह बाहर रखे पानी के घड़े से टकरा गया। उसने भागना चाहा किंतु तब तक एक आदमी ने उस पर बंदूक तान दी।

बंटी भी उन बच्चों के साथ बैठा था। वह दोनों उससे पूँछताछ कर रहे थे।

"यहाँ क्या करने आया था ? किसने भेजा है तुझे ?"

बंटी ने घबराने का अभिनय करते हुए कहा।

"अंकल मैं पहली बार गांव आया हूँ। वो मच्छरों की वजह से नींद नहीं आ रही थी। इसलिए घूमने निकल पड़ा। टहलते हुए यहाँ आया तो यह हवेली दिखाई दी। मैं तो बस अंदर से इसे देखने आया था।"

उनमें से एक जो गंजा था ने धमकी दी।

"अब आ गए हो ना। पर यहाँ से जा नहीं पाओगे।"

उसके बाद वह दूसरे आदमी से बात करने लगा। बंटी को लगा कुछ करना होगा। वरना सचमुच वह भी इन बच्चों के साथ कहीं और पहुँचा दिया जाएगा। वह दिमाग दौड़ाने लगा।

अचानक बंटी ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा। गंजा आदमी चिल्लाया।

"ये क्या तमाशा है ? हिल क्यों रहे हो ?"

"अंकल बहुत ज़ोर से सू सू आई है।"

"अभी तक तो अच्छे भले थे। अब इतनी ज़ोर की सू सू आ गई।"

"अंकल मुझे बीमारी है। अचानक तेजी से सू सू लगती है। सू सू के लिए जाने दीजिए नहीं तो यहीं हो जाएगी।"

कह कर बंटी और ज़ोर से हिलने लगा। गंजा आदमी दूसरे से बोला।

"इसे ले जाओ। कहीं यहीं कर दी तो हम बैठ भी नहीं पाएंगे।"

दूसरा आदमी बंटी को लेकर हवेली के बाहर झाड़ी के पास गया।

"जल्दी से कर लो।"

बंटी झाड़ी की तरफ मुंह कर सोंच रहा था कि क्या करे। उसे जो भी करना था बस इन्हीं कुछ क्षणों में करना था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे वहाँ एक पत्थर पड़ा दिखा। वह उसे उठाने के बारे में सोंच ही रहा था कि तभी वह आदमी बोला।

"कितनी देर लगाओगे। जल्दी करो।"

वह बंटी की ओर बढ़ा। ठीक उसी समय शेरू बिजली की गति से पास की झाड़ियों से निकल कर उस पर कूद पड़ा। वह आदमी लड़खड़ा कर गिर पड़ा। बंटी ने फुर्ती से पत्थर उठा कर उसके सर पर दे मारा। जब तक वह आदमी संभलता बंटी और शेरू तेज़ गति से वहाँ से भाग निकले।

महेंद्र को सोते सोते प्यास लगी। वह उठ कर पानी पीमे चला गया। जब वह लौटा तो उसने गौर किया कि बंटी अपने बिस्तर पर नहीं था। पहले तो उसने सोंचा कि वह भी पानी पीमे या सू सू करने गया होगा। पर जब काफी समय बीतने पर भी वह नहीं आया तो महेंद्र उसे घर में ढूंढ़ने लगा। उसने पाया कि शेरू भी गायब है। उसने नंदिनी को जगा कर सारी बात बताई। नंदिनी समझ गई कि उसके समझाने पर भी बंटी नहीं माना। वह ज़रूर पुरानी हवेली गया होगा।

नंदिनी ने बड़ों को जगा कर सारी बात बता दी। पुरानी हवेली की बात सुन कर सब घबरा गए। बंटी मम्मी पापा भूत प्रेत पर यकीन नहीं करते थे। लेकिन वह भी बंटी और शेरू को लेकर चिंतित हो गए। तय किया गया कि पहले पुलिस को इस बात की सूचना दी जाए।

नाइट ड्यूटी पर मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर राशिद खान दो दिन पहले ही तबादले पर आए थे। आज सुबह ही उन्हें हवेली में प्रेत वाली बात पता चली। उन्हें प्रेत वाली बात पर यकीन नहीं था। वह खुद योजना बना रहे थे कि कैसे हवेली का सच बाहर लाया जा सके। उन्हें जब बटी के हवेली में जाने की बात पता चली तो उन्होंने फौरन थाने में मौजूद सब इंस्पेक्टर रंजन और सिपाहियों को पुरानी हवेली पर चलने को कहा। सिपाही हवेली पर जाने से डर रहे थे। इंस्पेक्टर राशिद ने उन्हें डांट लगाई कि वह पुलिस वाले होकर इन बातों पर यकीन करते हैं। उन्होंने अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की भी बात कही। बड़ी मुश्किल से वह जाने को तैयार हुए। थाने में दो सिपाहियों को छोड़ कर बाकी की टीम हवेली की तरफ चल दी।

जब इंस्पेक्टर राशिद सिपाहियों को समझा रहे थे तब एक सिपाही थाने के टॉयलेट में घुस गया। उसने अपने मोबाइल से एक फोन किया।

गिरोह का मुखिया श्याम ही था। इधर बंटी चंगुल से निकल कर भागा उधर वह हवेली पहुँचा। जब उसे सारी बात पता चली तो अपने साथियों पर बहुत बिगड़ा।

"निकम्मों तुम लोग एक बच्चे और कुत्ते को नहीं संभाल सके। वह ज़रूर बंटी और शेरू होंगे। बंटी बलराज का मेहमान है। उसके और शेरू के किस्से मशहूर हैं।"

वह बंटी की खोज में निकल ही रहा था कि तभी उसके फोन की घंटी बजी। बात खत्म होते ही वह बोला।

"जल्दी से सब बच्चों को तुरंत जंगल के सूखे पोखर की तरफ ले चलो। पुलिस हवेली में छापा मारने आ रही है।"

वो तीनों बच्चों को लेकर पोखर की तरफ बढ़ने लगे। चलने से पहले मुन्नी ने अपना हेयर बैंड जानबूझकर वहाँ गिरा दिया।

बंटी और शेरू भागते हुए पेड़ों के झुरमुट की तरफ आए। तभी बंटी को पुलिस की जीप आती दिखाई दी। उसने जीप रोक कर सारी बात बता दी। इंस्पेक्टर राशिद ने उसे और शेरू को जीप में बैठा लिया।

जब वह सब हवेली पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं मिला। बंटी ने बताया कि उसने अपनी आँखों से यहाँ बच्चों को देखा था। तभी इंस्पेक्टर राशिद की निगाह हेयर बैंड पर पड़ी।

"बंटी सही कह रहा है। यह हेयर बैंड इस बात का सबूत है कि बच्चे यहाँ थे। इसका मतलब है कि बदमाशों को पुलिस के आने की सूचना पहले ही मिल गई।"

इंस्पेक्टर राशिद की बात सुन कर एक सिपाही बोला।

"सर याद है जब आप हम लोगों को समझा रहे थे तब बंसी पेट दर्द की बात कह कर टॉयलेट चला गया था।"

"तुम्हारा इशारा सही है। वह पेट दर्द हो रहा है कह कर थाने में ही रुक गया। चलो थाने चल कर बंसी से निपटते हैं।"

बंटी और शेरू को बलराज के घर छोड़ कर इंस्पेक्टर राशिद थाने लौट गए। उन्होंने बंसी से पूँछताछ की। पहले तो वह अंजान बनने का नाटक करता रहा फिर जब कड़ाई बरती गई तो उसने सब बता दिया।

इंस्पेक्टर राशिद जानते थे कि जो करना है वह सुबह होने से पहले ही करना है। सारी कार्यवाही में सावधानी बरतनी होगी ताकि बच्चों को नुकसान ना हो।

बंटी और शेरू जब घर पहुँचे तो सब उन्हें सलामत देख कर बहुत खुश हुए। बंटी ने उन्हें हवेली की सच्चाई बताई तो सब दंग रह गए। सभी बंटी और शेरू की तारीफ करने लगे।

इंस्पेक्टर राशिद की टीम ने सावधानी से काम करते हुए सभी बच्चों को छुड़ा लिया। श्याम व उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

सुबह होने पर यह बात पूरे गांव में फैल गई कि हवेली में कोई प्रेत नहीं था। यह बात लोगों को डराने के लिए फैलाई गई थी। सरपंच का सबसे छोटे बेटा श्याम वहाँ से बच्चों की तस्करी का धंधा करता था।

बंटी और शेरू पूरे गांव के हीरो बन गए थे। उनकी सूझबूझ व बहादुरी ने ही हवेली का सच उजागर किया था। इंस्पेक्टर राशिद व उनकी टीम की भी खूब सराहना हुई।

इंस्पेक्टर राशिद ने सब गांव वालों के सामने कहा।

"बंटी बहुत ही होशियार व बहादुर है। मैं अपने आला अधिकारियों से सिफारिश करूँगा कि श्याम के गिरोह का पर्दाफाश करने के लिए उसे बहादुरी का पुरुस्कार दिलाया जाए।"

सबने ताली बजा कर इस बात का स्वागत किया।

***