*सुधर जाओ मूर्खों*
अपनी अयोग्यता को योग्यता दिखाने वाले
किसी लड़की को बुरा भला क्यू कहते हो।
गर यहीं हुआ तुम्हारी माँ बहनो के साथ तो
तो क्या तुम उस बरदाव को सहते हो।
हिन्दी भाषा का तुम्हे अभी ज्ञान नहीं
और कुम्भनदास बनते फिरते हो।
कुछ मासुकाओ के सामने उन्हें भला बुरा
और समय आए तो वहा क्लीवता दिखाते हो।
हट जाओ मेरे नजर के सामने से
मजबूर को क्या मर्दानिगी दिखाते हो।
मर्द तो वो होता जो रक्षा करें हर नारी का
और तुम तो आज कल जिन्दा नारी खाते हो।
सुधर जाओ अभी वक्त़ है तुम्हारे पास
नहीं तो आज कल हम भी औकात मे आते है।
इस बात पर भी जो गधे के गधे रहते है
तो फिर वो अंततः प्रिन्शु लोकेश तिवारी से लात खाते है।
ज़िक्र भी करदूं ‘मोदी’ का तो खाता हूँ गालियां
अब आप ही बता दो मैं
इस जलती कलम से क्या लिखूं ??
कोयले की खान लिखूं
या मनमोहन बेईमान लिखूं ?
पप्पू पर जोक लिखूं
या मुल्ला मुलायम लिखूं ?
सी.बी.आई. बदनाम लिखूं
या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ?
शीला की विदाई लिखूं
या लालू की रिहाई लिखूं
‘आप’ की रामलीला लिखूं
या कांग्रेस का प्यार लिखूं
भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ
या प्रशासन बेकार लिखू ?
महँगाई की मार लिखूं
या गरीबो का बुरा हाल लिखू ?
भूखा इन्सान लिखूं
या बिकता ईमान लिखूं ?
आत्महत्या करता किसान लिखूँ
या शीश कटे जवान लिखूं ?
विधवा का विलाप लिखूँ ,
या अबला का चीत्कार लिखू ?
दिग्गी का’टंच माल’लिखूं
या करप्शन विकराल लिखूँ ?
अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू,
या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू?
दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखू
या टूटे हुए मंदिरों का हाल लिखूँ ?
गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं
या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?
जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं
या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?
नेताओं का महंगा आहार लिखूं
या 5 रुपये का थाल लिखूं ?
लोकतंत्र का बंटाधार लिखूं
या पी.एम्. की कुर्सी पे मोदी का नाम लिखूं ?
अब आप ही बता दो मैं
इस जलती कलम से क्या लिखूं”.....