आज के नये विचार प्रिन्शु लोकेश तिवारी द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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आज के नये विचार

*सुधार दे*
ये खुदा अब तो हमें सुधार दे

                    थोड़ा सा रहम उधार दे



गलत भावना दूर कर दे

गर्व को चकना चूर कर दे।

थोड़ा सा लाड और प्यार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



प्यार मोहब्बत छूट जाए

इस दुनिया से दिल टूट जाए

बस इक कवि का ही श्रृंगार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



ये दुनिया अब कुछ खास नहीं है

यहा तो सुख की सांस नहीं है

इस दुख से हमें उद्धार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



मरने को नहीं बोल रहा हूँ

अपने मन को खोल रहा हूँ

तु यही मेरा संसार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



ऊब गया सत्ता धारी से

मारे ये जिन्दा आरी से

अब तो अपनी सरकार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



याद है मुझे वो तेरा शासन

बचा नहीं वो दुष्ट दुशासन

अब इनको भी संहार दे

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।



याद न करना मेरे द्वेष को

क्षमा करना प्रिन्शु लोकेश को

थोड़ा विनती तो स्वीकार ले

ये खुदा अब तो हमें सुधार दे।




*प्रेम और त्याग मे अंतर*
वही कृष्ण है वही अंग है
                     अंतर केवल इत्ता है ।
प्रेम को त्यागा अब उसने
                    अब तो केवल सत्ता है।
प्रेम को त्याग दिया है अब वो
                   छोड़ी ब्रज की नगरी है।
छूट गया मिठा यमुना जल
                     पहुचा खारी नगरी है।
जिन हाथों मे लेकर पर्वत
                     बना था वो सब का रक्षक।
उसी हाथों मे लिए शुदर्शन
                      बना आज वो एक भक्षक।
वही कृष्ण है वही अंग है
                     अंतर केवल इत्ता है ।
प्रेम को त्यागा अब उसने
                    अब तो केवल सत्ता है।
दस उंगली मे रहती थी जो
                  बंसी से टूटा विश्वास
इक उंगली मे लिए शुदर्शन
                  करते हो दुष्टो का नाश।
प्रेम रूप गर धारे होते
                 मित्र सुदामा पास न आता।
मिलने को तू भावुक होकर
                    उसके घर तक दौडा़ जाता।
वही कृष्ण है वही अंग है
                     अंतर केवल इत्ता है ।
प्रेम को त्यागा अब उसने
                    अब तो केवल सत्ता है।
*प्रिन्शु लोकेश तिवारी*



*सुधर जाओ मूर्खों*
अपनी अयोग्यता को योग्यता दिखाने वाले
किसी लड़की को बुरा भला क्यू कहते हो।

गर यहीं हुआ तुम्हारी माँ बहनो के साथ तो
तो क्या तुम उस बरदाव को सहते हो।

हिन्दी भाषा का तुम्हे अभी ज्ञान नहीं 
और कुम्भनदास बनते फिरते हो।

कुछ मासुकाओ के सामने उन्हें भला बुरा
और समय आए तो वहा क्लीवता दिखाते हो।

हट जाओ मेरे नजर के सामने से
मजबूर को क्या मर्दानिगी दिखाते हो।

मर्द तो वो होता जो रक्षा करें हर नारी का
और तुम तो आज कल जिन्दा नारी खाते हो।

सुधर जाओ अभी वक्त़ है तुम्हारे पास
नहीं तो आज कल हम भी औकात मे आते है।

इस बात पर भी जो गधे के गधे रहते है
तो फिर वो अंततः प्रिन्शु लोकेश तिवारी से लात खाते है।

ज़िक्र भी करदूं ‘मोदी’ का तो खाता हूँ गालियां
अब आप ही बता दो मैं
इस जलती कलम से क्या लिखूं ??

कोयले की खान लिखूं
या मनमोहन बेईमान लिखूं ?

पप्पू पर जोक लिखूं
या मुल्ला मुलायम लिखूं ?

सी.बी.आई. बदनाम लिखूं
या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ?

शीला की विदाई लिखूं
या लालू की रिहाई लिखूं

‘आप’ की रामलीला लिखूं
या कांग्रेस का प्यार लिखूं

भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ
या प्रशासन बेकार लिखू ?

महँगाई की मार लिखूं
या गरीबो का बुरा हाल लिखू ?

भूखा इन्सान लिखूं
या बिकता ईमान लिखूं ?

आत्महत्या करता किसान लिखूँ
या शीश कटे जवान लिखूं ?

विधवा का विलाप लिखूँ ,
या अबला का चीत्कार लिखू ?

दिग्गी का’टंच माल’लिखूं
या करप्शन विकराल लिखूँ ?

अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू,
या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू?

दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखू
या टूटे हुए मंदिरों का हाल लिखूँ ?

गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं
या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?

जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं
या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?

नेताओं का महंगा आहार लिखूं
या 5 रुपये का थाल लिखूं ?

लोकतंत्र का बंटाधार लिखूं
या पी.एम्. की कुर्सी पे मोदी का नाम लिखूं ?

अब आप ही बता दो मैं
इस जलती कलम से क्या लिखूं”.....