उत्तेजना (व्यंग्य) प्रिन्शु लोकेश तिवारी द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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उत्तेजना (व्यंग्य)

हर गांव एवं हर एक शहर में आजकल उत्तेजना ही उत्तेजना है।उत्तेजना उस गांव एवं शहर की जनसंख्या पर निर्भर करती है।हर एक स्टेशन पर देखो हीजडो की अलग ही उत्तेजना देखने को मिलती है। शहर में उपस्थित क्लीवं पुरुष अपने उत्तेजना के कारण लात और घुसे के सिकार होते जा रहे है। कोई कोई उन्मादित होकर अपने आप जो ही सहंसाह समझते हैंऔर कस्तूरी मृग की भांति मग्न रहते है
कहीं कहीं उत्तेजना सही मानी जाती है तो कहीं कहीं उसका गलत असर होता है।कुछ तो ऐसे होते हैं कि घर के काम को देख कर सिथिल हो जाते हैं, परन्तु जब वहीं व्यक्ति किसी लड़की या छात्रा को देखता है तो उसकी सीथिलता  स्थिर हो जाती है और वह उत्तेजित हो कर उसी की तरफ खिंचा चला जाता है जो की किसी के लिए लाभकारी नही है इसमें लोग चूहे की तरह उछल कूद करने लगते हैं। इसी प्रकार उत्तेजना उन्माद का भी कारण बन जाती है।

"शेर के आगे और उत्तेजना के पीछे कभी मत भागो"

उत्तेजना एक स्त्रीलिंग शब्द कहा जाता है और ये स्त्रियों के भांति होती है हर जगह अपना करतब दिखा जाती है।भक्ति भाव में उत्तेजना कही कही सही मानी जाती है और यदि समय संकुचित हो तो वहाँ उत्तेजना सार्थक सिद्ध होती है।
जो इंसान प्रेम(लड़की का प्यार) में उत्तेजित रहते हैं तो तब उनका लिबास ' गधो के मुंह में माल पुआॅ जैसे रहता है। कुछ लोग तो उत्तेजना के चक्कर में देश की जनसँख्या ही बढ़ा देते हैं।
 उत्त्तेजन एक बीमारी है। लग गई सो लग गई।जो व्यक्ति उत्तेजना से वाकिफ़ रहते हैं वो उसका प्रयोग समय आने पर ही करते हैं और उत्तेजित व्यक्ति से व्यर्थ में बहस नही किया करते है।
वे तकलुफ़् प्रदर्शन के बाद पुनः अपने ढंग में आ जाते हैं।
कुछ लोग तो एक दूसरे को देखन उत्तेजना के शिकार हो जाते और फिर उनकी हालत धोबी के कुत्ते सामान हो जाती है फिर वे घर बाहर कही के नही रह जाते । कुछ दिनों में ही फिर थाने जेल में नजर आते और उनका वहीँ उन्मेष और निमेष होता है।
 ऐसे बहुत ही कम लोग है जिन्हें उत्तेजना में सफ़लता मिली हो यदि उतेजना एक सफलता का मार्ग होता तो घर के कभी नही कहते

 ' दादू धीरज से कम कर '  

पर उनके इस बात को आज कल प्रौड कहा मानते है वे तो उत्तेजना नमक मदिरा पान किये मद मस्त रहते हैं ।
 उनकी अपनी एक सत्ता होती है और उत्तेजित व्यक्ति अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मर लेता है और अंततः पश्चाताप करते जब कोई मतलब नहीं रह जाता।
 उत्तेजना अहन्कार का भी बाप होता है। अहन्कारी तो किसी तरह बन सकता है परन्तु उतेजित जीव कभी नही। रावण मे यदि अहन्कार बस होता तो वह शायद भगवान का प्यारा होता परन्तु वो उत्तेजना मे आकर माता सीता का हरण किया फिर विभीषण की बातो को नही समझा और उतेजित होकर उसे लात से मार कर खेद दिया यदि उसमें अगर थोड़ा भी धीरज होता तो शायद उसकी ये नौबत ना आती
                      उत्तेजना एक सदियो से चली आती संक्रामक बिमारी है जो कि इतनी जल्दी नही जाएगी । जैसा की कहा जाता है कि 84 लाख योनि मे किसी योनि के जीव या प्राणी नही रहे तो सृष्टि का अन्त हो जाएगा उसी प्रकार यदि उतेजना न रही तो..................