आखिरी प्रेमी की घोषणा प्रिन्शु लोकेश तिवारी द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आखिरी प्रेमी की घोषणा

आखिरी प्रेमी की घोषणा
-प्रिन्शु लोकेश

थाने के ठीक सामने महुआ का एक वयोवृद्ध वृक्ष था जिसकी तमाम पत्तियां झड़ चुकी थी और वह उजड्ड सा खड़ा पथराई आंखों से थाने की ओर ऐसे देख रहा था मानो उसकी कोई नयी पौध थाने में कैद हो।
उसी महुए के वृक्ष के नीचे ठीक उसी वृक्ष की तरह एक उजड्ड स्त्री बैठी रो रही है उसके दोनों कन्धे किसी पुरानी मशीन के पिस्टन की तरह ऊपर नीचे हो रहे थे।
वही पास पूर्व की ओर कोई बीस मीटर की दूरी पर अण्डे की एक दुकान थी जहां पर एक दस वर्षीय लड़का उबला अण्डा खा रहा था।
वृक्ष के नीचे बैठी रो रही स्त्री अचानक तेज से उस दस वर्षीय लड़के से कहती है "देख दादू साहब आ ग‌ए का"

"देख दादू साहब आ ग‌ए का" इस कंपित स्वर में मुझे मेरे किसी पुराने मित्र की मां की झलक दिखाई दी। नजदीक से जाकर देखा तो वो स्त्री मेरे एक पुराने मित्र विजय की मां थी। मैंने भी बिना समय गंवाए बिना कुछ जाने समझे सहानुभूति की पुड़िया खोलनी की एक असफल कोशिश की।

क्या हुआ चाची? आज यहां? रो क्यूं रही हैं? घर में तो सब बढ़िया है न?
उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर मैंने दनादन चार प्रश्न उस असहाय की झोली में उड़ेल दिया।
एक तो पहले ही किसी दुख ने उनके मस्तिष्क पर डेरा जमाए हुए था दूसरा मेरे इन प्रश्नों ने;

मैंने पुनः पुछा - विजय लोग कहां हैं? आप यहां अकेली बैठी हैं?
इस बार बड़ा उलझा हुआ सा उत्तर मिला है "विजय को पुलिस उठा ले गई, वो जेल में है।"
विजय जेल में? क्यूं क्या हो गया? मैं पूछा

स्त्री बिना कुछ बोले चीख को दबाकर फफक-फफक कर रोने लगी उसके दोनों कन्धे पुनः मशीन के पिस्टन की तरह ऊपर नीचे होने लगे।
उधर वो लड़का अण्डा खाकर पलाश का पत्ता और उस पत्ते में बची कुची कुछ चटनी बीच सड़क पर फेंक कर शर्ट की बांह से मुंह को पोंछते हुए थाने के अंदर घुस गया।
"विजय को पुलिस उठा ले गई, विजय जेल में है" इन डेढ़ वाक्यों के सिवा कोई उत्तर मुझे मिला नहीं।
विजय की मां का यह उत्तर मुझे बड़ा आश्चर्यचकित करने वाला लगा शायद मेरा आश्चर्यचकित कहना आपको भी तनिक आश्चर्यचकित कर रहा हो किन्तु लगा कुछ ऐसा ही क्योंकि लड़के जितना खुलकर दोस्तों (सहपाठी) के साथ रहा करते हैं शायद उतना मां -बाप के सामने नहीं। जहां तक मुझे याद आता है विजय इतना उद्दंड लड़का नहीं था कि उसे पुलिस उठा ले जाए , उसे जेल जाना पड़े! हां आठवीं क्लास के बाद जरूर वो मुझसे अलग हो गया था मैं बाहर पढ़ाई करने चला गया और वो भी एकात क्लास के बाद दिल्ली बंबई कहीं नौकरी चाकरी करने निकल गया किन्तु फिर भी साल दो साल में कभी कभार भेंट होती तो वही सादगी वही हंसी मजाक के साथ मिला करते थे हां बीच में जरूर सुनने में आया था कि वो किसी लड़की के प्यार में लट्टू की तरह घूम रहा है किन्तु बाद में ये भी खबर मिली थी कि उस लड़की का विवाह कहीं और हो गया है प्रेम की डोरी पतंग से अलग हो गई है। तो फिर ऐसा क्या हुआ होगा?
मैं ने अब उस सहानुभूति की पुड़िया को मोड़कर जेब में डाल ली थी । परिचित लोगों के सामने अक्सर सहानुभूति की पुड़िया खाली ही निकल जाया करती है। मुझे अब ये जानना अधिक तर्कसंगत लगने लगा था कि यह जेल गया किस मामले में?
दो - चार प्रश्नों के बाद फिर से जब कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं वहीं चुपचाप बैठ गया और इंतजार करने लगा उस दस वर्षीय लड़के का जो अभी कुछ देर पहले अण्डे की दुकान से थाने की ओर गया था।
वहां पर मुझे बैठे तकरीबन पांच मिनट हुए होंगे कि तभी सामने से रामसूरत भैया ( विजय के पापा, इन्हें भैया इसलिए कहता हूं कि ये मेरे पिताजी को काका कह कर संबोधित करते हैं) राजश्री चबाते हुए उसी महुआ के पास मोटरसाइकिल रोकते हैं, उन्हें देखते ही मेरी उलझन कुछ कम होने लगी ।
बाइक से उतर कर स्टैंड लगाते हुए,
अउर भ‌इकरा , उन्होंने कहा।
ठीक है भया , मैंने कुछ ठीक न होते हुए भी कहा।
कहां......आगे वो और कुछ बोलते कि मैंने बीच में उनकी बात को काटते हुए कहा कि भया विजय को पुलिस ले गई चाची ने अभी- अभी बताया, क्यूं? क्या कर दिया उसने?

रामसूरत भैया के अंदर से अब धीरे- धीरे बापत्व की गंध आनी शुरू हो जाती है
"एहिन लाइक रहा उआ म****", उन्होंने कहा।
काहे का होइगा अइसन? मैंने पूछा।
का बताए दादू, सुरुजपाल के बिटिया का जनते ह?
हां भैया बाखूबी हमारे घर से कुछ ही दूर में सुरुजपाल का घर है।
इतना सुनते ही मुझे आधी बात समझ में तो आ गई कि पक्का कोई लौंडियाबाजी का फसाद है किन्तु आगे जैसे -जैसे बात बढ़ती गई तो पता चलता गया कि यहां लड़का लौंडियाबाज नहीं बल्कि लड़की ही लौंडाबाज थी।

सुरुजपाल की चौथी बेटी प्रमिला जिसका घर मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है उसके बारे में अक्सर कुछ न कुछ सुनने को मिलता रहता था जैसे कि अभी रामसूरत भैया से यह। प्रमिला मुझसे एक दर्जा आगे थी मुझे याद आता है कि उसकी चाल ढाल और उरोजों का बोझ साफ ज़ाहिर करता था कि प्रमिला छठवीं सातवीं तक में अपनी एक अलग उम्र का एहसास कर रही थी, उम्र से पहले एहसास लड़कियों को जवानी तोहफे में दे जाता है। हम लोग जब छठवीं की त्रैमासिक परीक्षा देकर आ रहे थे तो कुछ बच्चे आपस में प्रमिला और विनोद के रिलेशनशिप के बारे में कुछ बतिया रहे थे। ( यही से उसका शारीरिक संबंध स्थापित होने लगता है)
धीरे-धीरे समय बीतता रहा और समय के साथ ही साथ प्रमिला का हर साल प्रेमी बदलता और हम लोगों की क्लास।

सीनियर्स लोगों की प्रेम कहानियां जूनियरों को आत्मबल प्रदान करती है प्रमिला अब सीनियरों की भी सीनियर हो चली थी(प्रेम के मामले में ) मैंने स्वयं उसे तीन साल में चार प्रेमियों के साथ देख चुका था। वो अब किसी अधखिले पुष्प की भांति धीरे-धीरे विकसित होने लगी थी।

कली जब पूर्ण रूप से खिलने वाली थी अर्थात् दसवीं में दाखिला लेने वाली थी तो मुझे पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया गया किन्तु उसी वर्ष सुनने में आया कि कली को नये भंवरों के प्रति आकर्षण अत्यधिक पैदा होने लगा है। नये भौरों को अपने जाल में फंसाने के लिए प्रमिला तरह- तरह के भ्रमरगीतों का प्रयोग करने लगी। प्रमिला के इन गीतों का स्वर स्कूल की दीवारों को चीरता हुआ इस बार बाजार के रास्ते गांव घुस कर उसका घर तलाशने लगा। प्रमिला तनिक घबराई फिर कुछ ही क्षणों में यकायक मुस्कुरा उठी क्योंकि इस बार प्रमिला ने अपनी ही जाति का प्रेमी खोज रखा था शायद वह इसे आखिरी प्रेमी घोषित करना चाह रही थी और वह प्रेमी था विजय किन्तु जाति के भीतर भी एक जाति छिपी होती है और उस भीतरी जाति का नाम होता है गोत्र। देखा गया कि विजय प्रमिला से निम्न जाति का है। (गोत्र वगैरह)
प्रमिला प्रेम के परवान पर सवार होने को लालायित थी किन्तु समाज और परिवार को यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं था उन लोगों की ओर से साफ मनाही ही रही।
अंततः आखिरी प्रेमी भी पुष्प की पंखुड़ियों की भांति बीच में फंस कर रह गया। इधर प्रमिला का विवाह भीतरी जाति देखकर कहीं और कर दिया जाता है। इसी दौरान बीच में प्रमिला समय का सही सदुपयोग करके किसी दलित लड़के को दिल दे बैठती है साथ ही उसके घर बैठने को भी पूरा प्लान...

यहां तक मुझे इधर-उधर से पता चल गया था किन्तु विजय के प्रेम के बाद उसका विवाह होता है फिर वह ससुराल से भाग आती है, गांव-गांव भीख मांगती है फिर किसी नये के घर बैठ जाती है और इन क‌ई सालों के बाद आज विजय को जेल; यह कैसा माजरा है? इसका मतलब विनोद, राहुल...… ये सब भी जेल जा सकते हैं किसी न किसी दिन क्योंकि ये सब भी प्रमिला के पूर्व प्रेमी ही तो हैं।

रामसूरत भैया अब जेब से एक बीस वाली राजश्री निकाल कर उसमें सुरती मिलाने लगते हैं। इधर नीचे बैठी विजय की मां अब सिर्फ दुखी थी और यदि कोई उससे कुछ पूछता तो वह पुनः रोने लगती और कंधे वही पिस्टन की तरह हिलने लगते। उधर वह दस वर्षीय लड़का थाने के भीतर से निकलकर बाहर बेंच पर जिंदा लाश की तरह बैठ जाता है।

रामसूरत भैया आधी राजश्री मुंह में उड़ेलकर पैकेट को मोड़कर जेब में डालते हुए कहते हैं कि “बिमल तु लोग त साथ के पढै बाले रहे कुछ नहीं अपने काम से काम रहा पै इआ म***** आज हमार इज़्ज़त धूल म मिलाए के रख दिहिस, रण्*** के चक्कर म दस साल के सजा भोगी अब।”

मैंने कहा भैया पर हुआ कैसे ये सब, इन दोनों का तो संबंध बहुत पहले खत्म हो गया था।
“का बताइ बिमल भाई अभागि अउर एह म***** के करतूत।
विआहा का छोड़ि के कुजाति के घरे बैठी रही सुरुजपालबा के बिटिया इआ त पता रहा ह़ोई तुहुका।” उन्होंने कहा
हां ये तो पता था, मैंने कहा

आगे का हाल बताते हुए वो खुद रोने से लगते हैं। उनका पुत्र के प्रति प्रेम और पुत्र के कृत्य के प्रति क्रोध आंसू के रूप में निकल रहा था।
कुछ देर ठहर कर वो पुनः कहते हैं "जहां भाग के ग‌ए रही वहां फेर एकर केहू से चक्कर चला अउर जब इआ बात .......(एक दलित जाति का नाम) का पता चला त उआ मारि के भगाए दिहिस। अब एका न विआहा पूछै न घर समाज त कुछ फोटो अउर चैट विडीयो दिखाए के डेरबाए के विजय के साथ रहै का कहत रही अउर उआ मना क‌इ दिहिस त जेल।"
शायद उसे अभी किसी चीज़ की तलाश हो ; मैंने बुझे हुए स्वर में कहा
रण्*** आय साली; उन्होंने कहा

इतना कहकर रामसूरत मेरे कंधे पर हाथ रखकर रोने लगते हैं अब उनका बापत्व ममत्व में बदल चुका था।

-प्रिन्शु लोकेश