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उत्तेजना (व्यंग्य)
प्रिन्शु लोकेश तिवारी द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
उत्त्तेजन एक बीमारी है। लग गई सो लग गई।जो व्यक्ति उत्तेजना से वाकिफ़ रहते हैं वो उसका प्रयोग समय आने पर ही करते हैं और उत्तेजित व्यक्ति से व्यर्थ में बहस नही किया करते है। वे तकलुफ़् प्रदर्शन के बाद पुनः अपने ढंग में आ जाते हैं। कुछ लोग तो एक दूसरे को देखन उत्तेजना के शिकार हो जाते और फिर उनकी हालत धोबी के कुत्ते सामान हो जाती है फिर वे घर बाहर कही के नही रह जाते । कुछ दिनों में ही फिर थाने जेल में नजर आते और उनका वहीँ उन्मेष और निमेष होता है। ऐसे बहुत ही कम लोग है जिन्हें उत्तेजना में सफ़लता मिली हो
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