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रिअलिटी ऑफ़ इंनर लाइफ !

आज मेरा मन फिर कुछ नया लिखने को कह रहा है लेकिन आज मैं जो कुछ भी लिखने वाली हूँ वो मेरी कल्पना नहीं हैं और न ही किसी कहानी का हिस्सा, यह एक ऐसी हक़ीक़त हैं जिसे हम में से कुछ लोग तो जानते भी होंगे और शायद सुना भी होगा, एक ऐसा ही वाक्या हैं जिसे मैं आप सब क साथ शेयर करना चाहती हूँ|

दसवीं कक्षा के एक्साम्स शुरू होने वाले थे उससे लगभग पंद्रह दिन पहले ही मेरी एक दोस्त ने ब्लाइंड स्टूडेंट्स के राइटर्स बनने के लिए कहा, मेरे लिए यह बात बिलकुल नयी थी, मैंने सुनते ही कहा - "क्या..., ब्लाइंड बच्चो के राइटर्स, उनको पढ़ने की क्या ज़रूरत है, आई मीन वो पढ़ कर क्या करेंगे"

उसने बहुत सरलता से ज़वाब दिया - तुमने ब्रेल लिपि के बारे में नहीं सुना क्या, ब्लाइंड बच्चे भी पढ़ते हैं और .....

-हाँ, बट मुझे वो लैंगुएज थोड़ी आती हैं उससे तो बस प्राइमरी एजुकेशन ही होती होगी, टैंथ क्लास तक ब्रेल लिपि से पढ़ना कितना मुश्किल होता होगा.....

-नहीं, सेकंडरी एंड हाईयर स्टडी के लिए उनको ऑडियो क्लिप मिलती हैं और वो बस सुनते हैं, उनको हमारी लैंगुएज लिखनी नहीं आती इसलिए गोवेरमेंट उनको राइटर्स प्रोवाइड कराती हैं, तुमने देखे होंगे जब हमने टेंथ या ट्वेल्थ का एग्जाम दिया था तब सीबीएसई की आंसर शीट पर राइटर के ऑप्शन थे कि राइटर प्रोवाइड किया हैं या नहीं तो हम नो पर टिक लगाते थे लेकिन ब्लाइंड बच्चो के लिए राइटर्स मैंडेटरी हैं उनके लिए गवर्नमेंट राइटर्स को पे करती हैं , वो हमारी लैंगुएज नहीं लिख सकते इसलिए, तो बताओ तुम बनना चाहोगी, मेरे कैंडिडेट का दोस्त हैं उसे राइटर की ज़रूरत हैं?

-"ओके, बट तुम्हे इनसब के बारे में कैसे पता?"

-"जब मैं फर्स्ट ईयर में थी तब मैंने अपने कॉलेज में इसका पोस्टर देखा था, और उस टाइम एक प्रोफ़ेसर भी आये थे और उन्होंने कुछ देर तक तो इन पर लैक्चर भी दिया था, हमारे कॉलेज के नियर ही इनका स्कूल हैं बट दिल्ली में अलग अलग स्टेट्स के ब्लाइंड बच्चे हर साल एक्साम्स देने आते हैं, इन बच्चो को अपनी तरफ़ से राइटर्स बुलाने पर बहुत पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जल्दी कोई मिलता नहीं है इनको राइटर्स"

-"ऐसा क्यू, इसके लिए गवर्नमेंट तो पे करती हैं न फिर ये बच्चो को भी पे करना पड़ता हैं......”

-"अरे जल्दी कोई राइटर्स बनने को तैयार नहीं होता है इसलिए इन्हे भी कुछ पैसे देने पड़ते हैं"

-ओह, अच्छा ये बताओ फिर उसके बाद इनकी डिग्रियों का क्या होता हैं?, आई मीन पढ़ने के बाद क्या करते हैं इनको जॉब मिल जाती हैं ईज़िली?"

-"हाँ थोड़ा मुश्किल से, गोरनमेंट सेक्टर में तो इनके लिए कुछ सीटे भी रिज़र्व होती एंड तुम्हे पता हैं मेरे स्कूल में म्यूजिक टीचर ब्लाइंड थीं,

इनको तो कॉल सेंटर्स में भी कालिंग की जॉब मिल जाती हैं"

-"गवर्नमेंट सेक्टर में सीट्स रिज़र्व हैं इसके तो इनको तो एक्साम्स क्लियर करने पड़ते होंगे, आई थिंक आसान तो नहीं होता होगा "

हाँ, इन्हे एक अच्छा राइटर्स मिलना बहुत मुशिकल होता हैं जो गवर्नमेंट एक्साम्स क्लियर कर सके, इसके लिए उन्हें बहुत पैसे खर्च करने पड़ते है और ये लोग करते भी हैं"

-"ओह, बट मैंने तो तीन चार साल पहले टेंथ का एग्जाम दिया था इतनी जल्दी इतने सारे सेलेबस कैसे रिकवर हो पायेगा"

-डोंट वॉरय, इनकी चेकिंग बहुत लिनिएंट होती है एंड वो बच्चे भी थोड़ी बहुत तैयारी करके आते हैं तो हो जाता हैं ईज़िली,

-"ओके, तुम मुझे अड्रेस और एक्साम्स डेट शीट सेंड कर देना मेरे व्हाट्सअप नंबर पर"

-"ओके"

"पंद्रह दिन बाद"

दसवीं का पहला पेपर हिंदी का हैं, थोड़ा डर लग रहा था लेकिन हर स्टूडेंट की तरह मेरा भी यही मानना हैं कि हिंदी का पेपर तो इजी होता हैं , हो जायेगा...

थोड़ी बहुत नेट से ही रिवाईस किया था लेकिन ये मेरे जीवन का पहला अनुभव होने वाला था कि मैं किसी दूसरे स्टूडेंट का एग्जाम देने वाली हूँ ख़ैर जब हम स्कूल पहुंचे तो स्कूल के गेट पर पहले से ही लोगो की भीड़ थी, ब्लाइंड स्टूडेंट्स के राइटर्स खड़े थे और एंट्री होने का वेट कर रहे थे उन स्टूडेंट्स को पहले ही एंट्री मिल चुकी थी हमें भी ज़्यादा देर वेट नहीं करना पड़ा कुछ मिनट बाद ही एंट्री होनी शुरू हो गयी थी|

मैंने अभी तक डिसेबल्ड बच्चो को इतने नज़दीक से नहीं देखा था, उस स्कूल में लगभग तीस ब्लाइंड स्टूडेंट्स खड़े थे ज़्यादा तर स्टूडेंट्स पहनावे से गरीब घर के लग रहे थे मैंने जब उनको देखा तो मुझे लग रहा था कि मैं किसी और दुनिया में आ गयी हूँ, हमारे समाज में इस तरह के लोग भी रहते हैं मैं यही सोच रही थी, मैंने एक स्टूडेंट को बहुत ध्यान से देखा जिसका सिर बहुत बड़ा था और फोरहैड आगे के साइड कुछ ज़्यादा ही उभरे हुए थे, उसकी आँखों में भी रौशनी नहीं थी ऐसे बहुत सारे लोग थे जिनका ज़िक्र करना मुश्किल हैं, उन ब्लाइंड स्टूडेंट्स के आँखों में रौशनी न होते हुए भी कई सारी प्रोब्लेम्स थी, मेरा मन उनको देखने के बाद बिलकुल निराश हो गया था, मैं एक और ब्लाइंड स्टूडेंट का ज़िक्र करना चाहूंगी जिसका एक पैर नहीं था उसके लिए उसकी ज़िंदगी कितनी मुश्किल होगी, ना उसके आँखों में रौशनी थी और न ही एक पैर मैं बार-बार यही सोच रही थी के ये लोग सर्वाइव कैसे करते होंगे, हमारे शरीर के सिक्स सेंस में से अगर एक भी काम न करे तो कितना मुश्किल होता हैं लेकिन इनको तो कई अन्य प्रोब्लेम्स भी हैं, मेरे मन में काफी सारे सवाल थे मैंने अपनी फ्रेंड से कहा, ये लोग कैसे रहते होंगे, कितनी प्रोब्लेम्स होती होगी इनको, मेरा मन कर रहा हैं मैं यहाँ से चली जाऊं, उसने मुझे समझाया कि यह तो ऊपर वाले की देन हैं इसमें ये बिचारे लोग क्या कर सकते हैं, ये लोग कैसे जीते हैं, रहते हैं यह तो सिर्फ यही लोग बता सकते हैं पता हैं शुरू में मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था लेकिन धीरे -धीरे आदत हो गयी इनको देखने की.....,

मेरे लिए ये बहुत बड़ा आश्वासन था, मैंने फिर सोचा अगर चली गयी तो मेरा जो कैंडिडेट हैं उसका यह साल बेकार हो जायेगा अगर उसे राइटर नहीं मिले तो और अब तो एक्साम्स भी शुरू होने वाले हैं......

मेरा सवाल अब उस ऊपर वाले से था कि उन्होंने ब्लाइंड लोगो को क्यूँ बनाया,

इस दुनिया में आम इंसान को जीनाइतना मुश्किल होता हैं और यह तो खैर ब्लाइंड लोग हैं जिनका सवेरा ही अँधेरे में होता हैं |

एग्जाम रूम नंबर देखने के बाद हम सब क्लास में चले गए, इत्तेफाक कह सकते हैं मेरी फ्रेंड का मेरे से आगे वाले डेक्स पर था रोल नंबर, मुझे थोड़ा अच्छा लगा, मेरा जो कैंडिडेट था वो बहुत छोटे कद का था, उसका सिर उसके चेहरे के हिसाब से काफी बड़ा था उसकी सफ़ेद दांते बाहर निकली हुई थी, उसके आँखों पर मेरी नज़र गयी उसके आँखों के ब्लैक सर्कल नहीं थी, वो एक्साम्स को लेकर काफी टेंशन में था, एग्जामिनर ने पहले ही अनाउंस कर दिया था की सिर्फ अपने कैंडिडेट से आपस में आंसर डिस्कस कर सकते हैं लेकिन राइटर्स आपस में बात नहीं करेंगे.....

प्रश्नोत्तर मिलने से पहले मैंने थोड़ा हिम्मत करके पूछा-"आपने कुछ याद किया हैं"

वो बिलकुल चौक गया, और बहुत ही हड़बड़ाहट में जवाब दिया कि बीमार होने की वजह से उसे अपने घर जाना पड़ा था जिसकी वजह से उसने कुछ नहीं पढ़ा, मैं ये समझ गयी थी के सारा पेपर मुझे की करना पड़ेगा, पेपर करने के लिए ब्लाइंड स्टूडेंट्स को चार घंटे मिलते हैं यानी के एक घंटा एक्स्ट्रा !

आंसर शीट मिलने के बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया, थोड़ी ही देर बाद राउंड पर एक सर आये और उन्होंने अनाउंस किया कि सारे राइटर्स अपने कैंडिडेट से आंसर डिसकस करने के बाद ही लिखेंगे, जैसा की मुझे पता था सारा पेपर मुझे ही करना था इसलिए मैंने अपने कैंडिडेट से पूछा:-

-आप को यहा तक छोड़ने कौन आता हैं?

(पहले तो वह बिलकुल शांत रह कर सुनता रहा फिर उसने कहा)-"कोई नहीं, हम खुद आते हैं"

उसकी बाते सुन कर मैं हैरान थी, और मेरे लिए उसकी बातो पर विश्वाश करना मुश्किल था

-आप वैसे कहाँ से आते हो?

-"मैं नॉएडा के हॉस्टल में रहता हूँ वहां सिर्फ ब्लाइंड बच्चे ही रहते हैं लेकिन मेरा घर कानपुर के साइड हैं, मैं और मेरा दोस्त दोनों एक साथ आते हैं"

-अच्छा..., आप यहाँ तक कैसे आये, मतलब आपको हॉस्टल की गाड़ी वगैरह छोड़ने आती होंगी?

-"नहीं, मेरा और मेरे दोस्त का मैट्रो का पास बना हैं हम दोनों पहले मेट्रो में आते हैं फिर बस से यहाँ तक आते हैं"

मेरे मन में फिर से एक सवाल था, सोच रही थी पुछु या न पुछु, फिर मैंने सोचा अगर पूछूँगी नहीं तो मेरा सवाल रह जायेगा

-आप लोगो को आने में कोई परेशानी होती हैं?, मतलब.......

(वो मेरी बात सुन कर बिना हसीं के हसने लगा, मुझे अब अपने सवाल से नफरत होने लगा था ये तो कॉमन सी बात थी मुझे नहीं पूछनी चाहिए था, थोड़ी देर में पुरे क्लास के लोग शांत होकर पेपर करने लगे, बस कुछ लोगो की बाते करने की आवाज़ आ रही थी, अब मेरे कैंडिडेट ने मुझसे पूछना शुरू कर दिया -सिस्टर आप तो यही दिल्ली में रहती होंगी?

मैंने कहा-"हाँ, और ये स्कूल भी मेरे घर से ज़्यादा दूर नहीं हैं"

-"आप क्या करती हैं मेरे ख्याल से पढाई करती होंगी"

-“हाँ जी, अभी तो मैं भी पढाई करती हूँ लेकिन साथ में थोड़ी बहुत कहानियाँ भी लिख लेती हूँ”

-अच्छा आप कहानिया लिखती हैं, कैसी कहानिया लिखती हैं?

-"कुछ ख़ास नहीं बस जो कल्पना कर पाती हूँ वही लिखती हूँ, मेरी स्टोरीज सारी काल्पनिक होती हैं"

-“आप कभी हम जैसे ब्लाइंड लोगो पर भी कुछ लिखना, वैसे आप यहाँ आयी हो तो बहुत कुछ देखी होंगी......”

-हाँ ये मेरे लाइफ का पहला अनुभव होगा, और मैं इस पर ज़रूर लिखूंगी

(उसने बहुत जल्दी जबाब दिया)

-“ठीक हैं आप लिखना मैं ज़रूर पढूंगा”

(उसका कॉन्फिडेंस देख कर लग रहा था के अगर वो देख पाता तो मेरी सारी स्टोरीज़ पढ़ता)

मैंने अपना पेपर तीन घंटे में ही कर लिया था और जब मैंने अपनी फ्रेंड से पूछा तो उसने दस मिनट वेट करने को कहां)

मैं अपने जगह पर ही बैठी थी, मेरा कैंडिडेट भी वही था, उसने मुझसे कहा-

सिस्टर आप मुझे बता सकती हैं की क्या-क्या प्रशन आये हैं

मैंने कहा - बिलकुल, मैं पढ़ कर बताती हूँ”

(उसने सारे क़्वेश्चन बहुत ध्यान से सुना, थोड़ी देर बाद मेरी फ्रेंड ने भी अपना पेपर कर लिया और हम जाने के लिए तैयार हो गए, मैंने अपनी फ्रेंड से कहा कि सारा पेपर मैंने ही किया हैं मेरे कैंडिडेट ने कुछ भी याद नहीं किया था, उसने मुझे समझाया अगर ऐसा हैं तो उतना ही लिखना जितने में पास हो जाये नहीं तो ज़्यादा मार्क्स आगये तो इनका टेस्ट लेने लग जायेंगे, फिर उसके लिए प्रॉब्लम हो जाएगी, ऐसे ही बाते करते-करते हम दोनों एग्जिट गेट के पास पहुंच गए, वहां पर काफी सारे स्टूडेंट्स और उसके राइटर्स आपस में पैसो को लेकर बाते कर रहे थे, वहां पर सबसे अजीब ये था कि कुछ राइटर्स पैसो को लेकर अपने कैंडिडेट से झगड़ भी रहे थे, मैंने जब अपनी फ्रेंड्स से पूछा तो उसने कहा, पैसे कम दिया होगा इसलिए लड़ रहे हैं, मैंने अपनी फ्रेंड से फिर पूछा - ये लोग पैसे कहाँ से लाते हैं, मतलब देने के लिए...…

- जो लोग मन्नते मांगते हैं या फिर इनसे मिलने जाते हैं वो इनको पैसे देते हैं और गॉवमेंट कि तरफ से भी मिलते हैं पैसे, कुछ के तो पेरेंट्स आकर पैसे भी ले जाते हैं इनसे,

-क्या...., पैरेंट ले जाते हैं पैसे.....,,, हमारी आवाज़ सुन कर हमारे कैंडिडेट्स भी वहां आ गए

-मेरी फ्रैंड उससे एग्जाम के बारे में पूछने लगी, थोड़ी देर में हम दोनों के कैंडिडेट पैसे गिन कर देने लगे, जैसे ही मेरे कैंडिडेट ने पैसे देने के लिए हाथ बढ़ाया, मैंने उसे मना कर दिया -ये पैसे आप रख लो, मुझे नहीं चाहिए.…

-सिस्टर आप ने मेरा पेपर किया हैं उसके लिए हैं ये.…

-“मैंने पेपर किया हैं तो उसके लिए हमें एग्जामिनर देते हैं पैसे, आप मत दो...… उसने फिर भी पैसे देने के लिए ज़िद किया मैंने कहा-सिस्टर भी कहते हो और पैसे भी दे रहे हो, क्या एक बहन अपने भाई के लिए इतना भी नहीं कर सकती क्या, ये पैसे आप रख लो और बाहर कुछ खरीद कर खा लेना, ठीक हैं!”

(इस बार वह मेरी बात मान गया और पैसे वापस जेब में डाल लिया )

उसके बाद मैं और मेरी फ्रेंड दोनों वापस घर आ गए, मैंने अपने घर में सभी को उन ब्लाइंड स्टूडेंट्स के बारे में बताया, शायद मेरे घर में भी ज़्यादा किसी को पता नहीं था और कुछ तो अफ़सोस भी कर रहे थे कि लोग ऐसा करते है पैसो के लिए, मेरी अम्मी ने मुझे बताया कि उन लोगो को हमारे मदद कि ज़रूरत होती हैं जहाँ तक हमें हेल्प करनी चाहिए तो लोग उल्टा उनसे ही पैसे लेते हैं, खैर अगला पेपर इंग्लिश का था, जो दो दिन बाद होना था इसके लिए भी मैंने थोड़ा बहुत इंटरनेट से पढ़ लिया था|

दो दिन बाद

मैं और मेरी फ्रेंड दोनों फिर उस स्कूल में एग्जाम देने गए इस बार सब ठीक था पहले दिन की तरह मुझे आज बिलकुल नहीं लग रहा था, हम दोनों एग्जाम रूम देखने के बाद अपने-अपने क्लास में चले गए इस बार मेरी फ्रेंड का रोल नंबर दूसरे क्लास रूम में था, आज बिलकुल टाइम पर हम पहुंचे थे सीट पर बैठते ही क्वेश्चन पेपर मिलना शुरू हो गया था, थोड़ी देर बाद आंसर शीट भी मिल गयी मैंने लिखना शुरू कर दिया था, फिर से राउंड पर वही सर आये और उन्होंने वही बाते कही के आंसर अपने कैंडिडेट से डिसकस करने के बाद ही लिखना हैं, इस बार मेरे कैंडिडेट ने मुझसे सवाल किया:-

-"सिस्टर आज कल आप कौन सी कहानी लिख रही हैं ?"

-"अभी तो नहीं लिख रही क्यूंकि मेरे भी एक्साम्स शुरू होने वाले हैं इस मंथ के लास्ट में, उसके बाद से लिखुंगीं"

-“आप कहानी लिखने के बाद उसका क्या करती हो?”

-“फिर मैं पब्लिश करती हूँ वैसे अभी तक तो सिर्फ खुद से ही फ़्री वेबसाइट पर पब्लिश किया हैं लेकिन जल्द ही किसी पब्लिशर से पब्लिश करवाउंगी”

-“आप अपनी कहानी ब्रेल लिपि में भी पब्लिश करवाना, हम भी पढ़ेंगे आप की स्टोरीज, मैंने अपने हॉस्टल के दोस्तों को बताया तो वो भी आप की कहानिया पढ़ना चाहते है, आप ने यूट्यूब पर डाला हैं"”

-अच्छा..., नहीं यूट्यूब पर तो नहीं डाला हैं अभी ....

-दिल्ली में कहीं पर उत्तम नगर हैं, वहां पर ब्रेल लिपि में कहानी पब्लिश करते हैं.....

-“हाँ ज़रूर करवाउंगी ब्रेल लिपि में भी पब्लिश”,

उसके बाद मैं शांत होकर लिखने लगी

थोड़ी देर बाद मेरे कैंडिडेट ने फिर से मुझसे सवाल किये, इस बार उसने किसी लड़की का नाम बताया और पूछा की आप जानती हो इसे, ये भी मुस्लिम ही हैं और ये भी आप की तरह कहानियां लिखती हैं काफी फेमस भी हैं, मैंने तो पहली बार इस लड़की का नाम सुना था इसलिए मेरा ज़वाब था नहीं,

मैंने पूछा -आप को कैसे पता चला इसके बारे में

-“मैंने रेडियो पर सुना था, उसी पर सुन कर पता चलता हैं”

मैं फिर से शांत होकर लिखने लगी, इस पेपर को भी मैंने तीन घंटे में कर लिया था, लिखने के बाद हम जा सकते थे, मेरी फ्रेंड भी गेट के पास खड़ी थी, हम दोनों फिर से बाते करते करते एग्जिट गेट के पास पहुंचे, वहां पर हम दोनों के कैंडिडेट खड़े होकर बाते कर रहे थे, किसी कुत्ते के काटने की बात कर रहे थे

हमने पूछा - किसे कुत्ते ने काट लिया?

मेरी फ्रेंड के कैंडिडेट ने कहा-परसो हम लोग जा रहे थे यहाँ से तो छोटू ने एक कुत्ते के ऊपर पैर रख दिया था तो उस कुत्ते ने इसके पैर में काट लिया हैं |

हम दोनों ने हमदर्दी जताते हुए कहा - तो डॉक्टर को क्यूँ नहीं दिखाया, अभी तो ज़्यादा टाइम नहीं हुआ है यहाँ से जाते ही डॉक्टर को दिखा लेना नहीं तो ज़हर फैल जायेगा तो बाद में बहुत प्रॉब्लम आएगी ।

उन दोनों ने अपना-अपना एक्सपेरिएंस बताया - एक बार जब हमें सांप ने काटा था तो दो दिन तक तो दर्द हुआ लेकिन फिर अपने आप ही ठीक हो गया, हम पर कोई ज़हर काम नहीं करता यह भी अपने आप ठीक हो जायेगा।

उनकी बाते सुन कर हमारे चेहरे की स्माइल चली गयी थी, मैंने पूछा-“आप लोग लोग अपने हॉस्टल के टीचर या फिर देखरेख करने वाले को नहीं बताते.....”

-वो दोनों बिना हसी के हसने लगे थे उनकी हसी से लग रहा था कि इनकी समस्याओ पर कोई ध्यान नहीं देता होगा ।

हम दोनों वापस अपने- अपने घर आ गए, अगला पेपर था म्यूजिक का हालांकि मैंने कभी म्यूजिक के बारे में पढ़ा नहीं था लेकिन एग्जाम देने थे इसलिए मैंने उसकी भी थोड़ी बहुत तैयारी की थी, ये पेपर भी अच्छे से हो गया था इससे अगला पेपर था संस्कृत का जो मुझे कभी समझ आया ही नहीं हालांकि मैंने तीन साल तक पढ़े थे लेकिन मैं उसमे पास कैसे हो गयी थी यह मुझे भी नहीं पता चला अभी तक, इस बार मेरा पेपर नहीं था इसलिए मैंने अपनी फ्रेंड को बताया कि मुझे संस्कृत लैंग्वेज नहीं आती हैं और मैं इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती क्यूँकि अगर ये स्टूडेंट रह गया तो इनका कम्पार्टमेंट आ जायेगा, उसने हसते हुए कहा-मुझे कौन सी आती हैं, अरे इतना मुश्किल नहीं होता हैं, आस पास वाले हेल्प कर देते हैं.....

मैंने फिर भी सोचा कि अपने जान पहचान के लोगो से बात करती हूँ शायद वो मुझसे अच्छा करेंगे, मुझे उस दिन ये अहसास हुआ कि सच में इन ब्लाइंड स्टूडेंट्स को राइटर ढूंढने में मुश्किल होता होगा.....,

ये पेपर भी मुझे ही करना था, मैं अपनी फ्रेंड से पूछती रही कि वो संस्कृत का पेपर कैसे करती हैं, उसने भी स्कूल टाइम में संस्कृत लैंग्वेज नहीं पढ़ा था बल्कि उसके पास तो पंजाबी लैंग्वेज थी खैर मैंने ये पेपर भी अच्छे से कर लिया और मेरे साथ वाले लोगो ने काफी हेल्प किया था, इससे अगला पेपर था सोशल स्टडी का जो मेरा कभी फेवरेट सब्जेक्ट हुआ करता था, इसे भी मैंने अच्छे से कर लिया था लेकिन मुझे अपनी फ्रेंड कि कही हुई बाते याद थी के अगर इनके ज़्यादा मार्क्स आ गए तो उनका टेस्ट लिया जायेगा इसलिए मैंने उतना ही लिखा जितने से यह पास हो सके ।

लगभग डेढ़ महीने बाद रिजल्ट आया, जिसमे उस स्टूडेंट के सिक्सटी वन पर्सेंट मार्क्स थे उसने मुझे फ़ोन करके बहुत ख़ुशी-ख़ुशी

बताया –“सिस्टर मेरा सिक्सटी वन पर्सेंट मार्क्स आया हैं और आप डर रहे थे संस्कृत में उसमे तो सिक्सटी सेवन पर्सेंट मिला हैं, आप का बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी इतनी मदद कि, मैंने पढ़ा भी नहीं था लेकिन अच्छे नंबर से पास हो गया हूँ दसवीं में.....

आप मेरे बारहवीं का भी पेपर दे देना, ठीक हैं!”

ब्लाइंड स्टूडेंट्स के लिए सिक्सटी वन परसेंट बहुत मायने रखते हैं

-“पहले तो मैंने उसको पास होने के लिए मुबारक बाद दिया, फिर मैंने उसे समझाया कि अगली बार से आप भी अच्छे से तैयारी कर लेना नहीं तो आप को कभी समझ नहीं आएगा कि आप के पास क्या-क्या सब्जेक्ट्स थी और अगला पेपर मैं आप का नहीं दे पाऊँगी क्यूंकि मैंने आर्ट्स स्ट्रीम नहीं पढ़ा हैं इसलिए मेरे लिए बहुत ज़्यादा मुश्किल हो जायेगा लेकिन मैं आप के लिए दुआ कर सकती हूँ के आप को एक अच्छा राइटर मिले……”

मुझे बहुत अच्छा लगा कि मेरी थोड़ी सी मेहनत किसी दूसरे कि काम आयी हैं और वो भी ऐसे लोग के जिसे हमसब कि मदद की ज़रूरत रहती हैं, अपने आप में यह बात बहुत गलत हैं कि हम जैसे लोग इन सब के साथ बुरा व्यहवार करते हैं लेकिन सच ये हैं कि हमारी थोड़ी सी मदद से शायद इनकी ज़िन्दगी बदल सकती हैं इसलिए जब भी मौका मिले ऐसे लोगो कि मदद ज़रूर करे वैसे तो हमारे देश कि सरकार डिसएबल लोगो के लिए बहुत कुछ करती हैं लेकिन हमे भी थोड़ा सहयोग करनी चाहिए !

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