सोम अंकल
आशीष कुमार त्रिवेदी
जब से सोम कुछ समय के लिए नीरज और शोभा के साथ रहने के लिए आया था घर में चहल पहल बढ़ गई थी। सोम नीरज का मौसेरा भाई था। करीब एक दशक से वह लंदन में रह रहा था। कुछ समय पहले नीरज के मौसा मौसी भी लंदन चले गए थे। उन्होंने अब वहीं सोम के साथ रहने का फैसला कर लिया था। अतः सोम यहाँ उनका मकान और कुछ अन्य जायदाद बेंचने के लिए आया था।
बचपन में नीरज और सोम की बहुत पटरी खाती थी। सोम ने उससे कहा था कि वह यहाँ उसके ठहरने की कोई व्यवस्था कर दे। क्योंकी उसी शहर में रहना था इसलिए नीरज ने प्रस्ताव रखा कि वह उन्हीं लोगों के साथ ठहर जाए। सोम को भी यह विचार पसंद आया। वह अपना सामान लेकर आ गया।
सोम उन लोगों के साथ घुल मिल कर रहता था। जब भी फुर्सत मिलती शोभा को रसोईघर से बाहर कर खुद ही अपना कुकिंग का शौक पूरा करने लगता। वह सचमुच ही बहुत अच्छा खाना बना लेता था। कभी वह उन्हें डिनर पर या मूवी दिखाने ले जाता था। शोभा हंस कर कहती।
"सोम तुम तो मेरी आदत बिगाड़ रहे हो। तुम चले जाओगे तो बहुत दिक्कत होगी। नीरज तो सही से चाय भी नहीं बना पाते हैं।"
उसकी इस बात पर वह हंस कर कहता।
"भाभी आपको भी मैं अपने साथ लंदन ले चलूँगा। अकेले जब पकाना पड़ेगा तो नीरज भाई सब सीख जाएंगे।"
लेकिन नीरज और शोभा के आठ वर्षीय बेटे अथर्व का वह पक्का दोस्त बन गया था। अथर्व भी हमेशा अपने सोम अंकल के आगे पीछे लगा रहता था। अक्सर सोम अथर्व को घुमाने के लिए ले जाता था। जब भी दोनों लौटते अथर्व के हाथ में कोई ना कोई नया खिलौना अवश्य होता था। शोभा टोंतती तो वह हंस कर कह देता।
"देखिए यह हम दोनों दोस्तों के बीच का मामला है। अथर्व मेरा प्यारा सा दोस्त है।"
फिर अथर्व से पूँछता।
"क्यों सही है ना पार्टनर..."
अथर्व भी उसके हाथ में ताली बजा कर कहता।
"सोम अंकल मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं।"
दोनों खिवखिला कर हंस देते थे। शोभा भी बस मुस्कुरा कर रह जाती थी।
सोम का भारत में काम बस समाप्त होने पर ही था। अगले हफ्ते उसे लंदन लौटना था। इसी बीच शोभा को अपने चचेरे भाई की सगाई पर जाना था। वह संकोच कर रही थी कि सोम को अकेले छोड़ कर समारोह में कैसे जाए। किंतु सोम ने आसानी से सारी समस्या हल कर दी।
"अरे भाभी इसमें संकोच की क्या बात है। मैं क्या छोटा बच्चा हूँ। मैं आराम से रह लूँगा। फिर एक दिन की ही तो बात है।"
यह बात सुनते ही अथर्व बोल पड़ा।
"मैं भी सोम अंकल के साथ ही रुकूँगा।"
शोभा ने आपत्ति की कि उसके रहने से अंकल को तकलीफ होगी। अतः वह नहीं रुक सकता है। पर सोम ने कहा।
"कैसी तकलीफ। हम दोनों दोस्त साथ में मज़ा करेंगे। आप निश्चिंत रहिए।"
नीरज और शोभा अथर्व को सोम के पास छोड़ कर चले गए।
शोभा जब लौट कर आई तो अथर्व कुछ बुझा बुझा सा था। शोभा ने प्यार से सर पर हाथ फेर कर पूँछा।
"बात क्या है? वह इतने सुस्त क्यों हो? तबीयत ठीक नहीं है क्या?"
अॉथर्व कुछ कहने ही जा रहा था कि तभी सोम आ गया।
"देखो ना भाभी मेरे दोस्त को क्या हो गया। कुछ बोलता ही नहीं। लगता है अपने अंकल से किसी बात पर नाराज़ है।"
शोभा ने अथर्व से पूँछा।
"क्यों नाराज़ हो अंकल से? कोई झगड़ा हो गया क्या?"
अथर्व ने सोम की तरफ देखा। फिर नज़रें झुका कर कहा।
"मैं किसी से नाराज़ नहीं।"
शोभा के कुछ कहने से पहले ही सोम बोल पड़ा।
"लगता है कल क्रिकेट खेलते हुए मैं आउट नहीं हुआ उसी से नाराज़ है। कोई बात नहीं मैं अपने दोस्त को मना लूँगा।"
सोम यह कह कर अथर्व को छत पर ले गया कि हम दोनों दोस्त खुली हवा में बैठ अपनी नाराज़गी दूर करेंगे। आप तब तक हमारे लिए पकौड़े बनाइए। हम नीचे आकर खाएंगे।
छत पर पहुँच कर सोम ने उसे मुंडेर पर बैठा दिया। खुद भी वह उस पर चढ़ कर बैठ गया।
"तो मेरा दोस्त नाराज़ है मुझसे ....बोलो..."
सोम ने अथर्व का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर पूँछा। अथर्व ने उसकी तरफ नज़रें उठा कर धीरे से कहा।
"आप गंदे हैं। आप ने जो किया वह मुझे अच्छा नहीं लगता। दर्द होता है मुझे।"
सोम के होंठों पर शैतानी मुस्कान खिल गई।
"अंकल गंदे हैं... गंदी बात करते हैं... पर अगर तुमने ये किसी को बताया तो लोग तुम्हें ही गंदा कहेंगे।"
सोम ने अथर्व का हाथ तेज़ी से दबा कर कहा।
"याद है ना कल अंकल ने कैसे छत से नीचे लटकाया था... फिर लटकाऊँ क्या ???"
अथर्व भय से कांपने लगा। तभी खटाक की आवाज़ हुई। शोभा के हाथ से छूट कर सोम का फोन ज़मीन पर गिर गया था। शोभा को मानो काठ मार गया था। उस पर नज़र पड़ते ही सोम ने फौरन अथर्व को गोद में उठा लिया।
"तो भाभी आपने सब सुन लिया। पर अपने बेटे की खातिर अपनी ज़बान बंद रखिएगा। नहीं तो...."
सोम ने अथर्व को छत से नीचे फेंक देने का इशारा किया। भय से शोभा चीख पड़ी।
"नहीं.....प्लीज़ मेरे बेटे को कुछ मत करो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी।"
नीरज घर में घुसा ही था कि उसे छत से आती शोभा की चीख सुनाई पड़ी। वह तुरंत छत की तरफ भागा। वहाँ पहुँचा तो देखा कि शोभा सोम के सामने गिड़गिड़ा रही थी। वह उसे धमका रहा था कि किसी से कुछ भी कहा तो वह बच्चे को मार देगा। नीरज मामला समझ तो नहीं पाया। लेकिन यह जान गया कि सोम अथर्व को नुकसान पहुँचाना चाहता है। उसने सोम से कहा।
"तुम अथर्व को छोड़ दो। हम तुम्हारी सारी बात मानेंगे।"
"ठीक है। तुम लोग चुपचाप मुझे यहाँ से जाने दोगे। पुलिस को या किसी और को कुछ नहीं बताओगे।"
"हम तुम्हें कुछ नहीं करेंगे। बस हमारे बच्चे को छोड़ दो।"
सोम के मन में द्वंद चल रहा था। यदि उसने अथर्व को छोड़ दिया तो ये लोग अवश्य उसके खिलाफ कार्यवाही करेंगे। किंतु वह उसे ऐसे कब तक पकड़े रह सकता है। उसे अपने को बचाने के लिए कुछ ठोस सोंचना होगा। उसका दिमाग तेज़ी से चल रहा था। नीरज और शोभा के लिए हर पल कठिन हो रहा था।
उन लोगों के पड़ोस की छत पर उनका पंद्रह वर्षीय पड़ोसी मयंक सब देख रहा था। वह समझ गया कि अथर्व खतरे में है। दोनों मकानों की छतें जुड़ी हुई थीं। सिर्फ एक दीवाल लांघनी थी। मयंक ने सावधानी से दीवार फांदी और दबे कदमों से सोम तक पहुँच गया। सोम अपनी उलझन में कुछ देख नहीं सका। मयंक ने फुर्ती से अथर्व को गोद से छीन लिया। सही मौका देख नीरज सोम पर झपट पड़ा।
शोभा पकौड़े बनाने जा रही थी तभी उसने देखा कि सोम का फोन बज रहा है। कोई आवश्यक फोन ना हो यह सोंच कर वह उसे फोन देने गई थी। वहाँ पहुँची तो सोम का वह रूप देख कर घबरा गई।
सोम को पुलिस के हवाले कर दिया गया। सामान्य होने पर अथर्व ने जो बताया उसे सुन कर नीरज और शोभा के होश उड़ गए। वह अपने आप को दोष दे रहे थे कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति पर भरोसा कर अपना मासूम बच्चा उसे सौंप दिया।
अथर्व के दिल पर एक गहरी चोट लगी थी। उसके मन पर लगे घावों को भरने के लिए नीरज और शोभा को बहुत धैर्य से काम लेना पड़ा। मनोचिकित्सक के साथ कई सेशन करने के बाद अथर्व कुछ सामान्य हो सका। धीरे धीरे उसने हंसना खेलना शुरू कर दिया। पर शोभा जानती थी कि सोम ने जो किया उसके निशान मिटाना आसान नहीं होगा।
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