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सुदर्शन...

सुदर्शन

उस दिन लगा शाम पूछ रही है,"क्या प्यार के बारे में सोच रहे हो?" मैंने कहा," नहीं, रोजगार के बारे में सोच रहा हूँ। " फिर सूरज चुपचाप छिप गया, अगली सुबह लाने के लिये। मैं पास के बेंच पर बैठ गया। धीरे-धीरे नक्षत्र आकाश पर दिखने लगे। झील पर सन्नाटा छाने लगा। सेना का जवान सेना कार्यालय के द्वार पर खड़ा अपनी ड्यूटी दे रहा था। उत्तराखंड के नौजवान सेना में भर्ती होने के लिये निरंतर प्रयासरत रहते हैं। रानीखेत कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय है। युवकों को सेना में जाने के लिए प्रेरणा देता है। पहाड़ी पर बसा यह शहर मनमोहक है। हिमालय की छटा इसे और भी दर्शनीय बना देती है। चीड़ के वृक्ष बहुतायत में हैं कहीं कहीं बांझ, बुरुश आदि वृक्ष भी दिखायी देते हैं। बहुत सी फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ होती रही है। ऋतु विशेष में काफल बेचने नजदीक गांव के लोग यहाँ आते हैं। चौबटिया उद्यान, सेबों के लिये प्रसिद्ध है। चिड़ियानौला जाते समय सेना का चालमारी स्थल आता है जहाँ सटीक निशाने लगाने का अभ्यास कराया जाता है। १९७० में वहाँ सेना की परेड देखी थी, राष्ट्रपति तब वहाँ आये थे। सैनिकों की चपलता, साहस और अनुशासन देखते ही बनता था। मेरे दोस्त के भाई सेना में मेजर थे, उनदिनों घर आये हुए थे। उन्होंने मेरे से पूछा," मैं जा रहा हूँ, की अंग्रेजी अनुवाद बताओ। मैं चुप रहा। अंग्रेजी के प्रति भारतीयों का मोह यह सब दिखाता है। बचपन से देखता आया हूँ कि सेना के जवान दो माह की छुट्टियां लेकर अपने घर आते हैं। बहुत से परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी सेना में लोग काम करते आये हैं। १९४७ से पहले से। १९६० से पहले रानीखेत तक ही मोटरमार्ग था। मेरे दोस्त के पिता १९२६ में लखनऊ में भर्ती हुए थे। वे श्री लंका में भी रहे। जहाँ वे रहे वहाँ जोंक बहुत होते थे और बूटों में घुसकर काटते थे। नमक के प्रयोग से उन्हें छुड़ाया जाता था। जब श्रीलंका में उनकी पलटन थी तो किसी ने अंग्रेज कर्नल को रात में गोली मार दी थी अत: पूरी पलटन को भारत भेज दिया गया। यह पता नहीं लग पाया कि किसने उसे मारा। अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना उस समय सभी जगह जड़ पकड़ने लगी थी।

१९६५ में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय जब गांव में तार आया तो शाम का समय था। पोस्ट मास्टर का लड़का सेना में था, युद्ध क्षेत्र में। डाकघर बारहखामू में है। वहाँ पर ग्यारह पत्थर के खम्भे हैं। कहा जाता है कि वहाँ पर बारह खंभे थे जो पांडवों ने बनाये थे। जब बारह खंभे थे तो तब ये रात में चमकते थे और सुनहरे दिखते थे। एक बार रात में एक चोर वहाँ आया और उसने इन्हें सोने का समझ कर एक खंभे को निकाला और पीठ पर बांध कर ले गया। लगभग तीन किलोमीटर चलने के बाद जब सुबह हुयी तो उसने बिश्राम के लिए खंभे को जमीन पर रखा और देखा कि जो खंभा वह ले जा रहा है वह पत्थर का बना है। उसे उसने वहीं छोड़ दिया जो अब भी वहाँ पड़ा है, तया में।

तार को खोलते समय उनके हाथ काँप रहे थे। उस समय यह धारणा थी कि तार बुरी खबर देने ही भेजे जाते हैं। तार पढ़ते ही उनके आँसू निकल आये। उनका बेटा सुदर्शन शहीद हो गया था। घर जब यह समाचार पहुंचा तो उसकी पत्नी और माँ स्तब्ध रह गये और रो-रो कर उनका बुरा हाल हो गया। पूरा गांव उन्हें सान्त्वना देने आ गया। शोक पूरे गांव में पसर गया।

बचपन में सुदर्शन,माखनलाल चतुर्वेदी की कविता जोश में पूरी कक्षा को सुनाता था।

" मुझे तोड़ देना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक। "

वह खेलकूद में बड़ चढ़ कर भाग लेता था।

एक माह पहले उसका पत्र अपनी पत्नी को आया था।

प्रिय कृतिका, हमारी पलटन पाकिस्तान सीमा पर जा रही है। सीमा पर भारी तनाव है। युद्ध में जवानों को शौर्य दिखाने का यही अवसर होता है। देश की सीमाओं की रक्षा करना हमारा दायित्व है।

होली, दशहरा, दिवाली, उत्तरायणी, फूलधैयी आदि त्योहार आते रहेंगे, लौटकर आयेंगे तो फिर साथ साथ मनायेंगे। लेकिन वीरों के लिए कम अवसर आते हैं जब शौर्य उनका स्वागत करता है। दो साल पहले इन दिनों कलकत्ता में साथ-साथ थे।

माता-पिता के लिए अलग से पत्र भेज रहा हूँ।

उस समय जवान के घर वाले सरकार के सामने असहज मांग नहीं रखते थे। जैसे परिवार के सदस्य को नौकरी,पेट्रोल पंप आदि। मांग रखना वीरता का सम्मान नहीं है। सहज रूप से सरकार और समाज जो करता है वही आदरणीय है।

छ माह पहले ही सुदर्शन घर आया था। गांव में सबसे मिलने गया था। सुदर्शन गांव में अपने साथियों को बताता है सेना में जवानों का काम केवल परैड करना और गोली चलाना ही नहीं है। वे खेलकूद, व्यायाम, आपदा के समय लोगों की सहायता करना, अनेक प्रकार की ट्रेनिंग लेना और देना, अध्ययन और अध्यापन, सीमाओं का अध्ययन, पर्वतारोहण आदि कामों से जुड़े रहते हैं।

दो साल पहले सुदर्शन की कलकत्ता में नियुक्ति थी। तब वह अपनी पत्नी को साथ ले गया था। उसकी पत्नी गांव आने पर कलकत्ता शहर के बारे में अपनी सहेलियों को बड़े उत्साह से बताती है। कितने कम समय में कितना ज्यादा वह शहर के बारे में जान गयी है। जो नहीं जानी वह कल्पना में आ जाता है। बीबीडी बाग की सड़कें, विक्टोरिया मिमोरियल, ट्राम सेवा, म्यूजियम, चिड़ियाघर, गैरियाहाट का सुन्दर बाजार, हावड़ा ब्रिज, जहाजों का हुगली नदी में आना-जाना आदि।

ड्यूटी को जाते समय पिट्ठा लगा कर उसको परिवार वालों और पड़ोसियों ने विदा किया था।

शहीद होने के बाद उसकी वीरता की अनेक कहानियां सुनने में आयीं।

हाजी पीर दर्रे वाले क्षेत्र में उसकी पलटन नियुक्त थी। यह क्षेत्र लगभग ८५०० फीट की ऊँचाई पर है। २८ अगस्त १९६५ को भारतीय सेना ने यहाँ विजय पताका फहरायी थी। रात में ही सेना के जवान डेढ़ हजार फीट ऊँची चोटी पर पहुंचे, सुदर्शन भी उन में एक था। पीठ पर सामान, पानी, गोला, बारूद आदि लेकर चढ़ना बहुत अधिक कठिन काम था लेकिन सभी सैनिकों ने अपूर्व साहस और उत्साह का परिचय दिया। अचानक भारतीय जवानों को देख, पाकिस्तान के सैनिक अचम्भे में पड़ गये। दो महावीर चक्र योद्धाओं को इस विजय के लिए दिये गये। इसी अभियान में सुदर्शन को वीरगति प्राप्त हुई।

इसी दर्रे से पाकिस्तानी घुसपैठिए काश्मीर में आते हैं। और कश्मीर पर विजय का सपना देखते हैं। इसे आठ किलोमीटर तक भारतीय सेना ने अपने अधिकार में ले लिया था और पाकिस्तान को इस क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा था। और घुसपैठिये पाक सैनिकों का पाकिस्तान से सम्पर्क टूट गया था।

१९६५ के युद्ध में पाकिस्तान ने अमेरिका से प्राप्त पैटन टैंकों का का प्रयोग किया था। उसे ये टैंक इस शर्त पर मिले थे कि वह इन्हें भारत के विरुद्ध प्रयोग नहीं करेगा लेकिन हुआ उल्टा। उसने उस समय कम्युनिस्ट विस्तार रोकने के लिए ये टैंक लिए थे, जो एक बहाना मात्र था। कहा जाता है कि भारतीय सैनिकों ने रात में कई स्थानों पर पानी छोड़ दिया था जिससे पैटन टैंक गीली मिट्टी में धसने लगे थे। इस युद्ध में भारत ने लगभग ७१० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र लाहौर, कश्मीर और सियालकोट इलाके में जीता था और पाकिस्तान ने छम्ब और सिंध क्षेत्र में लगभग २१० वर्ग किलोमीटर।

युद्धों में दोनों पक्षों की जन - धन की बहुत हानि होती है। अघोषित युद्ध में भी पाकिस्तान सीमा पर हर रोज जन धन की क्षति होती है। अतः ऐसी संधियां हों जिसमें शान्ति के समय गोलीबारी न हो।

गांव वालों ने सुदर्शन को उसकी बचपन की प्रिय कविता की इन पंक्तियों के साथ श्रद्धांजलि दी।

"मुझे तोड़ देना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक। "

महेश रौतेला

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