यह आकाशवाणी है Ashish Kumar Trivedi द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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यह आकाशवाणी है

यह आकाशवाणी है

आशीष कुमार त्रिवेदी

'यह आकाशवाणी का...… केंद्र है। अब आप समाचार सुनेंगे' यह आवाज़ आपको आपके रेडियो या ट्रांजिस्टर सेट पर सुनने को मिलती है। टीवी प्रसारण के आरंभ से पहले रेडियो हमारे जीवन का अहम हिस्सा था।

15 अगस्त 1947 को आधी रात के समय जब भारत एक आज़ाद मुल्क बना और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से अपना प्रसिद्ध भाषण 'नियति के साथ मुलाकात' दिया तब लाखों भारतीय ध्यान लगाए अपने रेडियो सेट से चिपके थे। प्रिय बापू की अंतिम यात्रा का वर्णन सभी ने आँखों में आंसू भरे रेडियो पर ही सुना।

क्रिकेट की कमेंट्री, समाचार, गोष्ठियां, संगीत सब कुछ हम तक रेडियो के माध्यम से ही पहुँचा। एक लंबे समय तक सूचनाओं के प्रसारण का सबसे अच्छा साधन रेडियो ही था। रेडियो देश के लोगों को एक सूत्र में बांधे रखने में सफल था|

रेडियो की पहुँच अमीर गरीब, पढ़े लिखे तथा अनपढ़, ग्रामीण एवं शहरी सभी तक है। यह लोगों तक सूचना तथा मनोरंजन पहुँचाने का सस्ता साधन है।

रेडियो का इतिहास

1900 में इंग्लैंड से अमरीका सबसे पहला बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत हुई थी। लेकिन एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई। 24 दिसम्बर 1906 को कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में तैर रहे अनेक जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुनी। इस प्रकार दुनिया में रेडियो प्रसारण का आरंभ हुआ।

ली द फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इस सफलता के बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। किंतु तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने के बाद रेडियो प्रसारण का अधिकार केवल सेना तक ही सीमित कर दिया गया था। किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रसारण करना मना था।

नवंबर 1920 में फ्रैंक कॉनार्ड को जो नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके थे, दुनिया में पहली बार कानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति प्रदान की गई। उसके बाद कुछ ही सालों में दुनिया भर में सैकड़ों रेडियो स्टेशनों ने काम करना प्रारंभ कर दिया। 1923 में रेडियो पर विज्ञापनों का प्रसारण होने लगा। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई।

भारत में रेडियो प्रसारण

भारत में रेडियो की शुरुआत सर्वप्रथम मद्रास प्रेसिडेंसी क्लब ने 1924 में की। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण 1927 में इसे बंद करना पड़ा। लेकिन उसी वर्ष मुंबई के कुछ व्यापारियों ने इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के नाम से मुंबई और कोलकाता में पुनः प्रसारण आरंभ किया। 1930 तक यह भी असफल हो गई। 1932 में भारत की ब्रटिश सरकार ने इसे अपने अधिकार में लेकर इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग डिपार्टमेंट का आरंभ किया। 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो नाम प्रदान किया गया।

1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए।

नरीमन प्रिंटर उन दिनों बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसिपल थे। उन्होंने रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा पाई थी। लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ही उन्होंने अपने रेडियो ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग-अलग जगह पर छुपा दिए।

गाँधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आरंभ कर अंग्रेज़ों भारत छोडो का नारा दिया। तब अंग्रेज़ों ने गाँधी जी सहित कई नेताओं को 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिया गया। प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गई।

कांग्रेस के कुछ नेताओं के द्वारा अनुरोध करने पर नरीमन प्रिंटर ने अपने ट्रांसमीटर के पुर्जों को फिर से एकजुट किया। माइक शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से लिया गया। इस प्रकार मुंबई के चौपाटी इलाके की सी व्यू बिल्डिंग से 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण शुरु गया।

रेडियो के पहले प्रसारण की उद्घोषिका ऊषा मेहता थीं। यह प्रसारण 41.78 मी. पर एक अंजान जगह बने स्टेशन से किया गया। इसी रेडियो स्टेशन ने गांधी जी का भारत छोड़ो का संदेश, मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने की ख़बर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेज़ों के दुराचार जैसी ख़बरों का प्रसारण किया जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था।

12 नवम्बर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस प्रकार नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण बंद हो गया।

सुभाष चंद्र बोस द्वारा 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई। इसका प्रसारण पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से हुआ। आज़ाद हिंद रेडियो भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित करता रहा।

स्वतंत्रता के पश्चात रेडियो का विकास

1947 में जब भारत स्वतंत्रत हुआ तब देश में कुल छह रेडियो स्टेशन थे। रेडियो की पहुँच देश की आबादी के केवल 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज देश में 223 रेडियो स्टेशन हैं जो आबादी के 99.1 प्रतिशत भारतीयों तक प्रसारण पहुँचाते हैं।

1957 से ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदल कर आकाशवाणी कर दिया गया। आकाशवाणी प्रसार भारती के तहत कार्य करता है। इसके माध्यम से हिंदी, अंग्रेज़ी एवं अन्य कई क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

विविध भारती ऑल इंडिया रेडियो की सबसे अच्छी सेवाओं में से एक है। यह एक वयवसायिक सेवा है जिसमें विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं। यह सेवा भारत के कई बड़े शहरों में लोकप्रिय हैं। विविध भारती समाचर, फिल्म संगीत और कॉमेडी कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। हित कई कार्यक्रमों की पेशकश करते हैं.

स्वतंत्रता के बाद जब देश विकास के रास्ते पर चल रहा था तब रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें जागरूक नागरिक बनाने का काम किया जाता था। ऑल इंडिया रेडियो का मुख्य उद्देश्य देश में राष्ट्रीय चेतना और एकता के भाव को बढ़ावा देना था।

देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री सरदार पटेल बनाए गए। आजादी के बाद सरकार ने रेडियो के विकास की वृह्द योजना बनायी। देश की पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत रेडियो के विकास के लिए अलग से धन राशि मुहैया कराई गयी।

रेडियो के द्वारा देश के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने वाले, खेती के आधुनिक और नए तरीकों के बारे में जानकारी देने वाले कार्यक्रम प्रसारित किए गए। इसके अतिरिक्त कई शैक्षणिक व मनोरंजक कार्यक्रम भी प्रसारित होते थे।

भारत में टीवी के प्रसारण की शरुआत के बाद भी कई सालों तक रेडियो सूचना के प्रसारण का प्रमुख माध्यम रहा। लेकिन जैसे जैसे टीवी का क्षेत्र बढ़ने लगा रेडियो की लोकप्रियता कम होने लगी। खासकर केबल टीवी की शुरुआत के बाद रेडियो की लोकप्रियता में बहुत कमी आई।

नब्बे के दशक से रेडियो के निजीकरण की मांग उठने लगी। 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में हवाई तरंगों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया। मार्च 2000 में सरकार ने देश के 40 बड़े शहरो में 108 रेडियो स्टेशनों के लाइसेंसे देने के लिए खुली बोली लगाई। लेकिन एक मोटी रकम लाइसेंस फीस के रूप में दी जानी थी। अतः 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. चैनल रेडियो सिटी बैंगलौर से आरंभ हुआ। इसके बाद देशभर में एफ.एम. रेडियो चैनलों के खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। अनेक कंपनियों ने आरंभिक दौर में घाटा भी उठाया।

डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में 2003 में सरकार ने एक समिति का गठन किया। समिति द्वारा सरकार को लाइसेंस फीस में कमी लाने के साथ-साथ नियमों में थोड़ी ढ़ील देने सुझाव दिया गया।

16 नवम्बर 2006 को तत्कालीन यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति प्रदान की। इन रेडियो स्टेशनों में भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है।

सामुदायिक रेडियो

सामुदायिक रेडियो के क्षेत्र में भारत में अभी शुरूआत ही हुई है। अनेक स्वयंसेवी संगठनों के लगातार अभियान चलाने के कारण सरकार ने सामुदायिक संगठनों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार रेडियो चैनल चलाने की इजाजत दे दी। 2004 में अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई में देश का पहला कैंपस रेडियो स्टेशन खोला गया। कच्छ महिला विकास संगठन द्वारा चलाया जा रहा सामुदायिक रेडियो कुंजल पंछी एक अच्छा प्रयास है।

आंध्रप्रदेश के मेडक जिले के जहीराबाद इलाके में दलित महिला संगठन-संगम द्वारा भी यूनेस्को की मदद से सामुदायिक रेडियो चलाया जा रहा है। आने वाले समय में निजी एफ.एम. चैनलों के साथ-साथ सामुदायिक रेडियो चैनलों की संख्या में भी वृद्धि होने की संभावना है।

रेडियो के प्रसिद्ध कार्यक्रम

जयमाला

सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों पर तैनात भारतीय सेना के जवानों के लिए रेडियो मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन है। अतः विविध भारती द्वारा जयमाला नामक फिल्मी गीतों का एक विशेष कार्यक्रम शुरु किया गया। इसमें फ़ौजी भाई आकाशवाणी को पत्र लिखकर अपनी फ़रमाइश भेजते थे और उनकी फ़रमाइश को पूरा करते हुए विविध भारती रोज़ शाम को सात बजे वही गीत बजाया करता था। यह कार्यक्रम विविध भारती की शुरुआत के साथ ही आरंभ हुआ था। यह आज भी हमारे जवानों के बीच लोकप्रिय है। शनिवार को शाम 7 बजकर पांच मिनट पर स्पेशल जयमाला फौजी भाइयों के लिये पेश किया जाता है जिसे बॉलीवुड सेलीब्रिटी करते हैं।

बिनाका गीतमाला

यह भी एक बेहद प्रसिद्ध कार्यक्रम था। जो कि प्रसिद्ध उद्घोषक अमीन सायानी द्वारा बहुत सुंदर अंदाज़ में प्रस्तुत किया जाता था।

“बहनों और भाईयों, अब बारी आती है उस गीत की जो पिछले हफ़्ते पाँचवीं पायदान पर था लेकिन इस बार यह दो पायदानों की छलांग लगा कर आ पहुँचा है नम्बर तीन पर”

इसमें उस समय के फिल्मी गीतों को उनकी लोकप्रियता के पायदान (नंबर) के आधार पर बजाया जाता था। बाद में प्रायोजक का नाम बदल जाने के कारण यह सिबाका गीतमाला हो गया। यह कार्यक्रम 1952 से 1994 तक लगातार प्रस्तुत किया गया।

हवा महल

रात 9:30 बजे आने वाले इस कार्यक्रम में श्रोताओं को छोटी-छोटी कहानियां और नाटक सुनवाए जाते थे।

छाया गीत

हर रात दस बजे छाया गीत प्रसारित होता था। इसमें पुराने हिंदी फिल्मी गीत श्रोताओं का मन मोह लेते थे। गर्मियों की रात में अपने ट्रांजिस्टर को सीने पर रख कर छत पर बिछे बिस्तर पर लेटे हुए इन गीतों को सुनने का मज़ा ही कुछ और होता था।

इनके अतिरिक्त भूले बिसरे गीत, बाइस्कोप की बातें, संगम, सेहतनामा, हैलो फ़रमाइश, पिटारा इत्यादि बहुत से कार्यक्रम श्रोताओं की पसंद थे।

रेडियो प्रसारण का एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिये सूचनाएं कुछ ही सैकिंडों में चारों तरफ पहुंचाई जा सकती हैं। लोगों का मनोरंजन करने के साथ साथ उन्हें शिक्षित भी किया जा सकता है।

इंटरनेट के इस दौर में सोशल नेटवर्किंग के कारण टीवी का क्रेज कम हुआ है लेकिन रेडियो की अहमियत बढ़ रही है। इसका कारण है कि जैसे-जैसे लोगों के पास वक्त कम होता जा रहा है वैसे-वैसे लोग ऑडियो की तरफ बढ़ रहे हैं। आप अपना काम करते हुए भी रेडियो सुन सकते हैं।

रेडियो जनसाधारण के लिए एक सस्ता साधन है। टीवी व इंटरनेट की तरह इसके लिए आपको अलग से कोई राशि नहीं देनी पड़ती। कोई भी एक ट्रांजिस्टर खरीद कर रेडियो के कार्यक्रम सुन सकता है।

रेडियो के जानकार मानते हैं कि भारत में अभी रेडियो का बहुत प्रसार करना बाकी है। रेडियो के विकास की जितनी संभावना है उसका दस प्रतिशत भी अभी नहीं हो पाया है। विकसित राष्ट्रों की तुलना में भारत जैसे विशाल देश में चैनलों की वर्तमान संख्या बहुत ही कम है। इंटरनेट रेडियो जैसी तकनीक का उपयोग अभी तक काफी सीमित है। सरकार को चाहिए कि रेडियो के प्रचार प्रसार पर ध्यान दे ताकि रेडियो प्रसार के एक सशक्त माध्यम के रूप में उभर सके।

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