सकारात्मक्ता के प्रतीक
आशीष कुमार त्रिवेदी
जिस व्यक्ति में जिजीविषा होती है वह हर हाल में ज़िंदगी को पूरी तरह से जीता है. जीने के लिए सबसे आवश्सक वस्तु है इच्छा शक्ति. जिसमें जीने की इच्छा होती है वह विपरीत परिस्थितियों में भी ना सिर्फ स्वयं भरपूर जीवन जीता है बल्कि दूसरों को भी जीने की प्रेरणा देता है.
गिरीश गोगिआ भी ऐसे ही एक जिंदादिल शख्स हैं. वह Paralysis of Cervical cord के शिकार हैं. यह उस स्थिति को कहते हैं जहाँ रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण गर्दन के नीचे के हिस्से में कोई भी चेतना नही रह जाती है. अतः शरीर के अंगों पर कोई नियंत्रण नही रह जाता और व्यक्ति की नवजात शिशु के समान देखभाल करनी पड़ती है.
गिरीश 90% Paralyzed हैं. अपनी इच्छा से यह एक उंगली भी नहीं हिला सकते हैं। लेकिन वह बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. वह लोगों को हालात के आगे हार ना मानने का संदेश देते हैं.
ज़रा सोंच कर देखिए यदि युवावस्था में जब कोई अपने कैरियर के शिखर पर हो, अचानक यदि उसे इस स्थिति का सामना करना पड़े तो उस पर क्या बीतेगी. उसके लिए जीवन एक दुस्वप्न बन जाएगा. ऐसी परिस्थिति में अक्सर व्यक्ति कामना करता हे कि उसे इस प्रकार के जीवन से मुक्ति मिल जाए. गिरीश स्वयं को ऐसी ही स्थिति से उस मुकाम पर लेकर आए हैं जहाँ आज लोग उन्हें सकारात्मकता का प्रतीक मानते हैं.
केवल 29 वर्ष की आयु में गिरीश गोगिआ के साथ ऐसा ही हादसा हुआ. जब एक Architect के तौर पर उनका कैरियर बहुत अच्छा चल रहा था. उनकी सेवाएं लेने वाले लोगों में फिल्म व उद्योग जगत की मानी हुई हस्तियां शामिल थीं. विश्व इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहा था. दुनिया भर में लोग इसका जश्न मना रहे थे. गिरीश भी अपनी पत्नी ईशा के साथ नई सदी का स्वागत करने के लिए गोवा गए. वहाँ उन्होंने Diving की योजना बनाई. समुद्र में गोता लगाते समय उनसे कुछ चूक हो गई. गोता लगाने के दौरान वह एक चट्टान से टकरा गए. उनकी Cervical cord बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई. इस दुर्घटना के कारण गिरीश शारीरिक रूप से अक्षम हो गए. अचानक स्वयं को अस्पताल के बिस्तर पर पाकर गिरीश हताशा में डूब गए. पहले जो व्यक्ति जोश से भरा हुआ सारी दुनिया घूमने की इच्छा रखता था वह बिस्तर पर पड़ा था. स्वयं को हिला तक ना पाने की लाचारी उनकी आँखों में आंसू ले आती थी. अपनी स्थिति को वह आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. उस समय को याद कर वह कहते हैं "मैं निराशा की गर्त में गिरता जा रहा था. अपनी नई स्थिति को अपनाने में मुझे 24 घंटे लगे. मैं बहुत निराश व दुखी था. मेरा मन कड़वाहट से भरा था. मैं उम्मीद छोड़ने की कगार पर था."
जब करने को कुछ नहीं था तब उनके दिमाग में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते थे. इन विचारों में नकारात्मक व सकाराक्मक दोनों तरह के विचार होते थे. इस दौरान उन्होंने अनुभव किया कि विचारों का आप पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है. सकारात्मक विचार आपको प्रसन्न रखते हैं तथा हालातों से लड़ने की शक्ति देते हैं. जबकी नकारात्मक विचार निराशा की ओर ले जाते हैं. बिस्तर पर पड़े हुए वह स्वयं से ही बातें करते थे. स्वयं को हार ना मानने के लिए प्रेरित करते थे. वह अपने आप से अनेक प्रकार के सवाल करते थे. 'मैं कौन हूँ?' 'इस दुर्घटना में मेरे जीवित बच जाने का क्या उद्देश्य है?' 'मैं इस परिस्थिति में भी अपने आपको कैसे उपयोगी बना सकता हूँ?' यह सभी प्रश्न उनके भीतर विचारों का तूफान पैदा करते थे. अपनी इस स्थिति के बाद भी वह जीना चाहते थे.
अतः उन्होंने निश्चय किया कि स्वयं को हालात का शिकार नही होने देंगे. वह लड़ेंगे और जीतेंगे. उनका यकीन था कि व्यक्ति जो अपने मन में सोंचता है वही उसके वाह्य रूप में प्रकट होता है. वह नकारात्मक विचारों को पनपने नहीं देते थे. सकारात्मक विचार को एक बीज की तरह दिल में दबा कर पोषित करते थे. वह खुद को हौंसला देते थे कि उनका शरीर भले ही पूर्णरूप से कार्य ना करता हो किंतु उनका मष्तिष्क पूर्णरूप से कार्यशील है.
आज जबकी उनका 90 फीसदी शरीर Paralyzed है जिसमें किसी भी तरह की Sensation नहीं है, उनका Bladder व Bowel सही प्रकार से काम नहीं करतेहैं, स्वासतंत्र भी 50% ही काम करता है वह दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं. वह एक Motivational speaker हैं. Corporates, NGOs तथा शिक्षण संस्थाओं की मदद से वह समय समय पर Inspirational workshops का आयोजन कर लोगों को प्रेरित करते हैं. जब इतनी तकलीफ के बावजूद भी लोग उन्हें चेहरे पर मुस्कान लिए जीने की प्रेरणा देते देखते हैं तो अवश्य उनसे बहुत प्रभावित होते हैं. एक Interior designer के तौर पर वह देश विदेश में कई Projects कर चुके हैं.
वह पूरी तरह से अपने Care taker पर पूरी तरह से निर्भर हैं. उनकी पत्नी ईशा भी 70% Paralyzed हैं. इसके बावजूद भी वह एक योद्धा की तरह डटे हैं. गिरीश इस बात पर यकीन रखते है कि जीवन का हर अनुभव हमें कुछ ना कुछ सिखाता है. कठिन समय हमें तबाह करने के लिए नहीं आता है. यदि हम धैर्य और हिम्मत से काम लें तो यह हमें पहले से और मजबूत बनाता है. अतः कठिन समय से डरें नहीं. साहस से उसका सामना करें.
उनका मानना है कि सहारात्मक विचार ही हमें आगे ले जा सकते हैं. अतः सदैव सकारात्मक सोंच रखें. नकारात्मकता को स्वयं पर हावी ना होने दें. हालात चाहें कैसे हों हिम्मत के साथ उनका सामना किया जा सकता है. यह हिम्मत तभी आएगी जब हम सकारात्मक सोंच रखेंगे. उनका यही दृष्टिकोंण लड़ने की शक्ति देता है.
गिरीश को उसके साहस के लिए Karmaveer Chakra award तथा Dr Batra's Positive Health Award से सम्मानित किया गया है.
उनकी इच्छा है कि वह देश विदेश में घूमकर लोगों में सकारात्मकता का प्रचार करें जिससे वह अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकें. लोग उन्हें The Positive man कह कर बुलाते हैं.
गिरीश का लोगों को संदेश है कि कठिनाइयां हमें बनाती हैं या बिगाड़ती हैं यह हमारे ऊपर है. कठिनाइयों से भागा नहीं जा सकता है. अतः आगे बढ़ कर उनका मुकाबला करो. लड़ने की ताकत तुम्हारे भीतर है उसे पहचान कर उसका उपयोग करो.
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