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कुंए को बुखार

कुंए को बुखार

ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

अंकल ने नहाने के कपड़े बगल में दबाते हुए कहा, ‘‘रोहन ! थर्मामीटर रख लेना। आज कुंए का बुखार नापना है ? देखते हैं कुंए को कितना बुखार चढ़ा है ?’’

‘‘जी हाँ, अंकल ! थर्मामीटर रख लिया,’’ रोहन ने कहा । तभी शहर से आए हुए उस के दोस्त कमल ने पूछा, ‘‘रोहन ! यह क्या है ? कभी कुंए को भी बुखार चढ़ता है ? ’’ वह चकित था। यह क्या पहेली है।

‘‘हां भाई, कुंए को बुखार चढ़ता है। इसीलिए कुंए का बुखार नापने के लिए थर्मामीटर लिया है ? देखते हैं उसे कितना बुखार चढ़ा है ?’’ यह कहते हुए रोहन ने अपने कपड़े के साथ थर्मामीटर रख लिया, ‘‘तुम भी अपने कपड़े रख लो। हम कुंए पर नहा कर वापस आएंगे।’’

‘‘नहीं भाई ! मुझे बहुत ज्यादा ठण्ड लग रही है। मैं ऐसी ठण्ड में कुंए पर नहीं नहाऊंगा,’’ कमल ने स्पष्ट मना कर दिया तो रोहन बोला, ‘‘अरे भाई रोहन ! नहाना मत । मगर, कपड़े रख लेने में क्या हर्ज है ?’’

कमल को रोहन की बात जंच गई। उस ने भी अपने कपड़े साथ ले लिए। तब तक अंकल आ गए थे।

‘‘चलो !’’ अंकल ने बरमादे में आते ही कहा और सब कुंए की ओर चल दिए।

थोड़ी देर में वे खेत की मेड पर पहुंच गए। वहां पहुंच कर कमल ने खेत के एक किनारे की ओर इशारा किया, ‘‘अंकल ! वो हरे टमाटर का पौधा है ना ? ये क्या काम आते है ? हमारे यहां तो ये हरे टमाटर नहीं मिलते है।’’

‘‘हां बेटा ! यह हरे टमाटर का पौधा है। हरे टमाटर जब पक जाते है तब लाल हो जाते हैं । जिन को हर सब्जी में डालते हैं। यह तो तुम जानते ही हो।’’

कमल ने हां में गरदन हिला दी। तभी कमल की निगाहें लाल टमाटर पर गई। कमल ने पौधे से लाल टमाटर को तोड़ कर अलग किया और खाने लगा। तभी अंकल ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तुम इसे, ऐसे नहीं खा सकते हो ? ’’

‘‘क्यों अंकल ? मैं टमाटर क्यों नहीं खा सकता हूं ?’’

‘‘इस के ऊपर जहर लगा हुआ है। हम किसान लोग पौधे को कीड़े से बचाने के लिए इन के ऊपर कीटनाषक छिटकते हैं। वह जहर इस पर लगा हुआ होता है। इसलिए पहले तुम इसे धो लेना चाहिए । फिर खाना चाहिए।’’

कमल ने टमाटर धोया। खाने लगा। तभी रोहन ने कमल से पूछा, ‘‘क्या तुम गाजर खाना पसंद करोगे ?’’

यह सुन कर कमल ने इधरउधर देखा उसे गाजर कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, ‘‘मगर, यहां गाजर कहां है ?’’ कमल के पूछते ही रोहन एक पौधे के पास गया। उसे उखाड़ कर जमीन से बाहर खींच लिया। पौधे के साथ जमीन के अंदर से एक लंबी गाजर निकल आई।

‘‘ओह ! गाजर जमीन के अंदर लगती है,’’ कहते हुए कमल ने पौधा हाथ में ले कर देखा। फिर उस ने टंकी के पानी से धोया और खाने लगा, ‘‘यहां के टमाटर व गाजर बहुत स्वादिष्ट है । ऐसा स्वाद शहर की सब्जियों में नहीं होता है।’’

‘‘जी हां। हम गांव के लोगों को सब चीजें ताजा और स्वादिष्ट ही मिलती है, ’’ यह कहने के साथ रोहन बोला, ‘‘चलो ! अब कुंए का बुखार नापते हैं।’’

कमल अभी असमंजस्य में था। आखिर कुंए को बुखार क्यों हो गया ? रोहन क्या कह रहा है ? घर पर अंकल भी यही कह रहे थे। यह बात उस ने दोबारा कमल से पूछी।

तब कमल ने बोला, ‘‘रोहन ! मैं गरमी में कुंए पर आया था। उस वक्त यह कुआ ठण्ड से कांप रहा था ? उस के पानी में हाथ लगाया था, तब वह बहुत ज्यादा ठण्डा था। मैं यह देख कर दंग रह गया। गरमी में कुंए का पानी इतना ठण्डा क्यों होता है ? तब अंकल ने बताया था कि कुंए के पानी को बुखार चढ़ जाता है, ’’ रोहन ने कमल की जिज्ञासा का बढ़ा दिया।

‘‘फिर ?’’

‘‘आज हम कुंए के बुखार को नाप कर पता लगाएंगे कि ऐसा क्यों होता है ? इसलिए अंकल ने यह थर्मामीटर लाने के लिए कहा था,’’ कहते हुए कमल ने अंकल को आवाज दी। फिर तीनों धीरेधीरे कुंए की सीढ़ी उतर कर पानी के पास चले गए।

कमल के हाथ में थर्मामीटर था, ‘‘मैं कुंए के पानी का ताप नापता हूं ?’’ कहते हुए कमल ने कुंए के पानी में कुछ देर तक थर्मामीटर डूबा कर रखा। थर्मामीटर का पारा धीरेधीरे ऊपर चढ़ने लगा। पहले पारा 18 डिग्री सेल्सियम पर था। वह धीरेधीरे बढ़ते हुए 27 डिग्री सेल्सियम पर पहुंच गया।

‘‘अब थर्मामीटर को बाहर निकालों,’’ अंकल ने कहा, ‘‘इसे कितने डिग्री बुखार है’ ?’

कमल को बुखार की परिभाषा याद नहीं थी। उस ने पूछ लिया, ‘‘बुखार कितने डिग्री पर होता है ?’’

इस पर अंकल ने जवाब दिया, ‘‘जब वातावरण के ताप से शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ जाए तो उसे हम बुखार कहते हैं। इस हिसाब से देखे तो इस वक्त वातावरण का तापमान 18 डिग्री है। जब कि कुंए का तापमान 27 डिग्री है। इस का मतलब यह है कि कुंए को बुखार है।’’

‘‘हां अंकल ! कुए का पानी सचमुच गरम है ?’’

‘‘तब तो हम गरम पानी में नहा सकते हैं ?’’ कहते हुए रोहन कुंए में कुद गया। फिर आराम से उस पानी में तैरने लगा। कमल को तैरना नहीं आता था। वह कुंए के बाहर निकल गया। वहां पानी की मोटर चल रही थी। वह उस में बैठ कर नहाने लगा।

मगर, उस की जिज्ञासा खत्म नहीं हुई थी। जैसे ही रोहन और उस के अंकल नहा कर कुंए से बाहर आए। उस ने पूछ लिया, ‘‘अंकल आप कह रहे थे कि गरमी में कुंआ ठण्ड से कांप रहा थाा । जरा इस का भी राज भी बता दीजिए।’’

‘‘हां, अंकल ! यह बात मुझे भी जानना है ?’’ रोहन ने कहा तो अंकल बोले, ‘‘गरमी के दिनों में वातावरण का तापमान 40 डिग्री के लगभग होता है। उस वक्त भी कुंए का तापमान 27 डिग्री पर स्थिर रहता है। ’’

‘‘क्या ? ’’ रोहन ने चौंक कर कहा, ‘‘कुंए के पानी का तापमान सदा एकसा रहता है ?’’

‘‘हां, ’’ अंकल ने कहा, ‘‘हमारे शरीर के अंगों का तापमान वातावरण के अनुकूल 40 डिग्री के लगभग होता है, इसलिए जब हम वातावरण के अनुरूप ढले अंगों से कुंए के पानी को छूते हैं तो वह हमें ठण्डा लगता है। यानी गरमी में कुंआ ठण्ड से कांपता रहता है।’’

‘‘हां अंकल ! सही कहा आप ने। ठण्ड में वातावरण का ताप 18 डिग्री सेल्सियस रहता है और कुंए के पानी का ताप 27 डिग्री होता है। जो हमें छूने पर गरम लगता है। इसलिए तथ्य को जानने के बाद आज हमें कुंए के बुखार का राज पता चल गया।’’ यह कहते हुए रोहन कमल के साथ अपने घर चल दिया।

आज उस के एक रहस्य से परदा उठ गया था। इसलिए वह बहुत खुश था। यह बात वह शहर जा कर अपने मित्रों को बताना चाहता था।

वाकई गांव कई मायने में अच्छा होता है। यह सोच कर वह घर की ओर चल जा रहा था।

***

दिनांक- 08।10।2017

प्रमाणपत्र

प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना मेरी मौलिक है। यह कहीं से ली अथवा चुराई नहीं गई है। इसे अन्यत्र प्रकाषन हेतु नहीं भेजा गया है।

ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

अध्यापक, पोस्ट आफिस के पास

रतनगढ-485226 जिला-नीमच (मप्र)

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