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शराबी पटवारी

शराबी पटवारी

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
  • मुरारी का सौदा नहीं बैठ रहा था. उस ने कहा, ‘‘ पटवारी साहब ! मैं 12000 रूपए दिलवा सकता हूं. जिस में मेरा हिस्सा 4000 रूपए रहेगा.’’ मगर, राजू पटवारी नहीं मान रहा था. वह नशे में झूमते हुए कह रहा था, ‘‘ रूपए तो 20000 लगेंगे. साहब को भी देना पड़ते हैं.’’ उस ने अपना फरमान सुनाया था कि उस के पैर लड़खड़ा पड़े.

    तभी चैकीदार ने उसे सहारा दिया. एक ओर ले जा कर बैठा दिया. तभी तय कार्यक्रम के मुताबिक कलेक्टर साहब आ गए. मुरारी गुस्से से भरा हुआ था. सीधे कलेक्टर साहब के पास पहुंचा. राजू पटवारी की षिकायत कर दी, ‘‘ साहब ! इस दारूडि़ये पटवारी को हटाइए. यह बिना पैसे लिए काम नहीं करता है. कह रहा है कि कलेक्टर साहब को भी हिस्सा देना पड़ता है.’’ उस ने बिना लागलपेट के अपनी बात कह दी.

    यह सुन कर पास खड़े तहसीलदार साहब की भौंहे तन गई, ‘‘ अरे मुरारी ! यह क्या मनगढ़ंत आरोप लगाता है. शर्म नहीं आती. साहब पैसे लेते है. यह तुम से किस ने कहा है ?’’

    ‘‘ उस, राजू पटवारी से पूछ लीजिए.’’ मुरारी ने एक ओर इशारा किया.

    इस पर कलेक्टर साहब ने तहसीलदार साहब को टोक कर कहा, ‘‘ अरे रामसिंह ! इन्हें बोलने दीजिए. इन का हक है अपनी बात रखने का.’’

    ‘‘ जी साहब ! ’’ तहसीलदार साहब ने कहा तो मुरारी का हौसला बढ़ गया. वह बोला, ‘‘ साहबजी ! मैं यही कह रहा था कि ,’’ मुरारी ने अपनी बात रखी, ‘‘ वह राजू पटवारी नामांतरण के 20000 हजार रूपए मांग रहा था. नहीं देने पर नामांतरण नहीं करने की धौंस दे रहा था. कह रहा था कि सभी को बांटना पड़ते हैं.’’

    ‘‘ अच्छा ! ऐसा कहा था उस ने, ’’ कलेक्टर साहब ने तहसीलदार की ओर देख कर कहा, ‘‘ उस पटवारी को बुलवाइए. यदि इस व्यक्ति की बात सही निकली तो अभी निलंबित कीजिए.’’

    सुन कर मुरारी की बांछें खिल गई. आज उस की मेहनत रंग ला सकती थी. यह जान कर वह खुश हो रहा था. फिर आने साथ आए अन्य लोगों की तरफ देख कर मुस्काया. मानो कह रहा हो कि हिम्मत हो तो सभी काम आसान हो जाते है.

    तभी कलेक्टर साहब ने कहा, ‘‘ आप के पास कोई गवाह हो तो बुलवाइए. तब तक पटवारी भी आता ही होगा. अभी उस को मजा चखाता हूं. रिश्वत लेता है और झूठ बोलता है.’’

    कलेक्टर साहब का फरमान सुनते ही मुरारी खुश हो गया. आज उस की नेतागिरी चमकने वाली थी. इस खुशी में वह चिल्ला कर बोला, ‘‘ हरे हरिया ! जा. किसना को बुला ला. उसी के सामने पटवारी ने 20000 रूपए मांगे थे. उसी से गवाही दिलवा देते हैं.’’

    मगर, हरिया वहां से टस से मस नहीं हुआ.

    ‘‘ क्या हुआ हरिया ? जाता क्यों नहीं है ?’’ मुरारी ने पूछा.

    ‘‘ अरे मुरारी ! वो तो दारू के नशे में धुत्त होगा. साहब के सामने कैसे आएगा ..’’ हरिया अपनी बात अधुरी ही बोला था कि मुरारी चिल्ला पड़ा, ‘‘ अरे जा. बुला ला. दारू पिए हैं तो क्या हुआ. पटवारी भी तो दारू के नशे में झूम रहा है. दारूखोर की षिकायत का गवाह भी दारूखोर होना चाहिए. ’’

    ‘‘ हां भाई, दारू के नशे में व्यक्ति सहीसही बात बोल देता है.’’ पास खड़े हुए एक अन्य नेता ने यह जुमला उछाला.

    मुरारी की यह बात तहसलीदार साहब सुन रहे थे. उन्हों ने दूसरे पटवारी को इशारा कर दिया, ‘‘ अरे रामकरण ! राजू पटवारी को बुला कर लाना. कहना साहब बुला रहे हैं.’’

    राजू पटवारी वहीं सामने ही था. वह नशे में झूम रहा था. उसे देख कर मुरारी चहका, ‘‘ तहसीलदार साहब ! आप का राजू पटवारी वह झूम रहा है.’’

    उस की हालत देख कर तहसीलदार साहब सहम गए. वाकई वह पूरे नशे में था. ठीक से चल नहीं पा रहा था. उस की हालत देख कर वे सन्न रह गए. यदि वह इस अवस्था में कलेक्टर साहब के पास आ गया तो वे उस की डॉक्टरी करवा देंगे. फिर वह नशाखोर पटवारी निलंबित हो जाएगा. ये वह अच्छी तरह जानते थे.

    मुरारी भी खुश था. आज उस की इच्छा पूरी होने वाली थी. वह नशाखोर पटवारी उस के सामने थे. कलेक्टर साहब यही थे. हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को पारसी क्या ? वह राजू पटवारी को लेने के लिए दौड़ा. तब तक रामकरण उसे ले कर एक ओर चला गया.

    मुरारी उस तक पहुंचता, तब तक वह गायब हो चुका था. सामने से रामकरण पटवारी आता हुआ दिखाई दिया. उसे देख कर मुरारी ने पूछा, ‘‘ पटवारी साहब ! अभीअभी राजू पटवारी यहां था ? कहां चला गया ?’’

    ‘‘ मुझे क्या मालुम ? मैं उसे बुलाने गया था. वह मुझे मिला ही नहीं,’’ यह कहते हुए रामकरण तहसीलदार साहब की ओर चल दिया, ‘‘ मुझे साहब बुला रहे है. कलेक्टर साहब के चायनाश्ते का इंतजाम करना है.’’ कहते हुए वह पटवारी भी खिसक लिया.

    इधर मुरारी दौड़ादौड़ा तहसील के पीछे गया. वहा कोई नहीं था. उस ने इधरउधर निगाहें दौड़ाई. राजू पटवारी कहीं नहीं था. वह गधे के सिर पर सींग की तरह गायब हो गया था. उसे नहीं मिलना था. वह नहीं मिला. गुस्साया हुआ मुरारी कलेक्टर साहब के पास पहुंच गया. तब किसना भी आ चुका था. उस की आंखे लाललाल हो रही थी.

    ‘‘ साहब ! मेरा गवाह.’’

    ‘‘ ये गवाह है ? ’’ कलेक्टर साहब बोले, ‘‘ यह तो नशे में है.’’

    ‘‘ हां साहब ! आप के सामने बोलने के लिए हिम्मत चाहिए. इसलिए नशा कर के आया हूं. नशे में आदमी सही बोलता है.’’ कहते हुए किसना लहराया तो मुरारी ने उसे संहाल लिया.

    ‘‘ देखोदेखो ! इसे संहालो. ऐसा न हो कि ये यही गिर जाए.’’ तहसीलदार साहब ने कहा.

    ‘‘ हां तो कहो, क्या कहना चाहते हो ?’’ कलेक्टर साहब ने बोले तो किसना ने कहा, ‘‘ साहब ! वह राजू पटवारी है ना. उस ने मुझे से जमीन के नामांतरण के 20000 रूपए मांगे थे. कह रहा था कि बड़े साहब को देना है.’’ वह लड़खड़ा कर कह रहा था.

    साहब को यह सुन कर गुस्सा आ गया. वे तहसीलदार साहब से गुस्से में बोले, ‘‘ ये सब क्या है ? एक ओर शराबी गवाह और दूसरी और शराबी पटवारी. कहां है वह ? बुलावाइए उसे.’’ साहब ने आंखे तरैर कर कहा.

    ‘‘ साहब ! वह अभी यही था. मिल नहीं रहा है. कहां चला गया. अभी बुलाता हूं.’’

    ‘‘ तब कहां गया ? ’’

    ‘‘ जी ! सर. हमें नहीं पता ? वह कहां गया ? उस के आते ही आप के पास तलब करता हूं. साहब, ’’ कहते हुए तहसीलदार साहब ने चोकीदारों को इधरउधर दौड़ा दिया. मगर, राजू पटवारी को नहीं मिलना था. वह नहीं मिला. लगता था जैसे उसे जमीन निगल गई थी. कई बार मुरारी ने कोशिश की. मगर, वह कामयाब नहीं हुआ.

    साहब तहसीलदार को हिदायत दे कर चले गए, ‘‘ दोबारा ऐसी शिकायत नहीं आना चाहिए.’’

    ‘‘ जी सर ! ’’ तहसीलदार साहब ने तुरंत कहा और कलेक्टर साहब के जाते ही रामकरण से पूछा, ‘‘ हां रामकरण ! उस शराबी का क्या किया ? वह नजर नहीं आया ? कहा छूपा दिया था उसे ?’’

    ‘‘ जी ! उसे बाथरूम में बंद कर दिया था. वह चिल्लाए नहीं. इस के लिए उस के हाथ बांध कर मुंह पर टेप चिपका दिया था.’’ कहते हुए रामकरण ने चोकीदार को भेज कर राजू पटवारी को बुलवा लिया. फिर उस के हाथ खोल कर मुंह से टेप निकाल कर कहा, ‘‘ इतना क्यों पीता है कि संहल नहीं पाओ ?’’

    ‘‘ जी साहब ! आदत पड़ गई है.’’

    ‘‘ आज तो तू गया था. वह तो अच्छा हो इस रामकरण का जिस ने तूझे बचा लिया.’’

    साहब के कहते ही राजू पटवारी ने रामकरण का हाथ चूम लिया, ‘‘ आखिर यह साथी किस का है. मेरा दोस्त है.’’

    मगर, साहब मुरारी पर बहुत नाराज थे. चिल्ला कर बोले, ‘‘राजू ! तू उस मुरारी को मत छोड़ना. उस की जमीन पर तीसरे का अतिक्रमण दर्ज करा देना.’’

    यह सुनते ही राजू पटवारी हंसा, ‘‘ जी साहब ! ऐसा ही होगा.’’ कहते हुए वह दारू के नशे में वही धड़ाम से बैठ गया. और तहसीलदार साहब अपने खर्चें का हिसाब राजू को बताने लगे. वह शराब के नशे में जेब से रूपए निकालनिकाल कर साहब को दे रहा था.

    ***

    प्रमाणपत्र

    प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना मेरी मौलिक है. यह कहीं से ली अथवा चुराई नहीं गई है. इसे अन्यत्र प्रकाशन हेतु नहीं भेजा गया है.

    क्षत्रिय ‘प्रकाश’

    अध्यापक, पोस्टआफिस के पास

    रतनगढ - 485226 जिला-नीमच (मप्र)

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