देहरादून शंखनाद रैली
15 दिसंबर, 2013
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देहरादून शंखनाद रैली
भारत माता की जय ! भारत माता की जय !
आज सरदार बल्लभ भाई की पुण्य तिथि है। मैं कहूँगा, ‘सरदार पटेल', आप लोग बोलिए‘अमर रहें '
सरदार पटेल अमर रहें ! सरदार पटेल अमर रहें !
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हम सबके मार्गदर्शक आदरणीय श्री राजनाथ सिंह जी, प्रदेश के अध्यक्ष श्रीमान तीरथ जी, इस प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्राी श्रीमान भुवनचंद्र जी, श्रीमान भगत सिंह जी, श्रीमान रमेश जी, मंच पर विराजमान पार्टी के सभी वरिष्ठ महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे हुए इस देवभूमि के प्यारे भाइयो और बहनो !
मैं इस देवभूमि को नमन करता हूँ और यहाँ की पवित्राता को बरकरार रखने वाले, कोटि—कोटि जनों को प्रणाम करता हूँ। भाइयो—बहनो, देहरादून रैली के लिए समय देने को मेरा मन नहीं करता था। मेरे मन में वो आपका आपदा का काल, वो पीड़ित लोग, वो संकट की छाया, छः महीने होने को आए, लेकिन मेरी आँखों के सामने से ओझल नहीं हो पाता है ! मुझे सबसे ज्यादा पीड़ा इस बात की होती है कि राजनीति इतनी निष्ठुर हो सकती है कि कोई अपनों के दुःख—दर्द भी न बाँट सके, पीड़ितों के पास जाकर उनके आँसू न पोंछ सके !
भाइयो—बहनो, मैं उस दुःख की घड़ी में दौड़ा आया, लेकिन राजनीतिक निष्ठुरता ने मुझे यहाँ से विदा कर दिया था। वो कसक, वो दर्द, वो पीड़ा, आज भी मेरे दिल—दिमाग को झिंझोड़ती रहती है ! मुझे अभी भी चिंता होती है कि कठिन मौसम शुरू हो रहा है, ऐसे में बर्फ के बीच पीड़ित परिवार कैसे गुजारा करेंगे, कैसे जीवन बिताएँगे ! भाइयो—बहनो, हमारी आँखों की माया थी, गुजरात मौत की चादर ओढ़कर सोया था लेकिन उस वक्त दुनिया के किसी कोने से भी किसी ने मदद का हाथ फैलाया, तो हमने तुंरत उसको गले लगाया कि आओ भाई, हम दुःख में हैं, संकट में हैं, आओ, जो भी मदद कर सकते हो करो ! हमने सबसे मदद ली, उत्तराखंड ने भी हमारी मदद की, यहाँ तक कि पाकिस्तान ने भी मदद की थी और हमने मदद ली भी थी ! दुःख और दर्द के समय राजनीति का साया पीड़ितों की पीड़ा को अगर बढ़ा दे तो मानवता चीख—चीखकर पुकारती है और हमसे जवाब माँगती है। इसी कारण, मन में हमेशा एक बोझ रहता है !
भाइयो—बहनो, मेरा इस धरती से एक विशेष नाता भी रहा है। मैं यहाँ प्रभारी था, हिमालय के प्रति मुझे बचपन से लगाव भी रहा है। पहाड़ी लोगों की प्रामाणिकता, पवित्राता, निर्मलता और गंगा जैसा जीवन मुझे बचपन से छू जाता था। और प्रभारी होने के नाते मैं काफी समय आप सभी के बीच रहा और बहुत कुछ सीखा। इस धरती ने मुझे बहुत कुछ दिया है। ईश्वर हमें शक्ति दें और आप हमें आशीर्वाद दें ताकि आपने हमें जो दिया है, उसका कुछ अंश तो आपको लौटा सकूँ !
भाइयो—बहनो, सरकार दिल्ली में हो या देहरादून में, ये जनता से कटे हुए लोग हैं और मन से छँटे हुए लोग हैं। मैं तो हैरान हूँ कि दिल्ली और देहरादून की सरकार, जितनी शक्ति बाबा रामदेव के पीछे लगा रही है, अगर आधी शक्ति भी इन पीड़ितों की सेवा में लगा देती, तो इन पीड़ितों की ये दशा न होती ! मैं आज भी समझ नहीं पा रहा हूँ कि काँग्रेस पार्टी की ये कौन—सी राजनीतिक सोच है कि बाबा रामदेव उनकी आँखों में चुभ रहे हैं ! वो लोगों को साँस लेने के लिए कह रहे हैं और काँग्रेस की साँस निकली जा रही है ! वो व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए जीवन खपाए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए भी जीवन खपाए हैं, लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं है कि उन पर नया केस न दर्ज किया गया हो !
भाइयो—बहनो, आप मुझे बताइए, क्या ये लोकतंत्रा है ? क्या ये व्यवहार उचित है ? उत्तराखंड में हमारे भुवन चंद्र जी ने सरकार चलाई है, भगत सिंह जी ने चलाई है, रमेश जी ने चलाई, क्या किसी काँग्रेसी को परेशान किया है ? क्या यही तौर—तरीके होते हैं ? क्या लोकतंत्रा का यही हाथ होगा ? भाइयो—बहनो, जब किसी राज्य में इस प्रकार की गतिविधि होती हैं तो राज्य में आर्थिक लाभ होता है, चेतना आती है, लोग आते हैं, नई पीढ़ी आती है, राज्य का बहुत भला होता है, लेकिन ये लोग हर चीज को ताले लगाने में लगे हैं, ताकि उनकी दुकान चलती रहे।
भाइयो—बहनो, हम सब अटल बिहारी वाजपेई जी के ऋणी हैं कि उन्होंने हमें उत्तराखंड दिया और ये भी सौभाग्य देखिए कि राजनाथ जी जब मुख्यमंत्राी थे, उसी समय बाजपेई जी ने हमें उत्तराखंड दिया। उस समय जब उत्तराखंड बना तो राज्य काँग्रेस के हाथ में आया। लेकिन उसके बावजूद देखिए कि देशभक्ति क्या होती है, समाज भक्ति क्या होती है ! वाजपेई जी ने यह नहीं सोचा, कि अब यहाँ काँग्रेस की सरकार है, जो करेंगे करने दो, जो होता है वो होने दो ! उन्होंने सोचा, उत्तराखण्ड भी हमारा है, और दस साल के लिए पैकेज दिया और यह नहीं देखा कि किसकी सरकार है। और इन्होंने आकर क्या किया, दस साल में सब साफ कर दिया। हजारों—करोड़ों की लागत से कारखाने आ रहे थे, मेरे गुजरात से भी कइयों ने यहाँ आकर कारखाने लगाए हैं, नौजवानों को रोजगार मिल रहा है लेकिन मैं हैरान हूँ कि यूपीए सरकार ने आकर, आपको अटल जी ने जो सहूलियत दी थी, उसको भी छीन लिया।
भाइयो—बहनो, शासन में बैठे लोगों के लिए अपने—पराए नहीं होते हैं, सारे—के—सारे हमारे होते हैं ! लेकिन भाइयो—बहनो, हम बहुत सालों से यहाँ एक बात सुनते थे, जब भी यहाँ आते थे, कोई भी काम हो, कोई कार्यक्रम करना हो या यहाँ की मीटिंग करना हो, तो ये कहावत तो मेरे दिमाग में ठूँस—ठूँस कर भर दी गई थी, लोग बोलते थे कि मोदी जी, ये गुजरात नहीं है ! ऐसा मुझे कहते थेजब मैं यहाँ काम करता था। बोलते थे कि आप पहाड़ को नहीं जानते, यहाँ की जवानी और यहाँ का पानी, हमारे काम नहीं आता, ऐसा मुझे बार—बार बोला जाता था। यहाँ की जवानी और यहाँ का पानी, पहाड़ के काम नहीं आता। अब वक्त बदल चुका है, अब विज्ञान, पानी को भी पहाड़ के काम में ला सकता है और जवानी, पहाड़ को खुशियों से भर सकती है, वक्त बदल चुका है। भाइयो—बहनो, इतना पानी पहाड़ों में हो और देश में अँधेरा हो, इसका कारण क्या ? जल—विद्युत परियोजनाएँ, पानी को ऊर्जा में परिवर्तित कर सकती हैं और ऊर्जा न पहाड़ों की, लेकिन राष्ट्र की शक्ति बन सकती है और वो किया जा सकता है। लेकिन न इनको समय है, न करना है, न सोच है ! वो तो चाहते हैं कि लोग गरीब रहें, लोग ऐसे ही रहें ताकि उनकी सरकारें चलती रहें !
भाइयो—बहनो, आज पहाड़ों के इन नौजवानों को इतना अच्छा मौसम और बढ़िया माहौल छोड़कर, शहरों की झुग्गी—झोंपड़ी में जाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ता है, बूढ़े माँ—बाप को छोड़कर नौजवान को क्यों जाना पड़ रहा है ? दुनिया के कई देश हैं जो सिर्फ टूरिज्म पर अपने देश को कहाँ से कहाँ ले जाते हैं ! भाइयो—बहनो, यह ऐसी भूमि है कि हिंदुस्तान के सवा सौ करोड़ नागरिक कभी—न—कभी जिन्दगी में एक बार इस भूमि पर आना चाहते हैं, सपना देखते हैं ! हर नौजवान को लगता है कि अपने माँ—बाप को हरिद्वार ले जाऊँ, ऋषिकेष ले जाऊँ, बद्रीनाथ ले जाऊँ, गंगोत्राी ले जाऊँ, जमनोत्राी ले जाऊँ, हर एक का सपना होता है। आप कल्पना कर सकते हैं, मैं सिर्फ आर्थिक परिभाषा में बोल रहा हूँ, उसका कोई गलत अर्थ न निकालें, अगर आर्थिक परिभाषा में कहूँ तो सवा सौ करोड़ यात्रिायों का मार्केट, उत्तराखंड का इंतजार कर रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना बड़ा अवसर आपके सामने है। क्यों यह कार्य नहीं होता, क्यों लोगों को उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है ? भाइयो—बहनो, पूरे विश्व में आज टूरिज्म उद्योग सबसे तेजी से विकास करने वाला उद्योग माना जाता है, 3 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार की संभावनाएँ टूरिज्म में पड़ी हुई है। हिंदुस्तान के लोगों की आस्था है और दुनिया के लोग भी जो शांति की खोज में हैं, जो वैभव से ऊब चुके हैं, वे भी इस धरती की शरण में आने के लिए जगह ढूँढ़ रहे हैं। हम न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि सारी दुनिया को उत्तराखंड के चरणों में लाकर खड़ा कर सकते हैं !
भाइयो—बहनो, आप लोगों में से जो लोग विकास की अवधारणाओं का अभ्यास करते हैं, मैं उनको आग्रह करता हूँ। आप आज से तीस साल पहले के मक्का को याद कीजिए। बहुत गिने—चुने लोग आते थे, व्यवस्थाएँ बहुत सामान्य थीं, लेकिन पिछले 30—40 साल में, मक्का को उस रूप में खड़ा कर दिया गया कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा यात्राी किसी एक स्थान पर आते होंगे, तो वो स्थान मक्का बन गया है। अरबों—खरबों के दौर का ढेर वहाँ हो रहा है। हर हिंदुस्तानी के लिए, ये भूमि जितनी पवित्रा है उस हिसाब से थोड़ी व्यवस्थाएँ कर दी जाएँ तो उत्तराखंड कहाँ—से—कहाँ पहुँच सकता है ! क्या हिंदुस्तान के हर राज्य को इस धरती से रेलवे से जोड़ना चाहिए या नहीं ? अगर केरल से सीधी ट्रेन यहाँ आती है, चेन्नई से सीधी ट्रेन यहाँ आती है, अहमदाबाद से आती है तो आप ही मुझे बताइए, क्या यहाँ यात्रिायों की कमी रहेगी ? यहाँ की आर्थिक सुविधाएँ बढ़ेंगी कि नहीं बढ़ेंगी ? लेकिन इनको यह समझ नहीं आता है, इनको लगता है कि हिंदुस्तान के हर कोने से ट्रेन दिल्ली तो आनी चाहिए लेकिन देश का दिल उत्तराखंड में है, वहाँ भी तो आनी चाहिए ! थोड़ी—सी सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ और भारत के यात्राी, कष्ट झेलकर यात्राा करने के स्वभाव के हैं, अगर उनकी चिंता की जाए, अगर यहाँ के सार्वजनिक जीवन में उन आदर्शों को लाया जाए तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है !
भाइयो—बहनो, हिंदुस्तान में औद्योगिक विकास के लिए एसईजेड की कल्पना की गई, व्यवस्था खड़ी की गई। एसईजेड यानी ‘स्पेशल ईकोनॉमिक जोन', उसके बराबर हुआ करती है। मैं कहता हूँ उत्तराखंड तो सदियों से एसईजेड है, और मेरी एसईजेड की परिभाषा है‘स्प्रीचुअल एनवॉयरमेंट जोन', ये पूरा आध्यात्मिक पर्यावरण का जोन है। उसी पर ध्यान देकर, अध्यात्म की खोज में जो आते हैं, उनके लिए एक स्वर्ग जैसी भूमि बनाकर आकर्षित कर सकते हैं !
भाइयो—बहनो, विश्व छोटा होता चला जा रहा है। मैं कहता हूँ कि ‘टेररिज्म डिवाइड्स, टूरिज्म यूनाइट्स' ! एडवेंचर टूरिज्म के लिए कितना ज्यादा स्कोप है, क्या यहाँ हमारे पास एडवेंचर टूरिज्म के लिए स्कूल है ? क्या इन्हें बनाया नहीं जा सकता है ? जब पूरे हिंदुस्तान में समय परिवर्तन हो, तो नौजवानों को एडवेंचर टूरिज्म में लाने के लिए हर गाँव में कैंप नहीं लगाया जा सकता ? यहाँ की आबादी से तीन गुना लोग, तीन—तीन महीने के लिए एडवेंचर टूरिज्म के लिए आ सकते हैं ! क्या रोजी—रोटी के लिए बाहर जाना पड़ेगा ?
भाइयो—बहनो, जिस प्रकार से ये उत्तराखंड स्प्रीचुएल एनवॉयरमेंट जोन है, ऐसा ही एक और एसईजेड कैरेक्टर यहाँ है। ये भूमि ऐसी है जो देश को सुरक्षा के लिए ताकत देती है, यहाँ के हर परिवार में, हर गाँव में देश के लिए बलि चढ़ने वाले सेनानियों की परंपरा है। सेना में जहाँ सीना तान करके गर्व से खड़े हों, ऐसे नौजवान इस धरती से आते हैं। लेकिन यहाँ मेरे उत्तराखंड में कुमाऊँ के, गढ़वाल के नौजवान सामान्य फौजी बनकर क्यों जिंदगी गुजारें...? और ऐसा कब तक चलेगा? मेरे गढ़वाल—कुमाऊँ के साहसिक नौजवान सेना में अफसर बन सकते हैं या नहीं? वो अफसर के नाते जा सकते हैं या नहीं? आज सेना में अफसरों की कमी है, कई लोगों की जगह खाली पड़ी हुई है, अगर ऐसी जगह पर, जहाँ के लोगों में वीरता का स्वभाव है, क्या यहाँ पर ऐसे अफसरों को तैयार करने वाले स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं बन सकती? अगर यहीं के नौजवान, उसी स्कूल—कॉलेज से निकलकर आर्मी, एयरफोर्स या नेवी में चले जाएँ तो वे सीधे—सीधे अफसर बन सकते हैं या नहीं? यहाँ के जीवन में कितना बदलाव आ सकता है। लेकिन दिल्ली में बैठी हुई इस सरकार को समझ नहीं आता है ! गुजरात के लोग यूनीफार्म वाली दुनिया में बहुत कम होते हैं, हमारे यहाँ के लोग पुलिस में भी ज्यादा नहीं जाते हैं, सेना में तो शायद ही कोई मिल जाए, लेकिन उसके बावजूद हमारी नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए, हमारे यहाँ 1600 कि.मी. समुद्री तट है, पड़ोस में पाकिस्तान है, रेगिस्तान है, हमें लगा कि हमें अपने पैरों पर तैयारी करनी चाहिए और हमने अलग रक्षा—शक्ति यूनिवर्सिटी बनाई है और जो लोग देश की सेवा करना चाहते हैं, यूनीफार्म में रहना चाहते हैं, हम उनको दसवीं कक्षा के बाद उसी में एडमिशन देकर तैयार करने लगे हैं। जिस राज्य का स्वभाव नहीं है, अगर वहाँ यह किया जा सकता है तो उत्तराखंड की रगों में तो वीरता है, यहाँ की रगों में शौर्य है, यहाँ के लोग सेना में जाकर भारत माँ की रक्षा करने के लिए अपना जीवन देने के लिए परंपरा से, सदियों से नई—नई ऊँचाइयों को सर करते रहे हैं। क्या उनके जीवन के लिए यह व्यवस्था नहीं की जा सकती है ?
भाइयो—बहनो, रामायण की कथा में जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते हैं तो उनकी मूर्छा को दूर करने के लिए राम जी ने हनुमान जी को कहा, हिमालय जाकर जड़ी—बूटी ले आइए। हनुमान जी हिमालय आकर जड़ी—बूटी ले गए और दक्षिण में जाकर लक्ष्मण जी को ठीक किया। हिमालय जड़ी—बूटियों का भंडार है ! जड़ी—बूटियों का जहाँ इतना सारा भंडार है क्या वहाँ औषधियों के निर्माण का काम नहीं किया जा सकता है ? क्या वहाँ रिसर्च इंस्टीट्यूट नहीं बनवाए जा सकते ? हर्बल मेडीसिन में चाइना हमसे ज्यादा एक्सपोर्ट कर रहा है, इतना बड़ा हिमालय हमारे पास है, जहाँ जड़ी—बूटियों का अथाह भंडार हो, पारंपरिक ज्ञान हो, उसके बावजूद नौजवान बेकार घूम रहा हो, मेडीसिन बनती न हो, दुनिया के स्वार्थ के लिए मेडीसिन पहुँचाने का काम न होता हो, इससे बुरा और क्या हो सकता है !
भाइयोे—बहनो, पहाड़ों में माताएँ—बहनें, परिवार को चलाने में सबसे ज्यादा योगदान देती हैं। किसी भी परिवार में चले जाइए, माताएँ—बहनें कोई—न—कोई आर्थिक कार्य करती हैं। यह पहाड़ों की विशेषता है कि पहाड़ों के जीवन को चलाने में माताएँ—बहनें बहुत बड़ी भूमिका अदा करती हैं। क्या हम अकेले उत्तराखंड की माताओं—बहनों को स्किल डेवलपमेंट के द्वारा हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्रा में, नई—नई वस्तुओं के निर्माण के क्षेत्रा में, उनको प्रेरित करके, क्या हम उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को सुधार नहीं सकते हैं ? लेकिन ये दिल्ली में बैठे हुए लोगों के दिमाग में, जनता की भलाई की चिंता नहीं है। उनकी भलाई के लिए क्या करना है, किन—किन क्षेत्राों में जाएँ, कैसे आगे बढ़ें, ये उनकी सोच नहीं है और इसी का यह नतीजा है !
भाइयो—बहनो, नई चीजें, नई तरीके से सोचनी चाहिए ! मैं देख रहा हूँ हिंदुस्तान— भर से नौजवान हमारे गुजरात में रोजी—रोटी कमाने आते हैं, ईमानदारी से मेहनत करते हैं। हमने एक कंपनी को कहा, कि मेरा एक सुझाव है कि आप पॉयलट प्रोजेक्ट करें। मैं कानून आदि बाद में देख लूँगा, लेकिन आप इस प्रोजेक्ट को करें, जितने लोग बाहर से आकर आपके यहाँ काम करते हैं, वो दिन में कितनी देर, हफ्ते में कितनी देर काम करते हैं, उसके हिसाब से अंदाज लगाएँ कि एक व्यक्ति एक महीने में कितना आउटपुट देता है और उसके हिसाब से आप उसे महीने—भर का काम दे दें। फिर वो जितने समय में भी वह काम करे, उसे करने दें। अगर वह व्यक्ति साल—भर का काम छः महीने में कर देता है तो उसको तनख्वाह के साथ छः महीने की छुट्टी दे दो, ताकि छः महीने खेती के समय वह अपने गाँव जाकर खेती करे, अपने माँ—बाप के साथ रहे और परिवार को समय दे। इस तरह छः महीने वह खेती में आर्थिक विकास करे और छः महीने कारखाने में काम करे। भाइयो—बहनो, ऐसा प्रोजेक्ट एक जगह पर हुआ है और बेहद सफल रहा। सभी नौजवान बहुत खुश हैं, वह सिर्फ काम करने आते हैं तो चार घंटे की बजाय 8 से 12 घंटे तक काम करते हैं और छुट्टियाँ इकट्ठी करते रहते हैं, काम पूरा हो जाने के बाद, गाँव में खेती करने आराम से चले जाते हैं, इस तरह वह घर और काम दोनों को सँभाल लेते हैं !
भाईयो—बहनो, हम अपने देश के नौजवानों के लिए, नई सोच के साथ, नई व्यवस्थाओं को विकसित करके काम क्यों नहीं कर सकते हैं ? इसीलिए, आज जब मैं आपके पास आया हूँ तो मैं इसी बात को लेकर आया हूँ कि हमारा यह दायित्व बनता है कि हम हाथ—पर—हाथ धरकर न बैठे रहें कि क्या करें, पहाड़ की जिंदगी ही ऐसी है, भगवान ने यहीं पैदा किया, ऐसे ही गुजारा करना है ऐसी सोच नहीं चलेगी। हमें जिंदगियाँ बदलनी हैं, अपने पैरों पर खड़ा होना है। मित्राो, मैं मानता हूँ कि परमात्मा ने जो आपको दिया है, इससे बढ़िया परिस्थितियाँ पलटने के लिए कुछ हो नहीं सकता है, बस नई आशा होनी चाहिए, नई सोच होनी चाहिए, नई उमंग होनी चाहिए, नए सपने होने चाहिए, नए संकल्प होने चाहिए। और मैं मानता हूँ अगर हम इस विश्वास के साथ उत्तराखंड को आगे बढ़ाने का संकल्प करें तो हम बढ़ा सकते हैं !
भाइयो—बहनो, काँग्रेस पार्टी का अहंकार सातवें आसमान पर है, उनको कोई परवाह ही नहीं है। आपने देखा होगा, कल काँग्रेस के एक नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस की और वह एक महान उपदेशक के नाते लोकपाल पर भाषण दे रहे थे। मैं देहरादून की इस पवित्रा धरती और गंगा मैय्या के किनारे से उनसे सवाल पूछना चाहता हूँ कि अगर आपको लोकपाल का इतना महत्त्व समझ आता है, भ्रष्टाचार की इतनी चिंता है, आप देश के नाम इतना बड़ा संदेश दे रहे हैं, तो उत्तराखंड में भुवनचंद्र खंडूरी जी के शासन में एक महत्त्वपूर्ण फैसले के दौरान लोकपाल का कानून बनाया गया था, जिसे अन्ना हजारे जी ने पढ़कर सराहा और भुवनचंद्र जी को बधाइयाँ दी थीं। अगर लोकपाल आपको इतना ही प्यारा लगता है, भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने का एकमात्रा सहारा समझ में आता है तो आपने और आपकी पार्टी ने उसे उत्तराखंड में क्यों नहीं लागू होने दिया था ?
भाइयो—बहनो, देश की जनता की आँख में धूल झोंकी जा रही है। अगर यही बात हमारे साथ होती है तो मीडिया के लोग जाने कहाँ—कहाँ से खोजबीन कर लाते कि उस राज्य के उस भाजपा नेता ने ऐसा किया था, अरे अब कोई तो इन्हें पूछो !
भाइयो—बहनो, अभी हाल ही में पाँच राज्यों में चुनाव हुए हैं और हवा का रुख साफ नज़र आ रहा है। देश की जनता ने काँग्रेस मुक्त भारत की शुभ शुरुआत कर दी है। चार राज्यों ने पहल की है और आने वाले दिनों में जो चार राज्यों ने किया है, वह चारों ओर होने वाला है, ऐसा हवा के रुख में साफ दिखता है। मैं उत्तराखंड के लोगों का ध्यान एक और तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ, कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तीन राज्यों को जन्म दिया। एक उत्तराखंड, दूसरा छत्तीसगढ़ और तीसरा झारखंड। समय की माँग है कि हिंदुस्तान के अर्थशास्त्राी, पॉलिटिकल पंडित, इन 13 सालों में तीन राज्यों का हिसाब—किताब देखें। उनकी तुलना और अध्ययन कर लें। भाइयो—बहनो, मैं कह सकता हूँ कि छत्तीसगढ़ की जनता ने बड़ी समझदारी से काम लिया है और बार—बार भाजपा को चुनकर बैठाया। इस निर्णय से आज छत्तीसगढ़ भारत के समृद्ध राज्यों से बराबरी की तरफ आगे बढ़ रहा है। लेकिन झारखंड और उत्तराखंड पिछड़ गए, क्योंकि यहाँ की जनता ने बार—बार दल बदले, सरकारें बदलीं, नेता बदले और अस्थिरता—ही—अस्थिरता बनी रही और इसी कारण, उत्तराखंड को बहुत नुकसान हो रहा है !
भाइयो—बहनो, अब प्रयोग बहुत कर लिये हैं, एक बार भरोसा कर लीजिए ! भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास कर लीजिए। मैं आपको भरोसा देता हूँ कि आपके सपने ही हमारा संकल्प बनेंगे, आपकी इच्छाएँ ही हमारी आदर्श होंगी, आपकी आवश्यकताएँ ही हमारी जिम्मेदारी होगी। हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के दिल में जिस उत्तराखंड के लिए जगह है, उस उत्तराखंड को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने के सपने को साकार करने में कंधे—से—कंधा मिलाकर हम आपके साथ जुड़ेंगे। भाइयो—बहनो, मैंने बहुत साल इस भूमि पर चुनाव और संगठन के लिए काम किया है, लेकिन ऐसा नजारा कभी नहीं देखा है ! मैं देख सकता हूँ कि रोड के उस तरफ भी लोग खड़े हैं, जहाँ भी नजर घुमाइए, माथे—ही—माथे दिखते हैं। मैं उत्तराखंड की जनता का बहुत आभारी हूँ कि पीड़ा की अवस्था के बावजूद आप सभी ने जो प्रेम दिया है, उस प्रेम को कभी भुलाया नहीं जा सकता !
आप सभी मेरे साथ बोलिए,
भारत माता की जय !
दोनों मुठ्ठी बंद करके पूरी ताकत से बोलिए,
भारत माता की जय ! भारत माता की जय !
वंदे मातरम् ! वंदे मातरम् ! वंदे मातरम् !