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उर्वशी और पुरुरवा

उर्वशी और पुरुरवा

आशीष कुमार त्रिवेदी

प्रेम और बिछोह की अनगिनत कहानियां हमारे साहित्य में हैं। लेकिन सबसे प्राचीन कहानी है उर्वशी और पुरुरवा की जिसका वर्णन ऋगवेद में भी मिलता है। ऋगवेद के 10 मंडल के 95 सूक्त की 18 ऋचाएं उर्वशी और पुरुरवा की कथा कहती हैं। महाभारत में भी यह कथा वर्णित हुई है।

महाकवि कालीदास के नाटक 'विक्रमोवंशम्' की कथा भी इन्हीं दोनों पात्रों पर आधारित है।

उर्वशी देवराज इंद्र के दरबार की प्रमुख अप्सरा थी। उसका सौंदर्य अप्रतिम था। नृत्य और गायन में उसे महारत प्राप्त थी। इसलिए इंद्र के ह्रदय में उसके लिए विशेष स्थान था।

पुरुरवा एक चंद्रवंशीय राजा था। वह बहुत ही आकर्षक एवं बलिष्ट था। देव असुर संग्राम में कई बार वह देवराज इंद्र का साथ दे चुका था। बलवान होने के साथ साथ वह सौंदर्यप्रिय व रसिक स्वभाव का था।

उर्वशी जब भी स्वर्गलोक के आनंद भोगते हुए ऊब जाती थी तो मन बदलने के लिए कुछ समय धरती पर व्यतीत करती थी। इसी प्रकार एक बार वह धरती पर भ्रमण करने आई थी। जब अपनी सखियों के साथ विहार कर रही थी तब एक असुर की दृष्टि उस पर पड़ी। उसके अद्वितीय रूप को देख कर वह उस पर मोहित हो गया। उसे जबरन उठा कर ले जाने लगा। उर्वशी भयभीत होकर सहायता के लिए पुकारने लगी। उसका रुदन पुरुरवा के कानों में पड़ा तो वह उसकी सहायता करने पहुँचा। असुर को पराजित कर उसने उर्वशी की रक्षा की।

दोनों ने एक दूसरे को देखा। पुरुरवा उसके रूप लावण्य का दीवाना हो गया। उर्वशी भी उसके पौरुष व आकर्षक व्यक्तित्व पर मोहित हो गई। प्रथम दृष्टि में ही दोनों एक दूसरे को ह्रदय दे बैठे।

उर्वशी वापस इंद्रलोक चली गईं। पुरुरवा भी अपने राज्य वापस लौट आया। लेकिन यह दूरी दोनों को ही असह्य लग रही थी। दोनों सदा एक दूसरे की याद में डूबे रहते थे। किसी कार्य में मन नहीं लगता था।

इंद्रलोक में भरत मुनि ने एक नाटक का आयोजन किया। इसमें उर्वशी देवी लक्ष्मी की भूमिका कर रही थी। नाटक करते हुए उसका ध्यान पुरुरवा पर था। देवी लक्ष्मी की भूमिका करते हुए एक स्थान पर उसे भगवान विष्णु को पुरुषोत्तम कह कर संबोधित करना था। लेकिन पुरुरवा की याद में खोई उर्वशी के मुंह से पुरुरवा निकल गया। उसकी इस त्रुटि पर भरत मुनि क्रोधित हो गए। उन्होंने उर्वशी को श्राप दिया कि वह एक साधारण मानव की स्मृति में खोई हुई थी। अतः उसे स्वर्गलोक से निष्काषित किया जाता है। अब उसे पुरुरवा के साथ एक साधारण स्त्री की भांति धरती पर रहना पड़ेगा।

उर्वशी पुरुरवा को प्रेम करती थी। लेकिन अब वह एक अप्सरा नहीं रहेगी बल्कि एक साधारण स्त्री हो जाएगी यह उसे अच्छा नहीं लगा। एक अप्सरा होते हुए वह स्वर्गलोक के जिन सुखों का भोग कर रही थी अब वह उनसे वंचित हो जाने वाली थी। अतः उसने देवराज इंद्र से प्रार्थना की कि वह उसे श्राप से मुक्ति दिलाएं। इंद्र को भी अपनी प्रिय अप्सरा का स्वर्गलोक से निष्काषन अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा "तुम अधिक दिनों तक स्वर्ग से दूर नहीं रहोगी। तुम पुरुरवा के पास जाकर अपनी दो शर्तें रखो। उनमें से यदि एक शर्त भी टूटे तो तुम वापस लौट आना।"

उर्वशी स्वर्गलोक से निकल कर पुरुरवा के पास आ गई। उसे पाकर पुरुरवा अत्यंत प्रसन्न हुआ। उर्वशी ने उससे कहा "राजन् मैं तुम्हारे साथ धरती पर एक साधारण स्त्री की तरह रहूँगी। लेकिन तुम को मेरी दो शर्तें माननी पड़ेंगी। इनमें से एक शर्त भी यदि टूटी तो मैं वापस स्वर्गलोक चली जाऊँगी।"

पुरुरवा हर हाल में उसे पाना चाहता था। उसने कहा तुम शर्तें बताओ।

उर्वशी ने पहली शर्त रखी कि उसके पास दो मेमने हैं। दोनों ही उसे प्रिय हैं। अतः पुरुरवा को दोनों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व लेना होगा।

दूसरी शर्त यह थी कि उर्वशी के अतिरिक्त पुरुरवा कभी किसी के सामने नग्न अवस्था में ना जाए।

पुरुरवा ने दोनों शर्तें मान लीं। एक दूसरे के प्रेम में पगे दोनों गंधमदन वन में रहने लगे।

इस प्रकार रहते हुए कई वर्ष व्यतीत हो गए। उर्वशी के ह्रदय में भी अब स्वर्गलोक के सुखों की चाह उत्पन्न होने लगी थी। दूसरी तरफ इंद्र तथा गंधर्वों को भी उर्वशी की अनुपस्थिति सताने लगी थी। अतः इंद्र ने एक योजना बनाई। उसने विश्ववसु नामक गंधर्व को उर्वशी का मेमना चुराने के लिए धरती पर भेजा। जब वह मेमने को उठा कर चलने लगा तो वह में में कर शोर करने लगा। उस समय उर्वशी और पुरुरवा प्रणयरत थे। मेमने की आवाज़ सुनते ही उर्वशी ने पुरुरवा को उसकी रक्षा करने को कहा। जल्दबाज़ी में पुरुरवा नग्न ही उसे बचाने भागा। जैसे ही वह बाहर आया इंद्र ने आकाशीय बिजली चमका दी। जिसके प्रकाश में विश्ववसु ने उसे नग्न देख लिया। चूंकि दोनों ही शर्तें टूट गईं उर्वशी पुरुरवा को छोड़ कर वापस स्वर्गलोक चली गई।

पुरुरवा के लिए यह बिछोह असहनीय था। राज काज सबके प्रति उसके मन में विरक्ति उत्पन्न हो गई। सब कुछ त्याग कर वह उर्वशी की खोज में मारा मारा फिरने लगा। इस प्रकार भटकते हुए एक बार उर्वशी कुरुक्षेत्र में उसके सामने आई। उसे देख कर पुरुरवा बावला हो गया। वह उर्वशी से साथ चलने की विनती करने लगा।

उसके अनुनय विनय का उर्वशी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह निष्ठुर भाव से बोली "राजन् मेरे द्वारा रखी गई दोनों शर्तें टूट गईं। अब मैं वापस नहीं आऊँगी। मैं स्वर्गलोक की अप्सरा हूँ। मैं साधारण स्त्री की भांति नहीं रह सकती। मेरे गर्भ में आपकी संतान है। आप एक वर्ष पश्चात मुझे यहीं मिलें ताकि मैं आपकी संतान आपको सौंप सकूं।"

एक वर्ष बाद कुरूक्षेत्र में पुनः उर्वशी पुरुरवा से मिली। उसे उसका पुत्र आयुष सौंप कर स्वर्गलोक चली गई।

उपमा के तौर पर हम कह सकते हैं कि पुरुरवा सूर्य है और उर्वशी ओस की बूंद। जैसे ही सूर्य ओस बूंद के संपर्क में आता है वह गायब हो जाती है।

पुरुरवा और उर्वशी की कहानी सच्चे प्रेम व शारीरिक आकर्षण के बीच के अंतर को दर्शाती है। उर्वशी का प्रेम दरअसल आकर्षण ही था। कुछ समय के बाद कम हो गया। उसे पुनः स्वर्ग के भोगों की याद आने लगी। जबकी पुरुरवा का प्रेम सच्चा था। इसलिए उसे खोजने के लिए वह सब कुछ छोड़ भटकने लगा।

पुरुरवा और उर्वशी की यह कथा प्राचीन काल से लोगों को आकर्षित करती रही है।

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