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श्रेष्ठ नर्तकी कौन

श्रेष्ठ नर्तकी का चुनाव

आशीष कुमार त्रिवेदी

देवलोक के राजा इंद्र के दरबार में कई अप्सराएं थीं। यह सभी अप्सराएं बहुत सुंदर एवं नृत्य व गायन में निपुण थीं। इनमें उर्वशी व रंभा प्रमुख थीं।

पद्मपुराण के अनुसार उर्वशी का जन्म कामदेव के उरु से हुआ था। वह अनुपम सुंदरी एवं बहुत अच्छी नर्तकी थी।

रंभा देवताओं तथा असुरों द्वारा किए गए सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी। वह भी अद्वितीय सुंदरी और नृत्यांगना थी।

इंद्र के दरबार में दोनों का ही बहुत सम्मान था। किंतु एक दिन इंद्र के समक्ष एक विचित्र प्रश्न खड़ा हो गया। इंद्र को इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था। इंद्र की 1000 पत्नियां थीं। उनमें से ही एक पत्नी ने इंद्र से पूंछा "उर्वशी और रंभा दोनों ही अप्रतिम सुंदरी हैं। नृत्य कला में भी दोनों का कोई सानी नहीं है। आप दोनों को ही पसंद करते हैं।"

"हाँ सभी बातें सत्य हैं।" इंद्र ने स्वीकार किया।

"माना दोनों की बराबरी करने वाली कोई अप्सरा नहीं है किंतु इन दोनों में से कौन श्रेष्ठ नर्तकी है।"

पत्नी का यह प्रश्न सुन कर इंद्र दुविधा में पड़ गए। अपनी मुद्राओं और भाव भंगिमा से दोनों ही किसी का भी मन मोह सकती थीं। जब दोनों नृत्य करती थीं तो चारों तरफ प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता था। उर्वशी तथा रंभा दोनों ही उन्हें प्रिय थीं। उन दोनों के बीच किसी भी प्रकार की तुलना आज तक उन्होंने नहीं की थी। अब वह कैसे बता सकते थे कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है।

वह सोच में डूबे थे। तभी नारद मुनि इंद्रलोक में पधारे। उन्होंने इंद्र से उनकी परेशानी का कारण पूंछा। इंद्र ने अपनी दुविधा उन्हें बता दी। नारद मुनि ने सुझाव दिया कि इस बात का निर्णय तो दोनों के बीच होने वाली प्रतियोगिता से ही हो सकता है। अतः देवराज इंद्रलोक में एक भव्य प्रतियोगिता का आयोजन करें जिसमें दोनों सुंदरियां अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें। जो विजयी हो वही श्रेष्ठ नर्तकी घोषित की जाए।

नारद मुनि के सुझाव पर इंद्र ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। स्वर्गलोक के देवी देवताओं को आमंत्रण भेजा गया। कई बड़े संगीतज्ञ व वादकों को बुलाया गया। मंच सज्जा पर विशेष ध्यान दिया गया।

दोनों अप्सराएं नृत्य कला में निपुण थीं। अतः तय हुआ कि नृत्य करते समय जो भी पहली त्रुटि करेगी वह पराजित समझी जाएगी।

प्रतियोगिता आरंभ हुई। वादकों से कहा गया कि संगीत की गति में समय समय पर परिवर्तन किया जाए। पहले धीमी गति से संगीत बजा। दोनों नर्तकियों ने अपनी मुद्राएं भाव भंगिमा उसी के अनुरूप रखी। इसके पश्चात संगीत की गति बढ़ गई। दोनों ने पुनः अपने नृत्य को उसी के अनुरूप ढाल लिया। उसके बाद वादकों ने गति में उतार चढ़ाव करना शुरू कर दिया। किंतु इस परिवर्तन को भी दोनों ने आसानी से ग्रहण कर लिया।

इंद्र ने प्रतियोगिता को कठिन बनाने के लिए कई तरह की चुनौतियां रखीं। नृत्यांगनाओं को दीपक, घंटियां तथा अन्य वस्तुओं को हाथ में पकड़ कर नृत्य करने को कहा गया। मंच पर कई प्रकार के व्यवधान उत्पन्न किए गए। जैसे कि भूमि पर जलते हुए दिए रख दिए गए तो कभी पानी से भरे पात्र। या फिर मंच पर स्थान स्थान पर अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। लेकिन इन बाधाओं से परेशान हुए बिना उर्वशी और रंभा कुशलता पूर्वक इनसे बचते हुए नृत्य करती रहीं।

कई दिन बीत गए पर किसी ने कोई त्रुटि नहीं की। निर्णय करना और भी कठिन हो गया था। एक बार पुनः नारद मुनि एक उपाय लेकर आए। उन्होंने कमल के फूल की चार समान आकार की कलियां मंगाईं। उन्हें अपने स्पर्श द्वारा अभिमंत्रित करने के पश्चात उर्वशी और रंभा को सौंप दिया। उनसे कहा गया कि वह अपने दोनों हाथों में एक एक कली पकड़ कर नृत्य करें। नारद मुनि ने वादकों को निर्देश दिया कि वह संगीत बजाना आरंभ करें एवं उत्तरोत्तर गति बढ़ाते जाएं।

नर्तकियों ने नृत्य करना प्रारंभ किया। धीरे धीरे संगीत की गति बढ़ने लगी। दोनों नर्तकियों ने भी अपनी गति बढ़ा दी। जैसे जैसे संगीत की गति बढ़ती जाती वैसे वैसे दोनों के पैर भी गति पकड़ लेते। दर्शकों का उत्साह बढ़ता जा रहा था। वह तालियां बजा कर उनका हौसला बढ़ा रहे थे।

संगीत की गति बढ़ते बढ़ते चरम पर पहुँच गई। गति के साथ तालमेल बैठाने के लिए दोनों को बहुत शक्ति लगानी पड़ रही थी। दोनों ही अब थक कर चूर हो गई थीं फिर भी पूरी हिम्मत से नृत्य कर रही थीं।

अचानक ही नाचते हुए रंभा ने झटके के साथ अपने हाथ में पकड़ी हुई कमल की कली फेंक दी। वादकों ने संगीत बजाना बंद कर दिया। सभी स्तब्ध थे। रंभा प्रतियोगिता में पराजित हो गई थी।

इंद्र समेत सभी समझ नहीं पा रहे थे कि हुआ क्या। इंद्र ने नारद मुनि से समझाने को कहा।

नारद मुनि ने बताया कि चूंकी दोनों नर्तकियां रूप, गुण और शक्ति में एक समान हैं तथा हर चुनौती का समान रूप से सामना कर रही थीं। अतः सही निर्णय तक पहुँचने के लिए यह परखना आवश्यक था कि तनाव को कौन आसानी से झेल सकती है। इसलिए उन्होंने चारों कलियों में बिच्छू छिपा दिए थे। दोनों नृत्यांगनाएं बड़ी निपुणता के साथ कलियों को थामे हुए नृत्य कर रही थीं। उनका प्रयास था कि कोमल कलियों पर अधिक दबाव ना पड़े। लेकिन संगीत की बढ़ती हुई गति से सामंजस्य बैठाना कठिन हो रहा था। दोनों तनाव में थीं। तनाव की इस स्थिति में रंभा कुछ क्षणों के लिए विचलित हो गई। उसका दबाव पकड़ी हुई कमल की कलियों पर बढ़ गया। जिसके कारण भीतर बैठा बिच्छू उत्तेजित हो गया तथा उसने रंभा को डंक मार दिया। तनाव में संतुलन खो देने के कारण वह पराजित हो गई।

इस प्रकार दो महान नर्तकियों में श्रेष्ठ कौन है इसका निर्णय हो गया।

यह कथा एक बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश देती है। गुण एवं शक्ति में एक समान होते हुए भी जीवन में वही सफल होता है जो तनावपूर्ण स्थिति में भी विचलित नहीं होता है। विषम परिस्थिति में भी धैर्य पूर्वक आगे बढ़ता है। जीवन में कई बार हम देखते हैं कि दो व्यक्ति एक ही क्षेत्र में समान रूप से परिश्रम करते हैं। दोनों समान रूप से गुणी भी होते हैं। लेकिन एक सफल हो जाता है और दूसरा पीछे रह जाता है। हम यही कहते हैं कि सफल हुआ व्यक्ति भाग्यशाली था। परंतु अक्सर होता यह है कि सफल व्यक्ति तो तनाव में संतुलन बनाए रखता है और आगे बढ़ जाता है। जबकी दूसरा व्यक्ति तनाव से घबरा कर धैर्य खो देता है।

व्यक्ति की श्रेष्ठता तब ही है जब वह तनावपूर्ण स्थिति में भी धैर्य ना खोए।

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