वो दलित लड़की Ved Prakash Tyagi द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वो दलित लड़की

वो दलित लड़की

नेहा आत्मविश्वास से परिपूर्ण, सुंदर, सुडौल देह एवं आकर्षक व्यक्तित्व की मालिक थी। आई आई टी जैसे प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान से कम्प्युटर मे इंजीन्यरिंग करने के पश्चात आई आई एम अहमदाबाद से प्रबंधन की पढ़ाई पूरी की तो देश-विदेश की कई बड़ी आई टी कंपनियों से बुलावा आ गया। नेहा ने अपने ही देश में रहकर सेवा करने का विचार पहले से ही किया हुआ था इसीलिए उसने विशुद्ध भारतीय कंपनी में इस शर्त पर नौकरी की कि वह विदेश में नहीं जाएगी।

इन्फोसिस जैसी बड़ी भारतीय कंपनी में भारी भरकम तंख्वाह मिलने लगी तो नेहा ने अपने घर वालों के लिए कई सपने देख डाले, छोटे भाई को डॉक्टर बनाना है, पापा को अच्छे से इलाके में दुकान लेकर देनी है और सोसाइटी में एक अपार्टमेंट लेना है जिसमें मम्मी, पापा, मैं और भाई रहेंगे।

जो भी एक बार नेहा को देखता, आकर्षित हुए बिना नहीं रहता, इस आकर्षण के साथ उसका बुद्धि चातुर्य, कार्य कुशलता एवं कौशल सामने वाले को बरबस ही धराशायी कर देते थे। उसके काम से, काम करने के तरीके से उसका टीम लीडर बहुत प्रसन्न था। और नेहा के इन सारे गुणों को देखकर टीम लीडर अनुराग के हृदय में नेहा के प्रति प्यार का झरना फूट रहा था।

वैसे तो और भी लड़के लड़कियां अनुराग की टीम में थे, सभी अच्छे पढे लिखे, कार्य कुशल एवं प्रवीण थे लेकिन न जाने क्यो जब जब नेहा उसके सामने आती तो वह निश्चेष्ट हो जाता। नेहा कब से पुकारे जा रही थी, “सर! यह प्रोजेक्ट मैं ले लूँ?” लेकिन अनुराग को जैसे न तो कुछ सुन रहा था और न ही नेहा के सिवा और कुछ दिख रहा था।

अनुराग की तंद्रा तब टूटी जब उसके मोबाइल की घंटी बजी, तब एक बार फिर नेहा ने दोहराया, “सर! यह प्रोजेक्ट मैं ले लूँ?” और अनुराग ने कहा, “हाँ! हाँ! यह प्रोजेक्ट मैंने तुम्हारे लिए ही रखा है, ले जाओ और समय से पूरा करना है।”

आकर्षक व्यक्तित्व, बुद्धि चातुर्य, कार्य कौशल और सुंदर सुडौल देह के कारण नेहा अपने ही कार्यालय में अपने ही सहकर्मियों की ईर्ष्या का शिकार होने लगी और कई बार वो लोग ईर्ष्यावश नेहा के प्रोजेक्ट में गड़बड़ कर दिया करते, लेकिन इन सब का नेहा पर कोई असर नहीं होता था, वह तुरंत ही गड़बड़ ढूंढ कर दूर कर देती और अपना प्रोजेक्ट समय से पूरा करके अनुराग को सौंप देती।

अनुराग हिमाचल के एक राजपूत परिवार से था अभी तक अविवाहित एवं गुरुग्राम में अकेला ही रहता था। जब से नेहा उसकी टीम में आई थी वह हमेशा नेहा के बारे में ही सोचता रहता था, कभी-कभी उसका मन करता कि अपने दिल की बात कह दूँ लेकिन कह नहीं पाता। इस बारे में नेहा भी थोड़ा थोड़ा समझने लगी थी लेकिन उसको तो फूँक फूँक कर कदम रखने थे........

अनुराग कई बार नेहा को कॉफी, लंच व डिनर के लिए आमंत्रित करता था लेकिन वह बड़ी संजीदगी से मना कर देती। एक दिन अनुराग नेहा को किसी तरह से डिनर के लिए मनाने में कामयाब हो गया, दोनों ही द लीला में डिनर के लिए गए। अनुराग ने एक विशेष टेबल बुक कराई थी जो फूलों व गुब्बारों से सजी थी, मद्दम प्रकाश में भीनी-भीनी खुशबू वातावरण को रोमांटिक बना रही थी। आज अनुराग बहुत खुश था, आज उसने नेहा से अपने मन की बात कहने की पूरी तैयारी कर ली थी।

इस खुशनुमा रोमांटिक वातावरण में अनुराग ने फर्श पर घुटनों के बल बैठ कर एक लाल खूबसूरत गुलाब अपने हाथ में लेकर नेहा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “नेहा! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”

नेहा ने गुलाब अपने हाथों में लेकर अनुराग को उठाया और कुर्सी पर बैठ जाने को कहा। अनुराग के सामने कुर्सी पर बैठ कर नेहा बोली, “मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार कर लूँगी, लेकिन पहले आप एक बार मेरे पापा से मिल लें, उसके बाद जैसे आप कहेंगे मैं स्वीकार कर लूँगी।”

अनुराग इतनी बात सुनकर प्रसन्न हो गया और कहने लगा, “चलो कल ही हम आपके पापा से मिलेंगे, मिलाओगी ना?” “हाँ, क्यों नहीं?” नेहा ने कहा।

नेहा अगले दिन अनुराग को अपने पापा से मिलवाने के लिए ले गयी, नेहा अचानक सड़क किनारे पर के मोची के ठीये की तरफ बढ्ने लगी। नेहा को उस तरफ जाते हुए देखकर अनुराग बोला, “क्या हुआ नेहा, अपनी चप्पल ठीक करानी है क्या, उस तरफ क्यो जा रही हो?”

नेहा ने कहा, “अनुराग आप मेरे पापा से मिलने आए हो न? तो आ जाओ, मिल लो मेरे पापा से, यही हैं मेरे प्यारे से पापा।”

‘एक मोची नेहा का पापा, यह कैसे हो सकता है?’ अनुराग तो धम्म से जैसे आसमान से गिरा, वह जहां खड़ा था वहीं खड़ा रह गया, काटो तो खून नहीं मानो साँप सूंघ गया हो।

नेहा ने अनुराग के सामने हाथ हिलाकर उसको तंद्रा से बाहर निकाला, “क्या हुआ? कहाँ खो गए?” नेहा को तो यह सब पहले से ही पता था इसलिए ही उसने अनुराग को पापा से मिलने के लिए कहा था........

“हाँ अनुराग, मेरे पापा मोची का ही काम करते हैं लेकिन मुझे अपने पापा और उनके काम दोनों पर गर्व है। अब आप मिलना नहीं चाहोगे उनसे?”

तब तक नेहा के पापा ने आवाज लगाकर दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया, स्वयं भी अपनी गद्दी से उठ कर पास वाले नल पर हाथ धोकर आए और दोनों बच्चों को लेकर पास वाले रैस्टौरेंट में जाकर बैठ गए।

नेहा के पापा बोलने लगे, “बेटा अनुराग, तुम्हारे बारे में नेहा ने मुझे पहले से ही बता दिया था और उसको जो महसूस हो रहा था कि तुम उसके बारे में क्या सोचते हो वह भी बता दिया था, मुझे यह भी पता था कि तुम एक राजपूत परिवार से हो, हमारी सच्चाई जानने के बाद शायद तुम अपना इरादा बदल लोगे, लेकिन मैं आज तुम्हें वह सच्चाई बताऊंगा जिसे ज़्यादातर लोग नहीं जानते, मेरी इस बात से तुम यह अंदाजा मत लगा लेना कि मैं तुम्हें नेहा से शादी करने को बाध्य कर रहा हूँ।”

“बेटा यह कोई कहानी नहीं हकीकत है जिसके प्रमाण अभी भी मिल जाएंगे, पीढ़ी दर पीढ़ी हमने इसकी मशाल जला कर रखी है, मुझे अपने पिता से मिली, उनको अपने पिता से और ऐसे ही मैंने अपने बच्चों को सब कुछ बता दिया है। इन बातों को किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा क्योंकि भारत का इतिहास लिखने वाले ज़्यादातर विदेशी थे या वो भारतीय थे जो विदेशी संस्कृति में पले-बढ़े थे।”

“औरंजेब का शासन था, तलवार के ज़ोर पर हिंदुओं को भारी संख्या में मुसलमान बनाया जा रहा था, जो इस्लाम को स्वेकार नहीं करता था उसको तरह-तरह की यातनाएं दी जाती, छोटे छोटे बच्चों को उनके माँ-बाप के सामने ही भाले और तलवार की नोक पर टांग दिया जाता, महिलायों के साथ सामूहिक बलात्कार किए जाते, ज़्यादातर औरतें तो मुग़लो के हाथ आने से पहले ही जौहर लेती थी। गाँव के गाँव, शहर के शहर इस्लाम में बदल गए थे। ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गूजर और दूसरी जाति के लोगों को मुसलमान बना कर नए नए नाम दे दिये गए, जो इस्लाम स्वीकार कर लेते, उनको सब तरह की सुविधाएं मिलने लगी, लेकिन इस्लाम कबूल करने से पहले उनको गोमांस भी खिलाते थे जो बहुत बड़ा अधर्म था।

इतना अत्याचार, इतना अधर्म हो रहा था, जो कुछ राजपूतों से सहन नहीं हुआ और उन्होने इसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए औरेंजेब ने सेना भेजी, राजपूत एक होकर बड़ी बहदुरी से लड़े लेकिन जीत न सके और इस तरह उनके इस विद्रोह को कुचल दिया गया। बहुत से राजपूत इसमे शहीद हो गए बहुत सी औरतों ने जौहर कर लिया और बहुत से राजपूतों को बंदी बना लिया गया।

अब सभी बंदियों के सामने दो ही प्रस्ताव थे या तो इस्लाम स्वीकार कर लो अन्यथा मरने के लिए तैयार हो जाओ, लेकिन बंदियों ने एक स्वर में कहा, “हम इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे हमें मार डालो, हम मरने को तैयार हैं।”

नेहा के पापा बोल रहे थे और अनुराग सुन रहा था इसी बीच रैस्टौरेंट वाला लड़का वहाँ चाय रख गया जिससे थोड़ा व्यव्धान हुआ लेकिन अनुराग ने चाय की तरफ ध्यान न देकर नेहा के पापा से पूछा, “फिर क्या हुआ अंकल, क्या उन सब बंदियों को मार डाला?”

“बेटा बात औरंजेब तक पहुंची, लाखों की संख्या में बंदी थे, जो पूरे देश में फैले पड़े थे, उनके चारों तरफ मुग़लों की सेना का पहरा था, सबको ग़ुलाम बना कर रखा हुआ था।”

बंदी तो प्रतिदिन भगवान से यही प्रार्थना करते कि उन्हे मार दिया जाए लेकिन औरंजेब ने कहा, “इन सबको जिंदा रखो, ग़ुलाम बना कर रखो, बस्ती के बाहर सेना के सख्त पहरे में इनसे सभी निकृष्ट कार्य जैसे मैला ढोना, मरे हुए जानवरों को उठाना, उनकी खाल उतारना करवाओगे तो ये रोजाना एक नई मौत मरेंगे।” बेटा तब से सभी बंदी राजपूत मुग़लों के ग़ुलाम हो गए एवं वह सब करने लगे जिसे कोई भी खुशी से नहीं करता था।

तब से लेकर आज तक हम लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यही कार्य करते आ रहे हैं। मुग़लों के बाद अंग्रेजों के ग़ुलाम रहे और हम में से ज़्यादातर लोग तो यही भूल गए कि वे कौन हैं, याद रही तो बस एक ही बात कि हम दलित हैं। इसका प्रमाण हैं वो लोग जो हमारे ही परिवार का हिस्सा हुआ करते थे लेकिन उस समय उन्होने इस्लाम कबूल कर लिया परंतु आज भी वे अपने को राजपूत ही मानते हैं और बेटा, हमारा गोत्र भी तोमर ही है और सभी दलितों के गोत्र राजपूतों से मिलते हैं यह एक बहुत बड़ा प्रमाण है की दलित भी राजपूत है।

“आजादी के बाद सरकारों ने दलितों के उत्थान के लिए काफी प्रयास किए और काफी कुछ सुधार भी हुआ है।”

मेरी बेटी के बारे में तो आप जानते ही हैं, मेरा बेटा चिकित्सक कि पढ़ाई कर रहा है लेकिन मैंने दलितों वाली कोई भी सुविधा अपने बच्चों को नहीं दिलवाई। आज यह दोनों जो कुछ भी हैं अपने बल पर हैं।

चाय भी खत्म हो चुकी थी, अब तीनों वहाँ से उठे और बाहर आ गए। बाहर आकर नेहा के पापा ने कहा, “बेटा अनुराग, अपने मन पर किसी तरह का बोझ मत रखना।” और विजयी भाव से नेहा के पापा अपने ठीये पर जाकर बैठ गए। नेहा और अनुराग भी अपने कार्यालय चले गए।

अगले दिन सुबह सुबह नेहा के घर की घंटी बजी, नेहा ने दरवाजा खोला तो देखा....... अनुराग अपने मम्मी पापा के साथ शगुन लेकर रिश्ता पक्का करने आए हुए हैं।

नेहा उनको आदर के साथ घर के अंदर ले आई और अपने मम्मी पापा को आवाज लगाकर बताया कि अनुराग अपने मम्मी पापा के साथ आए हैं, सभी बैठ गए और बातें होने लगी। अनुराग के पापा बोले, “हाँ भाई साहब! मुग़लों और अंग्रेजों की गुलामी ने हमें ऊंचे नीचे में बांटकर रख दिया जबकि हम सब एक हैं, हिन्दू हैं और हमारे बीच जो अनचाही दीवारें खड़ी हो गयी हैं उन्हे हम सबको मिलकर ही गिराना होगा। अब आप से मेरी हाथ जोड़कर विनती है कि इन बच्चों की खुशी के लिए आप अपनी बेटी के लिए मेरे बेटे का रिश्ता स्वीकार कर लें अगर आप मेरी विनती स्वीकार करते हैं तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे होगी।”