कहानी--भिखारिन अम्मा
बलवीर घर में चिंतामग्न बैठे हुए थे. बलवीर गाडी चलाने का काम करते थे लेकिन दो दिन पहले गाडी बुरी तरह से खराब हो गयी. जितना पैसा पास रखा था सब खर्च कर दिया लेकिन गाड़ी में अभी और सामान की जरूरत थी.
आज उन्हें घर में बैठे दो दिन हो चुके थे किन्तु एक भी रूपये से उनका भेंटा न हुआ था. हालत ये हो गयी कि घर में दस का नोट भी नकदी के रूप में नही था. बलवीर रोज कमाने रोज खाने वाले लोगों में से एक थे. जब दो दिन से घर में बैठे रहे तो पैसा कहाँ से आता? घर में चार बच्चे और दो मिंया बीबी. कुलमिलाकर छह लोग थे लेकिन कमाने वाले केवल बलवीर ही थे.
चारो बच्चे पढ़ रहे थे. उसकी पढाई का खर्चा और उनके बाकी के खर्चे चलाने में बलवीर की कमर टूट जाती थी. उसके बाद घर में और भी खर्चे होते थे. आज दो दिन घर में बैठे बलवीर को एक ही चिंता सता रही थी कि गाड़ी में और लगने वाले सामान के लिए पैसा कहाँ से आये.
बलवीर भगवान में बहुत विश्वास करते थे. कुत्तो को खाना डालना हो या चिड़ियों को दाना चुगाना हो. या भिखारी लोगों को दान देना हो. हर काम में बलवीर आगे रहते थे.
आज शनिवार का दिन था. बलवीर ने आज कहीं से ब्याज पर पैसा ला गाड़ी ठीक कराने की भी सोची तो शनिवार का ध्यान आ गया. शनिवार को लोहा नही खरीदने का विचार होता है इसलिए आज के दिन बलवीर ने घर में बैठना ही उचित समझा.
अभी बैठे सोच ही रहे थे कि बाहर दरवाजे से किसी बूढी औरत की आवाज आई. बलवीर ने आवाज सुनी तो तुरंत समझ गये कि बाहर कौन है. उन्होंने अपने पत्नी को आवाज दे कहा, “अरे शांति जरा बाहर जाकर देखो. आज शनिवार है भिखारिन अम्मा आयीं होंगी. उन्हें कुछ दे दो.”
शांति बाहर देखने के वजाय बलवीर के सामने आ खड़ी हो गयी और उदास हो बोली, “आप को पता नही घर में आज एक रुपया भी नकदी के रूप में नही है. फिर उन भिखारिन अम्मा को क्या दे दूँ?”
बलवीर चिंतित हो उठे. ये भिखारिन अम्मा हर शनिवार को घरों से पैसे लेकर जाती थीं. लोगों को मानना था कि शनिवार के दिन इस तरह से दान करने पर घर की विपत्तियाँ दूर हो जातीं है. बलवीर पर तो सचमुच में दो तीन दिन से विपत्ति आ खड़ी हुई थी.
आज तो वो किसी भी हालत में नही चाहते कि भिखारिन अम्मा उनके घर से खाली हाथ लौटकर जाए. जबकि आज से पहले ऐसा कभी नही हुआ था कि बलवीर के घर में हजार पांच सौ रुपए नकदी के रूप में न रहते हों.
बलवीर बैठे सोच रहे थे. शांति उनके सामने खड़ी थी. तभी भिखारिन अम्मा ने फिर से आवाज लगाई. बलवीर का ध्यान भंग हो गया. उन्होंने अपनी पत्नी शांति से कहा, “शांति तुम यहाँ खड़ी क्या कर रही हो? पैसा नही तो क्या हुआ कम से कम उस भिखारिन अम्मा को ठंडा पानी तो पिला ही सकती हो.”
शांति फुर्ती से बाहर गयी और थोड़ी ही देर में एक बूढी सी औरत को अपने साथ ले अंदर आ गयी. ये भिखारिन अम्मा के नाम से सारे मोहल्ले में मशहूर थी. बलवीर ने उस बुढिया से दुआ सलाम किया और चारपाई पर बिठा दिया.
शांति भागकर पानी ले आई. बुढिया ने पानी पिया और बलवीर से घर का हालचाल लेने लगी. बलवीर बात करते में बार बार शांति की तरफ बड़ी मायूसी से देख रहे थे. उन्हें इस बात की चिंता थी कि भिखारिन अम्मा को आज क्या दें.
थोड़ी देर बाद भिखारिन अम्मा उठ खड़ी हुई और बोली, “लाओ बेटा हमें कुछ दो तो हम चलें.” बलवीर थोड़े विचलित हुए लेकिन सम्हलते हुए बोले, “अम्मा आज एक मुश्किल आ खड़ी हुई है. अगर आप बुरा न मानो तो पैसों की जगह कुछ और दे दें आपको?”
बलवीर के बात कहने में कुछ ऐसा दर्द था कि भिखारिन अम्मा भी भावुक हो गयी. बोली, “बेटा क्या बात है. घर में सबकुछ ठीक तो चल रहा है न? बुरा मत मानना लेकिन मैं ये सब इसलिए पूंछ रहीं हूँ कि मुझे देने के लिए दस रूपये काफी होते हैं लेकिन आज उन दस रुपयों के लिए भी तुम मुझसे कुछ और ले जाने की कह रहे हो.”
दुखी आदमी से कोई उसके दुःख का कारण पूंछ ले तो वह बरबस ही अपना दुःख सामने वाले को बताने लगता है. जबकि पहले से यह सोचता है कि किसी को अपना दुःख न बताऊंगा. बलवीर ने भिखारिन अम्मा से अपनी सारी मजबूरी कह सुनाई.
भिखारिन अम्मा ने बलवीर की पीढ पर हाथ फेरा और बोली, “चलो बेटा कोई बात नही. भगवान जल्द ही तुम्हारी मुश्किलों को दूर करेगा. मेरा क्या मैं अगले बार तुमसे ले जाउंगी. तुम मायूस मत होओ.” इतना कह भिखारिन अम्मा वहां से चली गयी.
बलवीर और शांति चुपचाप बैठे सोचते रहे. शाम का वक्त होने जा रहा था कि किसी ने बलवीर का दरवाजा खटखटा दिया. शांति ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित हो उठी. सामने भिखारिन अम्मा खड़ी थीं. शांति अम्मा को अंदर ले आई. जहाँ बलवीर बैठे हुए थे. आश्चर्य तो बलवीर को भी बहुत हुआ था.
अंदर आते ही भिखारिन अम्मा ने कपड़े की एक छोटी सी पोटली निकाली और उसे खोल दिया. पोटली में दस पांच और बीस के नोट भरे हुए थे. उन सारे पैसों को अम्मा ने बलवीर की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “लो बेटा. इन पैसों से अभी अपना काम चलाओ. मेरे पास इतने ही पैसे थे. अब तुम जानते ही हो कि लोग मुझे दस पांच रूपये ही देते हैं. मैंने अब तक जितना जोड़ा है वो सब यही है.”
बलवीर और शांति मुंह फाड़े भिखारिन अम्मा की तरफ देखे जा रहे थे. जो औरत दिन भर गली गली घरों में जा भीख मांगती थी वो आज किसी और की मदद करने के लिए अपने भीख के पैसों को दे रही थी.
बलवीर के मुंह से बड़ी मुश्किल से निकल पाया, “अम्मा ये तुम क्या कह रही हो? भला मैं तुम्हारे पैसों को कैसे ले सकता हूँ? तुम दिन भर घूम घूम कर पैसा इकट्ठा करती हो और मैं उन पैसों को ले लूँ. न अम्मा न.”
भिखारिन अम्मा बलवीर को समझाते हुए बोली, “अरे बेटा ये पैसे मैं उधार के रूप में दे रही हूँ. तुम्हारा काम चल जाए उसके बाद मुझे लौटा देना. मुफ्त में नही दे रही जो इतना सोच रहे हो.” इतना कह अम्मा ने रुपयों की पोटली बलवीर के हाथ में थमा दी. बलवीर ने शांति की तरफ देखा. शांति की नजरों में खालीपन था. मानो उसको कुछ सूझता ही न हो.
बलवीर को सचमुच में रुपयों की जरूरत थी और उनके सामने इस वक्त रूपये रखे भी थे लेकिन एक भिखारिन औरत के पैसे अपने काम में लगाना बलवीर को असहज बनाये जा रहा था.
बलवीर या शांति कुछ कहते उससे पहले ही भिखारिन अम्मा उठ खड़ी हुई और बोली, “अच्छा भई मैं तो चलती हूँ. अब शनिवार के दिन आउंगी तुम लोगों के पास.” इतना कह अम्मा वहां से चली गयी. बलवीर और शांति स्तब्ध बैठे थे. अम्मा को जाते हुए देख भी उनको कुछ न सूझा.
बाद में बलवीर को शांति को बहुत समझाया तब जाकर बलवीर ने दूसरे दिन उन रुपयों से गाड़ी ठीक करायी. रूपये देखने में कम लगते थे लेकिन गाड़ी ठीक होने के बाद भी थोड़े से रूपये बच गये थे. बलवीर ने गाड़ी के ठीक होते ही फिर से काम करना शुरू कर दिया.
किन्तु बलवीर के दिल में भिखारिन अम्मा के लिए जो सम्मान पैदा हुआ था वो किसी देवी के सम्मान से कम न था. अब बलवीर को शनिवार के दिन भिखारिन अम्मा के आने का इन्तजार था जिससे वो उनके पैरों में पड़ उनके पैसे बापिस कर सके.
[समाप्त]