घासलेट का घी Dharm द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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घासलेट का घी

घासलेट का घी

बात लावन गाँव की है, जिसमे राजेश्वरी देवी नाम की एक महिला रहती थीं. उनके पति की मृत्यु काफी समय पहले हो चुकी थी, तीन लडके और एक लडकी थी जिसकी शादी कुछ दिनों पहले हो चुकी थी. घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी, क्योंकि कमाने वाला घर में कोई था ही नही.

जैसे तैसे तीन बच्चो के पालन पोषण और पढाई का खर्चा चलता था, थोड़ी सी जमीन थी जिसको पट्टे पर उठा दिया जाता था जिसके पट्टे के रू साल में एक बार आते थे वो भी गिने चुने.

राजेश्वरी देवी अपना खर्च लोगों के मटर और गेहूं आदि बीन, साफ करके चलाती थी. इससे थोड़े बहुत रूपये आ जाते थे. लेकिन आज समस्या कुछ और थी, आज उनके बेटी और दामाद पहली बार घर आ रहे थे, जबकि घर में घी न था, यहाँ तक कि गाँव में रहते हुए भी दूध वगैरह की सुविधा न थी क्योंकि भेंस लेने के पैसे न थे.

जबकि राजेश्वरी देवी की लडकी ने उनको खबर की थी कि तुम्हारे दामाद आ रहे हैं थोडा घी वगैरह तैयार रखना. राजेश्वरी देवी ने मोहल्ले में कई ओरतों से कहा, उन्होंने जबाब दिया-बहन गर्मी के दिनों में घी कहाँ से आया, वैसे ही भैंस कम दूध दे रहीं है.

घी का प्रबंध हो भी न पाया था कि राजेश्वरी देवी के यहाँ उनके दामाद और बेटी आ पहुंचे. राजेश्वरी देवी के हाथ पैर फूल गये, उन्होंने फटाफट अपने तीनों बेटों को अपनी आवाभगत में लगा दिया. किसी ने नल का ठंडा पानी दिया तो किसी ने भगोने में चाय का पानी भर चूल्हे पर रख दिया, तीसरा दुकान पर गया और नमकीन बिस्कुट का जुगाड़ कर लाया.

मेहमानों को चाय नाश्ता दिया गया,नाश्ते के बाद राजेश्वरी देवी की बेटी ने आकर कहा, “माँ तुम्हारे दामाद कह रहे है कि पूरी परांठे न बनाना, उन्हें सिर्फ हाथ की रोटी घी से अच्छी तरह चुपड़कर, चटनी के साथ दे देना, साथ में थोडा सा घी कटोरी में भी रख देना”.

राजेश्वरी देवी घी न होने के कारण आज घासलेट के परांठे बनाने की सोच रही थी लेकिन बेटी की बात सुन उनके कानों में सन्नाटा छा गया. अब क्या करें इसी उधेड़ बुन में बैठी थी कि पडोस की एक औरत आई, उसने राजेश्वरी देवी को उदास देख उनकी उदासी का कारण पूंछ लिया, उसे जब सारी बात का पता चला तो बोली, “घबराती क्यों हो राजेश्वरी, भला इसमें भी कोई बड़ी बात है, मेरे दामाद आये तब मेरे घर में भी घी नहीं था तब मैंने एक तरकीब अपनाई”.

राजेश्वरी देवी बोलीं, “बहन बताओ तो वह तरकीब तो मेरी भी जान में जान आये”. वो महिला जासूसी अंदाज़ में बोली, “देखो घासलेट तो है न तुम्हारे घर में, उसको कटोरी में गर्म करो और गर्म रोटियों पर लगाकर खिला दो”.

राजेश्वरी देवी ने हडबडा कर कहा, “बहन क्या कहती हो अगर पता चल गया तो दामाद अपने मन में क्या कहेंगे, मेरी लडकी तो मुझे घंटों सुनाएगी.” महिला बोली, “तुम इस चिंता को छोड़ दो, जब मेरे दामाद बेटी न जान सके तो भला ये क्या जानेंगे, भला शहर के लोग जो नकली घी खा खा कर बड़े होते हैं वे घी और घासलेट में क्या अंतर कर पाएंगे, बस तुम खिला दो एक बार, अगर ये ऊँगली न चाट जाये तो मेरा नाम नही.”

इतना कह वो महिला अपने घर चल दी. इधर राजेश्वरी देवी ने डरते डरते यही तरीका आजमाया, उन्होंने चटनी बनाई और हाथ की रोटियों के साथ पिघलायी हुई घासलेट चुपड़ दी, फिर अपने बेटे को खाना देने भेज दिया.

दामाद और बेटी दोनों दूसरे कमरे में बैठे थे, खाना सामने आते ही राजेश्वरी देवी की बेटी अपने पति से बोल पड़ी, “देख लो ये है घर का देसी घी तभी तो इतनी खुशबु आ रही है, आज का दिन तो शुभ जायेगा”. दामाद ने भी रोटी का एक टुकड़ा चटनी के साथ खाया तो बोले, “ओह हो, लाजबाब स्वाद है घर के घी का थोडा सा कटोरी में मंगवा लो, उसमे रोटी के टुकड़े डुबोकर खायेंगे, भला फिर न जाने कब शुद्ध घी का स्वाद मिले.”

देर से डर के मारे दिल को थामे बैठी राजेश्वरी देवी ने जब यह सुना तो आश्चर्य चकित हो गयी, सोचतीं थीं पड़ोसिन तो रामवाण नुस्खा बता गयी, साथ में उन्हें अपने दामाद और बेटी की अक्ल पर भी हंसी आ रही थी, जो घी और घासलेट में अंतर न कर पाए थे.

राजेश्वरी देवी ने बेटी के मंगाए जाने पर एक कटोरी घासलेट गर्म कर बेटे के हाथ भेज दी. पिघली हुई घासलेट बिलकुल घी के समान लगती है और स्वाद भी घी जैसा ही होता है, इसी कारण घी में इसकी मिलावट होती थी.

जैसे ही घी की कटोरी बेटी और दामाद के सामने पहुंची तो दोनों ने सटासट घी कम घासलेट चट कर डाला और दूसरी कटोरी घी लाने की मांग कर डाली.

दोनों कहते थे कि आज के जैसा घी जिंदगी में न खाया. राजेश्वरी देवी की बेटी अपने पति पर धाक जमाती थी,कहती, “देखा मेरे घर का घी, तुम्हारे यहाँ शहर में तो घी में घासलेट मिलाकर बेचते हैं, ये होता है शुद्ध देसी घी”.

दामाद पर इस बात का असर हुआ और बोले, “वाकई में तुम सच कहती हो, तुम माँ जी से कहकर एक डब्बा घी घर के लिए पैक करा ले चलो, सभी घर वाले शुद्ध देसी घी का स्वाद ले लेंगे”. बेटी ने राजेश्वरी देवी से जिद कर कहा, “माँ तुम दो किलो घी मेरे लिए रख दो, में अपनी ससुराल ले जाना चाहती हूं, वहां सब तुम्हारी तारीफ करेंगे, साथ ही मेरी इज्जत भी बढ़ जाएगी”.

राजेश्वरी देवी सकपका गयी, सोचतीं थीं अभी घासलेट रख दूं तो वहां कोई पहचान जायेगा, उन्होंने अपनी बेटी से कहा, “अभी घी नही है में तुम्हे जल्दी ही घी बनाकर पहुंचा दूंगी, बल्कि और थोडा ज्यादा सा बनाकर भेज दूंगी”. बेटी ख़ुशी ख़ुशी मान गयी, बोली, “जल्दी भिजवाना वहां सभी लोग देसी घी का इन्तजार करेंगे”.

जब दोनों रिश्तेदार घर से चल दिए तो दामाद राजेश्वरी देवी से बोले, “माँ जी आपने काफी खातिरदारी की और देसी घी के तो कहने ही क्या, ऐसा घी तो पहली बार खाया है”. बेटी भी चलते चलते कह गयी, “माँ जल्दी भिजवाना”. राजेश्वरी देवी ने हाँ में सर हिला दिया.

दोनों के जाने के बाद पडोस की महिला आई तो राजेश्वरी देवी ने सारी बात बता डाली, दोनों सहेलियों की हंसी रूकती न थी, दोनों ने बुरे वक्त में अपने चटोरे रिश्तेदारों को चूना जो लगाया था. राजेश्वरी देवी ने उस महिला का धन्यवाद किया जो उसने बुरे वक्त में यह तरीका बताया वरना आज उनकी किरकिरी हो जाती.

काफी दिनों तक राजेश्वरी देवी और उनके तीनो बेटे यह बात सोच सोचकर हसते थे, कहते थे यह घी अच्छा रहा और तब से वे लोग घासलेट को 'घासलेट का घी' कहते हैं.

[समाप्त]