आत्मागमन Dharm द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आत्मागमन

आत्मागमन

थोड़े समय पहले की बात है हमारे एक गाँव में घूरे नाम का एक व्यक्ति रहता था, एक आँख नकली थी और दूसरी भूरी, इस लिए नाम घूरे पड गया, हसमुख था. अपनी पड़ोसिन दुकानदार जो दिखने में मोटी थी, उससे मजाक करता रहता था, उसे 'हलुआ पूरी, हलुआ पूरी' कहकर चिढाता था, वो औरत चिढ़ते हुए घूरे को सुनाने लगती, घूरे खुश हो जाता.

उसकी शादी नही हुई थी, दो बड़े भाई थे, दोनों की शादी हो चुकी थी. दोनों ही बाहर रहते थे, घूरे सबसे छोटा था और गाँव में ही रहता था. वह आये दिन नये नये काम करता था, कभी गुरु मन्त्र ले आता और उसे चलते फिरते, उठते बैठते जपने लगता, लोग समझते अपने आप से बातें कर रहा है, उसे रात की रखी रोटी सुबह खाना अच्छा लगता था, रोटियां घी की जगह सरसों के तेल से चुपड़कर खाता.

अभी कुछ दिनों से वह अजीब हरकतें करने लगा था. अपने चाचा से कहने लगा, “रात तुम मुझे मारने आये थे मल्लू चचा”. उसके चाचा ने समझा मस्ती कर रहा है तो उन्होंने हाँ कर दी, उन्हें क्या पता था कि इसके मन में क्या भूत सवार है.

घूरे इतना सुनते ही चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा, “कोई मुझे फूटी आँख नही देख सकता, सब मुझे मारना चाहते हैं, में अब मरने जा रहा हूं”. मल्लू चाचा के दिमाग में खलबली मच गयी, उन्हें कुछ सूझा नही, चिल्लाकर घर वालों को इकट्ठा कर लिया और अपने लडको से बोले, “जल्दी पकड़ो उसे”.

दो लडके दौडकर घूरे को पकड़ लाये, गाँव की बात शोर गुल सुनकर पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया, शोर सुनकर में भी पहुंच गया, तो देखा कि घूरे को उसके चचेरे भाई पकड़े खड़े हैं और घूरे झूम रहा है, उसे देख कर लग रहा था कि उस पर भूत आ गया है, उसे देख कर मेरी हंसी छूटी लेकिन तुरंत यह बात ध्यान में आ गयी कि किसी भूत वाले इन्सान को देख कर हसते नही हैं.

इतने में मल्लू चाचा अंदर से गंगाजल का लोटा लाये और घूरे पर उसके छींटे मरने लगे. घूरे को थोड़ी शांति पड़ी, वह चुपचाप द्वार के चबूतरे पर बैठ गया. अब घर वालों को पक्का यकीन हो गया कि घूरे पर किसी भूत प्रेत का साया है. बात चलने लगी कि किसी तांत्रिक को बुलाया जाय, पीछे से किसी ने कहा, “भत्तुआ को बुलाओ, उसके मंतर ज्यादा कारगर होते है.” लेकिन मल्लू चाचा का मानना था कि इतवारी सबसे बड़ा तांत्रिक है.

आख़िरकार मल्लू चाचा की बात पर अम्ल किया गया, तांत्रिक को लाने के लिए मल्लू चाचा का लड़का और में भेजे गये. साईकिल निकाली और चल पड़े इतवारी स्याने के पास, गाँव में तांत्रिक को स्याना बोलते हैं. बारिस का मौसम था, इतवारी के घर के आगे कीचड़ थी मल्लू का लड़का गट्टू उस कीचड़ में गिर पड़ा. ऊपर से आवाज आई 'घोर अनर्थ'. मैंने ऊपर देखा तो पता चला कि इतवारी थे.

मैला कुरता, मैली धोती, खिचड़ी वाल, बढ़ी हुई दाढ़ी, पीले दांत, काला चेहरा लाल आँखें, पतला झरहरा बदन, सफ़ेद प्लास्टिक के जूते, गले में आठ दस अजीब सी मालाएं, अच्छे खासे भूत को डराने वाला हुलिया. हमे देखते ही बोला, “चलो”. मैंने पूंछा, “कहाँ”. गट्टू ने चुप रहने का इशारा किया, में चुप हो गया.

में समझ गया ये जरुर अन्तर्यामी है, समझ गया होगा कि इसे बुलाने आये है. दरअसल बात ये थी कि जो भी व्यक्ति इतवारी के पास आता वो बहुत से परेशान होता था, इतवारी देखते ही समझ जाता और उसका एक ही शब्द होता कि ‘चलो’.

साइकिलें सीधी घूरे के पास जाकर रुकीं, इतवारी साईकिल से उतरा दो कदम चला, फिर ठिठका और मल्लू की तरफ कुछ इशारा किया. मल्लू घर में गये और लौटे तो हाथ में राख की पुडिया थी, पता चला ये उनके पुरखों(अऊत) की पूजा की राख है.

इतवारी ने हाथ में पुडिया ली और उस राख से माथे पर तिलक किया, घूरे तन गया, लोगों ने कहा कोई भस्मी आत्मा है. इतवारी ने मंतर पढ़ा, घूरे शांत हुआ. इतवारी दो कदम पीछे हटा, फिर ठिठका और मल्लू की तरफ इशारा किया. मल्लू घर में गये, लौटे तो हाथ में एक सौ एक रुपया लाये और इतवारी को दे दिया. इतवारी चलने को हुआ, गट्टू साईकिल पर उसे छोड़ने चला गया.

लोगों ने राहत की सांस ली, सोचा चलो भूत शांत हुआ. उसी रात कुए में कुछ भरी वस्तु गिरने की आवाज आई, गाँव में शोर मच गया, बाद में मालूम पड़ा कि प्रेतात्मा ने घूरे को कुए में धकेल दिया है. बड़ी मशक्कत के बात घूरे को कुए से निकाला गया.

शरीर पर काफी चोटें लगीं थी, घूरे की बूढी माँ रोये जा रही थी बोलती थी, “बूढी माँ के सामने जवान बेटे की मौत हो जाती तो क्या होता”. महिला मंडल ने उन्हें ढाढस बंधाया. दो लोग घूरे के पास सोये तब जाकर सुबह तक शांति रही. आज फिर इलाज जरी था, इतवारी के बदले दूसरा स्याना बुलाया गया, उसने आते ही कुत्ते का मल, जले हुए कंडे(उपले) पर रख कर घूरे को सुंघाया. घूरे के बालों को पकडकर पूंछा जाता ‘बता तू कौन है’. घूरे बोलता, “नही बताऊंगा”.

इसी प्रकार कई दिनों तक इलाज चला, पंचायतों के नामी गिरामी स्याने बुलाये गये, लेकिन कुछ लाभ न होता था. फिर किसी ने राय दी कि पागलखाने वाले डॉक्टर को दिखाओ. विचार नया था ये भी आजमाया गया. डॉक्टर से दवाई आई, सब की सब नसे और नींद की दवाइयां थी, उन्हें खाकर घूरे पूरे दिन शराबी की तरह झूमता और फिर एक रात वो हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नही कर सकता था.

कुए में कुछ गिरने फिर से आवाज आई लेकिन कोई ठीक से सुन न पाया. रात को जब घूरे की तलाश हुई तो घूरे कहीं न मिलता था. तब किसी ने कहा, “कुए की तरफ देखो”. कुए का नाम सुनते ही सब के शरीर में सिरहन दौड़ गयी.

एक साथ दस बारह लोग कुए पर चढ़ गये, फिर कुए में जो देखा उसे वयां नही किया जा सकता, कुए में घूरे की लाश पड़ी तैर रही थी. सारे गाँव में कोहराम मच गया, जो सुनता दौड़ा चला आता.

और आये भी क्यों न गाँव वालों की इतनी छोटी जो दुनिया होती है इसीलिए तो एकदूसरे के लिए इतना मरते हैं. रस्सी, नसैनी(सीढी) और टार्च मंगाई गयी. एक आदमी रस्सी के सहारे कुए में उतरा, उसने घूरे की लाश में रस्सी का फंदा डाला. चार पांच लोगों ने रस्सी को खींच लिया.

घूरे कुए से बाहर निकल आया लेकिन आज जीवित न था. उसकी माँ दहाड़े मार मार कर रोयी और बेहोश हो गयी. आज उस पड़ोसिन मोटी दुकानदार महिला की आँखों में भी आंसू थे जिससे घूरे रोजाना मजाक किया करता था.

लोगों में तरह तरह की चर्चाएँ होने लगी, “देखो आत्मा मानी नही आदमी की जान लेकर ही मानी, जरुर कोई भस्मी आत्मा थी”. लेकिन घूरे को आज कुछ चिंता न थी वो तो आज चिर निद्रा में सोया हुआ था, मोहल्ले की सारी मस्ती, सारा मजाक आज अपने साथ ले चला गया था.

[समाप्त]