अन्धायुग और नारी

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प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है ,हमारे पौराणिक ग्रन्थों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है , हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है,नारी सृष्टि का आधार है, वह समाज को जीवनदान देती है,जिस प्रकार तार के बिना वीणा तथा धुरी के बिना रथ का पहिया बेकार है,ठीक उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन बेकार है,नारी पुरुष की संगिनी है वह पुरुष की सहभागिनी है,नारी के बिना मनुष्य के सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, नारी बेटी है, पत्नी है,मित्र है , प्रेयसी और माँ है,इस प्रकार अनेकों गुणों से नारी को विभूषित व सुसज्जित बताया जाता है, कहते हैं कि....

Full Novel

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अन्धायुग और नारी--भाग(१)

प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है ,हमारे पौराणिक ग्रन्थों में नारी को एवं देवीतुल्य माना गया है , हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है,नारी सृष्टि का आधार है, वह समाज को जीवनदान देती है,जिस प्रकार तार के बिना वीणा तथा धुरी के बिना रथ का पहिया बेकार है,ठीक उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन बेकार है,नारी पुरुष की संगिनी है वह पुरुष की सहभागिनी है,नारी के बिना मनुष्य ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२)

वो अपनी सखियों संग नृत्य करने मंदिर के मंच पर आई और मैं उसकी खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्ध हो उसने जब नृत्य करना प्रारम्भ किया तो वहाँ उसे देखने वाले जितने भी पुरूष थे वें अपनी पलकें ना झपका सकें,चूँकि उस जमाने में घर की स्त्रियाँ को इन सब समारोह में शामिल नहीं किया जाता था, स्त्रियों के लिए ऐसी जगहें ठीक नहीं मानी जातीं थीं,ऐसी जगह केवल पुरूषों की अय्याशियों का ही अड्डा होतीं थीं,क्योंकि पुरुष यहाँ आकर अपनी मनमानियांँ कर सकते थे और जब कोई रोकने टोकने वाला ना हो तो पुरूष स्वतन्त्र होकर अपने भावों का ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(३)

अब तुलसीलता तो मेरे चाचा सुजानसिंह के साथ हवेली चली गई फिर मेरे चाचा सुजान सिंह को ये सुध ना रही कि उनका भतीजा उनके साथ आया था और अब वो कहाँ हैं,उन्होंने ना मुझे ढूढ़ने की कोशिश और ना ही एक बार मेरा नाम लेकर पुकारा ,वो तो उस देवदासी तुलसीलता को देखकर बौराय गए थे और उसे अपने साथ हवेली ले जाकर ही माने,मैं यहाँ रातभर कुएँ की चारदीवारी की ओट में बैठा रहा और जब बैठे बैठे थक गया तो वहीं सो गया.... सुबह भोर हुई और चिड़ियाँ चहकने लगी तब मेरी आँख खुली और उसी ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(४)

मैं नहाकर जैसे ही रसोई के भीतर पहुँचा तो मैने देखा कि चाची मिट्टी के चूल्हे पर गरमागरम रोटियाँ रहीं है,मुझे देखते ही उन्होंने लकड़ी का पटला डाला और उसके सामने पीतल की थाली रखते हुए बोली... "यहाँ बैठ जा! मैं खाना परोसती हूँ", और उनके कहने पर मैं लकड़ी के पटले पर बैठ गया फिर उन्होंने मेरी थाली में खाना परोसना शुरु किया,कटोरी में दाल,आलू बैंगन की भुजिया,आम का अचार और गरमागरम घी में चुपड़ी रोटियाँ,मैने खाना खाना शुरू किया तो उन्होंने मुझसे पूछा.... "कल रात तेरे चाचा और तू कहाँ गए थे"? "देवदासियों का नृत्य देखने",मैने कहा... ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(५)

दोनों की बातें सुनने के बाद मैं सोच रहा था कि मैं वहाँ रूकूँ या वहाँ से चला जाऊँ,फिर रूक जाता हूँ और तुलसीलता से ये पूछकर ही जाऊँगा कि मैं यहाँ क्यों ना आया करूँ और यही सोचकर मैं तुलसीलता की कोठरी के पास खड़ा होकर कोठरी के दरवाजे खुलने का इन्तजार करने लगा.... कुछ देर बाद कोठरी के किवाड़ खुले,लेकिन मुझे वहाँ देखकर उसने फौरन ही किवाड़ बंद कर लिए और भीतर से ही बोली.... "तू अभी तक यहाँ खड़ा है,गया क्यों नहीं" "मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी",मैंने कहा... "लेकिन मैं तुमसे कोई बात नहीं करना ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(६)

उस रात देवदासी तुलसीलता ने मंदिर में नृत्य किया और उसके बाद वो अपनी कोठरी में जाकर आराम करने आधी रात के समय किसी ने उसकी कोठरी के द्वार की साँकल खड़काई,तुलसीलता ने भीतर से ही पूछा.... "कौन...कौन है"? तभी बाहर से आवाज़ आई... "मैं हूँ तुलसीलता,किवाड़ खोलो,देखो कोई तुमसे मिलने आया है", "अच्छा! पूरन काका! आप! जरा ठहरिए! मैं अभी किवाड़ खोलती हूँ", और ऐसा कहकर तुलसीलता ने अपनी कोठरी के किवाड़ खोल दिए,पूरन काका जो कि पुजारी जी के यहाँ नौकर थे वें तुलसीलता से बोले... "तुम्हें अभी इसी वक्त हवेली जाना होगा,ठाकुर साहब ने तुम्हें बुलवाया ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(७)

आँखें खोलते ही तुलसीलता ने लालटेन के उजियारे में मुझे पहचान लिया और मुझसे पूछा.... "तू यहाँ क्यों आया "तुम्हें बचाने",मैंने कहा... " तू मुझे बचाने क्यों आया है"?,तुलसीलता ने पूछा... "मानवता के नाते",मैं बोला... "तेरे दादा को पता चल गया कि तूने मुझे यहाँ से छुड़ाया है तो",तुलसीलता बोली... "तुम अगर अपनी बकवास बंद कर दो तो मैं तुम्हारी रस्सियाँ खोल दूँ",मैंने तुलसीलता से कहा.... "अरे! बिगड़ता क्यों है,कोई एहसान थोड़े ही कर रहा है तू मुझ पर",तुलसीलता बोली.... "हाँ! सही कहा तुमने,एहसान नहीं है ये,अपने दादा जी के किए बुरे काम को अच्छा करने की कोशिश कर ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(८)

और जिसका डर था वही हुआ,दादाजी को बैठक में मेरी स्याही वाली कलम मिल गई,जो मुझे दादाजी ने ही जन्मदिन पर उपहार स्वरूप थी,वो कलम चाँदी की थी,उन्होंने विशेष रुप से शहर के सुनार को आर्डर देकर बनवाई थी,अब उन्हें पक्का यकीन हो गया था कि मैने ही रात को तुलसीलता को बैठक से भगाने में उसकी मदद की थी,उनका शक़ इसलिए और पक्का हो गया क्योंकि मेरा कमरा उनकी बैठक के बगल में ही था,इसलिए उनकी सभी बातें भी मैने सुनी होगी,तब मैंने ही तुलसीलता को वहाँ से छुड़वाया होगा.... और दादाजी सीधे मेरे कमरें में चले आए,मैं ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(९)

मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि मुझे उसकी इतनी चिन्ता क्यों हो रही है? आखिर क्या है मेरे मन में उसके लिए इतनी हमदर्दी पनप गई है? वो उम्र में मुझसे बड़ी भी है,वो कम से कम बीस बाईस बरस की तो होगी ही, वो मुझसे उस दिन के बाद बात करती तो मैं उसकी उम्र पूछ लेता,लेकिन वो तो मुझे उसकी कोठरी में आने से मना करती है, खैर! मुझे क्या? मेरा तो जो फर्ज था,वो मैंने निभा दिया,अब तुलसीलता जाने और उसका काम जाने,मैंने सबके बारें में सोचने का ठेका थोड़े ही ले रखा है.... ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१०)

मैं और चंपा चुपचाप उसी टीले के पास बैठकर उस बाँसुरी वाले की बाँसुरी सुनने लगे,बहुत ही मीठी बाँसुरी रहा था वो,मैं तो जैसे उसकी बाँसुरी में खो सी गई,वो आँखें बंद करके बाँसुरी बजा रहा था और मैं उसे एकटक निहारे जा रही थी, सच में उसका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था,कुछ ही देर में उसने बाँसुरी बजाना बंद किया और जैसे ही अपनी आँखें खोली तो हम दोनों को अपने नजदीक बैठा देख सकपका गया और उसने हमसे पूछा... "कौन हो तुम दोनों और यहाँ क्या कर रही हो",? तब चंपा बोली... "हम तुम्हारी बाँसुरी सुनकर यहाँ ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(११)

मेरे बड़े भाई ने ये बात बाबूजी और मेरी सौतेली माँ शकुन्तला को बता दी,बात सुनकर सौतेली माँ आगबबूला उठी और बाबूजी से बोली.... "देख लिया ना लड़की को ज्यादा छूट देने का नतीजा,अब उसने हमें कहीं भी मुँह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा, मेरे तो कोई सन्तान हुई थी इसलिए मैं इन दोनों को ही अपने बच्चे समझकर पाल रही थी,लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि इस लड़की की वजह से हमें ये दिन देखना पड़ेगा" " अम्मा! तुम ज्यादा परेशान मत हो,मैं अभी काका के पास जाकर उनसे बात करता हूँ कि कैसें भी कर के कोई ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१२)

सुबह मैं जागा तो हवेली में कौतूहल सा मचा था,क्योंकि दादाजी ने अपने लठैतों को रात को भेजा होगा के पास लेकिन उन्हें वहाँ तुलसीलता नहीं मिली और दादाजी इस बात से बहुत नाराज़ थे,उनकी नाराजगी इस बात पर नहीं थी कि तुलसीलता उन्हें नहीं मिली,उनकी नाराजगी की वजह कुछ और ही थी और वें नाराज होकर हवेली के आँगन में चहलकदमी कर रहे थे,शायद उन्हें किसी के आने का बेसब्री से इन्तज़ार था और तभी एक लठैत उनके पास आकर बोला.... "सरकार! छोटे मालिक आ चुके हैं" "उसे फौरन मेरे पास भेजो",दादा जी बोलें.... मतलब दादाजी चाचा जी ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१३)

मुझे भावुक होता देखकर किशोरी बोली.... "तो तूने इसे अपना भाई बना लिया", "और क्या! ऐसा शरीफ़ लड़का ही भाई बन सकता है,क्यों रे बनेगा ना मेरा भाई!",तुलसीलता ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा.... "हाँ! आज से तुम मेरी बड़ी बहन और मैं तुम्हारा छोटा भाई",मैं ने खुश होकर तुलसीलता से कहा.... "तो फिर मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले,यहाँ ज्यादा मत आया कर,नहीं तो हम दोनों के पवित्र रिश्ते पर लोग लाँछन लगाने में बिलकुल नहीं चूकेगें और तू नाहक ही बदनाम हो जाएगा,मेरा क्या है,मैं तो बदनाम हूँ ही", तुलसीलता दुखी होकर बोली.... "और ...और पढ़े

14

अन्धायुग और नारी--भाग(१४)

मैं और चाची रसोई में पहुँचे तो चाची ने चूल्हे के पास जाकर बटलोई का ढ़क्कन उठाकर चम्मच में निकालकर उसे दबाकर देखा और मुझसे बोली... "चल खाने बैठ,आलू की तरकारी पक चुकी है,मैं गरमागरम रोटियाँ सेंकती हूँ" और ऐसा कहकर उन्होंने चूल्हे से बटलोई उतारकर एक ओर रख दी और चूल्हे पर तवा चढ़ाकर धीरे धीरे रोटी बेलने लगी और रोटी बेलते बेलते मुझसे पूछा.... "तुलसीलता ने तुझे सच में अपना भाई बना लिया या तू अम्मा से झूठ बोल रहा था", "चाची! ये बिलकुल सच है,भला मैं उनसे झूठ क्यों बोलने लगा",मैने चाची से कहा.... "तो तुझे ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१५)

उस रात तुलसीलता जीजी का मंदिर के भव्य प्राँगण में नृत्य था और उस रात जब नृत्य करके वो कोठरी में पहुँची तो मेरे चाचा सुजान सिंह तुलसीलता की कोठरी के पास पहुँचे और किवाड़ों पर लगी साँकल खड़काई,साँकल के खड़काने की आवाज़ सुनकर तुलसीलता जीजी कोठरी के भीतर से ही बोली.... "कौन...कौन है"? "मैं हूँ ठाकुर सुजान सिंह", चाचा कोठरी के बाहर से ही बोलें... "ओह...ठाकुर साहब! जरा ठहरिए,मैं अभी किवाड़ खोलती हूँ",तुलसीलता भीतर से बोली... और फिर कुछ वक्त के बाद तुलसीलता ने किवाड़ खोलते हुए चाचा से कहा.... "माँफ कीजिए ठाकुर साहब!,किवाड़ खोलने में जरा देर ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१७)

कोठरी के किवाड़ खुलते ही किशोरी तुलसीलता से बोली... "उदय है क्या तेरी कोठरी में"? "हाँ! है",तुलसीलता बोली... "तो फौरन उसे बाहर जाने को कह,पुजारी के लठैत इधर ही आ रहे हैं उसे मारने के लिए",किशोरी बोली.... "आने दो जो आता है,मैं क्या डरता हूँ किसी से",उदयवीर कोठरी के बाहर आकर बोला.... "नहीं! उदय! तुम जाओ यहाँ से,अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हम सभी का यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता बंद हो जाएगा,हमारे बारें में भी तो जरा सोचो,तुम पहले इन्सान हो जिसने इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया है, क्यों अपनी जान जोखिम में ...और पढ़े

17

अन्धायुग और नारी--भाग(१६)

इसके बाद वो वकील अंग्रेजी हूकूमत के हवलदारों के साथ उन सभी देवदासियों से मिलने उनकी कोठरी में पहुँचा,लेकिन से मिलने के बाद वें सभी उस वकील से बोलीं कि वे सभी अपनी मर्जी से ये काम कर रहीं हैं,उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के नाम समर्पित कर दिया है,उन्हें देवदासी बनने पर कोई आपत्ति नहीं,वें सभी ये कार्य अपनी इच्छा से कर रहीं हैं,उनसे ये काम जबरन नहीं करवाया जा रहा है, और ये झूठा बयान देवदासियों से कहने के लिए कहा गया था,उन्हें पुजारी ने बहुत धमकाया था तभी वें उस वकील के सामने झूठ बोल रहीं ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१८)

जब उदयवीर ने रुपयों की थैली में आग लगा दी तो चाचाजी गुस्से में उदयवीर से बोलें..... "मूर्ख! ये तूने? कोई रुपयों में आग लगाता है भला!", "लेकिन मैं ऐसे रुपयों में आग लगा देता हूँ,जो रुपए मेरा ईमान खरीदना चाहे",उदयवीर बोला.... "बड़ा घमण्ड है तुझे तेरी ईमानदारी पर",चाचा जी बोले... "हाँ! है घमण्ड! तो क्या करोगें"?,उदयवीर बोला.... "अगर ऐसा घमण्ड रुपयों से नहीं खरीदा जा सकता तो मैं घमण्ड करने वाले को ही मसल देता हूँ,", चाचाजी बोलें.... "वो तो वक्त ही बताऐगा ठाकुर सुजान सिंह कि कौन किसे मसलता है",उदयवीर बोला.... "तुझे मालूम नहीं है कि तूने ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(१९)

देवदासियों के स्वतन्त्र होने के लिए केस तो चल रहा था,लेकिन अब भी उन्हें मंदिर में नृत्य करना पड़ था, उस रात फिर से तुलसीलता भी सभी दासियों के साथ मंदिर के प्राँगण में नृत्य करने पहुँची और उस रात चाचाजी फिर से तुलसीलता का नृत्य देखने पहुँचे,नृत्य के बाद तुलसीलता अपनी कोठरी में पहुँची तो उसके पीछे पीछे चाचाजी भी उसकी कोठरी में पहुँचे,लेकिन उस रात तुलसीलता ने चाचाजी को अपनी कोठरी के भीतर आने से मना कर दिया,इस बात से खफ़ा होकर चाचाजी ने तुलसीलता की कोठरी के बाहर खड़े होकर उससे कहा..... "कल तक तो मेरे ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२०)

मैं ने चाची के कमरें में जाकर उन्हें सारी बात बता दी,तब ये बात सुनकर चाची भी परेशान हों और इसके बाद वें गहरी चिन्ता में डूब गईं,कुछ देर वें कुछ सोचतीं रहीं फिर मुझसे बोलीं... "मैं इस बारें में तेरे चाचा से बात करूँगी", "लेकिन चाची! जब वें दादाजी की बात नहीं सुन रहे हैं तो फिर तुम्हारी बात कैसे सुनेगें",मैंने चाची से कहा... "तेरी बात भी ठीक है,सुनते तो वें किसी की भी नहीं हैं ,लेकिन वें मेरी बात सुनकर अगर मान जाते हैं तो फिर उदयवीर की जान को खतरा कम हो जाएगा",चाची बोली... "ठीक है ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२१)

वो लठैत तुलसीलता और किशोरी का पीछा करता हुआ अपने घोड़े से भगवन्तपुरा तक जा पहुँचा, वें दोनों हमसे ही वहाँ पहुँच गईं थीं,क्योंकि किशोरी ने एक मोटे सेठ को फँसा रखा था और उसके पास मोटर थी और जब किशोरी ने उससे मिन्नत की तो उसने अपनी मोटर से दोनों को जल्दी ही भगवन्तपुरा पहुँचवा दिया, तुलसीलता और किशोरी उसी मकान के पास वाले मंदिर में चाची और मेरा इन्तज़ार करने लगी क्योंकि दादी ने बूढ़ी नौकरानी को यही कहकर भेजा था कि जब तक मैं और चाची वहाँ ना पहुँच जाए तो तब तक वें दोनों मकान ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२२)

उन तीनों को दादी ने हवेली में रहने की इजाज़त दे तो दी लेकिन भीतर ही भीतर वें दादाजी चाचाजी से डर भी रहीं थीं,लेकिन उनकी अन्तरात्मा कह रही थी कि उन्हें उन तीनों की मदद जरूर करनी चाहिए इसलिए उस वक्त उन्होंने अपने दिल की आवाज़ सुनी.... और उधर जो लठैत तुलसीदास और किशोरी का पीछा करते हुए भगवन्तपुरा तक जा पहुँचा था,वो भी अब वहाँ से लौट आया था और फिर वो सीधा चाचाजी के पास पहुँचकर उनसे बोला.... "सरकार! उस हरामखोर वकील को भगवन्तपुरा वाले मकान से छुड़वा लिया गया है", "छुड़ा लिया गया है,मतलब क्या ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२३)

और ये चाचा जी की सोची समझी चाल थी,उन्हें पता था कि चाची उनके आने की खबर जरूर उन को देने जाएगीं,उन सभी से ये कहेगीं कि सावधान रहना ठाकुर साहब हवेली आ चुके हैं,चाची ने उन तीनों को हवेली के तलघर में छुपाया था,वहीं उन्होंने उनके रहने सोने का इन्तजाम किया था और चाची उन सभी को अब ये खबर देने सीढ़ियांँ उतरकर तलघर पहुँचीं,वें नीचे पहुँची तो सब अभी भी सोए पड़े थे,चाची ने तुलसीलता को जगाते हुए कहा.... "तुलसी जागो! ठाकुर साहब हवेली में आ चुके हैं,अब तुम तीनों सावधान रहना", तुलसी आँखें मलते हुए जाग ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२४)

गरदन पर हँसिऐ का वार होते ही चाचाजी धरती पर गिरकर तड़पने लगे और चाची के सामने अपने दोनों जोड़ते ही वें बेजान हो गए,उन्होंने अपने आखिरी वक्त में चाची से माँफी माँगी,उनका शरीर अब शिथिल पड़ चुका था,चाची पत्थर बनी उनके पास बैठीं थी, उनकी आँखों में ना उनके लिए आँसू थे और ना ही मन में कोई पछतावा,वें बस उन्हें एकटक देखें जा रहीं थीं जैसे कि कह रहीं हों कि तुम ऐसा अपराध ना करते तो मैं तुम्हारी जान ना लेती,मैं अब उनके पास पहुँच चुका था और वहाँ का नजारा देखकर मेरा दिल दहल गया...... ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२५)

कुछ ही देर में वें वहाँ आई जहाँ मैं बैठा था,मैंने उन्हें देखा तो देखता ही रह गया,वें एक उम्र की महिला थीं,उन्होंने सफेद लिबास पहन रखा था,जिसे उनकी जुबान में शायद गरारा कहते थे,सिर और काँधों पर सफेद दुपट्टा ,खिचड़ी लेकिन घने और लम्बे बाल,चेहरे पर नूर और आँखों की चमक अभी भी वैसी ही बरकरार थी जैसी कभी उनकी जवानी के दिनों में रही होगी,गहनों के नाम पर उनके कानों में सोने के छोटे छोटे बूँदें,नाक में हीरे की छोटी सी लौंग,गले में सोने की हलकी चेन और दोनों कलाइयों में सोने का एक एक कंगन था,उनका ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२६)

मैं हाथ मुँह धोकर डाइनिंग हाँल की ओर बढ़ गया,मैंने वहाँ जाकर देखा कि वहाँ और भी लड़के मौजूद मुस्लिम थे और ज्यादातर हिन्दू थे मुझे देखकर उनमें से एक लड़का जो मुझसे उम्र में बड़ा था,वो आकर मुझसे बोला.... "मालूम होता है आज ही आए हैं आप!" "हाँ!आज ही आया हूँ",मैंने जवाब दिया... "नौकरी करते हैं या पढ़ाई कर रहे हैं",उन्होंने मुझसे पूछा... "पढ़ाई कर रहा हूँ",मैंने जवाब दिया... "क्या विषय चुना है"?उन्होंने पूछा... "वकालत",मैंने जवाब दिया... "ओह...मालूम होता है साहब रुपए कमाने का बहुत शौक रखते हैं, तभी ऐसा पेशा चुना है",वें बोलें... "नहीं! ऐसा कुछ नहीं ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२७)

उस दिन के बाद से मेरे और त्रिलोकनाथ जी के बीच अच्छी मित्रता हो गई,हलाँकि वें उम्र में मुझसे बड़े थे और मुझे लगता था कि जैसे वें मुझसे कहीं ज्यादा जिन्दगी के तजुर्बे हासिल कर चुके हैं,मैंने अक्सर देखा था वें दिन भर तो एकदम ठीक रहते थे,हम सभी के संग हँसते बोलते थे,लेकिन रात को उनके कमरे से दर्द भरे गीतों की आवाज़ आया करती थी,जिससे ये साबित होता था कि वें बहुत ही अच्छे गायक थे,चूँकि उनका कमरा मेरे कमरे के बगल में था,इसलिए मैं साफ साफ उनके गीतों के बोल सुन सकता था जो विरह ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२८)

प्रोफेसर मार्गरिटा थाँमस शिक्षिका के अलावा समाजसेवी भी थीँ,वें "वुमेन्स फ्रीडम"नाम से एक संस्था चलातीं थीं,जहाँ महिलाओं का मुफ्त होता था,ख़ासकर उन महिलाओं का जिनका कोई नहीं होता था जैसे कि वेश्याएंँ और तवायफ़े,वें महिलाएंँ जो उम्र के उस पड़ाव पर पहुँच जातीं थीं जब उनके पास ना तो हुस्न बचता था और ना ही जवानी,उनमें से अधिकतर तो गुप्तरोग की शिकार हो जातीं थीं और ऐसी महिलाओं को मार्गरिटा थाँमस की संस्था में पनाह मिल जाती थी,ऐसी महिलाओं के इलाज के लिए मार्गरिटा थाँमस ने खासतौर पर एक अंग्रेज डाक्टर को बहुत ही मोटी पगार पर अपनी संस्था ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(२९)

फिर वो नीचे उतरकर आई और उसने अपनी जूती पैर में पहनी,मैंने तब उसे नज़दीक से देखा,वो वाकई बहुत खूबसूरत थी,धानी रंग का सलवार कमीज,लाल दुपट्टा,लम्बी चोटी,कानों में सोने की बालियाँ,माथे से आती गाल को छूती उसकी लट,कजरारी बड़ी बड़ी आँखें,पतली सी नाक और बिना सुर्खी के लाल गुलाब की पंखुड़ी के समान होंठ,एक पल को उसे देखकर मैं अपनी सुधबुध भूल गया,मैं बेखबर सा उसे निहार रहा था और उसे मेरा यूँ उसको निहारना पसंद नहीं आया तो वो बोली.... "जनाब! कहाँ खो गए"? "जी! कहीं नहीं",मैंने कहा.... "तो फिर अब आप अपने रास्ते जाइए",वो बोली... "जी! मैं ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी--भाग(३०)

मिसेज थाँमस की बात सुनकर मैंने उनसे कहा.... "लेकिन आप मुझे चाँदतारा बाई के बारें में क्यों बता रहीं "क्योंकि भ्रमर का ताल्लुक चाँदतारा से है",मिसेज थाँमस बोलीं.... "मैं कुछ समझा नहीं",मैंने कहा... "मेरे कहने का मतलब है कि भ्रमर चाँदतारा की बेटी है",मिसेज थाँमस बोलीं.... "ओह....तो ये बात है तभी वो मुझसे बात करने से कतराती थी",मैंने कहा.... "उसने मुझसे कहा था कि जिस रिश्ते के बीच में मेरी माँ के अतीत की काली परछाइयाँ आ जाएं तो उस रिश्ते को आगें बढ़ाने से अच्छा है कि पहले ही उसका अन्त हो जाएं,वो जानती थी कि जब तुम्हें ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३१)

मैं अब दुविधा में फँस चुका था,समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ,किसी ने कुछ भी ठीक जवाब नहीं दिया था कि आखिर वें सब भ्रमर की माँ चाँदतारा बाई को कैसें जानते हैं और चाँदतारा के अतीत से मेरे बाऊजी का कौन सा नाता था,फिर मैं कुछ दिन और घर पर रहा लेकिन सही सही सटीक उत्तर ना मिलने पर मैं घर से वापस शहर आ गया,क्योंकि घर पर भाभी के सिवाय कोई भी मुझसे बात नहीं कर रहा था,सब मुझसे इस बात को लेकर नाराज़ थे कि मैंने तवायफ़ की बेटी को पसंद किया ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३२)

वें चले तो गए लेकिन उनके अल्फ़ाज़ तीर के तरह मेरे सीने में चुभ गए,उस रात मैं रातभर सो सकी और यही सोचती रही कि मेरा नाच और गाना सुनने तो लोग ना जाने कहाँ कहाँ से आते हैं और उन हजरत को ना मेरा गाना भाया और ना ही मेरा नाच,आखिर उनकी नजरों में मेरी कोई कीमत नहीं जो वें इस तरह से मेरी बेइज्ज़ती करके चले गए.... दूसरे दिन भी मेरा मन इतना खराब रहा कि मैंने उस रात महफ़िल ही नहीं सजाई और गुलबदन खाला से कह दिया कि..... "खाला! मैं आज ना तो नाचूँगी और ...और पढ़े

33

अन्धायुग और नारी - भाग(३३)

वे चले गए तो मुझे ऐसा लगा कि शायद उन्हें मेरी बात का बहुत बुरा लगा है,उन्होंने तो मेरे गलत अल्फाज़ों का इस्तेमाल किया था लेकिन मैंने भी कहाँ कोई कसर छोड़ी उन्हें बातें सुनाने में,इसलिए उस बात का मुझे अब बहुत अफसोस हो रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगी कि काश वे थोड़ी देर और रुक जाते तो मैं उनसे माँफी माँग लेती लेकिन ऐसा ना हो पाया और मैं खुद की हरकत पर बहुत शर्मिन्दा हुई.... खैर उस रात जो हुआ मैंने उसका अफसोस ना मनाने में ही अपनी समझदारी समझी,क्योंकि उस बात को ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३४)

मेरी पलकें झुकतीं देख वें मुझसे बोले... "अरे! आप तो शरमा गईं" "जी! मुझे कुछ अजीब सा लग रहा आपके मुँह से मेरी तारीफ़ सुनकर",मैंने कहा... "लेकिन वो क्यों भला"?,उन्होंने पूछा... "वो इसलिए कि आपने उस दिन मेरे लिए उन लफ्जों का इस्तेमाल किया था और आज ऐसा कह रहे हैं इसलिए",मैंने कहा.... "उस दिन मैंने आपका वो रुप देखकर वो लफ्ज़ कहे गए थे लेकिन आज जो मैं आपका ये रुप देख रहा हूँ तो मुझे बड़ी हैरानी हो रही है कि आप इस सादे लिबास और बिना गहनों के इतनी खूबसूरत भी लग सकतीं हैं",वें बोले.... "चलिए ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३५)

फिर ऐसे ही कुछ रोज बीते लेकिन वें मेरा मुजरा देखने नहीं आए और ना ही उनके दोस्त मोहन पन्त मेरा मुजरा देखने आएँ,उनके दोस्त ही आ जाते तो मैं उनसे उनकी खैरियत पूछ लेती और जब वे नहीं आए तो मैं एक शाम उनके कमरे फिर से पहुँची और अपने कमरें में मुझे देखकर वो बिफर पड़े फिर मुझसे बोले... "आप यहाँ फिर से आ गईं,भगवान के लिए यहाँ से चली जाइए", "लेकिन क्यों"?,मैंने पूछा... तो वे मुझसे बोले.... "लोग आपके और मेरे बारें में कहीं गलत ना सोचने लगे,इसलिए मैं नहीं चाहता कि आप मुझसे मिलें" "लेकिन ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३६)

कुछ दिनों बाद मैंने उनके मायके में एक दाईमाँ की निगरानी में अपने बेटे को जन्म दिया,उनका मायका अत्यधिक था,मुझे वहाँ केवल पन्द्रह दिन ही रहने दिया गया और उन्होंने मेरे बच्चे को ले लिया फिर मुझे वापस भेज दिया,मैं अपने बच्चे के संग वहाँ और कुछ दिन रहना चाहती थी लेकिन स्नेहलता इस बात के लिए हर्गिज़ राज़ी नहीं थीं,वे नहीं चाहतीं थीं कि बच्चे पर मेरी ममता हावी हो जाए और फिर मैं उसे छोड़ ना पाऊँ,मैं उनके सामने रोती रही बिलखती रही लेकिन उन्हें मुझ पर एक भी दया ना आई.... मैं फिर से गुलबदन खालाज़ान ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३७)

वे वहाँ से अपने दिल में मेरे लिए गलतफहमी लेकर चले गए और फिर मैंने कभी भी उनसे मिलने कोशिश नहीं की,वे अपने गाँव में रहने लगे और मैंने नाच गाना छोड़कर शराफत की जिन्दगी गुजारने का फैसला लिया और वो बच्ची भ्रमर ही है.... ये कहते कहते चाँदतारा बाई की आँखों में आँसू आ गए और मैं उनके पैरों में गिरकर बोला.... "तो आप ही मेरी माँ हैं" "हाँ! बेटा! लेकिन पालने वाली माँ जन्म देने वाली माँ से ज्यादा बड़ी होती है",वे बोलीं.... "लेकिन उन्होंने तो मुझे आपसे धोखे से छीना था",मैंने कहा.... "लेकिन त्रिलोक बेटा! उन्होंने ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३८)

मैं मुलिया की बातें सुनकर दंग रह गया,वो जो कह गई थी मेरे परिवार के बारें में तो वो मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था,कुछ सोच नहीं पा रहा था कि क्या कोई इतना हैवान हो सकता है,क्या कोई किसी मासूम लड़की की शख्सियत मिटाने के लिए इतना गिर सकता है,वो मेरा परिवार था,जहाँ मैं पला बढ़ा था,उस माँ ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था और वो ही अब मेरी सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी थी,वो इतनी क्रूर और निर्दयी हो सकती है ये मैं सोच भी नहीं सकता था,एक औरत भला दूसरी औरत के साथ ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(३९)

रात को जब मैं खाना खाने पहुँचा तो मुझे उनसे बात करने का दिल नहीं कर रहा था,मेरे ज़ेहन कई सवाल चल रहे थे,मेरा कश्मकश से भरा चेहरा देखकर चाचीज़ान समझ गईं कि मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है,उस समय त्रिलोक बाबू मेरे साथ थे इसलिए उन्होंने ना कुछ पूछा और ना ही कुछ कहा,बस उन्होंने शान्त मन से हम दोनों को खाना खिलाया,उन्होंने उस दिन मूँग की दाल,आलू का भरता,लौकी की सब्जी और रोटियाँ बनाई थीं,वो हम दोनों को खाना परोस रहीं थीं और हम दोनों खाना खा रहे थे,मैं तो यूँ ही गैर मन से खाए ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४०)

फिर दूसरे दिन हमारे बड़े अब्बू ही दोपहर के समय डिस्पेन्सरी पहुँच गए,वो गर्मियों की दोपहर थी,सीलिंग फैन आग थपेड़े मार रहा था,डाक्टर सिंह ने कमरें की खिड़की में लगे काँच से बाहर देखा कि कोई कार आकर डिसपेन्सरी के सामने रुकी है और एक भद्र बूढ़ा मुसलमान कार से उतरकर हाथ में कीमती छड़ी के सहारे धीरे धीरे डिसपेन्सरी की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है.... उसकी कार निहायत कीमती दिख रही थी ,उस वृद्ध अमीर मुसलमान की आयु लगभग अस्सी बरस रही होगी,लम्बा छरहरा कमनीय शरीर अब सूखकर झुर्रियों से भर गया था,कमर भी झुक चुकी थी,अब उनकी खुद ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४१)

तब डाक्टर सिंह ने अपनी पत्नी चित्रा से इस विषय में बात की तो वो बोलीं..... "मुझे तो ये ही लग रहा है,क्योंकि हमारी शादी को इतना समय बीत गया और इतने इलाज के बावजूद भी हम लोंग सन्तान के सुख से वंचित हैं,हो सकता है वो बच्चा हमारे सूने जीवन में उजियारा कर दे" "लेकिन चित्रा वो बच्चा मुस्लिम होगा",डाक्टर सिंह बोले... "इससे क्या फर्क पड़ता है,वो हिन्दू या मुस्लिम,वो बच्चा तो होगा ना!",चित्रा बोली... "तुम्हारी बात भी ठीक है लेकिन हम उसे मजहब कौन सा सिखाऐगें",डाक्टर सिंह बोले... "अब जब हम उसके धर्म माता पिता होगें तो ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४२)

उसके बाद बड़े अब्बू और डाक्टर सिंह के बीच तय हुआ कि उन्हें उनकी दौलत और जायदाद नहीं चाहिए,वे बस अपनी दुनिया में बच्चे का आगमन चाहते हैं लेकिन बड़े अब्बू इस बात के लिए कतई राज़ी ना हुए और उन्होंने सारे कागजात पहले से ही तैयार करवा लिए और उन्होंने वही किया जैसी उन्होंने डाक्टर सिंह को जुबान दी थी और फिर हम सभी कुछ ही दिनों में दार्जिलिंग के लिए रवाना हो गए,वहाँ किसी मिसनरी अस्पताल के डाक्टर की मौजूदगी में मैं अपने बाकी के दिन काटने लगी, जैसे जैसे दिन बढ़ रहे थे तो मुझे अपने ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४३)

और फिर उस दिन नवाब साहब से हमारी मुलाकात बस इतनी ही रही ,वे कुछ देर हमारे साथ रुके कुछ बातें की,उन्होंने हमसे कहा.... "सुना है,आप आलिम हैं,शेर कह लेतीं हैं और अंग्रेजी भी जानतीं हैं", "अंग्रेजी तो हमने तोते की तरह रट ली थी और शेर कह लेते हैं वो भी ऐसे ही थोड़ा बहुत,ज्यादा तजुर्बा नहीं है हमें" हमने नवाब साहब से कहा.... "ओह...ये तो हमारी खुशकिस्मती है कि आप हमारी बेग़म हैं,इतनी ज़हीन और खूबसूरत बेग़म खुदा नसीब वालों को ही बख्शता है",नवाब साहब बोले.... "जी! बहुत बहुत शुक्रिया,वैसे आपकी तारीफ़ के काबिल नहीं हैं हम",हमने ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४४)

जब शबाब सोचने लगी तो हमने उनसे पूछा.... "क्या हुआ?क्या सोच रहीं हैं आप"? तब वो बोलीं... "आप कमसिन ज़हन,ये हुस्न,ये नजाकत और ऐसा शौहर" "जो भी हो,हम है तो आखिर औरत ही ना,अगर औरत से कोई गलती हो जाती है तो ये जमाना उसे कभी माँफ नहीं करता,शायद हमें उसी गलती की सजा मिली है,बड़े अब्बा को हमारे लिए जो मुनासिब लगा सो उन्होंने वही किया",हमने कहा... "कुछ भी हो लेकिन चम्पे की कली को उन्होंने ऊँट की दुम पर बाँध दिया है,आपको देखकर तो दुख के मारे हमारी छाती फटी जा रही है",शबाब बोली... "अपनी सौत से ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४५)

शमा अब वहाँ से जा चुकी थी,शमा की ऐसी हरकत पर हमें बहुत गुस्सा आया और हमने शबाब से "आप इसे इतना बरदाश्त क्यों करतीं हैं,ये तो बड़ी बतमीज है" "हाँ! कुछ लोगों को ना चाहते हुए भी बरदाश्त करना पड़ता है",शबाब बोलीं... "आखिर! ऐसा क्या है जो वो आपको धमका रही थी और आप उससे कुछ कह भी ना पाईं", हमने शबाब से पूछा... "उसे हमारा कोई राज पता है इसलिए वो हमारे साथ ऐसा करती है,वो राज छुपाने के एवज़ में हमें उसे हर महीने कुछ रकम चुकानी पड़ती है",शबाब बोली.... "आखिर वो राज क्या है?",हमने पूछा... ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४६)

हुस्ना की भाभीजान हमारे पास आकर हमसे बोलीं.... "बेग़म! ये अच्छी बात नहीं है,हम गरीब लोगों के पास सिवाय के कुछ और नहीं होता" "हम कुछ समझे नहीं नूरी! कि तुम क्या कहना चाहती हो" हमने उससे पूछा.... "हुस्ना के साथ आपका जो रिश्ता है,उसे लेकर जमाना ना जाने कैसीं कैसीं बातें कर रहा है,हुस्ना ने तो हमें कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल नहीं रखा",नूरी बोली... "ऐसा तो कोई गुनाह नहीं किया हुस्ना ने,जो तुम इतना बढ़ चढ़कर बता रही हो,वो तो एकदम पाक साफ है, उसने ऐसी कोई गलती नहीं की जिससे जमाने के सामने तुम्हारा सिर ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४७)

"ओह...तो ये बात है,शमा उस बात को लेकर आपको धमकी दे रही थी",हमने शबाब से कहा..."हाँ! इसलिए वो हमें बात को लेकर अकसर धमकाती रहती है"शबाब बोली..."ख़ुदा ना ख़्वास्ता अगर नवाब साहब तक ये बात पहुँच गई तो तब क्या करेगीं आप"?,हमने शबाब से पूछा...."तब की तब देखी जाएगी मर्सिया बेग़म! अब तो हमें आदत सी हो गई है तनहाइयों में रहने की"शबाब बोली..."कभी सोचा है आपने कि नवाब साहब रुबाई बेग़म का क्या हाल करेगें अगर उन्हें कुछ पता चल गया तो,आपने जानबूझकर खतरा मोल क्यों ले लिया",हमने शबाब से पूछा..."अब जो भी अन्जाम होगा सो देखा जाएगा,कब ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४८)

उन्होंने हमारा इलाज किया और हम बिलकुल ठीक हो गए वे लगातार दो चार दिन हमें देखने हवेली आएँ आखिरी दिन उन्होंने हमसे कहा.... "ख़ालाजान! अब आप बिलकुल ठीक हैं,अब आपको मेरे इलाज की जरूरत नहीं" "डाक्टर साहब! ये सब आपकी मेहरबानी है,जो हम ठीक हो गए,अब आपकी फीस बता दीजिए", हमने डाक्टर साहब से कहा.... "आप फीस की चिन्ता ना करें ख़ालाजान! आप अच्छी हो गईं,यही मेरे लिए बहुत है"डाक्टर साहब बोले.... "फीस तो आपको लेनी ही पड़ेगी,नहीं तो हम बुरा मान जाऐगें"हमने उनसे कहा.... "जी! वो भी ले लूँगा,लेकिन एक फरमाइश थी मेरी",डाक्टर साहब बोले.... "जी! बताएं! ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(४९)

हमारा इतना सख्त रवैया देखकर डाक्टर धीरज फिर चुप ना रह सके और हमसे बोले.... "माँफ कीजिएगा ! बानो! किसी गलत इरादे से आपके पास नहीं आया था".... "आपका इरादा हम अच्छी तरह से भाँप चुके हैं डाक्टर साहब! आप बिलकुल भी फिक्र ना करें,हमारा साया भी आपके बेटे के पास नहीं भटकेगा", "मैं आपसे ऐसी गुजारिश लेकर नहीं आया था",डाक्टर धीरज बोले... "तो फिर क्या चाहते हैं आप हमसे ",हमने उनसे पूछा... "आपने मुझे अपनी बात कहने का मौका ही नहीं दे रहीं हैं,आप ही सबकुछ कहें जा रहीं हैं",डाक्टर धीरज बोले.... "आप यही तो चाहते हैं ना ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(५०)

लेकिन कहते हैं ना कि मुसीबत पूछकर नहीं आती तो एक दिन उस हवेली पर मुसीबत आ ही गई,ना कैंसे दंगाइयों को पता चल गया कि मैं और त्रिलोक वहाँ रह रहे हैं,चूँकि हम दोनों ही वहाँ हिन्दू थे और जिसका डर था वही हुआ,एक रात कुछ दंगाई हाथों में मशाल और हथियार लेकर हवेली के गेट की ओर टूट पड़े,अकेला चौकीदार भला उन सभी को कैंसे सम्भाल पाता,उसने कोशिश की भी सभी को रोकने की लेकिन उन दंगाईयों ने उसे रौंद डाला,उसे रौंदकर वो हवेली के मुख्य दरवाजे तक पहुँच गए,जब हम सबने वो शोर सुना तो हम ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(५१)

फिर मैं उस पुराने मकान के पास पहुँचा और मैंने किवाड़ों पर लगी साँकल को धीरे से खड़काया,तब भीतर कोई जनाना आवाज़ आई और उसने पूछा.... "कौन...कौन है?" तब मैंने कहा.... "मैं हूँ जी! एक भटका हुआ मुसाफिर" "सच कहते हो ना तुम! झूठ तो नहीं बोल रहे,पता चला मैं किवाड़ खोल दूँ और तुम दंगाई निकले तो",वो बोली... "सच! कहता हूँ जी! मैं हालातों का मारा एक भटका हुआ मुसाफिर हूँ,कोई दंगाई नहीं हूँ,भूखा प्यासा भटक रहा हूँ,कुछ खाने पीने को मिल जाता तो बहुत मेहरबानी हो जाती",मैंने कहा... "तुम वहीं ठहरो,मैं अभी दरवाजा खोलती हूँ", और ऐसा ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(५२)

और ऐसा कहकर वो कोठरी के भीतर मेरे लिए कपड़े लेने चली गई,फिर वो एक जोड़ी कुर्ता पायजामा और तौलिया लेकर वापस आई और उन कपड़ो को वो मेरे हाथों में कपड़े थमाते हुए बोली.... "ये पहन लो,मेरे ख्याल से ये तुम्हें बिलकुल सही आऐगें", "वैसे ये कपड़े हैं किसके",मैंने पूछा.... "तुम्हें इस बात से क्या लेना देना है कि ये कपड़े किसके है,बस तुम इन्हें नहाकर पहन लेना",वो बोली.... "जी! ठीक है,जैसा तुम कहो", और ऐसा कहकर मैं वो कपड़े और दातून लेकर आँगन की ओर स्नान करने के लिए जाने लगा तो वो मुझसे बोली.... "मैं तुमसे ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - भाग(५३)

रात को भी खाना खिलाते वक्त उसने मुझसे ठीक से बात नहीं की,शायद मेरे जाने की खबर से वो खुश नहीं थी,फिर खाना खाकर जब मैं उठा तो दादी मुझसे बोली.... "बेटा! आज रात तू मुझसे ढ़ेर सारी बातें कर,कल तो तू चला जाएगा,फिर ना जाने कभी तुझसे मुलाकात होगी भी या नहीं", "जी! चलिए", और ऐसा कहकर मैं उनके साथ आँगन में आ गया,फिर हम दोनों चारपाई पर बैठकर बातें करने लगे और बातों ही बातों में दादी ने मुझसे कहा कि... "कभी कभी सोचती हूँ कि मेरे बाद इस लड़की का क्या होगा"? "तो आप विम्मो की ...और पढ़े

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अन्धायुग और नारी - (अन्तिम भाग)

विम्मो सोलह सत्रह साल की हुई तो उसे किसी पड़ोसी की शादी में सतपाल ने देखा और पसंद कर भी बिन माँ बाप का बच्चा था,उसे उसके भाई भाभी ने पालपोसकर बड़ा किया था,उसके भाई भाभी के कोई सन्तान नहीं थी इसलिए वो दोनों सतपाल से बहुत प्यार करते थे, फिर मेरी विम्मो उनके घर बहू बनकर गई तो सतपाल की भाभी फुलमत ने उसे अपनी पलकों पर बिठाया,उसे बहुत प्यार दिया,सतपाल तो उसे प्यार करता ही था साथ में फुलमत भी विम्मो को बहुत चाहने लगी,अभी विम्मो के ब्याह को छः महीने ही बीते थे कि एक शाम ...और पढ़े

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