Andhayug aur Naari - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी - भाग(३२)

वें चले तो गए लेकिन उनके अल्फ़ाज़ तीर के तरह मेरे सीने में चुभ गए,उस रात मैं रातभर सो ना सकी और यही सोचती रही कि मेरा नाच और गाना सुनने तो लोग ना जाने कहाँ कहाँ से आते हैं और उन हजरत को ना मेरा गाना भाया और ना ही मेरा नाच,आखिर उनकी नजरों में मेरी कोई कीमत नहीं जो वें इस तरह से मेरी बेइज्ज़ती करके चले गए....
दूसरे दिन भी मेरा मन इतना खराब रहा कि मैंने उस रात महफ़िल ही नहीं सजाई और गुलबदन खाला से कह दिया कि.....
"खाला! मैं आज ना तो नाचूँगी और ना ही गाऊँगीं,आज मेरा कुछ भी करने का जी नहीं चाहता"
तब गुलबदन खाला ने मुझसे वजह पूछते हुए कहा....
" आज तेरा मन इतना क्यों खराब है चाँद!"?
तब मैंने कहा....
"खाला! मेरा मुजरा देखने जो कल रात दो शख्स आएँ थे,उनमें से एक ने कहा कि सड़क पर भीख माँगने वाली भिखारिन भी दो पैसों के लिए तुमसे अच्छे कूल्हे मटका लेती है,अपने हुस्न की नुमाइश करना ,भला ये कहाँ की शराफत है,ये काम तो घटिया लोग करते हैं",
"उन्होंने ऐसा कहा",खाला ने पूछा....
"हाँ! खालाज़ान! तबसे मेरा किसी भी काम में जी नहीं लग रहा है",मैंने खाला से कहा....
"ऐसी बात है तो तुझे उसको अपने हुस्न के जाल में ही फाँसकर ही दम लेना चाहिए,ऐसा करके तू उसकी सारी शराफत निकाल दे",खालाज़ान बोलीं...
"मगर खाला! वें घोड़े की तरह इतना तो बिदक रहे थे,क्या वो आसानी से मेरे जाल में फँसेगें",मैंने खालाज़ान से पूछा....
"हाँ! क्यों नहीं! ऐसे अड़ियल टट्टुओं को काबू में करना ही तो हम तवायफ़ो का काम होता है,वरना हम भूखे ना मर जाएँ"खालाज़ान बोली....
"लेकिन खालाज़ान!मुझे ये सही नहीं लगता",मैंने उनसे कहा....
"ऐसो पर रहम करने लगेगी तो कैसें चलेगा मेरी मैना! पहले ये पता करो कि वो दौलतमंद है या फुक्कड़, फिर धीरे से जाल फेंकना उस पर,एक ना एक दिन तो फँस ही जाएगा वो",ख़ालाजान बोलीं...
"मुश्किल लगता है खालाज़ान!बड़ा अड़ियल टट्टू है",मैंने कहा....
"कोई बात नहीं,तुम अपना काम करो और सबकुछ वक्त पर छोड़ दो",खालाज़ान बोलीं....
और फिर मैं ने मधुसुदन त्रिपाठी की बात पर ध्यान देना बंद कर दिया,क्योंकि उस दिन के बाद ना मोहनलाल पन्त मेरे कोठे पर आए और ना ही मधुसुदन त्रिपाठी और ऐसे ही कई दिन बीत गए,मैं फिर से उसी तरह नाचने गाने लगी और एक दिन फिर से वें दोनों मेरी हँसती खेलती जिन्दगी में आग लगाने आ पहुँचें,मोहन लाल पन्त के आने पर तो मुझे इतना फरक नहीं पड़ा लेकिन मधुसुदन त्रिपाठी को जब मैंने कोठे पर मसनद के सहारे बैठे देखा तो मेरी रुह काँप गई कि आज ना जाने ये आदमी मेरी कौन सी बेइज्जती करने वाला है और मैं अपना नाच खतम कर के भीतर चली गई,उनके सामने जाकर ना मैंने उन दोनों को पान परोसा और ना ही हुक्का पेश किया,मेरा ऐसा रुख़ देखकर मोहनलाल पन्त गुलबदन खाला से बोलें....
"लगता है आज चाँदतारा बाई का मिज़ाज कुछ ठीक नहीं है,तभी वें हम दोनों से मिले बिना ही यहाँ से चलीं गईं"
"तो क्या करें बेचारी आपके दोस्त ने उस रात उसकी इतनी बेइज्जती की कि वो कई रातों तक चैन से सो ना सकी और ना ही कई रोज़ तक मुजरा किया,मेरा कितना हर्जा हुआ ये आप नहीं जानते जनाब!" गुलबदन खालाज़ान ने झूठ बोलते हुए कहा कहा....
"ये क्या कहतीं हैं आप! सच में चाँदतारा बाई ने इन हजरत की बात को अपने दिल से लगा लिया था",, मोहन लाल पन्त ने पूछा....
"तो क्या मैं झूठ कहती हूँ"?,गुलबदन खालाज़ान बोलीं....
"मैंने ऐसा तो कुछ नहीं बोला था जो मोहतरमा को इतना बुरा लग गया",मधुसूदन त्रिपाठी बोलें...
"जनाब! हर कलाकार तारीफ़ चाहता है वो चाहता है कि उसके कला के कद्रदान हों,लेकिन जब कोई उसकी इस तरह से बेइज्जती कर देता है तो फिर उसका दिल टूट जाता है और आपने यही किया चाँदतारा के साथ",गुलबदन खाला बोलीँ...
"तो क्या चाँदतारा बाई मुझसे बहुत ज्यादा खफ़ा हैं",मधुसुदन ने पूछा....
"हाँ! उन्हें आपका बर्ताव बिल्कुल भी पसंद नहीं आया",गुलबदन खाला बोलीं....
"मैं उनसे बात करना चाहूँगा",मधुसुदन त्रिपाठी ने पूछा....
"क्या पता वो अब आपसे बात ही ना करना चाहें",गुलबदन खाला बोलीं...
"आप एक बार उनसे कहकर तो आइए कि मैं उनसे बात करना चाहता हूँ",मधूसूदन त्रिपाठी जी बोले....
फिर मधुसुदन के कहने पर गुलबदन खाला मेरे पास ये कहने आई कि जनाब मधुसुदन त्रिपाठी मुझसे बात करना चाहते हैं,तब मुझे लगा कि मुझे उनसे बात करने के लिए हाँ कह देनी चाहिए,मैं अगर उनकी गुजारिश पर उनसे बात नहीं करूँगी तो ये मेरी बेअदबी होगी और मैंने उनसे बात करने के लिए हाँ कर दी,फिर वें कुछ देर बाद मेरे कमरें में मुझसे बात करने आएँ,उन्होंने कमरें के दरवाजे के पास खड़े होकर पूछा....
"क्या मैं भीतर आ सकता हूँ?",
"जी! आइए",मैंने बेरुखी से कहा....
फिर वें कमरें के भीतर आएंँ तो मैंने अपने बिस्तर की ओर इशारा करते हुए उनसे कहा...
"जी! तशरीफ़ रखें"
फिर मेरे कहने पर वें बिस्तर पर बैठ गए और मुझसे बोलें....
"सुना है कि आप मुझसे बहुत ज्यादा खफ़ा हैं",
"आप ही जवाब दें कि क्या आपने मुझसे खफ़ा होने लायक बात नहीं कही थी",मैं ने उनसे पूछा....
"मुझे इस बात का इल्म नहीं था कि आप मुझसे इतनी सी बात को लेकर इतनी खफ़ा हो जाऐगीं",मधुसुदन त्रिपाठी बोले.....
"इतनी सी बात....वो आपके लिए इतनी सी बात होगी लेकिन मेरे लिए नहीं",मैंने खफ़ा होकर उनसे कहा...
"मोहतरमा! अब आप बात का बतंगड़ बना रहीं हैं"मधुसुदन त्रिपाठी बोले...
"मैं....मैं बात का बतंगड़ बना रही हूँ कि आप अपनी गलती कुबूल नहीं कर रहे हैं",मैंने गुस्से से कहा....
"अच्छा! तो ये बात है,लेकिन मैंने ऐसी कोई गलती ही नहीं की थी जो अपनी गलती मानूँ",मधुसुदन त्रिपाठी बोलें....
"जब आपने कोई गलती ही नहीं की थी तो फिर क्यों आएँ हैं मेरे दरवाजे पर नाक रगड़ने",मैंने गुस्से से कहा....
"मोहतरमा! अब आप अपनी हद पार कर रहीं हैं",मधुसुदन त्रिपाठी बोलें....
"और किसी को कूल्हें मटकाने वाली कहना तो क्या ये हद पार करना नहीं कहलाता",मैंने कहा...
"तो आपको इस बात का इतना बुरा लगा था",मधुसुदन त्रिपाठी बोलें....
"जी! हाँ! ये बात मेरी शान के खिलाफ़ थी",मैंने कहा....
"तो आप खुद को बहुत बड़ी फनकारा समझतीं हैं",मधुसुदन त्रिपाठी बोलें....
"ऐसी बात नहीं है,मैं बहुत बड़ी फनकारा नहीं हूँ लेकिन इतनी भी गई गुजरी नहीं हूँ कि आप मुझे ऐसे अल्फाज़ों से नवाजें",मैंने कहा...
"ओह....ठीक है तो मुझे अपनी गलती कुबूल है,मैं इससे पहले कभी किसी कोठे पर नहीं गया था,उस रात मोहन के कहने पर जबर्दस्ती यहाँ आ गया था,उस रात मेरा मिज़ाज़ जरा गरम था इसलिए गुस्से में आपसे ये सब कह गया,गुस्ताख़ी माँफ करें मोहतरमा!",
और ऐसा कहकर मधुसुदन बिना कुछ बोलें और बिना कुछ कहें मेरे कमरें से चले गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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