Andhayug aur Naari - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१६)

इसके बाद वो वकील अंग्रेजी हूकूमत के हवलदारों के साथ उन सभी देवदासियों से मिलने उनकी कोठरी में पहुँचा,लेकिन देवदासियों से मिलने के बाद वें सभी उस वकील से बोलीं कि वे सभी अपनी मर्जी से ये काम कर रहीं हैं,उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के नाम समर्पित कर दिया है,उन्हें देवदासी बनने पर कोई आपत्ति नहीं,वें सभी ये कार्य अपनी इच्छा से कर रहीं हैं,उनसे ये काम जबरन नहीं करवाया जा रहा है,
और ये झूठा बयान देवदासियों से कहने के लिए कहा गया था,उन्हें पुजारी ने बहुत धमकाया था तभी वें उस वकील के सामने झूठ बोल रहीं थीं....
ये सुनकर वकील हतप्रभ रह गया,लेकिन अभी कुछ और देवदासियाँ बचीं थीं जिनसे अभी उसने बात नहीं की थी और वो उनके पास पहुँचा ,वें सभी किशोरी और तुलसीलता की सहेलीं थीं,इसलिए उन्होंने सब सच सच कह दिया और उन सभी में से एक देवदासी थी किशोरी ,उसने भी वकील के सामने सब सच सच कह दिया और अब बारी आई तुलसीलता की तो वो तो वकील साहब को देखकर सबकुछ भूल गई,तब किशोरी ने तुलसीलता से कहा....
"तुलसी! डर मत! देख वकील बाबू के साथ पुलिस भी आई है,सब कुछ सच सच बता दे,उस पुजारी के बारें में भी ज्यादा मत सोच",
और फिर किशोरी के उकसाने पर तुलसीलता ने सबकुछ सच सच बता दिया तो वकील बाबू बोले....
"आप सभी को मेरे साथ थानेदार साहब के पास चलना होगा,वहाँ आप सभी का बयान दर्ज किया जाएगा,तभी कोई भी कार्यावाही आगें बढ़ेगी",
फिर उन देवदासियों के साथ किशोरी ,तुलसीलता ,हवलदार और वकील बाबू थाने पहुँचें फिर उन सभी देवदासियों ने अपना अपना बयान दर्ज करवाया,इस बात से मंदिर का पुजारी आगबबूला हो उठा, वो पहले से ही थाने में मौजूद था और सबका बयान दर्ज होने के बाद वो गुस्से से वहाँ से चला गया,इधर किशोरी और तुलसीलता सहित सभी देवदासियों का बयान दर्ज होने के बाद वें सभी देवदासियाँ वकील बाबू के साथ थाने के बाहर आईं और मंदिर की ओर चली गईं लेकिन अभी किशोरी और तुलसीलता वकील बाबू के ही साथ ही थीं तो तब किशोरी वकील बाबू से बोली....
"तुम आ गए उदयवीर! मैं हमेशा तुलसीलता से कहती थी कि तुम एक दिन जरूर वापस लौटेगें और देखो भगवान ने मेरी सुन ली"
"मेरे वापस लौटने का क्या फायदा हुआ भला! तुम्हारी सहेली तो मुझे देखकर खुश ही नहीं हुई", उदयवीर बाबू बोले....
"किशोरी!अपने वकील बाबू से कहो कि हर बात मुँह से कहने की नहीं होती,किसी किसी की आँखें भी बहुत कुछ कह जातीं हैं",तुलसीलता बोली...
"अगर कोई आँखों से ना कहकर मुँह से प्यार के दो मीठे बोल देगा तो किसी का कुछ बिगड़ जाएगा क्या"?, उदयवीर बाबू बोलें....
"तो इनसे पूछो कि कहाँ थे इतने दिनों से?",तुलसीलता बोली....
"किशोरी! अपनी सहेली से कहो कि इसी दिन के लिए पढ़ाई कर रहा था,ताकि ऐसे गैरकानूनी कामों को रोक सकूँ और तुम जैसी स्त्रियों को इस नरक से आजाद करवा सकूँ",उदयवीर बोला....
"ओह....माँफ करना,मैं आपको गलत समझी",तुलसीलता बोली...
"ये आप....आप क्या लगा रखा है,मैं अब भी तुम्हारा वही उदय हूँ,जो तुम्हारे लिए सारी दुनिया से टकरा सकता है",उदयवीर बोला...
"मुझे मालूम है उदय! तुम केवल मेरे लिए ही वापस लौटे हो",तुलसीलता बोली...
"वो भी पूरी तैयारी के साथ",किशोरी हँसते हुए बोली....
"लेकिन देखो ना किशोरी! भलाई का तो जमाना ही नहीं है,यहाँ किसी को तो मेरा ख्याल ही नहीं है कि कोई इतने दिनों बाद लौटा है तो अपनी कोठरी में बुलाकर कुछ नहीं तो एक गिलास पानी ही पिला दे,कब से इन्तज़ार में हूँ कि कोई प्यार से दो घड़ी बात ही कर ले,लेकिन नहीं यहाँ तो किसी को मेरा हाल पूछने की फुरसत ही नहीं,",उदयवीर बोला...
"तुलसी! तू भी ना! जा वकील बाबू को अपनी कोठरी में ले जाकर,उनकी कुछ आवभगत कर",किशोरी बोली...
"तो तू ही क्यों नहीं आवभगत कर देती इनकी,मुझसे क्या कहती है",तुलसीलता बोली...
"मैं तो कर देती इनकी आवभगत,लेकिन फिर तू मुँह मत फुला लेना कि देख मेरे उदय पर डोरे डाल रही है",किशोरी बोली....
"मैं ऐसा क्यों कहूँगी भला"? तुलसीलता बोली...
"ना भाई मैं किसी के फँटे में टाँग नहीं अड़ाती,मैं तो ये चली,तेरा मेहमान है,तेरे लिए आया है तो तू ही इसकी मेहमाननवाजी कर",
और ऐसा कहकर किशोरी मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई तो उदयवीर तुलसीलता से बोला....
"तो अब मैं भी चलता हूँ",
" तो अब क्या तुम्हें अलग से कहना पड़ेगा,मेरे साथ चलने के लिए,तुम्हारी वो पहले वाली नौटंकी करने की आदत गई नहीं अब तक",तुलसीलता बोली....
"कुछ आदतें आसानी से नहीं जातीं तुलसी! वें आदतें जिन्दगी का हिस्सा बन जातीं हैं",उदयवीर बोला...
"उदय! एक बात कहूँ",तुलसीलता बोली...
"वैसें अगर अच्छी आदतों को जिन्दगी का हिस्सा बनाया जाए तो ही अच्छा रहता है,बुरी आदतों को जिन्दगी का हिस्सा बनाने से शरीफ़ इन्सान की जिन्दगी खराब हो जाती है",तुलसीलता बोली....
"प्यार अच्छी या बुरी आदत नहीं होता तुलसीलता! प्यार केवल प्यार होता है और जब प्यार सच्चा होता है तो वो हमारी सबसे बड़ी ताकत बन जाता है",उदयवीर बोला....
"बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे",तुलसीलता बोली....
"तो क्या अब भी यहीं खड़े रहने का इरादा है,अपनी कोठरी में चलने को नहीं कहोगी",उदयवीर बोला....
"चलो! लेकिन पुजारी जी गुस्सा ना करने लगें",तुलसीलता बोली....
"कौन डरता है उस खूसट पुजारी से?",उदयवीर बोला....
"तो फिर चलो",तुलसीलता बोली....
और फिर उदयवीर और तुलसीलता दोनों कोठरी में पहुँचें,कोठरी में पहुँचते ही तुलसीलता ने एक तश्तरी में कुछ लड्डू और एक लोटे में पानी भरकर उदयवीर के सामने रख दिया,लड्डू देखते ही उदयवीर तुलसीलता से बोला....
"तुम नहीं खाओगी"
"नहीं! तुम खाओ",तुलसीलता बोली....
"और बताओ कैसें गुजरे मेरे बिन इतने साल",उदयवीर ने पूछा....
"वो तो तुम भी अच्छी तरह जानते ही होगें,मुझसे क्या पूछते हो"?,तुलसीलता बोली....
तब उदयवीर बोला....
"जीवन जाने कैसें कैसें रंग दिखाता है तुलसी! तुम से दूर रहकर मैं कैसें रहा,ये मैं ही जानता हूँ,तुम्हारा कोई संदेश नहीं,मेरी चिट्ठियांँ भी शायद तुम तक नहीं पहुँची,ऐसा लगता था कि कैसें कटेगें इतने दिन,लेकिन मैने भी मन में ठान लिया था कि अब की बार तुम्हारे पास तभी जाऊँगा जब इस काबिल बन जाऊँगा कि तुम्हें इस नरक से मुक्ति दिला सकूँ,इसलिए मैनें बहुत पढ़ाई की और जब काबिल बन गया तब आया तुम्हारे पास",
"मेरा उद्घार करने है ना!",तुलसीलता बोली...
"उद्घार तो देवता करते हैं,मैं तो तुम्हें मुक्ति दिलाने आया हूँ",उदयवीर बोला....
"तुम मेरे लिए देवता समान ही हो उदय!",तुलसीलता बोली...
"मुझे देवता मत कहो,तुलसी!,इसमें मेरा भी तो स्वार्थ छुपा है",उदयवीर बोला....
"और तुम्हारा इन्तजार करते करते,इस बीच मुझे कुछ हो जाता,मैं मर जाती तो",तुलसीलता बोली....
"ऐसा मत कहो तुलसी! मैं तुम्हारे बिन जीने की सोच भी नहीं सकता",
और फिर ऐसा कहकर उदय अपनी जगह से उठा,उसने कोठरी के किवाड़ अटकाए और फिर उसने तुलसीलता को अपने सीने से लगा लिया ,फिर दोनों यूँ ही बहुत देर तक एक दूसरे की बाँहों में समाएं रहें,अब उनकी जुबाँ कुछ नहीं कह रही थी,उन दोनों के दिल का दर्द बयान कर रहे थे उन दोनों की आँखों के आँसू जो बस यूँ ही बहे जा रहे थे ,इतने सालों की दूरी और विरह को व्यक्त करते उनकी आँखों के अविरल बहते आँसू दोनों की विरह पीड़ा को दर्शा रहे थे जो उन दोनों ने इतने सालों सहन की थी,दोनों अभी अपना मन हलका भी नहीं कर पाए थे कि किशोरी ने किवाड़ो के बाहर से कहा....
"तुलसी! अगर उदय भीतर है तो उसे जल्दी से बाहर जाने को कहो,क्योंकि पुजारी ने उसे मारने के लिए कुछ लठैत बुलवाएँ हैं",
और फिर परेशान होकर तुलसीलता ने कोठरी के किवाड़ खोल दिए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....


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