Andhayug aur Naari - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी--भाग(१३)

मुझे भावुक होता देखकर किशोरी बोली....
"तो तूने इसे अपना भाई बना लिया",
"और क्या! ऐसा शरीफ़ लड़का ही मेरा भाई बन सकता है,क्यों रे बनेगा ना मेरा भाई!",तुलसीलता ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहा....
"हाँ! आज से तुम मेरी बड़ी बहन और मैं तुम्हारा छोटा भाई",मैं ने खुश होकर तुलसीलता से कहा....
"तो फिर मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले,यहाँ ज्यादा मत आया कर,नहीं तो हम दोनों के पवित्र रिश्ते पर लोग लाँछन लगाने में बिलकुल नहीं चूकेगें और तू नाहक ही बदनाम हो जाएगा,मेरा क्या है,मैं तो बदनाम हूँ ही", तुलसीलता दुखी होकर बोली....
"और अगर मेरा तुमसे मिलने को कभी मन किया तो",मैने तुलसीलता जीजी से पूछा....
"तो तू कभी कभी बरगद के पेड़ वाले शिवबाबा के मंदिर में आ जाया कर ,मैं हर सोमवार वहाँ उनके दर्शनों के लिए शाम को जाती हूँ",तुलसीलता बोली....
"ठीक है तो मैं वहीं आ जाया करूँगा",मैंने कहा...
"तो अब तू जा यहाँ से,देख साँझ ढ़ल चुकी है और अँधेरा होने को है",तुलसीलता बोली....
"ठीक है तो मैं जाता हूँ"
और ऐसा कहकर जैसे ही मैं चलने को हुआ तो वो बोली....
"रुक! जरा ठहर तो"
"अब क्या हुआ"?,मैने पूछा....
"आज तुझे छोटा भाई बनाया है तो शगुन तो लेता जा",तुलसीलता बोली....
"शगुन!",मैं बोला....
"हाँ! शगुन! ले ये तबीज पहन ले,एक पीर बाबा ने मुझे दिया था,बोले थे तुझे हर नज़र से बचाएगा ये तबीज़,मैने तो पहना नहीं,लेकिन तू पहन ले इसे",वो एक छोटे से सन्दूक से तबीज़ निकालते हुए मुझसे बोली.....
"तुमने क्यों नहीं पहना इसे"?,मैने पूछा....
"हम जैसियों को कहाँ किसी की नज़र लगती है",तुलसीलता बोली....
"नज़र क्यों नहीं लगती भला! तुम इतनी सुन्दर जो हो",मैं बोला...
"तुझे ऐसा लगता है,तू मन का सुन्दर है ना इसलिए तुझे मैं भी सुन्दर लगती हूँ",तुलसीलता बोली...
"तुम बहुत अच्छी हो और मन की भी सुन्दर हो,शायद ये बात तुम्हें पता नहीं है",मैं बोला....
"अब तू घर जा,ज्यादा बातें मत बना,सोमवार को मंदिर में मिलना",तुलसीलता बोली.....
और फिर मैं अपने घर आ गया,आज मैं बहुत खुश था,क्योंकि तुलसीलता के प्रति मेरे मन का मैल धुल चुका था,अब से वो मेरी बड़ी बहन थी और मैं उसका छोटा भाई,जो रिश्ता आज तक दादाजी अपने होकर मेरे साथ नहीं निभा पाए थे वो एक गैर लड़की ने निभा लिया था,मैं खुशी खुशी हवेली पहुँचा और स्नानघर में जाकर हाथ मुँह धोने लगा,स्नानघर से जब हाथ मुँह धोकर बाहर निकला तो आँगन में पड़ी चारपाई पर लेटकर मैं आसमान में छिटके तारें देखने लगा,मुझे ऐसा लग रहा था ,मानो आज मेरे साथ साथ तारें भी खुश हैं और खिलखिला रहे हैं,मैं तारों को देखकर मुस्कुरा रहा था, तभी दादी लालटेन जलाकर आँगन में लगे खम्भे से टाँगने आई और जब उन्होंने मुझे इतना खुश देखा तो मुझसे बोलीं....
"क्यों रे!बड़ा खुश नज़र आ रहा है,छाते से लगी मार ठीक हो गई क्या"?
"ये क्या दादी?,तुम भी रंग में भंग डाल देती हूँ,शायद मेरा मुस्कुराना तुम्हें भाता नहीं है", मैं गुस्से से बोला...
"अरे! मैं तो मज़ाक कर रही थी,मुझे भी बता दे अपनी खुशी की वजह तो ये बुढ़िया भी तनिक खुश हो ले",दादी मुस्कुराते हुए बोली....
"देखो! उसने मुझे ताबीज़ दिया है",मैने कहा....
"अरे! किसने?",दादी ने पूछा....
"अरे! उसी देवदासी तुलसीलता ने",मैंने कहा....
"अब वो कुल्टा जादू टोना करके तुझे वश में करना चाहती है,उतार ये ताबीज़,इसे इसी वक्त और अभी अपनी देह से अलग कर,एक तू ही शरीफ़ मर्द था घर में,अब उस कुलबोरन ने तुझे भी अपने रुपजाल में फाँस लिया,हाय! दइया! अब क्या होगा इस घर का?", दादी अपने करम कूटते हुए बोली....
"अरे! दादी! तुम नाहक ही परेशान हो रही हो,उसने मुझे अपना छोटा भाई बनाकर ये ताबीज़ उपहार स्वरूप भेंट किया है,अब वो मेरी बड़ी बहन बन गई है,वो मुझसे उम्र में बड़ी है दादी ! इसलिए उसने अब मुझे अपना छोटा भाई बना लिया है,तुम जैसा सोच रही हो ,वो बिलकुल भी वैसी नहीं है", मैंने दादी से कहा...
"क्या बकता है? वो और तुझे भाई बनाऐगी,मैं ऐसी कुलच्छनियों के लक्षण बहुत अच्छी तरह जानती हूँ,मेरी उम्र बीत गई है ऐसी औरतों को देखते हुए,मैंने ऐसे ही अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं,जीवन भर मैंने ऐसी ही त्रियाचरित्र वाली औरतें ही तो देखीं हैं", दादी बोली....
"ना! दादी! वो बिलकुल भी वैसी नहीं है,अब वो मेरी बड़ी बहन है,इसलिए मेरे सामने उसकी बुराई मत करो", मैं दादी से बोला....
"बड़ा आया बहन वाला,कहीं ऐसी औरतें किसी की बहन बन सकें हैं भला!",दादी बोली....
"का हो गया अम्मा! काहे इत्ता बिगड़ रही हो",चाची ने रसोई से पूछा....
"देख तो जनकदुलारी! कहता है उसने इसे भाई बना लिया है,देख लिया अन्धेर,कहीं ऐसा होते देखा है,ऐसी औरतें किसी की सगी नहीं होतीं और इसे भाई बना लिया,ये तो गजब ही हो गया",दादी बोली....
तब चाची रसोई से बाहर आई और दादी से पूछा.....
"किसने किसको भाई बना लिया"?
"उसी निगोड़ी देवदासी ने और किसने",दादी बोली...
"तुलसीलता ने",चाची बोली...
"हाँ! उसी ने",दादी बोली...
"ये तो सच में चमत्कार हो गया अम्मा! मुझे भी ये सुनकर हैरानी हो रही है",चाची बोली....
"लेकिन ये सच है चाची!",मैने कहा...
"तब तो बहुत अच्छा हुआ बेटा! मेरी तरफ से उस तुलसीलता को सौ सौ आशीष,मैंने ऐसी देवदासी ना देखी, अब तो मेरा भी जी चाह रहा है उससे बात करने को"चाची बोली....
"उससे बात करना चाहती हो चाची! तो मैं वो भी करवा दूँगा,वो शिवबाबा के मंदिर में आती हर सोमवार,तो तुम उससे वहाँ मिल सकती हो",मैंने चाची से कहा....
"क्या कहता है रे! अब इस घर की बहू किसी म्लेच्छ से मिलने जाएगी",दादी बोली....
"और जब तुम्हारा बेटा उस म्लेच्छ से मिलने जाता है तो कुछ नहीं,अगर बहू मिलने चली जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा", मैंने दादी से कहा....
"तू मुझे ज्यादा ज्ञान मत दे",दादी बोली....
"अच्छा! सच्ची बात बोली तो कहती हो कि ज्ञान मत दे",मैंने दादी से कहा...
"चुप कर! बड़ो की बात के बीच में टाँग नहीं अड़ाया करते,अगर जनकदुलारी का मन है उससे मिलने जाने का तो चली जाएँ,मैं थोड़े ही रोक रही हूँ उसे",दादी तुनकते हुए बोली....
"तुम सच कहती हो अम्मा! मैं उससे मिल सकती हूँ",चाची ने खुश होकर पूछा...
"हाँ! लेकिन ध्यान रहे किसी को भी कानोंकान खबर नहीं होनी चाहिए,ये हमारे खानदान की इज्ज़त का सवाल है",दादी बोली...
"हाँ...हाँ... खानदान की इज्ज़त का ख्याल रखने का सारा ठेका,मैने,तुमने और चाची ने ही तो ले रखा है,दादाजी और चाचाजी का तो कोई फर्ज ही नहीं बनता",मैने कहा...
"बस चुप कर और ज्यादा मत बोल,जा जाकर खाना खा ले",दादी बोली....
और फिर मैं चाची के पीछे पीछे रसोईघर की ओर चल पड़ा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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