Andhayug aur Naari - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी - भाग(४६)

हुस्ना की भाभीजान हमारे पास आकर हमसे बोलीं....
"बेग़म! ये अच्छी बात नहीं है,हम गरीब लोगों के पास सिवाय इज्जत के कुछ और नहीं होता"
"हम कुछ समझे नहीं नूरी! कि तुम क्या कहना चाहती हो" हमने उससे पूछा....
"हुस्ना के साथ आपका जो रिश्ता है,उसे लेकर जमाना ना जाने कैसीं कैसीं बातें कर रहा है,हुस्ना ने तो हमें कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल नहीं रखा",नूरी बोली...
"ऐसा तो कोई गुनाह नहीं किया हुस्ना ने,जो तुम इतना बढ़ चढ़कर बता रही हो,वो तो एकदम पाक साफ है, उसने ऐसी कोई गलती नहीं की जिससे जमाने के सामने तुम्हारा सिर झुकता हो,तुम्हें रुसवा होना पड़े",हमने नूरी से कहा...
"आपकी नजरों में वो गुनाह नहीं होगा,लेकिन हमारी नजरों में वो बहुत बड़ा गुनाह है,वो गरीब है तो क्या आपका उसका फायदा उठाऐगीं",नूरी बोली...
"तुम गुस्ताखी कर रही हो नूरी!",हमने गुस्से से कहा...
"मैंने कोई गुस्ताखी नहीं की बेग़म! आपने मुझे मेरा मुँह खोलने पर मजबूर किया",नूरी बोली...
"ख़ामोश हो जाओ नूरी! अब इससे आगें और कुछ मत कहना",हमने नूरी से कहा....
"कहूँगी...हजार बार कहूँगी,एक मासूम लड़की को आपने अपने जिस्म की जरुरतों के लिए फाँस लिया है और मैं मुँह भी ना खोलूँ,आपका शौहर आपसे जिस्मानी ताल्लुकात नहीं रखता है तो इसका मतलब है आप अपने जिस्म की गर्मी मिटाने के लिए मेरी हुस्ना का इस्तेमाल करेगीं,इतना ही शौक है अपनी जवानी की भूख मिटाने का तो कोई मर्द क्यों नहीं ढूढ़ लेतीं,आप तो दौलतमंद हैं कोई भी मर्द दौलत के लालच में आपके जिस्म की भूख मिटा देगा,कहाँ है मेरी हुस्ना,मैं उसे ले जाने आई हूँ"
अब नूरी की आवाज़ पूरे घर में गूँज गई थी और सारी मुलाजिमाऐं उसकी आवाज़ सुनकर वहाँ इकट्ठी हो गईं थीं, हुस्ना भी उनके ही साथ खड़ी थी और हम अपने कानों पर अपने हाथ धरकर इस बात का अफसोस मना रहे थे कि हमने आखिर नूरी को भीतर क्यों आने दिया,आज तो उसने हमारे दामन पर कीचड़ उछाल दिया था,हमें जमाने के सामने उसने बेपरदा कर दिया था और हम ये सोच रहे थे कि हम लोगों से अब कैसें निगाहें मिलाऐगें,फिर उसने हुस्ना को अपने साथ ले जाने के लिए पल भर की भी देर ना लगाई,मजबूरी में हुस्ना को उसके साथ जाना ही पड़ा....
और फिर हुस्ना को उसके घरवालों ने घर में कैद कर दिया,उसे कहीं भी बाहर आने जाने की इजाजत नहीं थी और फिर उसका किसी शकील नाम के लड़के के साथ निकाह कर दिया गया,निकाह करके वो अपने शौहर के साथ चली गई लेकिन फिर खबर आई कि निकाह के कुछ वक्त बाद ही उसने ज़हर खाकर खुदखुशी कर ली,लोगों ने ये कहा था कि उसे उसकी भाभी और भाईजान ने चंद रुपयों के लिए शकील को बेच दिया था और शकील उसे किसी कोठे पर बेचना चाहा था,जो उसे नामंजूर था इसलिए उसने आत्महत्या कर ली थी,लेकिन सच तो ये था कि ये सब नवाब साहब का किया कराया था,उन्होंने ही नूरी और उसके शौहर को हिदायत दी थी कि हुस्ना अब शबाब बेग़म से ना मिले,नहीं तो तुम लोगों की खैर नहीं,इसलिए नूरी और उसके शौहर ने ऐसा कदम उठाया था.....
और ये सब कहते कहते शबाब चुप हो गई तो हमने उनसे पूछा....
"और ये शमा किस राज को छुपाने की बात कह रही थी"?
"हाँ! वो भी बताते हैं,आपको आज सब बता देगें,कुछ भी नहीं छुपाऐगें",
और फिर शबाब ने फिर से अपना फसाना कहना शुरू किया....
नवाब साहब को ना तो हम में पहले कोई दिलचस्पी थी और अब दिलचस्पी इसलिए ना रह गई थी कि उन्हें हमारे और हुस्ना के रिश्ते के बारें सबकुछ पता चल चुका था,अब वो हमसे खिंचे खिंचे से रहने लगे थे,पहले तो वो कभी कभी हमसे मिलने आ भी जाते थे लेकिन बाद में उन्होंने वो भी बंद कर दिया और हमारा जी जलाने के लिए वो किसी तवायफ़ को ले आएं,वैसें उन्होंने वकायदा मौलवी साहब की मौजूदगी में उससे निकाह किया था,लेकिन वो एक तवायफ़ थी इसलिए उन्होंने इस निकाह की खबर जमाने को देनी जरूरी ना समझी,रुबाई हमसे उम्र में छोटी और कमसिन थी,उस पर उसके पहले से बहुत चाहने वाले थे,इसलिए नवाब साहब ने बदनामी के डर से उसे अपनी हवेली में ना रखकर शहर से दूर किसी मकान में ठहरवा दिया और उससे मिलने के लिए वहाँ जाने लगे.....
और फिर एक दिन रुबाई हमारा पता ठिकाना पूछते हुए हमारे पास आई और उन्होंने हमसे कहा....
"आपा! मेरी तो जिन्दगी बर्बाद हो गई नवाब साहब की बेग़म बनके,मैं तो कहीं की ना रही,उस पर से जो मेरे पास जमापूँजी थी वो खतम हो गई,मुझे क्या मालूम था कि नवाब साहब ऐसे निकलेगें,जब वे मेरे कोठे पर मुजरा देखने आते थे तो मुझे लगता था कि वो जरा रंगीन तबियत के शख्स हैं,लेकिन वो तो..... हाय मेरी तो किस्मत फूट गई जो ऐसा इन्सान मेरे पल्ले बँध गया"
तब हमने उससे पूछा....
"क्या हुआ रुबाई बेग़म? आप इतनी मायूस क्यों हैं"?
"आपा! आप तो ऐसे अनन्जान बन रही हैं जैसे कि आपको कुछ पता ही नहीं है,भला आप मुझे ये बताइए कि नवाब साहब का आपके साथ कैसा रिश्ता है?,क्योंकि हमारे बीच तो आज तक कोई रिश्ता ही नहीं बन पाया,वे शाम ढ़लते ही अपनी हवेली लौट जाते हैं,कभी भी मेरे पास एक रात नहीं बिताई उन्होंने"रुबाई बोली...
"तो जैसा आपका हाल है रुबाई बेग़म,वैसा ही हमारा हाल है,इसलिए इस बारें में हमसे ना ही कुछ पूछें और ना ही कुछ कहें",हमने उनसे कहा...
"तो फिर अब क्या होगा"?,रुबाई ने पूछा....
"अब ये तो हम नहीं बता सकते",हमने रुबाई से कहा...
और उस दिन हमारे और रुबाई के बीच बहुत सी बातें हुई,वो हमसे बोली कि इससे अच्छा तो कोठे में आने जाने वाले मर्द ही अच्छे थे जो उसके कद्रदान हुआ करते थे,लेकिन यहाँ तो मामला ही कुछ और है,मतलब नवाब साहब के कुछ और ही शौक हैं,इस तरह से उस दिन के बाद रुबाई हमारे पास अपना ग़म बाँटने आने लगी और हम भी क्या करते क्योंकि हमें भी अपनी तनहाइयों से कोफ्त होने लगी थी,इसलिए अब हमें भी रुबाई का हमारे पास आना अच्छा लगने लगा था,धीरे धीरे हमारे बीच करीबियांँ बढ़ने लगी और हमारा रुबाई के साथ वही रिश्ता बन गया जो हुस्ना के साथ था और हमारा वो रिश्ता अब तक कायम है,हम दोनों बहुत ही फूँक फूँककर कदम रख रहे थे लेकिन एक दिन हम दोनों दरवाजा बंद करना भूल गए और हमे एक साथ हमारी मुलाजिमा शमा ने देखा लिया और उसी दिन से वो हमें धमकी देने लगी कि नवाब साहब को सब बता दूँगीं,इसलिए हमे अपना राज सबसे छुपाने के लिए शमा को हर महीने कुछ रकम अदा करनी पड़ती है.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...


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