लेकिन कहते हैं ना कि मुसीबत पूछकर नहीं आती तो एक दिन उस हवेली पर मुसीबत आ ही गई,ना जाने कैंसे दंगाइयों को पता चल गया कि मैं और त्रिलोक वहाँ रह रहे हैं,चूँकि हम दोनों ही वहाँ हिन्दू थे और जिसका डर था वही हुआ,एक रात कुछ दंगाई हाथों में मशाल और हथियार लेकर हवेली के गेट की ओर टूट पड़े,अकेला चौकीदार भला उन सभी को कैंसे सम्भाल पाता,उसने कोशिश की भी सभी को रोकने की लेकिन उन दंगाईयों ने उसे रौंद डाला,उसे रौंदकर वो हवेली के मुख्य दरवाजे तक पहुँच गए,जब हम सबने वो शोर सुना तो हम सब बुरी तरह से डर गए,लेकिन मर्सियाबानो नहीं डरी और उन्होंने हम सभी लड़को से कहा...
"आप सभी को डरने की जरूरत नहीं है,जब तक हम हैं तो आप लोगों को कोई कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता",
और उन्होंने मुझे और त्रिलोक को हवेली के तलघर में छुपने को कहा,जो कि रसोईघर में ही था और खुद कटार लेकर वो उन सभी का सामना करने के लिए वहीं खड़ी हो गईं,फिर दंगाई हवेली का मुख्य दरवाजा तोड़कर भीतर घुस आए और उन्होंने सभी से हम दोनों के बारें में पूछा,लेकिन किसी ने कोई भी जवाब नहीं दिया,तब वे सब मर्सियाबानो से बोले.....
"बुढ़िया! चुपचाप उन लड़को के बारें में बता दे,हम तुम में से किसी को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाऐगे"
"कह दिया ना कि हमें कुछ नहीं मालूम,हमने सारे हिन्दू लड़को को पहले ही इस हवेली से जाने को कह दिया था",मर्सियाबानो बोली....
"झूठ बोल रही है तू",एक दंगाई बोला....
"हम झूठ नहीं बोल रहे,अगर हमारी बात पर यकीन नहीं है तो आप हवेली के सभी कमरों की तलाशी ले सकते हैं",मर्सियाबानो बोली...
और फिर मर्सियाबानो के कहने पर सभी दंगाइयों ने हवेली के कमरों की तलाशी लेने शुरू कर दी,लेकिन किसी को उन कमरों में कोई भी नहीं मिला,इसलिए दंगाई वहाँ से मायूस होकर चले गए,जब मर्सियाबानो को लग गया कि खतरा टल गया है तो उन्होंने हमें तलघर से बाहर बुलाकर कहा कि अब आप दोनों को यहाँ से चले जाना चाहिए क्योंकि अब आप दोनों का यहाँ रहना ठीक नहीं है,मुसीबत किसी भी वक्त आ सकती है,आज तो मामला सम्भल गया लेकिन कल को फिर कोई आ जाएगा तो तब हम आप दोनों को कैंसे बचाऐगें.....
हम सभी के बीच अभी ये सब बातें चल ही रहीं थीं कि तभी दो दंगाई भीतर घुस आए और उनमें से एक हम सभी से बोला....
"हम दोनों को इस बुढ़िया पर भरोसा नहीं था इसलिए हम दोनों उन सभी के साथ नहीं गए,वापस लौट आए और अब सच्चाई हम दोनों के सामने हैं"
"हमारे रहते तुम लोग इन्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुँचा सकते",मर्सिया चीखी....
"ऐ बुढ़िया....ज्यादा मत चीख,ये तेरे बेटे नहीं हैं जो तू इन्हें बचाने की बात कर रही है" दूसरा दंगाई बोला...
"ये सभी हमारे बच्चे हैं,इन सभी को हम अपना बेटा मानते हैं",मर्सिया बोली....
"बेटा होने और बेटा मानने में बहुत फर्क होता है और फिर तुझे थोड़े ही कोई नुकसान पहुँचा रहे हैं,बस तू इन दो हिन्दू लड़को को हमारे हवाले कर दे,हम चुपचाप यहाँ से चले जाऐगे",पहला दंगाई बोला....
"हमारे जीते जी ऐसा नहीं हो सकता",मर्सिया बोली...
"तो फिर तेरे मर जाने में ही भलाई है",
और ऐसा कहकर दूसरे दंगाई ने अपना छुरा मरसिया के पेट में घोंप दिया,लेकिन मर्सिया भी कम नहीं थी,उसके हाथ में जो छुरा था उसी दंगाई की एक आँख में घोंपकर वो फर्श पर गिर पड़ी और दर्द से तड़पने लगी,आँख में छुरा घुपने से दूसरा दंगाई दर्द से छटपटाने लगा,ये देखकर पहले दंगाई को बहुत गुस्सा आया और वो अपना छुरा लेकर मेरी ओर बढ़ा, लेकिन वो मुझे कोई नुकसान पहुँचा पाता उससे पहले ही त्रिलोक मेरे सामने आ गया और वो छुरा उसके पेट में जा लगा,अब त्रिलोक और मर्सिया दोनों ही मेरी आँखों के सामने ही फर्श पर पड़े दर्द से छटपटा रहे थे,अब ये मुझसे देखा ना गया और वहीं बगल में पीतल का फूलदान रखा था और वो उठाकर मैंने पहले दंगाई के सिर पर जोर का वार किया,जिससे वो फर्श पर गिर पड़ा,इसके बाद मैंने उसी पीतल के फूलदान से उसके सिर पर अनगिनत वार किए और करता ही चला गया,जब मुझे यकीन हो गया कि अब वो जिन्दा नहीं है तब मैंने उसे मारना छोड़ा और फिर दूसरे दंगाई को तो दूसरे लड़को ने सम्भाल लिया,मैं जब तक त्रिलोक और मरसिया के पास पहुँचा तब तक वे दोनों दम तोड़ चुके थे.....
उन दोनों के शरीर में कोई भी हरकत नहीं हो रही थी,उन दोनों के मृत शरीर मेरी आँखों के सामने पड़े थे और मैं लाचार सा उन दोनों के पास बैठा था,मेरी आँखों के आँसू थम नहीं रहे थे,इतने कम वक्त में वे दोनों ही मेरे दिल के बहुत करीब हो गए थे और पल ही भर में मुझसे इतने दूर चले गए थे कि अब उन दोनों का वापस लौटना नामुमकिन था,मैं बहुत देर तक दोनों के पास बैठा रोता रहा,तब दूसरे लड़को ने कहा कि यहाँ ऐसे बैठने से काम नहीं चलेगा,खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है,हवेली के ही बगीचे में मर्सियाबानो को दफनाकर हम सभी यहाँ से भाग चलते हैं.....
इसके बाद मर्सियाबानो को उन मुस्लिम लड़को ने बगीचे में दफना दिया और मैंने उसी बगीचे में एक ओर त्रिलोक का दाह संस्कार कर दिया,फिर हम सभी अपने अपने रास्ते चल पड़े,फिर मैं भागकर जैसे तैसे डाक्टर धीरज के शहर पहुँचा और उन्हें बताया कि मर्सियाबानो अब नहीं रही,ये बात सुनकर उन्हें बड़ा झटका सा लगा और वे बोले...
"अब मैं ये बात उनके बेटे को बता सकता हूँ कि उसकी असली माँ कौन है"
इसके बाद मैं एक दो दिन उनके यहाँ ठहरा और अपनी दोनों बहनो की खबर लेने उनके गाँव पहुँचा तो पता चला कि दंगाइयों ने कुछ भी नहीं छोड़ा कोई नहीं बचा,गाँव के गाँव जला दिए गए,सब तहस नहस हो चुका था और मेरी बहने अब जिन्दा नहीं थीं,उस मजहबी दंगो ने समूचे हिन्दुस्तान में नफरत का जहर घोल दिया था और वो जहर हिन्दुस्तान की आबादी को लील रहा था....
मैं जैसे तैसे जान बचाकर अपने घर लौटने की कोशिश कर रहा था,लेकिन कहीं भी घर जाने के लिए कोई भी साधन नहीं मिल रहा था,क्योंकि बसो को दंगाई लूट रहे थे,मारकाट कर रहे थे,रेलगाड़ियों का भी यही हाल था,लेकिन मैं जगह जगह भटक कर भी क्या करता ,घर तो पहुँचना ही था और अभी मुझे ये भी पता नहीं था कि मेरा घर और गाँव बचा था या नफरत की आग उधर भी पहुँच चुकी थी,अगर कुछ बचा था तो वो थी आस ...जीवित रहने की आस....खुद को महफूज रखने की आस....जो मैंने अभी तक नहीं छोड़ी थी,मैं यूँ ही कहीं ना कहीं किसी के यहाँ शरण लेकर अपना सफर पूरा कर रहा था,लेकिन अभी भी मुझे अपने गाँव पहुँचने के लिए मुनासिब जरिया नसीब नहीं हो रहा था.....
और एक रात छुपते छुपाते मैं एक गाँव में जा पहुँचा,मैं वहाँ रातभर के छुपने के लिए कोई जगह ढूढ़ने लगा,लेकिन बहुत ढ़ूढने पर भी मुझे कोई मुनासिब जगह नहीं मिली और फिर जगह खोजते खोजते मैं एक घर के पास जा पहुँचा जो कि गाँव से थोड़ा बाहर की ओर खेतों के पास था,उस घर में मुझे रोशनी नज़र आई तो लगा कि शायद यहाँ मेरे रहने का कोई इन्तजाम हो सकता है,लेकिन डर भी बहुत लग रहा था कि क्या मुझ अन्जान को कोई अपने घर में पनाह देगा,अगर उस घर के लोगों ने मुझे दंगाई समझकर मारने की कोशिश की तो फिर मैं निहत्था क्या करूँगा, लेकिन गाँव में यूँ खुलेआम घूमना भी खतरे से खाली नहीं था,क्या पता कहाँ से दंगाई आ जाएँ और मैं उनका शिकार हो जाऊँ और यही सब सोचकर मैंने उस घर के किवाड़ खटखटाने का फैसला कर लिया....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...