Andhayug aur Naari - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

अन्धायुग और नारी - भाग(३९)

रात को जब मैं खाना खाने पहुँचा तो मुझे उनसे बात करने का दिल नहीं कर रहा था,मेरे ज़ेहन में कई सवाल चल रहे थे,मेरा कश्मकश से भरा चेहरा देखकर चाचीज़ान समझ गईं कि मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है,उस समय त्रिलोक बाबू मेरे साथ थे इसलिए उन्होंने ना कुछ पूछा और ना ही कुछ कहा,बस उन्होंने शान्त मन से हम दोनों को खाना खिलाया,उन्होंने उस दिन मूँग की दाल,आलू का भरता,लौकी की सब्जी और रोटियाँ बनाई थीं,वो हम दोनों को खाना परोस रहीं थीं और हम दोनों खाना खा रहे थे,मैं तो यूँ ही गैर मन से खाए जा रहा था बस! खाना कितनी जल्दी खतम हो और मैं यहाँ से जाऊँ,मैं यही सोच रहा था.....
हम दोनों का खाना खतम हो गया तो मैं उनसे बात किए बिना ही चुपचाप अपने कमरें में चला आया और दरवाजा बंद करके शान्ति से अपने बिस्तर पर लेट गया,सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन मेरा दिमाग़ उन्हीं शख्स के बारें में सोच रहा था,कुछ देर तक नींद नहीं आई तो मैं लाइट जलाकर पढ़ने बैठ गया,मैं पढ़ने में अपना मन लगाने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी मेरे कमरें के दरवाजों पर दस्तक हुई और मैने पूछा....
"कौन?"
"हम हैं!,दरवाजा खोलिए",बाहर से मर्सियाबानो की आवाज़ आई....
और फिर मैं कुर्सी से उठा और दरवाजा खोलकर उनसे पूछा...
"आप! और इस वक्त"
"जी! आपसे कुछ बात करनी थी,क्या हम अन्दर आ सकते हैं?",
"जी! आइए",मैंने कहा....
और फिर वे कमरे के भीतर आईं और मेरे बिस्तर पर बैठते हुए बोलीं....
"आप डाक्टर सिंह के बारें में जानना चाहते हैं ना!"
"जी! मैंने ऐसा तो नहीं कहा आपसे",मैंने कहा....
"आपने कहा नहीं लेकिन हम आपके दिल की बात समझ चुके हैं",चाचीज़ान बोलीं....
"मुझे उनके बारें में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है",मैंने कहा....
"अगर आपको उनके बारें में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है तो फिर आप इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हैं", चाचीज़ान बोलीं...
"आपको कोई गलतफहमी हो रही है,मैं परेशान नहीं हूँ चाचीज़ान!",मैंने कहा.....
"आप परेशान हैं ये आपका चेहरा बता रहा है",वें बोलीं....
"अगर आपको ऐसा ही लग रहा है तो बताइए फिर वो शख्स कौन थे",मैंने कहा....
"हम वही बताने तो आए हैं यहाँ" वें बोलीं.....
"तो फिर बताइए कौन थे वो",मैंने पूछा....
"तो फिर सुनिए,आज हम आप से कुछ नहीं छुपाऐगें",
और ऐसा कहकर वें अपने गुजरे हुए कल के बारें में मुझे बताने लगीं.......
हम उन दिनों लखनऊ में रहा करते थे,हमारे परिवार में केवल हमारे बड़े अब्बू यानि की हमारे दादाजी बस थे,हमारे अम्मी और अब्बू की बस हादसे में मौत हो चुकी थी,हमारे बड़े अब्बू की सारी दुनिया हमारे इर्दगिर्द ही घूमती थी,उन दिनों हम काँलेज में पढ़ रहे थे,हम बुर्का पहनकर रोल्स राँयस में अपने काँलेज जाया करते थे,क्योंकि हमारे बड़े अब्बू खानदानी रईस थे उनके दादे परदादे नवाब हुआ करते थे,लेकिन अंग्रेजों के आ जाने से हमारे बड़े अब्बू की नवाबी कुछ कम हो गई थी लेकिन पूरी तरह से खतम नहीं हुई थी,
हमारे बड़े अब्बू के चाय के बगान थे,कुछ होटल भी थे साथ में बेहिसाब जमींने थीं,हमारे जवान होते ही बड़े अब्बू को हमारे निकाह की फिक्र होने लगी थी,इसलिए हमारे लिए उन्होंने लड़का ढूढ़ना शुरू कर दिया और उन्हें एक नौजवान और होनहार लड़का मिल भी गया,उनका नाम सिराजुद्दीन मिर्जा था,वें एक अच्छे खानदान से ताल्लुकात रखते थे,उनके घरवाले और वो हमें देखने आए और एक ही नज़र में उन्होंने हमें पसंद कर लिया और फिर हम दोनों की सगाई भी हो गई,करीब दो महीने के बाद सिराजुद्दीन से हमारा निकाह होना मुकर्रर हुआ और इस दौरान हम और सिराज एक दूसरे के संग वक्त बिताने लगे,चूँकि हमारी सगाई हो चुकी थी,इसलिए हम दोनो के इस तरह से साथ वक्त बिताने पर किसी को कोई एत़राज ना हुआ,हम सिराज के संग बहुत खुश थे और फिर हमारी खुशियों में नज़र लग गई और एक हादसे ने उन्हें हमसे छीन लिया.....
हुआ यूँ कि उस साल कई गाँवों में बाढ़ आई और देखते ही देखते हजारों घर बाढ़ की चपेट में आकर डूब गए,बाढ़ के बाद इन्सानों और जानवरों के मरने पर चारों ओर महामारियाँ फैलने लगी,चूँकि सिराज एक डाक्टर थे इसलिए उन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए उन गाँवों का दौरा करना शुरु कर दिया जहाँ महामारियाँ फैल रहीं थीं और लोगों का इलाज करते करते उन्हें भी किसी महामारी ने जकड़ लिया और उनका इन्तकाल हो गया...
उनके इन्तकाल के बाद मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरी सारी दुनिया ही उजड़ गई हो,बड़े अब्बू को भी इस बात से बहुत तकलीफ़ पहुँची,लेकिन फिर उन्होंने ये सोचकर तसल्ली कर ली कि अल्लाह की रहमत से निकाह नहीं हुआ था,नहीं तो मेरी बच्ची की जिन्दगी तबाह हो जाती,लेकिन हम इस सदमे से नहीं उबर पा रहे थे,क्योंकि हम सिराज से मौहब्बत करने लगे थे और सिराज की बेवक्त मौत से उनके घरवाले हम से खफ़ा थे,वे हम पर तोहमतें लगा रहे थे,हमे मनहूस कह रहे थे,उन्होंने कहा कि अगर हमारी उनसे सगाई ना होती तो आज सिराज जिन्दा होते,लेकिन उन्हें कौन समझाता कि उस ऊपरवाले के आगे किसी की भी नहीं चलती...
ऐसे ही दिन गुजरने लगे और इसी दौरान एक दिन हम बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े,घर की नौकरानियों ने हमें उठाकर बिस्तर पर लिटाया और बड़े अब्बू के पास खबर करने पहुँची,बड़े अब्बू ने ये बात सुनकर फौरन ही एक जनाना अँग्रेज डाक्टर को मेरी जाँच के लिए बुलाया और जब डाक्टर ने मेरी जाँच की तो वो बोली कि हम हामिला से हैं...
ये सुनकर मेरे बड़े अब्बू के होश उड़ गए और वें सोचने लगे कि अब क्या किया जाएंँ,पहले तो उन्होंने सिराज के घरवालों से बात की लेकिन सिराज के घरवालों ने साफ इनकार कर दिया कि वे कुछ नहीं कर सकते,आपकी बच्ची में ही खोट है ,क्यों वो खुद को सम्भाल नहीं पाई...
अब बड़े अब्बू की फिक्र बढ़ गई और एकाएक उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने ड्राइवर से कार निकालने को कहा और हमें बिना कुछ बताएँ और बिना कुछ कहें,उन्होंने हमसे उनके साथ चलने को कहा,हम ने बुर्का पहना और चल पड़े उनके साथ.....
फिर बड़े अब्बू के कहने पर हमारी कार एक डिसपेन्सरी के आगे रुकी,बड़े अब्बू ने हमें बुरके से चेहरा ढ़कने की हिदायत दी और हम अपने चेहरे पर बुर्का डालकर बड़े अब्बू के साथ डिसपेन्सरी की तरफ बढ़ चले,हम भीतर पहुँचे ,तो देखा अभी डाक्टर अपने आखिरी रोगी को देखकर अपने कुर्सी से उठे ही थे कि हम दोनों को देखकर बोले....
"अभी कोई मरीज नहीं देखा जाएगा,देखते नहीं आप कि दोपहर के खाने का समय हो गया है",
"कुछ जरूरी काम था",बड़े अब्बू बोले....
"तो आप तीन बजे तक आइएगा,तब तक मरीज भी कम हो जाऐगें", डाक्टर साहब बोले....
"अगर कल आऊँ तो",बड़े अब्बू ने पूछा...
"ये तो और भी बढ़िया,लेकिन दोपहर बारह बजे तक आएँ तब तक यहाँ मरीज भी नहीं आते,मैं मरीज को ठीक से देख पाऊँगा", डाक्टर साहब बोले....
और फिर हम अब्बू के साथ डिसपेन्सरी से वापस आ गए....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....


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