अन्धायुग और नारी - भाग(४०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अन्धायुग और नारी - भाग(४०)

फिर दूसरे दिन हमारे बड़े अब्बू ही दोपहर के समय डिस्पेन्सरी पहुँच गए,वो गर्मियों की दोपहर थी,सीलिंग फैन आग के थपेड़े मार रहा था,डाक्टर सिंह ने कमरें की खिड़की में लगे काँच से बाहर देखा कि कोई कार आकर डिसपेन्सरी के सामने रुकी है और एक भद्र बूढ़ा मुसलमान कार से उतरकर हाथ में कीमती छड़ी के सहारे धीरे धीरे डिसपेन्सरी की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है....
उसकी कार निहायत कीमती दिख रही थी ,उस वृद्ध अमीर मुसलमान की आयु लगभग अस्सी बरस रही होगी,लम्बा छरहरा कमनीय शरीर अब सूखकर झुर्रियों से भर गया था,कमर भी झुक चुकी थी,अब उनकी खुद की टाँगों से उनका खुद का बोझ नहीं उठाया जा रहा था,उनके बदन पर महीन तनज़ेब का चिकनदार कुर्ता,कुर्ते के ऊपर रेशमी काली सदरी,ढ़ीला पायजामा,माथे पर लखनवी दुपल्ली टोपी,पैरों में सलीमशाही जूते थे,उनका रंग गोरा था और बाल सन की तरह सफेद थे,उनका व्यक्तित्व उनकी रुआबदार जिन्दगी की गवाही दे रहा था,वें भीतर पहुँचे तो डाक्टर सिंह को याद आया कि ये साहब तो कल किसी मोहतरमा के साथ यहाँ आए थे लेकिन आज तो अकेले आएँ....
बड़े अब्बू डिसपेन्सरी के भीतर पहुँचे तो डाक्टर सिंह ने अपने दोनों हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया और कुर्सी में बैठने का इशारा करते हुए बोलें....
"जी ! फरमाएँ कि क्या बात है"?
तब बड़े अब्बू कुछ काँपती सी आवाज़ में बोले....
"माँफ कीजिएगा,मैंने बेवक्त आपको तकलीफ़ दी,ओह...कितनी शिद्दत की गर्मी है,बाहर आग बरस रही है,
"जी! सच में बहुत गर्मी है,आप बताएंँ कि क्या बात है",डाक्टर सिंह बोले....
"जी!एक तकलीफ़ देना चाहता हूँ आपको"बड़े अब्बू बोले.....
"जी! आप पहले कहें तो कि क्या बात है",डाक्टर सिंह बोले...
और फिर बड़े अब्बू ने अशर्फियों से भरी एक पोटली डाक्टर सिंह की मेज पर रख दी और बोले....
"शायद आप मुझे जानते होगें मैं एहसान अहमद हूँ"
ये सुनकर डाक्टर सिंह बोले....
"कहीं आप मोतीमहल हवेली वाले नवाब एहसान अहमद तो नहीं,लेकिन किसी का इलाज किए बिना मैं ये नहीं रख सकता"
"जी ठीक पहचाना आपने मैं नवाब एहसान अहमद ही हूँ,ये तो केवल पेशगी है",बड़े अब्बू बोले...
"माँफ कीजिए! कल मैंने आपको पहचाना नहीं,इतनी भीड़ थी यहाँ और इतनी गर्मी भी थी,काम भी बहुत था इसलिए मेरा दिमाग़ गरम हो रहा था,लेकिन ये पेशगी क्यों?.",डाक्टर सिंह बोले...
"कोई बात नहीं डाक्टर साहब! सबके साथ ऐसा ही होता है,इतने मरीजों के बीच भला कैसें पहचानते आप मुझे और इस पेशगी की वजह भी जल्द ही आपको पता चल जाएगी",बड़े अब्बू बोले....
"जी! ये तो आपका बड़प्पन है,जो आपने मेरे कल के व्यवहार का बुरा नहीं माना,लेकिन पेशगी क्यों,ये मुझे कुछ समझ नहीं आया,",डाक्टर साहब बोले....
" मैं कुछ जरूरी काम से यहाँ आया था और ये पेशगी उसी काम के लिए है"बड़े अब्बू ने कहा...
"जी ! वो सब तो ठीक है लेकिन आपके यहाँ आने की वजह क्या है ,वो तो नहीं बताई आपने अब तक?" डाक्टर सिंह ने कहा....
तब बड़े अब्बू बोलें....
"आपके वालिद मरहूम,खुदा उनको जन्नत बख्शे,वे मेरे गहरे दोस्त थे,मेरी ही सलाह पर उन्होंने आपको डाक्टरी पढ़ने के लिए विलायत भेजा था",बड़े अब्बू बोले....
तब डाक्टर सिंह बोले.....
"जी!मैं अच्छी तरह से आपके नाम से वाकिफ़ हूँ,पिताजी अक्सर बातों बातों में आपका जिक्र करते थे और उन्होंने ये भी बताया था कि मेरी विलायत की तालीम का सारा खर्च आपने ही उठाया था,वे मरते दम तक आपका नाम रटते रहे,लेकिन उनसे आपकी मुलाकात ना हो सकीं,वे काफी अरसे तक बीमार रहे,आप शायद यहाँ नहीं रहते इसलिए आपकी उनसे मुलाकात ना हो सकी,"
"जी ! मैं ज्यादातर दार्जिलिंग में रहता हूँ,वहाँ मेरे चाय के बागान हैं ना तो इसलिए",बड़े अब्बू बोले...
"आपने अपने दर्शन देकर ,मुझे कृतार्थ कर दिया,जी फरमाइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ", डाक्टर सिंह बोले....
तब बड़े अब्बू ने अज़ब अन्दाज में अपना सिर झुकाया,आँखें बंद की और पल भर के लिए कुछ सोचा,फिर मन में साहस बटोरकर वें डाक्टर सिंह से बोले....
"जी! मेरे यहाँ आने की वजह है मेरी पोती"
"क्या वे बीमार हैं"?,डाक्टर सिंह ने पूछा...
"जी! नहीं! वजह कुछ और ही है,मैं उसी सिलसिले में आपसे मिलने आया था",बड़े अब्बू बोले...
"तो जल्दी कहें नवाब साहब!,अब मुझे ज्यादा उलझन में मत डालिए",डाक्टर सिंह बोले....
तब बड़े अब्बू बोले....
"मेरी पोती है मर्सियाबानो ,माँ बाप नहीं है उसके,मेरी भी कोई दूसरी औलाद नहीं,वो ही मेरी इकलौती वारिस है और ये बात उसी के मुताल्लिक़ है"
"जी!मर्ज क्या है",डाक्टर सिंह ने पूछा...
"मर्ज़! उसका मर्ज़ बेआबरुई है",बड़े अब्बू बोले....
"जी! मैं कुछ समझा नहीं",डाक्टर सिंह ने हैरान होकर पूछा....
तब बड़े अब्बू बोले....
"शायद इस नए मर्ज़ का नाम आपने ना सुना होगा,आप बड़े डाक्टर तो जरूर हैं पर नए हैं,आपकी जिन्दगी सलामत रही तो आप आगें चलकर देखेगें कि ऐसी बीमारियाँ आम होतीं हैं,खासकर बड़े घरों में तो ये तकलीफदेह हो जातीं हैं",
"मेहरबानी करके जरा साफ साफ कहिए कि मामला क्या है,",डाक्टर सिंह बोले...
"मेरी पोती हामिला से है,अब क्या करूँ मैं तो कहीं मुँह दिखाने के काबिल ही नहीं रह गया",बड़े अब्बू बोले....
"लेकिन मैं इसमें आपकी क्या मदद कर सकता हूँ",डाक्टर सिंह ने हैरान होकर पूछा...
"अब आप ही मेरी आखिरी उम्मीद बचे हैं",बड़े अब्बू बोले...
"आप मेरे मददगार जरूर रहे हैं लेकिन मुझसे कोई भी गैरकानूनी काम करवाने की उम्मीद ना रखें",डाक्टर सिंह बोले....
"मैं आपसे ऐसी कोई भी उम्मीद कतई नहीं रखूँगा,मैं तो आपसे महज़ एक इन्सानी फर्ज अदा कराना चाहता हूँ,आपके वालिद की दोस्ती के नाम पर या आपकी मदद के मुआवजे के रुप में,मैं आपको इस काम के लिए मुनासिब रकम देने को भी तैयार हूँ"बड़े अब्बू बोले....
"ये रही आपकी अशर्फियों की पोटली ,मुझे उसकी कोई जरूरत नहीं", डाक्टर सिंह बोले...
"आप मेरी बात समझे नहीं"बड़े अब्बू बोले...
"तो आप चाहते क्या हैं? मैं किस तरह से अपना फर्ज अदा कर सकता हूँ",डाक्टर सिंह ने पूछा...
"मैं सब बताता हूँ,पहले आप मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिए",बड़े अब्बू ने कहा...
"जी! पूछिए",डाक्टर सिंह बोले...
"आपकी शादी हो चुकी है",अब्बू ने पूछा...
"जी! हाँ!",डाक्टर सिंह बोले...
"बच्चा है",बड़े अब्बू ने पूछा...
"जी! शादी को तो बहुत अरसा हो चुका है लेकिन अभी बच्चा नहीं है",डाक्टर सिंह बोले...
"तो आप उस बच्चे को गोद ले लीजिए,मैं बीस गाँवों का इलाका और अपनी आधी जायदाद उस बच्चे के नाम कर दूँगा,बस आप उस बच्चे के धर्मपिता बन जाइए,इतना एहसान कर दीजिए मुझ पर,मैं जिन्दगी भर आपका शुक्रगुजार रहूँगा",बड़े अब्बू बोले...
"लेकिन ये कैसें हो सकता है?",डाक्टर सिंह बोले...
"जरा सोचिए! आप कितने दौलतमंद होगें,सारे जहान की खुशियाँ खरीद सकते हैं आप अपने लिए",बड़े अब्बू बोले....
"मुझे जरा सोचने का वक्त दीजिए और अपनी पत्नी से भी सलाह मशविरा कर लूँ मैं,उसके बाद ही मैं अपना फैसला आपको बताऊँगा",डाक्टर सिंह बोले...
"लेकिन जवाब जल्दी दीजिएगा,ज्यादा वक्त नहीं है मेरे पास",बड़े अब्बू बोले...
"ठीक है तो मैं जल्द ही सोचकर बताता हूँ",डाक्टर सिंह बोले....
"तो आपका जो भी फैसला हो तो शाम को मेरी हवेली आकर बता दीजिएगा,मैं शाम को हवेली पर आपका इन्तज़ार करूँगा",
और ऐसा कहकर बड़े अब्बू डिसपेन्सरी से वापस चले आएँ...
और इधर डाक्टर सिंह सोच में पड़ गए कि क्या करें,क्या ना करें और उन्होंने इस विषय पर अपनी पत्नी से बात करने का सोचा....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....