आख़िर कब तक Rashmi Tarika द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आख़िर कब तक

आखिर कब तक ?

फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी !मालती जल्दी से रसोई से अपने पल्लू से हाथ पोंछती मन ही मन बुदबुदाती फ़ोन उठाने भागी !

''हेलो ...! जी ,मालती से बात कर सकता हूँ ?''.उधर से एक आवाज़ आई !

''मैं मालती ही बोल रही हूँ,''! ''आप कौन? ''मालती ने पूछा !

उधर से एक मद्धम सी आवाज़ उभरी ....''.मालती ,मैं रितेश बोल रहा हूँ ''!

हाथ से रिसीवर छूट गया मालती के ..''..रि...तेश...!''

हेलो..हेलो !''मालती ...क्या

हुआ ?सुनो ,एक बार ध्यान से सुनो मेरी बात ''!

मालती ने कांपते हाथो से रिसीवर उठाया और असमंजस सी ,हैरान ,घबराई आवाज़ में बोली ,''रितेश पर तुम तो ....भैया ने बताया था कि

तुम्हारा एक्सिडेंट हुआ ...और तुम अब इस दुनिया में नहीं हो !''

आवाज़ से भली भांति परिचित थी की रितेश की ! इसलिए मालती को झटका सा लगा उसकी आवाज़ सुनकर इतने लम्बे समय के बाद

!

उधर से फिर एक आवाज़ आई ....''मालती,मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है !ज़रा ध्यान से सुनो !सबसे पहले में तुमसे माफ़ी चाहता हूँ कि मैंने अपने जीवित होने की खबर तुमसे छुपाई या यूं कहो कि अपने मरने की खबर तुम तक पहुंचाई !उसके पीछे भी एक कारण है !पहले दिल थाम के सुनो जो मैं कहने जा रहा हूँ !मेरे साथ साथ

तुम्हारी बेटी भी जिंदा है जिसको तुमने और तुम्हारे भैया ने मुझे सौंपा था !

क्या ...??? क्या ,कहा तुमने ?क्या बोल रहे हो तुम ?हड़बड़ा सी गई मालती ये सुनकर !आँखों से एक विस्मित और ख़ुशी मिश्रित धारा बह

निकली और आवाज़ भर्रा सी गई ..!फिर थोडा आवाज़ को संभालती हुई बोली ..रितेश ,''ये कैसा मजाक कर रहे हो तुम ?''

मालती !,''मज़ाक नहीं है ,हकीकत है ये !इसके पीछे क्या कारण था ,क्यों हुआ ,कैसे हुआ ये सब

मैं बाद में बताऊंगा !अभी सिर्फ इतना

समझो और करो की तुम जल्द से जल्द यहाँ आ जाओ !मेरे पास वक़्त बहुत कम है !मैं तुम्हें तुम्हारी अमानत सौंपना चाहता हूँ !रितेश ने

आगे अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा कि,'' मैं जानता हूँ कि तुम ये बात सुनकर कशमकश में पड़ जाओगी पर स्तिथि ही ऐसी है !मालती ,

जिस परिस्तिथियों से तुम्हें उबार कर तुम्हारे भैया और मैंने मिलकर तुम्हारी ज़िन्दगी को ठहराव

देने का प्रयत्न किया था ,वही विकट

स्तिथि आज फिर तुम्हारे सामने है !''...एक लम्बी सांस खींचते हुए रितेश ने कहा ,''तुम्हारी बेटी आज तक मेरे पास एक अमानत ही सही पर

मेरी बेटी बनकर मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है !आज भी शायद मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में दखल न देता पर मेरी मज़बूरी समझो या तुम्हारी किस्मत जो आज फिर तुम्हें उसी मोड़ पर ले आई है जिस मोड़ पर तुम अपनी बेटी से जुदा हुई थी

!मालती ,दरअसल मुझे कैंसर है ,

और अब मेरे पास वक्त बहुत कम है !मैंने यह बात अभी तक साक्षी को नहीं बताई क्यूंकि वो ये बात सह नहीं पाएगी ,बिखर कर टूट जाएगी !लेकिन ये बात छुपी भी नहीं रह सकती इसलिए इससे पहले कि साक्षी इस हकीकत का सामना करे और बिखर जाए तुम आकर उसे संभाल

लो !मेरा कोई और रिश्तेदार है भी नहीं और मैं किसी को उसकी जिम्मेवारी दे नहीं पाउँगा इसलिए तुम जितनी जल्दी हो सके

आकर उससे संभालो ताकि मन निश्चिंत होकर मर सकूँ !देर मत करना मालती ,क्यूंकि इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा भाई नहीं !मैं इंतज़ार करूँगा ''!ये कहते हुए रितेश ने अपना पता बताकर फ़ोन काट दिया !

मालती ने एक अजीब सी सिहरन महसूस कि अपने बदन में !हाथ पाँव से जैसे सारी शक्ति निकल गई हो! ''हे भगवान् !अब क्या होगा ?मैं कैसे जाऊं ?क्या करू ?''अपने ही सवालों से झूझती मालती उन पलों को टटोलती

यादो में खो गई !

मालती बचपन से ही माँ बाप विहीन होकर अपने बड़े भाई महेंदर की गोद में पली बड़ी !छोटे से कसबे में रहने वाले भाई की छत्र छाया में यूँ तो कोई कमी नहीं आई पर भैया थे बहुत ही पुराने

विचारों और पुरानी परम्पराओं का पालन करने वाले !शायद माता पिता कि परवरिश के आभाव में कसबे में जो बड़े बूढों ने समझाया दिखाया वही उनके बालमन ने अपना लिया और उन्ही लकीरों को अपनाया और अपनी छोटी बहन मालती पर भी लागू करते रहे !खुद भी ज्यादा पढ़ नहीं पाए न ही मालती को इंटर के बाद पढने दिया !जल्द से जल्द मालती के हाथ पीले कर अपने फ़र्ज़ को पूरा कर लेना चाहते थे !इसलिए उनकी दृष्टिगत

जो उपयुक्त परिवार मिला ,उन्होंने मालती की शादी कर दी !मालती के पति थे तो इंजिनियर पर परिवार काफी बड़ा था उनका !तीन भाई थे !दो बड़े भाई विवाहित थे और उनके भी आगे दो दो लड़के !मालती के पति नरेश, माँ के लाडले और उनकी बात पर आँख बंद कर मानने वाले आज्ञाकारी बेटे थे !खुद से अधिक संपन्न घर में बेटी बहन ब्याहने की , माँ बाप या भाइयों की सोच के अनुसार देखा जाए तो मालती को भी अच्छा

संपन्न घर और वर मिला था !भाई,कसबे वालों और रिश्तेदारों ने ,सखियों ने उसे सौभाग्यवती नाम से नवाज़ा और उसकी किस्मत से रश्क हुआ सबको !

मालती विदा होकर घर आई !ससुराल में सबने सर आँखों पर बिठाया !हर नाज़ नखरे पुरे किये पति ने भी पर माँ अनुसार !खुद

नरेश की इतनी भी हिम्मत नहीं होती थी की वो मालती कोकभी अपने आप घुमाने ले जाए या उसके लिए कुछ बाज़ार से लेकर आ जाए कभी कुछ !माँ का आज्ञाकारी बेटा पत्नी का साथ निभाने वाला ,उसको समझने वाला पति न बन पाया !इस बात का एहसास उसे तब हुआ जब मालती को शादी के कुछ महीनों बाद पता चला कि वो माँ बनने वाली है !इस सुखद खबर ने मानो उसकी ज़िन्दगी में चार चाँद लगा दिए !लेकिन वो कहते हैं न कि चाँद में

दाग होता है या चाँद को भी ग्रहण लगता है !मालती की भी खुशनुमा ज़िन्दगी को ग्रहण लग गया ससुराल वालों की पुरानी सोच और दकियानूसी विचारों से !उनके दिलो दिमाग में बुरी तरह समाये बेटे और बेटी के बीच के भेद ने मालती को ख़ुशी के आसमान में उड़ने से पहले ही उसको पंख विहीन कर यतार्थ के धरातल पर पटक दिया !नरेश ने अपनी माँ का फरमान मालती को सुना दिया कि हमारे घर में पीढ़ियों से

बेटो ने ही वंश बेल बढ़ाई है और वो सब भाई इसी परंपरा को बढाने में ही सहयोग दे रहे हैं ऐतैव वो मालती से भी सब बेटे की उम्मीद रखे बैठे हैं !

मालती हतप्रभ सी हो गयी !माना कि वो भी एक छोटे कसबे से आई है और ज्यादा पढ़ी भी नहीं पर इतनी समझ तो उसे भी है कि ये लड़के और लड़की में मतभेद करने का ज़माना अब नहीं रहा !अब लड़किओं को भी वही सम्मान और स्थान मिलने लगा है ! उसने नरेश को भी समझाने की कोशिश

की!''सुनिए ,लड़के और लड़की में आप क्यूं अंतर कर हमारे होने वाले पहले बच्चे की ख़ुशी को कम कर रहे हैं ?और फिर अगर हमारे घर पीढ़ियों से अगर बेटी नहीं भी आई तो अब आने दीजिये !लक्ष्मी का रूप होती हैं बेटियाँ और फिर हमारे घर किस बात की कमी है ?जेठ जी के बेटे भी तो अपने बेटे जैसे ही हैं उन्हें भी एक बहन मिल जाएगी !मैं यह नहीं कहती कि बेटी ही आएगी पर अगर बेटी आये भी तो क्या आपत्ति है ?''

ये

सुनकर नरेश आगबबुला हो उठे और गरजते हुए ऊँगली मालती की तरफ करके धमकाते हुए बोले ,''अपना भाषण अपने पास रखो !मेरे बड़े भाइयों ने दो दो बेटों को जन्म देकर इस परिवार की वंशबेल को आगे बढाया है ! मैं भी यही चाहता हूँ कि मेरे भी दो बेटे हो कम से कम !जहाँ तक बात है कि हमे कैसे पता होगा कि आने वाला पहला बच्चा बेटा है या नहीं तो हम टेस्ट करवाएँगे !बेटा हुआ तो ठीक और बेटी हुई तो गिरा

देंगे !समझी तुम ?अब मुझे और कुछ नहीं सुनना बस !''

मालती नरेश का यह नया और रोद्र रूप देखकर चकित हो गई !मालती की किसी भी दलील का नरेश पर असर होना तो दूर अपितु अब उसे नरेश की इस धमकी से डर लगने लगा था ! वही हुआ जिसका डर था !३ महीने बाद टेस्ट करने पर लड़की होने की रिपोर्ट आई !नरेश ने तो वही उस डॉक्टर से उस कन्या भ्रूण को गिराने की बात लगभग तय ही करली थी कि मालती ने पहले घर आने की जिद्द

कि शायद उसे अभी भी एक आशा थी कि वो नरेश को समझा बुझाकर अपनी पहली बार माँ बनने की ख़ुशी और उस बच्ची को बचाने की कोशिश कर लेगी !पर नरेश और सारा परिवार टस से मस न हुआ ! उल्टा मालती की सास ने यह भी एलान कर दिया कि वो उस बच्ची को अपने मायके में जाकर गिराए क्यूंकि अभी तक उन्हें ऐसा पाप करने की नौबत नहीं आई और वे इस कन्या भ्रूण हत्या के पाप के भागीदार भी नहीं बनना चाहते

!मालती के पैरो तले मानो ज़मीन खिसक गई !सबकी इस बेवकूफी और बचकाना हरकत पर हसी आ गई उसे !मन ही मन बुदबुदाई ,''वाह ,क्या बात है !पाप करना भी है और भागीदार भी नहीं बनना ? सब के सब कितने स्वार्थी हैं?तो मैं ?मैं क्या करू? माँ बनने की ख़ुशी मनाऊं या पेट में लड़की होने का दुःख मनाऊं ?'' क्या मेरी इच्छा का या मेरे अस्तित्व का कोई मोल नहीं ?लड़की को जन्म देना और गिराने का कष्ट तो मेरे शरीर

को झेलना है फिर मुझ से कोई क्यूँ नहीं पूछता कि मुझे क्या चाहिए ?मन ही मन खुद से सवालों और जवाबो की उधेड़बुन में लगी रही और अगली सुबह उसे उसके मायके भेज दिया गया और साफ़ शब्दों में कहा गया कि इस ''पाप'' से मुक्ति पाकर ही आना !

मायके आकर भैया ने डॉक्टर से बात कर के तारीख तय करली !४ दिन बाद

डॉक्टर ने बुलाया था !लेकिन मालती को मानो एक पल का भी चैन नहीं !२ राते उसने करवटें बदल बदल कर निकाल दी कि कैसे बचाए वो अपनी नन्ही सी जान को ?कोई रास्ता सुझाई नहीं दिया तो उसने अपने मन की बात भैया को बताई पर उनका भी जवाब सुनकर वो सकते में आ गई !भैया ने भी समाज की ऊँचनींच का हवाला देकर और ससुराल वालों की बात मानने में ही भलाई है, जैसी बातों से मालती को विश्वस्त करने लगे !साथ ही

अपनी मज़बूरी भी बता दी जिसमें उनकी आर्थिक स्तिथि और उनकी अपनी भी विवाह करने की मंशा निहित थी !इसलिए वो किसी का विरोध का सामना नहीं करना चाहते थे चाहे फिर वो मालती के ही ससुराल वाले हों या समाज वाले हों !एक एक पल मालती को भारी लग रहा था !कोई साथ देने को तैयार नहीं और वो हर लम्हा ईश्वर से अपनी बेटी को ,उस नन्ही परी को बचाने की प्रार्थना और ज़दोज़हद में लगा था

!

ईश्वर कृपा थी या उस परी की किस्मत कि डॉक्टर के पास जाने से एक दिन पहले महेंद्र भैया के दोस्त रितेश घर आये !काफी दिनों बाद आये थे और जब रितेश ने मालती को आया देखा तो वो मालती को देखकर

हैरान हो गए !महेंद्र भैया से पूछने पर उन्हें जब मालती के परेशान होने और उसके नज़रे चुराने का कारण पता चला तो एक बार को चुप हुए !फिर उन्होंने मालती को बुलाकर उससे उसकी इच्छा जानना चाहा !मालती की इच्छा जानकर उन्होंने महेंदर भैया को भी समझया और यह पाप करने से रोकने की कोशिश की !पर भैया अपनी दलीलों से रितेश को समझाने लगे तो मालती महेंदर भैया के पैरो में गिरकर मिन्नत करने

लगी कि वह अपनी बच्ची को इस दुनिया में लाना चाहती है !

''तू पागल हो गई है ? मालती ''!तू जानती है न ऐसा करने से तेरे परिवार वाले तुझे कभी नहीं अपनाएंगे ?'!तू मेरे पास हसी ख़ुशी आये तो ठीक है पर इस तरह से ससुराल वालो के विरोध को झेलकर मायके पढ़ी रहेगी क्या ''?''नहीं, ऐसा नहीं हो सकता !रितेश तुम समझाओ इसे !''

''पर महेंदर हम जो करेंगे वह भी तो गलत है न ''!रितेश ने भी मालती का पक्ष लेते

हुए कहा !

हाँ हाँ ...!तुम तो उसका पक्ष लोगे न क्यूंकि तुम मालती से शादी जो करना चाहते थे !मैंने तुम्हें मना कर दिया इस रिश्ते से तो तुम आज भी मालती को पाना चाहते हो ? अब महेंदर भैया खीज कर रितेश की तरफ मुखातिब होकर बोले!

महेंदर ...! ''ये कैसी बातें कर रहे हो ?कितनी गलत सोच हो गई है तुम्हारी !तुम अपनी बहन की ख़ुशी ना देखकर उल्टा मुझे दोष दे रहे हो !क्या हुआ जो ये रिश्ता न हो सका तो क्या

मैं मालती को दुखी देखना चाहूँगा ?मुझे क्या पता था कि मालती यहाँ आई है और उसे क्या परेशानी है ?मैं इतना गिरा नहीं कि अपने स्वार्थ के लिए मालती का पक्ष लेकर उसकी ज़िन्दगी में खलल पैदा करूँगा ''!

''जो मुझे सही लगा मैंने कहा बाकी तुम्हारी मर्ज़ी और ये तुम भाई बहन का मामला है !तुमने परेशानी बताई तोह मैंने अपनी राय दी !हाँ आज एक बात और कहूंगा कि मेरे दिल में बेशक वो भाव नहीं रहे पर

मैं आज भी तुम्हारे या मालती के काम आ सका तो कहना !मैं पीछे नहीं हटूंगा ''! ये कहकर रितेश वहां से चला गया !

रितेश के मन में उसके लिए चाहत थी और उसने भैया से उसका हाथ माँगा और उसे पता भी नहीं ये जान कर मालती को झटका सा लगा !ऐसा क्या कारण रहा होगा जो भैया ने मना कर दिया इस रिश्ते से ?ये सोच मालती को और भी परेशान करने लगी और उसने कुछ सोचकर रितेश को फ़ोन लगा कर पूछने का साहस जुटा पूछ

ही लिया और कारण जो रितेश ने बताया वह रितेश का आर्थिक रूप से संपन्न न होना था !परन्तु महेंदर भैया अपनी बहन का रिश्ता अपने से ऊँचे घर में करना चाहते थे !

अगली सुबह महेंद्र भैया रितेश के घर गए और उनसे अपने बर्ताव के लिए माफ़ी मांगकर जब घर आये तो उनके चेहरे पर एक चमक थी !महेंदर

भैया ,एक फैसला कर के रितेश को साथ लेकर आये थे !उन्होंने अपना निर्णय सुनाया कि वो अपनी आने वाली भांजी का स्वागत करेंगे चाहे उन्हें इसके लिए कुछ भी विरोध मालती के ससुराल वालों से बेशक झेलना पड़े!पर अब वो अपनी बहन की ख़ुशी को नज़रंदाज़ नहीं करेंगे !मालती की ख़ुशी का मानो ठिकाना ही नहीं था

!

अगले सप्ताह जब मालती के पति नरेश का फ़ोन आया तो महेंदर भैया ने अपना फैसला उनको बता दिया !जब मालती के ससुराल वालों को पता चला तो उन्होंने महेंदर भैया को खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि लड़की के साथ मालती की हमारे घर में कोई जगह नहीं और अगर वो जब भी आना चाहे लड़की को

छोड़कर आ सकती है ! मालती यह सुनकर विचलित सी हो गई !''आखिर कब तक लड़की पैदा करना या होना एक सजा का फरमान बना रहेगा ?''

बच्ची के जन्म तक महेंदर भैया ने मालती का पूरा ख्याल रखा और जब नन्ही सी परी आई तोउसकी देखभाल भी खुद करने लगे ! पर एक दिन अचानक नरेश को सामने आया देख

मालती हैरान हो गई !उसे लगा कि शायद उसके पति और ससुराल वालो को अपनी गलती का एहसास हो गया है इसलिए वो उसे लिवाने आये हैं !माँ के आज्ञाकारी ही सही पर मालती के बिना रह भी नहीं पाते थे नरेश !इतने दिनों कि दूरी उन्हें मालती तक खींच लाई थी शायद !बिना अपनी माँ को बताये नरेश साहस कर के मालती को मिलने आये और महेंदर भैया से माफ़ी मांग कर अपनी इच्छा जताने लगे कि वो मालती को ले जाना

चाहते हैं पर उसकी बेटी को शायद कोई नहीं अपनाएगा !महेंदर भैया एक अजीब कशमकश में फंस गए !फिर से अपनी बहन को उसके ससुराल में सम्मान सहित भेजने की चाह बलवती होने लगी !उनके भांजी को इस संसार में लाने के साहस पर उनके अपने फिर वही समाज के दकियानूसी विचार हावी होने लगे !बचपन से जढ़ जमा चुके उनके पुराने रीति रिवाज़ निहित विचार जब ज्यादा ही हिलोरें मारने लगे! इस उचित अवसर को

हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे ! बहन के प्रति फ़र्ज़ और प्यार ने फिर से एक फैसला करने पर मजबूर कर दिया, महेंद्र भैया को वो भी मालती की राय जाने बिना !

उन्होंने मालती को अपना फैसला सुनाया कि वह अपने ससुराल जाएगी और उसकी बेटी उनके पास रहेगी !मालती के इस बात के प्रतिकार करने पर उन्होंने ख़ुदकुशी की धमकी दी और एवज में मालती को उसकी बेटी की ओर से निश्चिंत रहने का वचन भी दिया

!मालती उनकी जिद्द के आगे हार कर दिल पर भारी पत्थर रख कर चली गई !पर उसका मन हर वक़्त अपनी बेटी से मिलने को बेचैन रहता !माँ की ममता इस कदर हावी हुई कि पति और ससराल वालेअब उसे ताने कसने लगे !हर पल मालती अपनी बच्ची की आवाज़ अपने कानो में सुनती हुई घबराकर जाग जाती !पर उसकी इस हालत पर किसी को तरस न आता !एक दिन उसकी इस हालत से चिढ कर नरेश ने महेंदर भैया को फ़ोन किया !सुनकर उन्होंने

नरेश को आश्वासन दिया कि जल्दी ही वो इस बात का समाधान ढूंढ़ लेंगे !

कुछ दिनों बाद फ़ोन आया कि रितेश और मेह्न्दर भैया मालती की बेटी को लेकर कहीं जा रहे थे और उनकी बस दुर्घटना ग्रस्त होकर किसी गहरी खाई में गिर गई जहां से किसी के बचने की उम्मीद भी नहीं !मालती ये सुनकर गश खाकर गिर पड़ी !भाई और बेटी के खो

जाने के सदमे से अभी उबर भी न पाई थी कि मालूम हुआ कि वो फिरसे माँ बनने वाली है !इस बार किस्मत ने उसका साथ दिया और मालती दो जुड़वाँ बेटों की माँ बन गई !ससुराल में उसकी साख तो बढ़ गई! उसके और उसके बच्चो के नाज़ नखरे उठाने को सब तैयार रहते !मालती धीर धीरे बच्चों की परवरिश में व्यस्त तो हो गई पर अपने गम को पूरी तरह भूल भी नहीं पाई ! एक टीस सी कभी कभी उठती उसके मन में पर फिर

व्यस्त हो जाती अपने उन खयालो को झटका देकर !

आज करीब १५ सालो बाद जब उसे पता चला कि उसकी बेटी जिंदा है तो वो रोये या हसे उमझ नहीं आ रहा था !जब इतने सालो पहले उसकी बेटी को अपनाया नहीं गया तो आज उसके ससुराल वाले कैसे अपनाएंगे ?अब तो दो और सदस्य उसके अपने बेटे भी थे ,वे भी शायद न अपना पाएँगे अपनी बहन को !पीढ़ी दर पीढ़ी घर

में सिर्फ लड़के पैदा होने से सब मर्द सदस्यों में पुरुष होने का दंभ कूट कूटकर भरा था ,बिना इस बात के एहसास के कि उन्हें जन्म देने और उनकी वंश बेल को आगे बढ़ने में एक औरत का ही हाथ है फिर क्यों एक औरत के अस्तित्व को नकारने की मुर्खता कर रहे हैं ? पर अब वो करे तो क्या करे ?आज तो आखिर उसे बात करनी ही पड़ेगी नरेश और बेटों से ! ''हम अपनी किस्मत से भाग नहीं सकते !इश्वर के किसी निर्णय को

बदलने की कोशिश हम कैसे कर सकते हैं ?जिस चीज़ से भागते है किस्मत हमे फिर से वही ला खड़ा करती है !''मालती अपने आप ही बुदबुदाती शाम को अपने बेटे और पति का इंतज़ार करने लगी

!

''नहीं ....ये नहीं हो सकता !तुम जानती हो यह असंभव है ''!नरेश झल्लाकर बोले मालती को !''आज इतने सालों बाद तुम उस आदमी की बात पर विश्वास कर के बेवकूफ मत बनो !''क्या पता

वो अपना कोई पाप तुम्हारे गले डाल रहा हो ? ''

''मेरी ममता को गाली मत दीजिये नरेश आप...''!.''वो आखरी पल गिनता इंसान, बिना किसी स्वार्थ के हमारे ही खून ,हमारी ही बेटी को इतने साल पालता रहा और उसने कभी कुछ माँगा नहीं उसके एवेज़ में न हमसे न भैया से और आप उसे ही गलत ठहरा रहे हैं ?उसने आज तक हमारी बेटी का राज़ इसलिए रखा कि आप अपनी बेटी को अपना नहीं पाए और मैं उस से दूर रह नहीं पा रही थी

''!भैया और उसने हमारी गृहस्थी बचाने के लिए ही हमसे यह राज़ छुपाया ! मत भूलिए की आपने ही महेंदर भैया को मेरी दशा बताकर उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर किया और आज रितेश हमें हमारी बेटी, हमारी अमानत सौंपना चाहता है तो बजाये उसका एहसान मानने के आप उसे ही दोषी ठहरा रहे हो ?''

आज तो एक पिता बनकर उस मासूम के लिए सोचिये जो आपका ही खून है !क्या कसूर है उसका जो आप उसको अभी भी न अपनाकर खुद से

और मुझसे दूर कर रहे हैं ?

''देखो मालती मैं मानता हूँ .''.....बीच में ही नरेश की बात रोककर मालती एक दृढ विश्वास के साथ बोली ,''आप

को मैंने आपके खानदान के दो चिराग दे दिए हैं !अपने जीवन के इतने साल भी दे दिए पर आपने मुझे क्या दिया ?मुझसे मेरे माँ होने का हक छीन लिया !मुझे मेरी

बेटी से ज़बरदस्ती अलग करवा दिया !आपने अपनी माँ के बेटे होने का हक अदा किया मुझसे नाइंसाफी करके भी पर आज मैं भी अपनी माँ होने का फ़र्ज़ पूरा कर अपनी बेटी को उसका हक दूंगी जो वो आज मुझसे मांग रही है !मैं अपनी बेटी के पास जाउंगी !उसे अपना कर,अपने सीने से लगाकर बरसों से अतृप्त ,अधूरी ममता का उधार चूकाउंगी और आज मुझे आप भी नहीं रोक पाओगे !''कहते कहते मालती की आवाज़ भी आंसुओं से

भीग गईं !

''माँ .....'' ''हम भी चलेंगे आपके साथ अपनी बहन को मिलने और लेने ''!कहते हुए मालती के बेटे आगे आये , गले में बाहें डाल कर बोले'' ! दोनों बेटे आश्चर्यचकित होकर खड़े थे अपनी माँ और पिता की बाते सुनकर !मालती की आँखे ख़ुशी और हैरानी से भरी थी !''चलो ,आज इस नई पीढ़ी ने एक

औरत होने के अस्तित्व को पहचाना तो सही !यही से ही सही ,आज से ही सही एक आगाज़ तो हुआ और आगे अंजाम भी अच्छा ही होगा !'' अब हमारी हर पीढ़ी में लडकियो का स्वागत होगा ये एहसास बेटों के चेहरों को पढ़ कर हो गया था मालती को आज जोकि बहन से मिलने कि तैयारिओं में जुटे थे !

कुछ देर तक ख़ामोशी सी छा गई !मालती कमरे से बाहर से कुछ लेन जाने लगी इतने में नरेश ने बड़े बेटे को आवाज़ दी ....साकेत ,''मम्मी को

बोलो कि हम सब साक्षी को लेने जाएँगे ''मेरे भी कपडे डाल लो अटेची में ''

मालती नरेश के पास आई और बोली ,''सोच लो ! वहां जाकर बदल तो नहीं जाओगे ?''

''नहीं ..!,पर क्या साक्षी मुझे अपनाएगी एक पिता के रूप में ''?नरेश ने भीगी आँखों से मालती से पुछा !

''तुमने जितने साल अपनी बेटी को खुद से दूर रख कर उसे सजा दी तो अब कुछ दिन तुम भी तो सजा भुक्तो जब तक तुम्हें वो अपनाये न ! '' मालती ने मुस्कुराकर

नरेश को आश्वासन देते हुए कहा !

मालती अपने परिवार को समेटने की ख़ुशी से सरोबार थी किन्तु दिल ही दिल में रितेश जैसे महान इंसान के इस त्याग और इंसानियत के सामने नतमस्तक भी थी जिसने उसकी खुशियों के लिए उसकी बेटी को पाला,पोसा

जिससे उसका कोई रिश्ता भी नहीं था ! इसके लिए भैया द्वारा रिश्ता ठुकराए जाने के बावजूद भी न कोई रंज था न मलाल और न ही उसने किसी और से शादी की ! दिल ही दिल में ईश्वर को और रितेश जैसे मसीहा को शुक्रिया करते हुए मालती अपनी तैयारियों में जुट गई !आज उसी मसीहा की बदौलत बेटी के लिए ''पाप '' शब्द उसके परिवार की ख़ुशी में विलुप्त सा हो गया था मानो।

!