गिरदान DR. SHYAM BABU SHARMA द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गिरदान

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’आप हमारे देष का कल हैं। चाचा नेहरू अपने सपनों का भारत नौनिहालों में देखते थे। पढ़ाई-लिखाई में किसी तरह की परेषानी आए तो हम हमेषा आापके साथ हैं।’

बराती लाल इण्टर काॅलेज बहुराज मऊ के प्रबंधक लालजी बाल दिवस पर बालकों को अपनी वैचारिकता से अवगत करा रहे थे। लालजी जिंदाबाद-जिंदाबाद और करतल ध्वनि के बीच भाषण बच्चांे के कोमल हृदय को स्पर्ष कर रहा था।

अगले सप्ताह विद्यालय में छात्रवृत्ति के आवेदन पत्र वितरित किये गये जिसमें विद्यार्थी को अपने पिता की माली हालत का उल्लेख करना था तथा व्यवस्थापक महोदय से तसदीक करवानी थी कि वह वजिफा का उचित पात्र है।

फस्र्ट इयर (ग्यारहवीं) का छात्र उज्ज्वल लालजी के वक्तव्यों का मुरीद था और उन्हें अपने आदर्ष के रूप में देखता था। हाई स्कूल परीक्षा परिणाम के योग्यता क्रम में तृतीय स्थान हासिल कर जिले और काॅलेज का नाम रोेषन किया था। पुरस्कार समारोह में मैनेजर साहब ने परिश्रम, आदर्ष, सदाचार और नैतिक मूल्यों पर गंभीर व्याख्यान दिया था।

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’काऽ कइसे?’

’दादा इस फार्म में आापके दस्तखत चाहिए थे। वजीफा बँधने से पढ़ाई में कुछ सहूलियत हो जायेगी। अम्मा-बप्पा अधियाँ-बँटाई, मेहनत-मजूरी कर किताब काॅपी और फीस की व्यवस्था करते हैं।’

पौ फटने के साथ ही उज्ज्वल ने लालजी को प्रणाम कर अर्जी लगाई थी। फारिग हो कुल्ला-दातून कर उन्होंने दरख्वास्त को उलट-पुलटकर देखा। ऐनक चढ़ाई।

’लाव कलम दो .....’

’अरे.... तोहरे हियां तो भईंसी है न?’ अचानक हाथ थम गया था।

’हाँ। दादा।’

’महतारी घिवु बनावति है कि तुम्हार बाप सब दूध डेरी म नापि आवत है?’

’थोड़ा दूध बेच दिया जाता है, थोड़े का घी बनता है।’

’बड़ा चंट है......। पढ़ाई करिहै अऊरु तनख्वाह लेहै। दस्तखत फिरी-फंद। हमको हौलट समझता है ?’ प्रबंधक जी की भाषा बदल गयी थी।

’हमको आपका ही आसरा है, दादा, अभी उसी दिन आप कह रहे थे कि गाढ़े-संकरे मदद लगे तो बताना।’

’भाषण-सभाओं की बात अउर है। जो कहेंगे वैसा करेंगे हम....? उठक बैठक है चार भले लोगांे में। हम भी दुनिया समाज में रहते हैं।’

कथनी-करनी में फरक किए बिना संसार चलता है ? नैतिकता-आदर्ष जड़वत नहीं रह सकते इनमें परिस्थितिजन्य परिवर्तन कर लेना ही मेधा है! नैतिक-अनैतिक का पुनर्पाठ बौद्धिक मठाधीष समय-समय पर करते हैं। सिद्धान्तों के आड़े आने पर उन्हें तोड़-मरोड़ देने वाला ही इल्मदार है!

प्रबंधक महोदय और फार्म को निहारता निरंजन गंभीर, उदात्त सुवाक्यों‐‐‐‐‐‐‐‐‐‐‐ की प्रतिपत्ति की कोषिष करने लगा।