अपहरण Sonu Kasana द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अपहरण

1 . रात का समय था। सुनसान सड़क थी। एक छोटी सी बच्ची का मुंह दबाए एक लम्बा काला कोट पहने , परछाईनुमा आक्रति तेजी से कदम बढाते हुए गांव के बाहर खडी कार में जा समाई । कार धीरे से आगे बढ गई ।

2 . शुबह के समय सब अपने अपने कामों में व्यस्त थे । देवांगना पर किसी का ध्यान तब तक नही गया जब तक उसकी मां उसको चाय के लिए उठाने नही गई । लेकिन उसके बाद सारे घर में कोहराम मच गया । सब एक दूसरे को पूछने लगे की देवांगना को आखरी बार कब देखा था । कुछ समय बाद आस पास खोज शुरु हुई । जब कोई सफलता नही मिली तो देवांगना के घर वालों ने पुलिश स्टेशन का रुख किया ।

3 . पुलिश स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज करते समय पुलिश वाले ने पूछा कि किसी पर शक है क्या ?

घर वालों ने बेबाक उत्तर दिया ।

नही

4 . अब पुलिश वालों की कार्यवाही शुरू हुई | लेकिन भगवान जानता है की पुलिश अपना काम कितनी तनमयता से करती है | कुछ दिनों बाद देवांगना के घर वाले फिर पुलिश के पास पहूंचें । पुलिश वालों का रटा रटाया जवाब मिला – कार्यवाही चल रही है । जैसे ही कोई जानकारी मिलेगी हम आपको सूचना भेज देंगे ।

देवांगना के घर वाले अपने प्रयास में भी कोई कसर नही छोड रहे थे । पर कोई सफलता न मिली ।

5 . देवांगना के अपहरण की खबर यूं तो अगले ही दिन समाचार पत्रों में छप गई थी पर किसी की कोई दिलचस्पी इस खबर में नही थी क्योंकि ऐसी खबरें तो अक्सर आती ही रहती हैं । लेकिन जब थाने में बड़े अधिकारी का फोन आया तो पुलिश की नींद उचटी । आनन फानन में कुछ गिरफ्तारियां हुईं । पूछताछ की गई । पर कोई लाभ न हुआ । हां उन्होंने कुछ और नाम सुझाए । अधिकारी का फोन फिर आ गया कि क्या जानकारी है । अब दारोगा को झूंठ बोलना पड़ा कि केस सुलझा समझो । जबकि अभी केस का और ठौर भी हाथ न था । अब तो ताबड़ तोड़ अभियान चला । खूब गिरफ्तारियां हुई । सभी पर थर्ड़ डिग्री प्रयोग की गई । उनमें से एक ने अपना जूर्म कबूल भी कर लीया । बस दारोगा ने अधिकारी को तुरंत सूचना दी कि केस खुल गया । अपराधी ने अपना जुर्म भी कबूल लिया है। अधिकारी तुरंत थाने पहूंचा । वहां जाकर पूछताछ की – क्या पता चला है ? देवांगना कंहा है ?

दारोगा ने कहा – ये सब तो मैंने नही पूछा ।

अधिकारी ने दारोगा को बहुत झाड़ा – ये है आपका तरीका ? तो क्या पूछा है आपने ?

दारोगा खड़ा – खड़ा सहम गया ।

अधिकारी ने स्वयं जाकर पूछताछ की ।

उन्होने कैदी से पूछा क्या उसने देवांगना का अपहरण किया है ?

कैदी ने हां में सर हिलाया ।

तो इस समय देवांगना कहां है ?

कैदी – जी वो – जी वो – जी वो .....

अधिकारी – सच सच बोलो । वरना ...

कैदी – मैंने उसको मार दिया। कहते – कहते रोने लगा ।

अधिकारी – अच्छा । उम्र क्या थी देवांगना की ?

कैदी – जी यही कोई १६ – १७ साल ।

अधिकारी – इसे तब तक थर्ड़ डिग्री दो जब तक ये सच ना बोलने लगे ।

कैदी ने घबरा कर कहा नही साब नही,,, मैं सब सच बोलता हूं । दरअसल मैंने मार से बचने के वास्ते झूंठ बोला था । इन्होंने कई लोगों के हाथ पैर तोड़ दिये ।

मैंने डर से झूठ हां कह दिया ।

अब अधिकारी दारोगा की और मुड़ा ।

दारोगा थर – थर कांप रहा था । हिम्मत करके बोला – साहब ये झूंठ बोल रहा है ।

चूप रहो – अधिकारी ने फटकार लगाई । पागल नही हूं मैं । सब जानता हूं कौन सच बोल रहा है और कौन झूंठ । अगर अपनी नौकरी बचाना चाहते हो तो ४८ घंटे के अन्दर अन्दर मुझे देवांगना चाहिए वो भी जिंदा । समझ गये ।

जी साहब ।

6 . अब दारोगा बेचैन हो गया । नौकरी का सवाल जो था । उसने २ – ३ सिपाही साथ लिए और पहली बार देवांगना के घर पहुंचा । वहां जाकर घटना की जानकारी ली ।

पहले तो देवांगना के घर वालों ने उसे खूब सुनाई । फिर उसकी सहायता की ।

घर वालों की सहायता से उसे एक सुराग मिला जो उसे अधिकारी पर शक करने पर मजबूर कर रहा था । . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

अब दारोगा फंस गया . . क्या करे . . क्या न करे ।

नौकरी का सवाल था इसलिए हिम्मत करके जांच आगे बढ़ा दी । धीरे – धीरे कडीयाँ जुड़ गई । और दारोगा पहुंच गया अधिकारी के फार्म हाउस । गाँव के एक किसान ने जैसी गाड़ी को उस रात गाँव के बाहर खड़ा देखा था वो भी यंही खड़ी थी । दारोगा ने बड़ी चतुरायी से देवांगना को वंहा से निकाला । और लेकर थाने आ गया । देवांगना के घर वालों और अधिकारी को बुलाया । देवांगना के घर वाले उसे देखकर बड़े खुश हुए ।

अधिकारी भी आ गया । अधिकारी ने कहा शाबास बहुत अच्छे । वैसे कंहा मिली देवांगना ?

दारोगा – जी वो . . . . जी वो . . . . . . . . . . . .

अधिकारी - जी वो . . . . जी वो . . . . . . . . . . . क्या लगा रखा है । बताऔ . . . . . . . . . . . . . .

दारोगा – जी आपके फार्म हाउस पर . . . . . . . . .

अधिकारी – लेकिन वंहा कैसे पहुंची ।

दारोगा – जी . . . आपने ही इसका अपहरण किया था ।

अधिकारी – क्या बकते हो ? क्या सबूत है तुम्हारे पास . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

दारोगा ने सारी पड़ताल और सबूत बता दिए ।

अब अधिकारी ने मुस्कुराते हुए फिर से शाबासी दी ।

दारोगा को कुछ समझ नही आ रहा था ।

अधिकारी ने मुस्कुराते हुए देवांगना से पूछा – बेटा तुम्हें कोई परेशानी तो नही हूई ।

जी नही अंकल – देवांगना ने उत्तर दिया ।

अधिकारी ने मुस्कुराते हुए देवांगना के घर वालों से कहा – आप लोगों को जो परेशानी हुई उसके लिए माफी चाहता हूं । आप जा सकते हो ।

अब तक दारोगा सारा माजरा समझ चुका था ।

उसने अधिकारी से माफी मांगी ।

अधिकारी ने उसे इस शर्त पर माफी १ . वह कार्यवाही में ढ़ील नही बरतेगा ।

२. किसी बेगुनाह से जुर्म नही कबूलवायेगा ।