VIHAAN The Dawn Sonu Kasana द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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VIHAAN The Dawn

1 ,,, विहान

कुछ गाड़ियां आ रही थीं तो कुछ जा रही थीं हर व्यक्ति अपनी धुन में व्यस्त था । कुछ — कुछ समय के अन्तराल पर अलाउंसमेंट हो रहे थे । कुछ व्यक्ति कुर्सियों पर बैठकर तो कुछ खड़े होकर अपनी — अपनी बसों का इंतजार कर रहे थे । बस स्टैंड़ के कॉरिडोर में एक साथ जुड़ी हुई चार कुर्सियों पर दो लगभग अधेड़ उम्र के व्यक्ति तथा एक लगभग 8 साल की बच्ची और उसकी मम्मी बैठे हैं । दौनों व्यक्ति भारतीय राजनीति, क्रिकेट, अर्थ व्यवस्था इत्यादि विषयों पर चर्चा कर रहें हेैं । बच्ची इधर — उधर देखकर खेल रही है । बच्ची की माँ मोबाइल पर बातें कर रही हैं ।

ये दृश्य है भारत के उत्तर प्रदेश के एक कस्बे का ,,,,,

जंहा एक छोटी सी घटना घटती है ।

दौंनो व्यक्ति जो भारतीय राजनीति का रस निकालने पर तुले हैं उनमें से एक ने अपने बैग से एक थैली निकाली जिसमें लगभग दर्जनभर केले हैं ,, वह एक केला अपने साथ वाले व्यक्ति को देता है। एक अपने लिए रखता है,, थैली बंद करके रखते हुए उसकी नजर बच्ची पर पड़ती है तो वह अपना केला उस बच्ची की और बढ़ाता है लेकिन बच्ची मुस्कुराते हुए ना में सर हिलाती है । उसकी मम्मी मोबाइल पर बात करते — करते मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फिराती है । आदमी एक प्रयास के बाद दुसरे आदमी की ओर देखते हुए अपना केला छीलते हुए उसे भी खाने के लिए संकेत करता है । दुसरा आदमी भी धीरे — धीरे से केला छीलने लगता है । दौनाें केला खाने लगते हैं। पहला व्यक्ति खाते — खाते फिर से राजनीति की बातें षुरु कर देता है — अजी अब अगले पांच साल दिल्ली को न जाने क्या — क्या झेलना पड़े । और बिहार में तो कमाल हो गया साहब — लालू को सबसे ज्यादा सीटें । दुसरा आदमी बस हां में सर हिलाकर जवाब देता है । पहले आदमी ने अपना केला समाप्त कर छिलका धीरे से कुर्सी के नीचे डाल दिया और दुसरा केला निकालते हुए दुसरे के सामने भी थैली कर दी लेकिन उसका केला अभी बचा हुआ था तो उसने मना कर दिया । पहला आदमी अपना केला छीलने लगता । औरत अपना फोन काटकर बच्ची को देखती है जो अब वंहा नही है । वो इधर — उधर देखती है तो कुछ दूर जाती हुई बच्ची दिखाई देती है तो वो बच्ची को आवाज देती है — बेटा विहान !

विहान पीछे घूम जाती है उसके हाथ में केले का छिलका है । किसी को पता नही कब विहान कुर्सी के नीचे से छिलका उठा कर वंहा पंहुची । अब सब की निगाह विहान पर जा टिकी । विहान की मम्मी ने छिलका देखकर कहा — बेटा फैंको उसे ,, हाथ गंदे हो जांयेगे । लेकिन विहान पीछे मुड़ी और दो कदम चलकर छिलका डस्टबिन में डाल कर पास के टैब पर हाथ धोकर वापस आई । सब उसको ही देख रहे थे लेकिन माजरा किसी की समझ नही आ रहा था चार लोगों को छोड़ कर । दुसरे आदमी का छिलका अब भी उसके हाथ में है । दौनो एक — दूसरे की ओर देखकर लज्जित हो जाते हैं । दूसरा आदमी अपना छिलका डस्टबिन में डालने जाता है । तो पहला विहान को सॉरी बोलता है ओर अपने छिलके के साथ — साथ आस पास का कुछ कचरा उठाकर डस्टबिन में डालता है । अब बिना बताए सारा माजरा सबकी समझ में आ गया । देखते ही देखते सब अपने आस पास का कचरा उठा कर डस्टबिन में डालने लगे । कुछ ही देर में बस स्टैंड साफ सुथरा हो गया । सब विहान के चारों ओर खड़े हो गये ओर पहले आदमी ने एक बार फिर माफी मांगी और अपनी गलती न दोहराने की कसम खाई । सबने गंदगी न फैलाने की कसम खाई और विहान के लिए तालियां बजायी ।

2 , , , राजा की आत्महत्या

राघव का विवाह पांच साल पहले हुआ था । उसके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था । राघव की अर्धांगनि, , रमा सच्चे मायनो में एक अच्छी जीवन संगनी थी । राघव और रमा दौनो हर अच्छे — बुरे समय में एक दुसरे का साथ देते थे । दौनो के गृहस्थी के दिन अच्छी तरह से बीत रहे थे । राघव के पास जीविका चलाने हेतू पर्याप्त जमीन थी । इस जमीन में राघव जतन — यतन से खूब मेहनत करता था तिस प्रकार घर की आर्थीक स्थिति भी अच्छी ही थी ।

राघव और रमा को यदि कोई दुःख था तो बस संतान षुख का जो उन्हें अभी तक प्राप्त नही हुआ था । दौनो ने हर सम्भव उपचार कराया । जंहा भी कोई बताता वे जरुर जाते । चारों ओर से निराश चुके थे । राघव का एक नियम था वो घर आये अतिथि को भगवान ही समझता था और खूब सेवा सत्कार करता । जो राही पूरे गांव में किसी का महमान नही होता था वो राघव का अतिथि होता था । क्या संत , क्या मौलवी , क्या रंक , क्या राजा , राघव के लिए अतिथि बस भगवान का रूप ही थे । इस सेवा फल भी राघव को मिला । सब उपचार बंद होने के बावजूद रमा को गर्भ ठहरा । राघव ने सारे गांव में मिठाई बटवाई । राघव की खुशी का काई ठिकाना न था । राघव ,, रमा की खूब देखभाल करता । उसे खूब फल और हरी सब्जियां खिलाता । रमा ने समय पर एक बहुत सुन्दर लड़के को जन्म दिया । दौनो ने मंदिर ,, मस्जिद ,, गुरुद्वारे जाकर भगवान का धन्यवाद किया । राघव और रमा बच्चे का हर सम्भव ख्याल रखते । बड़े ही लाड़ प्यार से बच्चे का पालन पोषण होने लगा । राघव और रमा ने प्यार से बच्चे का नाम राजा रखा । राघव और रमा का हर संभव प्रयास रहता कि राजा को कोई दुख छूकर भी न गुजरे । राजा समय के साथ बड़ा होने लगा । राजा का पूरा बचपन और किशैरावस्था किसी राजकुमार के जैसे ही गुजरे । राघव बिना मांगे ही उसकी हर ख्वाहिस पूरी करता था । धीरे — धीरे समय गुजरा और देखते ही देखते राजा एक सुंंदर युवक बन गया । अब तक राजा अपनी इंटर की पढ़ाई पूरी की ,, जो गांव के ही स्कूल में ही पूरी होनी थी । लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए षहर जाना पड़ता था । आगे की पढ़ाई का खर्च ज्यादा था और षहर में रहने का और भी ज्यादा । लेकिन राधव राजा की पढ़ाई और खुश्ी के लिए सब खर्च उठाने को तैयार था । राजा ने अपनी स्तनाक की पढ़ाई के लिए पास के षहर के कॉलेज में प्रवेष पा लिया । राघव ने अपनी खेती में और जी तोड़ मेहनत षुरु कर दी ताकि राजा को आर्थिक तंगी का सामना ना करना पड़े । राजा धीरे — धीरे षहर के रंगो में ढ़लने लगा । उसके नये नये मित्र बनने लगे जिनमे लड़कियां भी थीं । इनमें एक पूजा नाम की लड़की थी । जिसे राजा मित्र से कुछ ज्यादा समझने लगा था । पूजा एक अच्छी लड़की थी । उसके पापा का अच्छा खासा व्यापार था । फिर भी पूजा को अपने अमीर होने का कोई अहम नही था । राजा और पूजा की दोस्ती पक्की हो चुकी थी । लेकिन राजा की और से ये दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी । पूजा को राजा दुसरे मित्रों से इसलिए अधिक पसंद था क्योंकि वह बहुत ही सीधा साधा और गांव का रहने वाला था । पूजा गांव और गा्रमीणों को बहुत पसंद करती थी । लेकिन वह कभी इस बात को राजा के सामने नही कहती थी कभी राजा को इस बात से दुःख हो । वंही राजा इसी अतिरिक्त लगाव को प्यार समझने की भूल कर बैठा था । दुसरी ओर राघव और रमा अपने जान से प्यारे बेटे के लिए बड़े खुश थे और समय — समय पर रुपये भेज देते । लेकिन राजा को उनका प्यार माँ — बाप का पुत्र के लिए प्राकृतिक प्यार से ज्यादा कुछ नही दिखता था । राजा ने अपने दिल की बात अपने कई करीबी मित्रों को बताई तो उन्होंने भी कहा कि उन्हें भी ऐशा लगता है कि पूजा का उसकी और कुछ ज्यादा झुकाव है । और राजा को इस बारे में पूजा से ही बात करनी चाहिए । लेकिन राजा अपने षर्मिले स्वभाव के कारण कई बार ऐसा ना कर पाया । इसी प्रकार दो वर्ष कब बीत गये पता ही न चला । इस बार राजा ने बिलकुल पक्का मन बना लिया था कि इस वर्ष के अंत तक पूजा से अपने मन की बात जरुर कहेगा । पूजा इस बात से बिलकुल बेखबर थी । राजा अपने मन की बात पूजा को बताता इससे पहले ही पूजा ने अपनी षादी का निमंत्रण राजा के हाथ में थमा दिया ।

राजा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे पहाड़ की चौटी से धक्का दे दिया हो । वो चाह कर भी स्वयं को सम्भाल ना पाया । अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के दस दिन बाद पूजा का विवाह था । राजा ने परीक्षा केवल पूजा को देखने के लिए दीं । परीक्षाओं के बाद राजा इस बार घर न गया । राजा ने दस दिन किसी चमत्कार की उम्मीद में षराब के सहारे काटे । पूरा दिन नशे करना और कमरे में पडे़ रहना । वो किसी से बात भी नही करता था । वो अकेला — अकेला यही सोचता था कि उसके वे मित्र जिनसे उसने अपने मन की बात कही थी उसको क्या — क्या ताने देंगे । ऐसी — ऐसी बातें सोच कर और पूजा के बिना न जीने की कसमों को याद करके उसने पूजा के विवाह के दिन आत्महत्या करने का कायर और मुर्खतापूर्ण फैंसला किया । उसने एक बार भी अपने माता — पिता के बारे में नही सोचा जो केवल उसी के लिए जीवन जी रहे थे। ठीक पूजा की षादी वाले दिन राजा ने अपने कमरे की छत के पंखे से लटक कर अपनी कायरता और मुर्खता का परिचय दे दिया । इस बात की खबर जब राघव और रमा लगी तो एक बार तो दौनों पछाड़ खा कर गिर पड़े । जैसे — तैसे गांव वालों ने उन्हें सम्भाला । बहुत देर बाद राघव को थोड़ा — थोड़ा होश आया । फिर भी उसकी इतनी हिम्मत नही थी कि उठ सके और गांव वालों के साथ जाकर राजा का मृत षरीर घर ला सके । गांव के कुछ लोगो ने फैंसला किया कि वे अकेले ही षहर जाकर राजा का षव लेकर आयेंगें । राघव को घर ही रहने दिया जाये । वे राजा का षव ले आये । राजा को देखकर दौनो फिर से बेहोष हो गये । गांव वालों ने ही राजा के अंतिम संस्कार की सब सामंग्री इकट्‌ठा की । राघव को होष तो आ चुका था परन्तु उसके हाथ — पैर सब सुन पड़ चुके थे । गांव वाले राघव को साथ ले जाकर राजा का अंतिम संस्कार कर आये । तीन दिन तक राघव और रमा ने अन्न — जल ग्रहण नही किया । कोई कुछ खिलाता तो दौनों कहते अब जी कर क्या करेंगे । तीन दिन बाद पडौसीयों ने एक दुसरे का वास्ता देकर एक — एक,,, दो — दो निवाले खिलाये । कई बार राघव के मन मे भी राजा के जैसे कायर विचार मन मे आये । लेकिन वो हमेषा रमा के बारे मे सोच कर जीने की हिम्मत जुटा लेता । ऐसे ही विचार रमा के मन में भी आये । गांव वाले सारा दिन इन दौनों के ही बारे में बातें करते रहते हैं । कोई कहता कि इससे अच्छा तो भगवान इन्हें बेऔलाद ही रखता तो अच्छा था । कोई कहता कि ऐसे पुत्र का इतना दुःख क्या करना जिसने दो बरस की जान पहचान के लिए बीस बरस के लाड प्यार का नही सोचा । कोई कहता — ऐसे दुख से तो भगवान दौनों को उठा ले ।

धीरे — धीरे समय बीता ,,, राघव और रमा एक दुसरे का सहारा बनकर जीने लगे । पुजा भी अपनी षदी सुदा जिंदगी में खुष है । उसे षयद याद भी नही कि राजा उसकी षदी में आया भी था या नही । गांव वाले आज भी अपने बेटों को षहर भेजते डरते हैं ।