हर शहर कुछ कहता है …
देश का दिल दिल्ली :ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संगम स्थल
विनय सिंह
दिलवालो की दिल्ली का इतिहास काफी पुराना है, प्राचीन काल से मध्यकाल तक और गुलामी के समय से आज तक दिल्ली इतिहास के पन्नो में दर्ज होती आरही है । दिल्ली पर मौर्य, गुप्त, पाल, सल्तनत वंश के साथ कई वंशों के शासकों ने शासन किया । इतिहासकारो के अनुसार दिल्ली नगर की स्थापना 11वीं शताब्दी में तोमरवंश के शासको द्वारा किया गया था, चंदरबरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। तोमर वंश के बाद पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर शासन किया। 1192 में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान कों पराजित कर दिल्ली पर कब्ज़ा किया । तब से 600 वर्षो तक दिल्ली पर मुसलमान शासको के अन्दर रहा , 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय अंग्रेजों ने दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को सत्ताच्युत करके इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया, इस तरह दिल्ली पर आग्रेजो ने कब्ज़ा कर लिया । फिर 1911 में ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लायी गई, उसी समय आधुनिक दिल्ली का नीव पड़ा, कई आधुनिक भवनों का निर्माण किया गया तथा पुरे दिल्ली कों योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया | आजादी के बाद भारत संघ की राजधानी बनाया गया ।
जिन्होंने भी यहां शासन किया, उन्होंने अपने शासक काल में कई स्मारकों, मन्दिरों और मस्जिदों का निर्माण करवाया। यह ऐतिहासिक शहर सारे धर्मो के लिए काफी माईने रखता है, कई प्राचीन गुरुद्वारा,मंदिरों, मस्जिदों एवं चर्चो के साथ यह शहर ऐतिहासिक होने के साथ-साथ धार्मिक शहर भी है। लाल किला, कुतुब मीनार, हुमांयू और सफदरजंग का मकबरा, पुराना किला, निजामुद्दीन और ख्वाजा बिख्तयार काकी दरगाह, जामा मस्जिद,शीश महल गुरुद्वारा, चांदनी चौक का इलाका यहाँ आने वाले हर पर्यटको का मन मोह लेती है, तों अक्षरधाम मंदिर, हनुमान मन्दिर,कालीबाड़ी मन्दिर,छतरपुर मन्दिर,लोटस टेम्पल,इस्कॉन टेम्पल,लक्ष्मीनारायण बिरला मन्दिर,कैथेड्रल ऑफ सेक्रेड हर्ट,रखबगंज साहिब गुरुद्वारा,नानक पियाओ गुरुद्वारा,बंगला साहिब गुरुद्वारा,फतेहपुरी मस्जिद,कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद एवं राजघाट शन्ति और आस्था का प्रतीक बन पावन-पवित्र स्थलों की तस्वीर मन -मस्तिष्क में उभरती है। यही कारण है कि यहाँ हर साल लाखो देशी एवं विदेशी पर्यटक आते है, शहर का दिलदार करते है और कुछ हसीन पालो कों यादो में कद वापस लौट जाते है, ताकि बदलते समय के साथ सुन्दर होती दिल्ली कों वो दुबरा देखने आ सके ।
राष्ट्रपति भवन - रायसेना पहाड़ी पर स्थित राष्ट्रपति भवन भारत के राष्ट्रपति का राजकीय निवास है। यह भवन दुनिया की विशालतम इमारतों में से एक होने के साथ-साथ उत्कृष्ट वास्तुकला का अदभूत नमूना है। यह भवन चार मंजिला है और इसमे 340 कमरे, 74 बरामदे, 37 सभागृह, क़रीब एक किलोमीटर का गलियारा, 18 सोपान (सीढ़ियाँ) मार्ग और 37 फव्वारे हैं। राष्ट्रपति भवन राजपथ के पश्चिमी सिरे पर स्थित है। आजादी के पहले यह भवन ब्रिटिश वाइ सराय का निवास था। आजादी के बाद यह भवन भारत के प्रथम नागरिक(राष्ट्रपति) का अधिकारिक निवास स्थल बन गया । तब से यह भवन राष्ट्रपति भवन के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसे प्रभावशाली भवन का डिजाइन एडविन लैंडसीर ल्यूटियन तैयार किया था। यह भवन तैयार करने में 17 वर्ष लगे । यह भवन दो रंगों के पत्थरों से निर्मित है। भवन का सबसे अधिक प्रमुख पक्ष इसका गुम्बद है, जो सांची के महान स्तूप के पैटर्न पर बनाया गया है। दिल्ली आने वाले सभी पर्यटक इसके नजदीक से इस भवन का दिलदार करते है।
मुगल गार्डन - राष्ट्रपति भवन के अंदर एक शानदार 13 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ गार्डन है, जिसे मुगल गार्डन कहते है। यह उद्यान चार भागों में बंटा हुआ हैं। यहां कई छोटे-बड़े बगीचे हैं जैसे पर्ल गार्डन, बटरफ्लाई गार्डन और सकरुलर गार्डन, इत्यादी । बटरफ्लाई गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं। यह माना जाता है कि तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है। मुगल उद्यान में अनेक प्रकार के फूल देखे जा सकते हैं जिसमें गुलाब, गेंदा, स्वीट विलियम आदि शामिल हैं। इस बाग में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं। इनके लिये एक अलग भाग बना हुआ है, जिसे औषधि उद्यान कहते हैं। मुगल गार्डन हर वर्ष फरवरी - मार्च (वसंत ऋतु) के महीने में जनता के लिए खोला जाता है। यहां प्रवेश की जानकारी जनता को विभिन्न प्रचार माध्यमों से दी जाती है।
इण्डिया गेट- इण्डिया गेट राजपथ के पूर्वी सिरे पर स्थित है । इण्डिया गेट का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए 90,000 भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है। इस गेट का नींव 1921 में `ड्यूक ऑफ क्नॉट´ के द्वारा रखा गया और 10 वर्षों बाद लार्ड इर्विन के द्वारा इसे देश को समर्पित किया गया । बलुआ पत्थर से निर्मित इस गेट की ऊंचाई 160 फीट है। इस गेट के दीवारों पर शहीद हुए सैनिकों के नाम भी उकेरे गए हैं। गेट के अन्दर एक ज्योति हमेशा जलते रहती है जिसे अमर जवान ज्योति के नाम से भी जाना जाता है। इस अमर जवान ज्योति का निर्माण भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध में शहीद जवानों की याद में बनाया गया। आज इण्डिया गेट भारत के प्रसिद्ध पर्यटक स्मारकों में से एक है। प्रत्येक वर्षों गणतन्त्र दिवस को देश के प्रथम नागरिक द्वारा यही झण्डोत्तोलन किया जाता है।
संसद भवन- संसद भवन देश की वास्तुकला की अमूल्य धरोहर और बेजोड़ मिसाल है। इस भवन का शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑव कनॉट द्वारा संपन्न हुआ था। शिलन्यास के छह साल बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा १८ जनवरी 1927 को इस ऐतिहासिक इमारत का उद्घाटन किया गया था । लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इस भवन के 12 द्वार हैं, जिनमें से पांच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल के खुले बरामदे में हल्के पीले रंग के 27-27 फुट ऊंचे 144 खंभों की कतार है।इसके ऊपर 27.4 मीटर की एक गुम्बद बना हुआ है। गुम्बद की व्यास 173 मीटर है। संसद भवन के ठीक बीचो-बीच तीन चेंबरों, तीन सुंदर प्रांगणों, हरे-भरे उद्यानों तथा फव्वारों से घिरा एक विशाल केंद्रीय कक्ष है। 29.९ मीटर व्यास वाले इस कक्ष की आकृति गोल है। इस विशाल केंद्रीय कक्ष के गुंबद का व्यास 98 फुट और उंचाई 118 फुट है। यह वही केंद्रीय कक्ष है जिसमें 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को अंगरेजों से भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण हुआ था और 9 दिसम्बर 1946 से 26 नवम्बर 1949 तक संविधान सभा की बैठकें हुई थीं। केंद्रीय कक्ष का उपयोग मुख्य रूप से दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए किया जाता है। केंद्रीय कक्ष के तीन ओर लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं। देश भर से चुनकर आने वाले जनता के प्रतिनिधि इसी भवन में बैठकर देश की रणनीति और राजनीति तय करते है। इसी भवन में राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही चलती है।
जन्तर-मन्तर- क्नॉट प्लेस के पास ही स्थित यह स्थल दिल्ली के प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। जन्तर-मन्तर का निर्माण 1724 ई में राजा जय सिंह द्वितीय के द्वारा किया गया था। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जय सिंह ने जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। कहा जाता है कि दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। यहाँ विभिन्न प्रकार के उपकरण ग्रहों की गति नापने के लिए लगाए गए हैं।सम्राट यंत्र यहाँ का सबसे बड़ा यंत्र है| सूर्य की सहायता से सम्राट यंत्र वक़्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है,जबकि यहाँ स्थित राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है। संसद के समीप होने के कारण अधिकतर सामाजिक, राजनीतिक और धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रम इसी स्थल पर आयोजित होते हैं।
लाल किला -लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था। लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा 1639 में बनवाया गया था। लालकिले के निर्माण के बाद कई विकास कार्य स्वयं शाहजहाँ द्वारा जोडे़ गए। विकास के कई बडे़ पहलू औरंगजे़ब एवं अंतिम मुगल शासकों द्वारा किये गये। इस किले का नाम लाल किला लाल बलुआ पत्थर के कारण रखा गया है। बलुआ पत्थर से ही इस किले का चारदीवारी बनाती है। यह दीवार 1.5 मील लम्बी है, और इसकी ऊँचाई 60 फीट नदी किनारे की ओर से, लेकर 110 फीट ऊँची शहर की ओर तक है। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली गेट एवं लाहौर गेट। लालकिला का निर्माण योजना पूर्ण तरीके से किया गया था और बाद के बदलावों में भी मूल योजना को ध्यानं में रखा गया ।
यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला संश्लेषण है। लाहौर गेट इसका मुख्य प्रवेशद्वार है। इसके अन्दर एक लम्बा बाजार है, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित हैं। लाहौर गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कारखाना बना है। यह संगीतज्ञों हेतु बने महल का मुख्य द्वार है।इस गेट के पार एक और खुला मैदान है, जो कि मुलतः दीवाने-ए-आम का प्रांगण हुआ करता था। दीवान-ए-आम। यह जनसाधारण हेतु बना वृहत प्रांगण था। राजगद्दी के पीछे की ओर शाही निजी कक्ष स्थापित हैं। इस क्षेत्र में, पूर्वी छोर पर ऊँचे चबूतरों पर बने गुम्बददार इमारतों की कतार है, जिनसे यमुना नदी का किनारा दिखाई पड़ता है। ये मण्डप एक छोटी नहर से जुडे़ हैं, जिसे नहर-ए-बहिश्त कहते हैं, जो सभी कक्षों के मध्य से जाती है। दक्षिण से तीसरा मण्डप खास महल है। इसमें शाही कक्ष, राजसी शयन-कक्ष, प्रार्थना-कक्ष, एक बरामदा और मुसम्मन बुर्ज बने हैं। इस बुर्ज से बादशाह जनता को दर्शन देते थे। खास महल के पास ही दीवान-ए-खास है, जो राजा का मुक्तहस्त से सुसज्जित निजी सभा कक्ष था। यह सचिवीय एवं मंत्रीमण्डल तथा सभासदों से बैठकों के काम आता था। महल के दो दक्षिणवर्ती प्रासाद महिलाओं हेतु बने हैं, जिन्हें जनाना कहते हैं। पहला मुमताज महल, जो अब संग्रहालय बना हुआ है एवं दूसरा रंग महल, जिसकी छतें सुवर्ण मण्डित नक्काशीकृत है और अन्दर ही संगमर्मर सरोवर बने हैं, जिसमें नहर-ए-बहिश्त से जल आता था । पश्चिम में मोती मस्जिद बनी हुई है। जो औरंगजे़ब की निजी मस्जिद थी। इसके उत्तर में एक वृहत औपचारिक उद्यान है जिसे हयात बख्श बाग कहते हैं। लाल किला दिल्ली शहर का सर्वाधिक प्रख्यात पर्यटन स्थल होने के साथ ही दिल्ली का सबसे बडा़ स्मारक भी है। जहाँ प्रतिवर्ष लाखॉ पर्यटकों को आते है। इसी किला से भारत के प्रधानमंत्री हर सर स्वतंत्रता दिवस के दिन झंडातोलन कर देश की जनता को सम्बोधित करते हैं।
कुतुबमीनार- यह मीनार मेहरौली गांव में स्थित है। 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निमार्ण कार्य प्रारम्भ करवाया। ऐबक इस इमारत की चार मञ्जिल का निर्माण कराना चाहता था परन्तु एक मंजिल के निर्माण के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई । बाद में इसकी शेश मञ्जिलों को निर्माण इल्तुतमिश ने 1231 में करवाया। इल्तुतमिश द्वारा निर्माण करवाने के बाद यह इमारत सात मञ्जिलों की 71.4 मीटर ऊंची थी। इस समय इसकी 4 मंजिलें ही सुरक्षित हैं शेश तीन मंजिलें क्षतिग्रस्त अवस्था में है। कुतुबमीनार का निचला भाग लगभग 15 मीटर है जो ऊपर की ओर जाकर मात्र 3 मीटर रह जाता है। मीनार में कुल 375 सीढ़ियां हैं। कुतुबमीनार का निर्माण ख्वाजा कुतुबुद्दीन बिख्तयार काकी की स्मृति में कराया गया था।
अलाइ मीनार कुतुबमीनार के उत्तर में खड़ी हैं, इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किया गया था। अब इस मीनार की ऊंचाई 25 मीटर ही है। यूनेस्को को भारत की इस सबसे ऊंची पत्थर की मीनार को विश्व विरासत घोषित किया है।
पुराना किला -- यह किला बहुत सारे शासकों का साक्षात् गवाह है। इस किले का निर्माण शेरशाह सूरी ने हुमायूं पर दिल्ली जीत के बाद करवाया था । इसी के पास शेरशाह सूरी का मकबरा भी है। वर्तमान में यहीं पर नौका विहार भी बनाया गया है जो पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर लुभाती है। ऐसा माना जाता है कि पुराना किला महाभारतकालीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर बना हुआ है। पुराना किला मूलतः यमुना नदी के तट पर ही बना था परन्तु उत्तर और पश्चिम दिशाओं के ढलान से प्रतीत होता है कि नदी को जोड़ती हुई एक खाई सुरक्षा के दृष्टि से बनी थी। इस किले की चहर दीवारी लगभग २.४ किलोमीटर लम्बी है और इसके तीन मुख्य दरवाज़े उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में हैं। इनमे से पश्चिमी दरवाज़े का प्रयोग आजकल किले में प्रवेश के लिए किया जाता है। उत्तर की ओर का द्वार “तलाकी दरवाजा” कहलाता है। इस दरवाज़े के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया। यह किला मुग़ल, हिंदू तथा अफघानी वास्तुकला के समन्वय का एक सुंदर नमूना माना जाता है।
हुमायूं का मकबरा- राजधानी दिल्ली में हुमायूं का मकबरा महान मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। अपने ज़माने में यह भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था। कई प्रकार से भव्य लाल और सफेद सेंड स्टोन से बनी यह ऐतिहासिक स्मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम (हाजी बेगम) ने 1565 ई में लगभग 1.5 मिलियन की लागत पर निर्मित कराया था। यहां की ऊंची छल्लेदार दीवारें एक चौकोर उद्यान को चार बड़े वर्गाकार हिस्सों में बांटती हैं, जिनके बीच पानी की नहरें हैं। मुगल राजवंश के अनेक शासकों को यहीं दफनाया गया है। यूनेस्को ने इस भव्य मकबरा को विश्व विरासत घोषित किया है।
सफदरगंज का मकबरा- सफदरगंज मकबरे का निर्माण नाम सजाउदौल्ला के द्वारा 1753-54 ई में करवाया। वह सम्राट अहमद शाह का वजीर था। इस मकबरे का नक्काशी इथोपियन बिलाल महमूद खान ने किया था।
जामा मस्जिद- जामा मिस्जद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण मुगलवंश के शासक शाहजंहा ने करवाया था । इस मस्जिद का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है जिसे बनाने में 5000 से अधिक शिल्पकारों की मदद ली गई थी और कहा जाता है उस समय इसके निर्माण में कुल 10 लाख रुपए खर्च हुआ था । यह मस्जिद लाल किला के ठीक सामने स्थित है ।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद- कुतुब मीनार के पास स्थित इस मस्जिद का निर्माण गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने किया,उसके बाद गुलाम वंश के सभी शासकों ने इसका विस्तार किया। यह मस्जिद हिन्दू और इस्लामिक कला का अनूठा संगम है।यह मिस्जद 212 फुट लम्बे तथा 150 फुट चौड़े समकोणनुमा चबूतरे पर स्थित है।
फतेहपुरी मस्जिद- इस मुग़लकालीन मिस्जद का निर्माण मुगलशासक शाहजंहा की पत्नी बेगम फतेहपुरी के द्वारा 1650 में किया गया था। शुरुआत में यह मस्जिद शाही परिवार के लिए ही बना था लेकिन 1876 ई में पूर्णरूपेण से सभी के लिए खोल दिया गया।
बंगला साहिब गुरुद्वारा- आज जहां गुरुद्वारा है वहां कभी राजा जय सिंह का भव्य महल था । इस गुरुद्वारा के मुख्य कक्ष आधे सोने से और आधे कांस्य से निर्मित है । राजा जय सिंह के इस महल में सिख के 8वें गुरु हरकिशन सिंह, उनके अतिथि के तौर पर रहा करते थे । यह गुरुद्वारा उन्ही के याद में बनाया गया है। यह गुरुद्वारा मध्य दिल्ली में क्नॉट प्लेस के पास स्थित है।
नानक पियाओ गुरुद्वारा- नानक पियाओ गुरुद्वारा सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी के याद में बनाया गया है । कहा जाता है कि यहां गुरुनानक जी 1505 में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान यहां रुका करते थे। यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के लिए भी श्रद्धा का केन्द्र है।
शीशगंज साहिब गुरुद्वारा- शीशगंज गुरुद्वारा के बारे में कहा जाता है कि इसी जगह पर सिख धर्म के 9वें गुरु तेग बहादुर को मुगल शासक औरञ्जेब ने पेड़ के नीचे सरकलम करवा दिया था। उन्हीं के याद में इस जगह पर यह गुरुद्वार बनाया गया है। यह चान्दनी चौक इलाके में लालकिला के पास स्थित है।
रखबगंज साहिब गुरुद्वारा- दिल्ली के पन्त रोड पर पार्लियामेण्ट हाउस और केन्द्रीय सचिवालय के सामने यह गुरुद्वारा स्थित है। कहा जाता है कि जब गुरु तेग बहादुर के सिर कटे शरीर को लखी जी ने अपने घर पर लाकर कर उनका अन्तिम संस्कार करके इसी जगह पर उनके भस्म कलश को स्थापित किया था । इस गुरुद्वारा का निर्माण सन् 1732 में लखी बञ्जरा के द्वारा किया गया था । लखी बञ्जरा द्वारा शहीद सिख गुरु तेग बहादुर के अनुयायी थे ।
अक्षरधाम मन्दिर- यमुना के पावन तट पर 100 एकड़ की विशाल भूखण्ड पर बना स्वामीनारायण अक्षरधाम मन्दिर अपनी स्थापत्य कला एवं सौन्दर्य के लिए न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसे गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड में पुरे विश्व में हिन्दुओं का सबसे बड़ा मन्दिर होने का दर्जा भी प्राप्त है। कहा जाता है कि यदि आप कों इंसान की कला व कल्पना का बेजोड़ नमूना देखना है, तों यहाँ आईये । लाल-गुलाबी तथा सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर में करीबन २३४ नक्काशीदार स्तम्भ, 9 विशाल गुम्बद, 20 शिखर तथा 20000 से भी अधिक तराशी हुई अत्यन्त मनोहर कलाकृतियां हैं। मुख्य मंदिर 141 फीट ऊंचा, 316 फीट चौड़ा तथा 356 फीट लम्बा है। इस मन्दिर का शिलान्यास 8 नवम्बर 2000 को भव्य सांस्कृतिक समारोह के साथ हुआ था और 5 वर्ष की अल्प अवधि में निमार्ण कार्य पूर्ण होने के साथ 6 नवम्बर 2006 को प्रमुख स्वामी महाराज, तत्कालीन भारत के राश्ट्रपति ए.पी.जे कलाम और प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की संयुक्त उपस्थिति में भव्य उद्घाटन समारोह के बाद इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया ।
इस्कॉन टेम्पल- पूरी तरह से भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस मन्दिर का निमार्ण हरे रामा हरे कृष्ण के भक्तों द्वारा 1998 में किया गया। यह मन्दिर ईस्ट ऑफ कैलाश के समाने पहाड़ी पर स्थित है।
लोटस टेम्पल- कमल के आकर का यह मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक है यहां सभी धर्म के लोग आते हैं। लोटस टेम्पल का निर्माण कालकाजी हिल्स पर दिसम्बर 1986 को किया गया।इसे बहाई मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर पूरी तरह सफेद संगमरमर से तैयार है।
छतरपुर मन्दिर- गुड़गांव-मेहरौली मार्ग पर स्थित यह मंदिर कुतुबुमीनार से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दक्षिणी शैली में बनाया यह मंदिर पूरी तरह सफेद संगमरमर से बनाया गया है । मन्दिर में भगवान शिव, विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान राम की मूर्तियां है जो हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है। नवरात्री के समय यहाँ लाखो श्रद्धालु आते है ।
लक्ष्मीनारायण बिरला मन्दिर- इस bhaby मन्दिर का निर्माण 1938 में प्रसिद्ध उद्योगपति बिरला जी के द्वारा किया गया था और महात्मा गान्धी के द्वारा इस मन्दिर का उद्घाटन किया गया था। यहां भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियां हैं जिनकी पूजा की जाती है। जन्माष्टमी के समय यहां भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। यह मंदिर दिल्ली के क्नॉट प्लेस से मात्र 1.5 किलोमीटर पर स्थित है।
कालीबाड़ी मन्दिर- माता काली को समर्पित यह मन्दिर बंगाली समुदाय के लिए काफी महत्त्व रखता है । नवरात्री के समय इस मन्दिर में लाखो श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। यह मंदिर काफी पुराना और प्रसिद्ध है, यह मंदिर मध्य दिल्ली में बिरला मंदिर के पास स्थित है ।
हनुमान मन्दिर-- यह मंदिर मध्य दिल्ली के बाबा खड़क सिंह मार्ग पर स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण राजा जय सिंह के द्वारा किया गया था। यह दिल्ली के सबसे पुराने मन्दिरों में से एक है । मंगलवार के दिन इस मंदिर में हजरों लोग राम भक्त हनुमान का दर्शन करने आते है।
दिगम्बर लाल जैन मन्दिर - दिगम्बर लाल जैन मन्दिर जो जैनियों के लिए प्रमुख श्रद्धा का केन्द्र है। दिगम्बर लाल जैन मन्दिर की स्थापना 1526 ई में हुआ था । इस मंदिर कों लाल मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है । यह मन्दिर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित है ,जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ एवं भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्तियों का दर्शन आप यहाँ कर सकते है । यह मंदिर लाला किला के ठीक सामने स्थित है ।
कैथेड्रल ऑफ सेक्रेड हर्ट- नई दिल्ली गोल डाक खाना के पास अशोक रोड पर स्थित दिल्ली का पवित्र और प्रसिद्ध कैथोलिक चर्चों में से एक है कैथेड्रल ऑफ सेक्रेड हर्ट । 14 एकड़ में फैले इस चर्च का निर्माण 1920 में जजों के एक पैनल के द्वारा किया गया था, जिसमें सर इडविन लुटियन्स शामिल थे और इस चर्च के शिल्पकार फादर लयूक थे।
राजघाट- यह राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी का स्माधि स्थल है। महात्मा गान्धी का अन्तिम संस्कार यहीं पर किया गया था। यह 12 गुण 12 वर्ग फीट क्षेत्रफल में बना हुआ है। गांधी जी का आखिरी शब्द हे राम उनके समाधि पर लिख हुआ हैं। देश-विदेश से आने पर्यटक एवं गाँधी प्रेमी इस स्थल का दर्शन करने अवश्य आते हैं ।
दिल्ली का बाजार - यहाँ आप एशिया के सबसे बड़ी सर्फरा बाजार में खरीदारी कर सकते है, मुग़लकालीन कपड़ा बाज़ार में बढ़िया कपड़ा खरीद सकते है, इसके साथ आप एशिया के सबसे बड़ी बर्तन मार्केट में बर्तन खरीदने खरीद सकते है और बिजली के कई सामान भी खरीद सकते है । रेडीमेड कपड़ो का कई बाजार भी यहाँ है, विश्व बाजार में स्थान रखने वाला भारत के कई प्रमुख बाजार यही है, खान मार्केट, नेहरू प्लेस, करोल बाग मार्केट , सरोजनी नगर मार्केट एवं लाजपत नगर स्थित सेन्ट्रल बाजार सभी का दिल जीत लेता है । दिल्ली आने वाले हर पर्यटक इन बाजारों में खूब खरीदारी करते है ।क्नाट प्लेस का विश्व स्तरीय बाजरा, भूमिगत पालिका बाजार एवं जनपथ मार्केट पर्यटको कों खूब भाता है । अगर आप भी कभी दिल्ली आये तों इन बाजारों में जरुर खरीदारी करे ।
दिल्ली के वातावरण और यहाँ की आबो हवा में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे शब्दों में बयान करना थोडा मुश्किल है, लेकिन यहाँ आने वाले हर किसी कों महसूस होता है । दिल्ली के जन जीवन कों चार-चाँद लगता दिल्ली मेट्रो, इण्डिया गेट की राते, सप्ताहांत पर होटलों और रेस्टूरेंटो में जमा भीड़ यहाँ के पर्यटको से हर कुछ कहती है । ठंढ के रातो में कापने वाली ठंढी, गर्मियों में तपते दिन , बरसात में जलमग्न होते सड़के एवं वसंत में फिर से जावा होती दिल्ली हर किसी कों अपने ओर आकर्षित करती है ।