Sonbhadra ke pahadiyo me jivan books and stories free download online pdf in Hindi

सोनभद्र के पहाड़ियों में जीवन !

सोनभद्र के पहाड़ियों में जीवन !

सोनभद्र, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय राबर्ट्सगंज है। सोन नदी जिले में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। इसकी सहायक नदी रिहन्द जो छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के पठार से निकलती है सोन में जिले के केन्द्र में मिल जाती है। रिहन्द नदी पर बना गोवन्द वल्लभ पंत सागर आंशिक रूप से जिले में और आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में आता है। आदिवासी बहुल के साथ-साथ नक्सल जिला होने के कारण यहां शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। व्यवसाय की दृष्टि से जिले में बालू, पत्थर, मोरंग, कोयला मुख्य हैं।

- विनय सिंह

* भगौलिक स्थिति - 7,388 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। यह 23.52 तथा 25.32 अंश उत्तरी अक्षांश तथा 82.72 एवं 93.33 अंश पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। जिले की सीमा पश्चिम में मध्य प्रदेश, दक्षिण में छत्तीसगढ़, पूर्व में झारखण्ड तथा बिहार एवं उत्तर में उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला है। रार्बट्सगंज जिले का प्रमुख नगर तथा जिला मुख्यालय है। सोन नदी जिले में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। इसकी सहायक नदी रिहन्द जो छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के पठार से निकलती है सोन में जिले के केन्द्र में मिल जाती है। रिहन्द नदी पर बना गोवन्दि वल्लभ पंत सागर आंशिक रूप से जिले में तथा आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में आता है। जिले में दो भौगोलिक क्षेत्र हैं जिनमें से क्षेत्रफल में हर एक लगभग 50 प्रतिशत है। पहला पठार है जो विंध्य पहाड़ियों से कैमूर पहाड़ियों तक होते हुए सोन नदी तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र गंगा घाटी से 400 से 1,100 फिट ऊंचा है। दूसरा भाग सोन नदी के दक्षिण में सोन घाटी है जिसमें सिंगरौली तथा दुध्दी आते हैं। यह अपने प्राकृतिक संसाधनों एवं उपजाऊ भूमि के कारण विख्यात हैं।

* एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील : रिहन्द डैम - 180 वर्गमील में फैला रिहन्द डैम एशिया की मानव निर्मित सबसे बड़ी कृत्रिम झील माना जाता है। इसमें लगभग एक दर्जन प्राकृतिक नालों व नदियों का समावेश है। ताप विद्युत गृहों एवं अन्य कल कारखानों की मशीनों के शीतलन एवं कालोनियों में पेयजल के लिए रिहन्दडैम के पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन कभी ऐश डैम की राख तो कभी कारखानों के कचड़े से इसका पानी प्रदूषित होता रहता है।

# आजादी से पहले :- स्वतंत्रता मिलने के लगभग 10 वर्षों तक यह क्षेत्र (तब मिर्जापुर जिले का भाग) अलग-थलग था तथा यहां यातायात या संचार के कोई साधन नहीं थे।

# आजादी के बाद :- आजादी के बाद यहाँ की स्थिति बदली पहाड़ियों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ तथा क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक स्वर्ग बन गया। यहां पर देश की सबसे बड़ी सीमेन्ट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो), एलुमिनियम एवं रासायनिक इकाइयां स्थित हैं। साथ ही कई सारी सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केन्द्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां, भी स्थापित हुई हैं।

# सोनभद्र की मौत की सड़के :- उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले की सड़क मौत की सड़क बन गई है। सोनभद्र की संपदा को अन्य ज़िलों तक ले जाने वाले भारी वाहन वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग पर लोगों की जान ले रहे हैं। जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट को इसे किलर रोड की संज्ञा देनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने इस हाईवे को किलर रोड नाम दिया है। 2007 से 2009 के बीच यहां हुई सड़क दुर्घटनाओं में 540 लोग मारे गए। 2010 में 420 से अधिक लोग मारे गए। जबकि 2011 और 2012 में इन सडको पर मरने वालो की संख्या 400 से 500 के बीच रही ।

# सोनभद्र की मुख्य समस्या - यहां नक्सालियों द्वारा जितनी मौतें नहीं होती उससे अधिक मौतें सड़क दुर्घटना में होती हैं। सड़क दुर्घटना के मुख्य कारण अवैध लोडिंग, खराब सड़कें और तेज रफ्तार है। सोनभद्र जिले में सबसे अधिक 10,000 मेगावाट बिजली उत्पादन होती है लेकिन कई क्षेत्र ऐसे है जहाँ के लोगो को बहुत कम बिजली मिलती है। सोनभद्र जिले के करीबन 40 गांव ऐसे है जहां बिजली अभी तक नहीं पहुंच पाई है। पेयजल व सिंचाई की भी समस्या यहां गंभीर बनी हुई है। धन्धारौल बांध जो सिंचाई व पेयजल दोनों की पूर्ति करता था को एक सीमेंट फैक्ट्री को दे दिया गया। यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्र अधिक होने से लोग विकलांगता के शिकार भी हो रहे हैं।

खनन माफियो का है दबदबा - खदाने बन चुकी है मौत का कुआ !

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में पत्थर की एक खदान धंस गई, इससे क़रीब एक दर्जन लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए. इस घटना ने एक बार फिर सोनभद्र में दशकों से हो रहे खनन, ज़िला प्रशासन और सरकार की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है. यह निरंकुश प्रशासन और सरकार की अनदेखी का परिणाम है जिसे ग़रीबों के खिला़फ पूंजीपतियों और सामंतवादियों की साज़िश कहा जा सकता है. सोनभद्र के जिस इलाक़े (ओबरा का बिल्ली-मारकुंडी) में यह हादसा हुआ है, वह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज़ से अति संवेदनशील क्षेत्र में आता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी इस इलाक़े को खनन के लिहाज़ से अति संवेदशील क़रार दे चुका है. इसके बाद भी सोनभद्र के इस इलाक़े में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ज़िला प्रशासन और सरकार की शह पर अवैध खनन का गोरखधंधा पिछले एक दशक से चल रहा है.

प्रशासन की इस कारगुज़ारी को लेकर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार आंदोलन भी किया, लेकिन सरकार की निरंकुशता के कारण उनका आंदोलन परवान नहीं चढ़ सका. सामाजिक कार्यकर्ताओं और भुक्तभोगियों द्वारा इस मुद्दे पर राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक विभिन्न नुमाइंदों से लिखित शिकायत की गयी लेकिन लेकिन सरकार के तरफ से यहाँ अवैध खनन को रोकने के लिए कोई कारगर क़दम नहीं उठाया गया. परिणामस्वरुप, यह इलाका अवैध खनन का मुख्य अड्डा बन कर उभरा.

जिसका दूरगामी परिणाम हो रहा है. अवैध खनन के कारण यहाँ की पर्यावरण और यहाँ की मानव समुदाय को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यहां की पत्थर खदानें लोगों का जान ले रही हैं तो यहाँ की क्रशर प्लांटों कई बीमारियों को जन्म दे रही है. टीबी, दमा सरीखे रोगों की चपेट में आकर सोनभद्र के बाशिंदे मौत को गले लगा रहे हैं. जिले में इन बीमारियों के चपेट में आने वालो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ाते जा रही है.

सामाजिक कार्यकताओ का मानना है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय ने तो यहाँ सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए सैकड़ों अवैध क्रशर प्लांटों के संचालन के लिए सहमति-पत्र भी जारी कर दिया है. इसके बाद सोनभद्र में अवैध खनन क्षेत्र का दायरा बढ़कर सुकृत तक पहुंच गया.

स्थानीय लोगो और सामाजिक कार्यकर्ताओ का मनाता है कि यहाँ के खदानों में कई मौत प्रशासन के डिले रवईया के कारण हो रहा है, कई खदाने इसी थी जिसे अगर प्रशासन समय पर बंद करा दिया होता तो कई घटना को टल सकती थी और दर्जनों लोगों की जान बचाई जा सकती थी.

कैमूर वन्य जीव अभयारण्य

कैमूर वन्य जीव अभयारण्य, 1982 में स्थापित किया गया। मिर्जापुर और सोनभद्र जिले के 501 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. अभयारण्य कई झरने, पूर्व ऐतिहासिक गुफाओं, शैल चित्रों और दुर्लभ जीवाश्म की विरासत का खजाना के साथ अपने हरे भरे घने वन में वन्य जीवन की एक विस्तृत विविधता है। यह सर्दियों के पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान है। कैमूर वन्य जीव अभयारण्य राबर्ट्सगंज से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जबकि चुनार से इसकी दुरी 60 किलोमीटर है।

# पानी के अभाव में कैमूर वन्य जीव विहार को उजड़ने के कगार पर पहुंचा !

प्रकृति का प्रकोप जानवरों पर भी भारी पड़ रहा है भीषण गर्मी के कारण उत्तर प्रदेश के कैमूर वन्य जीव विहार में पानी की जबरदस्त किल्लत है जिससे जानवरों के लिए संकट पैदा हो गया है। पानी के अभाव में दुर्लभ प्रजाति के काले मृग संकट में हैं। पानी की कमी और आग की लपटों से कैमूर वन्य जीव अभयारण्य उजड़ने के कगार पर है। अभयारण्य के दुर्लभ काले मृगों सहित अन्य जानवर सांभर, चित्तल आदि के अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। अगर आगे यही हाल रहा तो जानवर मरे पाए जाएंगे।

वन्य जीवों को पेयजल संकट से उबारने के वन विभाग के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। खुद वन विभाग के आला अफसर पेयजल संकट और आने वाले दिनों के संकट से चिन्तित हैं। कैमूर सेंचुरी में जीवों के लिए टैकरों से पानी की सप्लाई की जा रही है।

प्रकृति के प्रकोप, शासन की अनदेखी और कुछ लोगों के लालच ने मिर्जापुर और सोनभद्र जिले के 501 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कैमूर वन्य जीव विहार को उजड़ने के कगार पर पहुंचा दिया है। तेंदुआ पहले ही अभयारण्य से गायब हो चुके है। अब यहां बचे दुर्लभ काले मृगों पर भी शामत आ गई है।

पानी के लिए गांव की ओर रुख करने पर शिकारियों द्वारा मारे जाने का भय, सेंचुरी में रहे तो बेपानी मौत। दोनों ही ओर से जानवरों पर संकट है। इन दिनों कैमूर वन्य जीव विहार के मिर्जापुर रेंज के हलिया और सोनभद्र के महुअरिया में पानी का घोर संकट है। पहाड़ी नदियां सूख गई हैं। वन विभाग द्वारा बनवाए गए चैक डैमों में दरार दिखाई पड़ रही है। झरनों में पानी नहीं निकल रहा है। पानी से बेहाल मृग और अन्य जानवर इधर-उधर भागने को मजबूर हैं । पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमियों का कहना है कि अभी तो स्थिति फिर भी नियंत्रण में है, परन्तु यही हाल रहा तो मई-जून में पशु-पक्षी मरे दिखाई देंगे। पक्षी विशेषज्ञ समय रहते पेयजल की वैकल्पिक व्यवस्था करने की बात करते हैं और कहते हैं कि नहीं तो हजारों दुर्लभ प्रजाति के ये वन्यजीव समाप्त हो जाएंगे।

@ अवैध खनन से जानवरों को खतरा :- यहां अवैध खनन ने वन्य जीवों के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है. मिर्जापुर, सोनभद्र के जंगलों में काले हिरन, मोर और अन्य वन्य जीव जंतुओं की बहुतायत हुआ करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब यहां केवल विस्फोटकों का शोर और धूल के बादल ही हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बिल्ली-मारकुंडी क्षेत्र में निलंबित सूक्ष्म कणों (एसपीएस) 169 से 2757 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मापी है. वहीं आरएसपीएम की मात्रा 95 से 660 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मापी है. मानक के मुताबिक़ एसपीएम और आरएसपीएम का हवा में मानक स्तर क्रमश: दो सौ एवं सौ माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए. खनन वाले इलाक़ों में सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा पांच से 31 और नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 14 से 48 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. प्रदूषण के चपेट में यहां के लोग घातक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. नक्सली संगठनों ने आदिवासियों, मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय को अपना हथियार बनाया. पहले मिर्जापुर, सोनभद्र एवं चंदौली को अपनी चपेट में लिया और आज दर्जन भर से अधिक ज़िले नक्सलवाद से ग्रसित हैं. बच्चे भुखमरी का शिकार हैं. उन्हें दो वक्त का भोजन नसीब नहीं हो पाता है. स्कूल और पढ़ाई दूर की कौड़ी है. हालात अगर अभी भी न सुधारे गए तो जल, जंगल, ज़मीन और जन सबकुछ खत्म हो जाएगा. पर्यावरणीय मानकों को ताक़ पर रखकर होने वाले औद्योगिकीकरण से सोनभद्र की जनता धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रही है. हालात पर शीघ्र ही काबू न पाया गया तो आने वाली नस्लें विकलांग पैदा हो सकती हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के उस तथ्य का भी उल्लेख किया जिसमें तापीय परियोजनाओं से होने वाले मर्करी के कुल उत्सर्जन की 17 फीसदी मात्रा के लिए ज़िले में स्थापित बिजलीघरों को ज़िम्मेदार माना गया है. एक फ्रांसीसी कंपनी के अध्ययन में कहा गया है कि सोनभद्र-सिंगरौली क्षेत्र में स्थापित बिजलीघर प्रत्येक वर्ष 720 किलोग्राम पारे का उत्सर्जन कर रहे हैं. अगर अब भी समाज के बुद्धिजीवी अवैध खनन और मानकों की अनदेखी के खिला़फ आवाज़ नहीं बुलंद कर पाए तो वह दिन दूर नहीं जब सोनभद्र आदिवासियों और दलितों का कब्रगाह बन जाएगा.

सोनभद्र की नदियां

सोनभद्र प्राकृतिक संपन्न जिला है, यहाँ के पहाडियों में कईछोटी बड़ी नदियां बहती है। उत्तर प्रदेश का यह जनपद अपने नदियों के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक तरफ यहाँ के नदियों ने यहाँ की जनजीवन को बदला है, वही इन नदियों के किनारे बसे कल-कारखाने इन नदियों को दिन प्रतिदिन प्रदूषित करते जा रही है।

जिले की छोटी बड़ी सभी नदियां किसी न किसी मानवीय प्रभाव से प्रभावित है। कुछ नदियां असमय सूख गयी है तो कुछ बड़ी नदियों में कल कारखानों के कचड़े के अपमिश्रण से जल प्रदूषण की सीमाओं को पार कर गया है। कभी यहाँ की नदियों पौराणिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्व रखती थी लेकिन आज स्थिति बदली बदली है। अवैध बालू खनन से कहीं नदियों का मूल जल प्रवाह प्रभावित हो रहा है तो कहीं जलीय जीवन को खतरा पैदा हो रहा है। अगर समय रहते यहाँ के नदियों पर ध्यान नही दिया गया तो परिणाम कभी दूरगामी होगा। तो आईये जानते है सोनभद्र की नदियों के बारे में ...

  • सोन नदी : अमर कंटक की पहाड़ियों से निकलने वाली सतत प्रवाही सोन नदी को यदि सोनभद्र की जीवन रेखा कहा जाय तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। भौगोलिक दृष्टि से भी इसका प्रवाह और नदियों से अलग है। इसका प्राचीन नाम स्वर्ण नदी है। लोकोक्ति के अनुसार हिन्दी भाषा विज्ञान में यह नदी नहीं नद है और पुलिंग है। अन्य नदियां स्त्रीलिंग में हैं। मारकण्डेय ऋषि के तप से प्रवाहित होने वाली यह नदी गोठानी के पास रेणु व बिजुल को स्वयं में समाहित कर आगे प्रवाहित होती है। चौरासी परगना कहे जाने वाले इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष हमारी पुरानी सभ्यता के दस्तावेज है। जनपद के यातायात में कभी इस नद का अपना महत्व रहता था। लेकिन आज कल कारखानों के कचड़े से इसका पानी प्रदूषित हो गया है। पन बिजली सयंत्र ओबरा डैम से जब भी पानी छोड़ा जाता है इसके पानी की आमद अचानक बढ़ जाती है। बालू खनन करने वाले सोन नदी पर अस्थाई पुल बनाकर बालू का परिवहन करते रहते हैं। इससे जल प्रवाह तो प्रभावित होता ही है साथ ही जलीय जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है।
  • रेणुका : इस पहाड़ी नदी का उद्गम जनपद की पहाड़ियों के बीच से है। मान्यता है कि जमदग्नि ऋषि का कभी यहां आश्रम हुआ करता था। जमदग्नि ने सह्त्रार्जुन के यहां अपनी धर्म पत्‍‌नी रेणुका के जाने से बेहद नाराज थे। उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को आदेश दिया कि अपने परशु से रेणुका के सिर को धड़ से अलग कर दे। पिता की आज्ञा से भगवान परशुराम ने अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। मान्यता है कि रेणुका के रूधिर से एक सरिता प्रवाहित हो गई जिसे आज लोग रेणुका के नाम से जानते है। गोठानी के पास यह नदी सोननदी में मिल जाती है।
  • बिजुल : प्राकृतिक ब्रजाघात से बने गड्ढे से निकलने वाली नदी को बिजुल के नाम से जाना जाता है। यह पहाड़ी नदी है। इसका संगम सोन नदी में होता है।
  • कनहर : सोने की तरह चमकने वाली रेत के कारण यह नदी आर्थिक दृष्टि से तो उपयोगी है ही साथ ही अपने जल प्रवाह के लिए भी जानी जाती है।
  • बेलन : जनपद के चतरा ब्लाक के करद गांव से निकली बेलन नदी ही इलाहाबाद में टौंस के नाम से जानी जाती है। बरसात के दिनों में अधिक वर्षा होने पर बाढ़ के पानी से व्यापक तबाही होती है।
  • कर्मनाशा : मान्यता के अनुसार त्रिशंकु के लार टपकने से निकली इस नदी को लोग शुभ नहीं मानते। कर्मनाशा की हार शीर्षक से साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है। बरसात के समय इसकी बाढ़ से तटवर्ती गांव बुरी तरह प्रभावित रहते है।
  • बरसाती नदियां : पांडु, घाघर, गोड़तोड़वा जयमुखी समेत अन्य नदियां बरसात में उफनती है। शेष महीनों में सूखी रहती है।
  • एक नजर में सोनभद्र ...

    # सोनभद्र जिला, मूल मिर्जापुर जिले से 4 मार्च 1989 को अलग किया गया था।

    # उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है।

    # उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले की सड़क मौत की सड़क बन गई है।

    # इसे पावर कैपिटल ऑफ इंडिया भी कहते है।

    # कुल क्षेत्रफल - 6,7886 वर्ग किलोमीटर (2,621 वर्ग मील )

    # कुल जनसंख्या - 1,862,612 (2011 के जनगणना के आधार पर )

    # जनसांख्यिकी

    * साक्षरता - 66.18 फीसदी * लिंग अनुपात – 913

    * जनसंख्या घनत्व - 270/वर्ग किलोमीटर (710/वर्ग मील)

    # जंगल सांख्यिकी

    * कुल जंगली क्षेत्रफल – 3,782.86 वर्ग किलोमीटर . * कुल भूमि सम्मान जंगल - 55.73%

    * घने जंगल - 1078 वर्ग. मी. * खुले जंगल - 1369 वर्ग. मी.

    * जंगली क्षेत्र ( प्रतिशत ) - 36.05%

    # प्रमुख राजमार्ग- एनएच 7, एनएच 75

    # एसटीडी कोड:- 05444

    # पिन कोड :- 231208

    सोनभद्र के पहाडियों में है कई दर्शनीय स्थल !

    ओबरा बांध, सोनभद्र जीवाश्म उद्यान, अगोरी खास और कैमूर वन्यजीव अभ्यारण यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल है। सोनभद्र उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिलों में से है। इसका जिला मुख्यालय रॉबर्टसगंज है। इस क्षेत्र में कई इलेक्‍ट्रॉनिक पावर स्टेशन होने के कारण सोनभद्र जिले को पावर कैपिटल ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला मिर्जापुर जिला के उत्तर-पश्चिम, चन्दौली जिला के उत्तर, बिहार राज्य के उत्तर-पूर्व, झारखंड राज्य के पूर्व, छतीसगढ़ राज्य के दक्षिण और मध्य प्रदेश राज्य के पश्चिम से घिरा हुआ है। सोन ओर रिहन्द इस जिले की प्रमुख नदियां है।

    यहाँ के दर्शनीय स्थल इस प्रकार है :-

    ओबरा बांध:- सोनभद्र स्थित ओबरा बांध उत्तर प्रदेश का प्रमुख जल स्रोत है। इनका निर्माण 1974 ई. में किया गया था। ओबरा बांध सोनभद्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। यहां पर एक मिनी हाईड्रो-पावर प्लांट भी स्थित है। इस प्लांट की क्षमता 99 मेगावॉट है। रिहन्‍द नदी के दूसरी ओर स्थित इन बांध का निर्माण किया गया है। इस बांध की लम्बाई लगभग 450 मीटर और ऊंचाई 29 मीटर है। यह बांध ओबरा थर्मल पावर हाऊस को जल आपूर्ति करता है।

    सिंगरूली थर्मल पावर प्लांट:- यह पावर प्लांट 2000 मेगावॉट का है। सिंगरूली थर्मल पावर प्लांट सोनभद्र जिले के शक्तिनगर में स्थित है। यह प्लांट कमर्शियल पावर प्रोडक्शन के रूप में 1982 ई. में शुरू किया गया था। इस प्लांट से पावर उत्पन्न कर उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और जम्मू व कश्मीर को बेच दी जाती है।

    सोनभद्र जीवाश्म उद्यान: - सोनभद्र जीवाश्म उद्यान सोनभद्र जिला में स्थित है। यह उद्यान वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग और रॉबर्टसगंज से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। सोनभद्र जीवाश्म उद्यान करीबन 61 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां जीवाश्म की प्रमुख प्रजातियां शैवाल और स्ट्रोमोटोलिट देखी जा सकती है। इतिहासकारों के अनुसार, माना जाता है कि जीवाश्म लगभग 1,400 मिलियन वर्ष पुराने हैं।

    अगोरी खास:- सोनभद्र जिले के पूर्व स्थित अगोरी खास एक छोटा सा गांव है। यह गांव जिला मुख्यालय रॉबर्टसगंज के दक्षिण से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रिहन्‍द यहां की प्रमुख नदी है। अगोरी खास से कुछ ही दूरी पर स्थित कैमूर वन्यजीव अभ्यारण यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। अगोरी खास से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित चौपान यहां का सबसे निकटतम शहर और रेलवे स्टेशन है।

    कैमूर वन्यजीव अभ्यारण:- कैमूर वन्यजीव अभ्यारण उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर स्थित रॉबर्टसगंज से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस अभ्यारण का कुल क्षेत्रफल 500 वर्ग किलोमीटर है। यहां पशु-पक्षियों जैसे तेंदुआ, ब्लैकबक, चीतल और चिंकारा आदि की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती है। यहां घूमने के लिए सबसे उचित समय नवम्बर से अप्रैल है।

    कैसे जाएं

    वायु मार्ग: यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी है। जिला मुख्यालय से वाराणसी 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, आगरा, खुजराहो, कलकत्ता, मुम्बई, लखनऊ और भुवनेश्‍वर आदि से वाराणसी के लिए नियमित रूप से उड़ान भरी जाती है।

    रेल मार्ग: यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन रॉबर्टसगंज में है। सोनभद्र रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, कानपुर, इलाहाबाद, पठानकोट, जालंधर, अमृतसर, लुधियाना, रांची, लखनऊ और कलकत्ता आदि से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

    सड़क मार्ग: सोनभद्र सड़कमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। लखनऊ, इलाहाबाद, वारणसी, मिर्जापुर आदि से सोनभद्र सड़कमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

    रॉबर्टसगंज (जिला मुख्यालय) से विभिन्न शहरों की दूरी इस प्रकार है :-

    मिर्जापुर: 77 किलोमीटर, वाराणसी: 88 किलोमीटर , ओबरा: 38 किलोमीटर , मरकुंडी: 6 किलोमीटर , शक्तिनगर: 118 किलोमीटर

    कानपुर: 376 किलोमीटर , इलाहाबाद: 170 किलोमीटर , लखनऊ: 390 किलोमीटर

    * घूमने का सही समय: नवम्बर से फरवरी का महीना - इस दौरान आप यहाँ के प्राकृतिक अद्भुत सौन्दर्य का नजारा बखूबी ले सकते है

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