मरुस्थली चिड़िया के सिर्फ तुम संजना तिवारी द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मरुस्थली चिड़िया के सिर्फ तुम

सुबह से ही अस्पताल में मरीजों का तांता लगा हुआ था ।चाय पीना तो छोड़ो लू जाने की भी फुरसत नहीं मिल रही थी । आज जाने कहाँ से ये मरीजों का छत्ता टूटकर भिनभिना रहा था ,हालाँकि किसी भी डाक्टर को मरीज बुरे नहीं लगते लेकिन आज अक्की आने वाली थी और मैं उसे तसल्ली से चेक करना चाहता था । जब से सुबह उसकी माँ से बात हुई थी मैं असमंजस में था ।उसके एक हाथ को दो महीने पहले मगरमच्छ चबा गया है और वो गहरे सदमे में मानों गुम सी हो गयी है, ये सुनकर ही मेरे दिमाग के सारे पाइप टपर-टप-टप करने लगे थे ।

बहुत मामूली सी दिखने वाली अक्की भीतर से इतनी संवेदनशील और संयमी हो सकती है कोई सोच भी नहीं सकता ।कोई क्या !!!! मैं खुद भी तो उसे छ सालों से जानता हूँ पर कभी उसके जीवन को पढ़ नहीं पाया ।

"हाँ" इतना जरुर महसूस किया था की छ साल पहले अक्की ने जब मेरे अस्पताल में ज्वाइन किया था वो बड़ी हंसमुख थी । गोरा रंग, भूरी आँखे , घुंघराले भूरे बाल जो उसके कद से भी लम्बे लगते थे । खुद को बहुत गंभीर और मैच्योर दिखाने के लिए वो कभी कभी जीरो नम्बर का चश्मा पहनती थी और चाइल्ड पेशंट्स के साथ मस्ती करते पाए जाने पर मासूमियत का ऐसा भयंकर नाटक करती थी की नारद भी शर्मा जाए ।

उसे मैंने कई बार आफ़िस आवर के बाद चाइल्ड पेशंट्स के साथ खेलते , उन्हें चूमते और गल बइयां डाले देखा था । अपने कुलीग्स के साथ भी वो ऐसे घुल मिल गयी थी जैसे बरसों पुरानी यारी हो । किसी का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह , कोई गमी हो या सास बहू टॉपिक , उसके पास सब सुलझाने का समय था । हाँ .....मुझे अच्छे से याद है सास बहु टॉपिक को वो नॉनसेंस टॉपिक कहती थी और अपने दिमाग की सारी खुराफंते अपनी बहू दोस्तों को सिखाती थी ।

इन सब चुहल बाजियों के बावजूद भी मैंने कभी किसी से उसकी शिकायत नहीं पाई थी ।जब भी इन्स्पेक्शन के लिए निकलता था वो हमेशा अस्पताल के किसी न किसी हिस्से में शरारती चश्मा लगाए , अपने लम्बे बालो से लगभग पोंछा मारती हुई दिख जाती ।उसका पांच फुटा साइज कभी भी उसके चार फुटे बालों का साथ नहीं देता था ।उसे देख कर कभी-कभी मैं भी भ्रम में पड़ जाता था की क्या इसने सचमुच डाक्टरी पढ़ी है, इसे तो जोकर होना चाहिए था ।

मुझे याद नहीं आता की किसी भी जेन्ट्स डाक्टर ने उसको देख कर आहें भरी हो या उसकी सुन्दरता का बखान किया हो । जेंट्स तो छोड़ो मुझे तो किसी लेडिस डाक्टर का भी कोई कमेन्ट याद नहीं आता लेकिन फिर भी वो सबकी चहेती थी ।

ज्वाइन करने के छ महीने के भीतर ही उसकी शादी हो गयी थी , उसकी एक चचेरी बहन के देवर से शायद बात पक्की हुई थी ।हम सभी उसकी शादी में गए थे । हमारी पांच फुटी अक्की को छ फिटा लड़का मिला था । रंग अक्की से कुछ दबा हुआ था लेकिन मूंछो और बढिया फिजिक के चलते एकदम अनिल कपूर लुक दे रहा था । शादी के कुछ दिनों के अंदर ही अंदर अक्की का रंग रूप गजब का निखर आया था । उसको देख कर लगता था जैसे विश्व विजयनी आ रही हो ......आह !! मैं भी क्या - क्या सोचने लगा ! पर उसका इलाज करने से पहले उसके साथ हुए हादसे के बारे में जानना जरुरी भी तो है । हूँ .......सबसे पहले उसके परिवार के साथ -साथ उस चचेरी बहन से भी मिल कर देखता हूँ ।।

मैंने जल्दी - जल्दी उसके आने के समय से पहले मरीजों को निपटाया और रिपोर्ट्स देखने का काम अपने एक जूनियर पर छोड़ कर उसे अटैंड करने शल्य चिकित्सा विभाग की ओर चल दिया ।

जब मैंने कमरे में प्रवेश किया तो उसकी पीठ मेरी तरफ थी , उसके लम्बे बाल गुथ-गुथकर मोड़े गए लग रहे थे । शरीर पहले से आधा भी नहीं रह गया था और जब ....जब मैंने उसे सामने से देखा .......ओह !! अक्की ये क्या हुआ ? ऐसा कहकर मैं चीखना चाहता था , पैर पटकना चाहता था लेकिन मेरी जुबाँ गले के भीतर ही घुट गयी थी और पैर जमीं में धंस गए थे ।हर डाक्टर का पहला फर्ज है कि वो अपनी भावनाओं पर संयम रखे और मैंने रखा .....उसकी शरारती आँखों के आस -पास काले घेरों ने काला चश्मा बना लिया था । गोरा रंग पीलपिली सफेदी में तब्दील हो चुका था ।वो गली के कोने पर बने उस झोपड़े सी जर-जर दिख रही थी जिसे आंधी से भी ज्यादा एक फूंक में ढह जाने का डर हो । सीधे हाथ का आकार लगभग टेढ़ा हो चुका था , मगरमच्छ ने पूरे मांस को खा लिया था । अब वहां बचा था तो बस हड्डी का डंडा , जिस पर पतली चमड़ी मानो अनेको टांको के साथ अपने दर्द की शिकायत कर रही हो ।उसका वो अंगूठा जिससे वो साथी दोस्तों को " ऐ ssssssssss" करके चिड़ाती थी , इस हादसे में उससे नाता तोड़ चुका था ।

मैंने खुद पर संयम रखते हुए उसे प्यार से गले लगाया ।मेरे करीब आने पर उसकी कंकाली आँखों के पोर भीग गए और फटे सूखे होंठ कांपने लगे । अस्थियों के इस ढेर से मैं क्या पूछता ? उसे तो खुद सहारे की जरूरत थी और यूँ भी मैं उसके ज़ख्म कुरेदना नहीं चाहता था । थोड़ी बहुत यहाँ वहां की बाते करके , हाथ का निरक्षण करके उसे मैंने रूम में शिफ्ट करवा दिया । उसके हाथ की अवस्था सुधारने के लिए कम से कम चार बार प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत थी और मन की सर्जरी के लिए कितने आपरेशन करने पड़ेगे , ये मैं खुद भी नहीं जानता था ।

उसकी माँ के हाथो ही मैंने उसकी चचेरी बहन निशा को बुलवा लिया था । परिवार से बात करके ये पता चला की निशा ही हमेशा से उसकी सबसे करीबी और हमराज़ रही है ।निशा आई तो मैं सीधे उसे साइकेट्रिस्ट वैभव के रूम में ही ले गया । मैं चाहता था की वैभव भी सारी बात जान ले और आज से ही अक्की को देखना शुरू भी कर दे ।

" आओ निशा ये हैं वैभव , हमारे अस्पताल के बेस्ट साइकैट्रिस्ट । तुम जो भी जानती हो शुरू से हमें बताओ । "

" हेल्लो डाक्टर , मैं निशा हूँ , अक्की की चचेरी बहन ही नहीं उसकी बचपन की साथी भी । हम लोगो ने MBBS तक पढाई भी साथ ही की है । मुझे लगता है मैं आपको अक्की के बारे में वहां से बताऊँ , जहाँ से इस प्रेम की जमीन में बीज पड़ा था ?"

"हाँ , निशा जी आप एकदम शुरू से बताइये । अक्की के बारे में जितनी ज्यादा मालूमात होगी उसे हैंडल करने में उतनी ही आसानी होगी । वैसे आप किस प्रेम के बारे में बता रही है ?" वैभव ने निशा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा

" वैभव जी , बात तब की है जब हम ग्यारहवीं में पढ़ रहे थे ..........................................

" अरे यार जल्दी चल रे , कहीं क्लास में कोई पहुँच ना जाए , जल्दीईईईई......." अक्की दौड़ते हुए बोली

" हाँ , दौड़ तो रही हूँ । एक तो ये दिसम्बर की सर्दी जान ले रही है और ऊपर से ये साला गुमनाम आशिक़ " पैंथर " । निशा ने चिड़ते हुए कहा

" अरे मेरी जान , क्या अपनी अक्की के लिए इतना नहीं करेगी ? प्लीज ...पर ये तो सच कहा तूने " है एकदम फट्टू " । अक्की ने हँसते हुए कहा

" हा हा हा पर यार क्या लिखता है ! है एकदम तेरा पक्का आशिक ! , डी डी एल जे के शाहरुख़ खान टाइप का "

" धत्.....ऐंवें ही....जानती भी है कल क्या हुआ ? "

" क्या ........?"

"कल मैं रिसेस टाइम में ग्राउंड गयी थी और वहाँ देखा की जगह -जगह दीवारों पर ब्लैक स्केच पैन से लिखा है " आई लव यू अक्की , आई लव यू अक्की !! कहीं दिल बना कर तो कहीं गुलाब और नीचे लिखा है " पैंथर"

"हे भगवान् अक्की , अब क्या होगा । अब तक तो क्लास रूम में - डेस्क पर - ब्लैक बोर्ड पर - दीवारों पर चौक से लिख रहा था जिसे हम साफ़ कर लेते हैं लेकिन अब इस स्केच पैन को कैसे साफ़ करेंगे ???? निशा घबराहट से मुहं बिचकाने लगी

" यार मैं भी कल यही सोच - सोच कर परेशान होती रही । किसी भी लेक्चर में मन नही लग रहा था ,फिर एक आइडिया आया की स्कूल में तो मेरा नाम आकांक्षा है और अक्की नाम किसी को मालूम नहीं है । क्लास से साफ़ करना इसलिए जरुरी है क्यूंकि रोज एक ही नाम के लैटर देखकर इन्कयूआरी होगी और फिर सबको पता चल जाएगा की ये झोल मेरे कारण चल रहा है "

" यस यू आर राइट ... इसी सोच पर तो वो घोचूं तुझ पर मरे जा रहा है लेकिन यार ...ये टीचर्स भी तो कभी जवान थी और क्लास में कौन है जिसका बायफ्रैंड नहीं है । पर यहाँ लोचा इस बात का है की हम उसे जानते ही नहीं है जो तुझ पर मर मिटा है ! " निशा आहें भरने का नाटक करती हुई बोली

" सच , जी करता है की मिल जाए तो उस उल्लू के पट्ठे के मारूं सौ और गिनू एक "

" अच्छा जी , क्या मारोगी ? पप्पी-झप्पी या...." निशा आँख मारते हुए बोली और जब दोनो दौड़ती हुईं क्लास रूम पहुंची तो.......

"अरे निधि तू ... इतनी जल्दी ?" अक्की सकपका गयी

" वो मेरी बस आज जल्दी आ गयी थी लेकिन तुम दोनों इस समय ... और ये देखो क्लास की हालत और ये लैटर......

* मेरी चीनी से मीठी अक्की

तुम मेरे दिल के मरुस्थल की प्यारी सी चिड़िया हो

जब भी तुम्हारी चहचहाट सुनता हूँ

मरु में ढेर सारे गुलाबी फूल खिल जाते हैं

और प्रेम रस बरसाते हैं

तुम्हारी भूरी बड़ी आँखे

जैसे मेरे प्रेम की तपस्या का फल है

मुझे उस दिन का इन्तजार है जब

इन भूरी आँखों में मैं नजर आऊं

और मेरी आँखों में बसी हो "सिर्फ तुम" "सिर्फ तुम"

" हाउ रोमांटिक ना ....." निधि जोर से चिल्लाई

" अरे ये रोमांटिक नहीं मेरी मौत का सामान है । चल ....पहले क्लास साफ करवा फिर तुझे सब बताउंगी । " अक्की ने निधि का मुहँ भीचते हुए कहा

आज उन दोनों ने किसी तरह निधि को तो मना लिया था लेकिन अब पैंथर का पता लगाना जरुरी हो गया था । इतना तो दोनो को पक्का लग रहा था की ये जो कोई भी है - करीबी है , लेकिन कौन ?? आखिर कौन ???

अब उन दोनों की नजरे हर करीबी लड़के को शक से देखती और जासूसी चलती रहती । झूठ मूठ होमवर्क के बहाने लड़कों की कापियां लेकर राइटिंग मिलाई जाती , दोनों स्कूल के लड़कों का समय और आदतें वॉच करतीं लेकिन कुछ हाथ नही आता । लैटर बढ़ते जाते , मोहब्बत फैलती जाती ...तभी एक दिन ......

" सूरज भईया और उनका दोस्त अंजन लगभग रोज शाम को गिटार प्रैक्टिस करते थे । भईया घर पर नहीं थे और अंजन उनका इन्तजार कर रहा था ।अक्की वहां से गुजरी तो उसकी नजर अंजन के गिटार बैग पर गयी , उस पर ठीक वैसे ही पैंथर लिखा था जैसे लेटर्स में लिखा होता था ।उसने अंजन को बहाने से भईया के कमरे में बिठा दिया ,फिर उसका गिटार बैग और स्कूल बैग चैक किया । अक्की ये देख कर स्तब्ध रह गयी की बैग उसकी तस्वीरों से भरा था । लगभग साल भर से हुए स्कूल के हर समारोह की फोटोज थी ,

"अक्की इनाम लेते हुए- अक्की रंगोली बनाते हुए - अक्की एन सी सी के बच्चों को कमांड करते हुए - अक्की नोटिस बोर्ड लिखते हुए - और भी जाने कब - कब की.....लेकिन अक्की अब भी पूरी तरह आश्वस्त होना चाहती थी इसलिए वो रूम में गयी ..

" आप पानी लेंगे पैंथर ??"

" नहीं नहीं बस सूरज का वेट करूँगा " अंजन ने झटके से जवाब दिया और फिर कुछ क्षण रूककर अक्की की ओर देखा ..... उसका राज खुल गया था ......दोनों की नजरे पहली बार एक दूसरे से मिली और फिर जमीन पर मानो चव्वनी ढूंढने लगीं ।कुछ देर हवा में शान्ति छाई रही लेकिन दिलों में उफ़ान ज़ोरो पर था

"ये सब क्या है अंजन ? आप जानते है पिछले एक साल से मैं कितनी परेशान हो रही हूँ , आपने......" इससे पहले की अक्की कुछ बोलती अंजन बोल पड़ा ।

" सॉरी अक्की !! मैं तुमसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था और तुम तक अपनी फिलिंग्स पहुँचाना भी चाहता था । मैं ...मैं तुमसे बहुत प्यार .....क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?"एक झटके से अंजन सब बोल गया

ये शब्द सुनते ही अक्की वहाँ से भाग खड़ी हुई और सीधा अपने कमरे में ही जाकर रुकी ।मारे शर्म के उसने अपना चेहरा अपनी ही हथेलियों में छिपा लिया । कानों में बार-बार गूंज रहा था **अक्की आई लव यू , अक्की आई लव यू** । दिल राजधानी के ट्रैक पर दौड़ रहा था और हाथ पाँव पसीने पसीने हो गए थे ।

उसे यकीन नहीं हो रहा था ,ट्वेल्थ के लड़कों में सबसे होनहार, हैंडसम अंजन उसे चाहता है । अंजन इतना ब्रिलियंट था की कौन सी किताब में कौन सा वाक्य किस पेज पर है तुरंत बता सकता था । ज्यादातर लडकियां उसकी दीवानी थी और उसकी फिजिक को देखकर आहें भरती थीं और वही अंजन मुझ पर मर मिटा है । हे राम , अब वो कैसे अंजन से नजरे मिलाएगी ?

अब अंजन उससे बात करने के लिए उसके पीछे-पीछे घूमता था और वो मारे शर्म के यहाँ वहाँ छिपती फिरती थी । स्कूल में सभी लड़के - लड़कियों को उनके बारे में पता चल गया था और सहेलियां अक्की को छेड़ती रहती थी ,

" अरे हममें क्या घुन लगा है वो हमें नहीं देखता और तू उसे "

"आए हाए मरुस्थल की चिड़िया जरा चूँ चूँ तो कर दो " "यार कब तक उसे धक्के खिलवाएगी ?

अब बात कर भी ले" "उफ़्फ़ आशिक हो तो अंजन जैसा हाय मर जांवा चीनी (अक्की) खाके "और भी जाने क्या-क्या....

अक्की दिन भर तो अंजन से छिपती फिरती लेकिन रात में उसके सामीप्य के सपने पिरोती थी । कभी उसके और अपने दाम्पत्य जीवन के चित्र उकेरती और उन में प्यार के रंग भरती तो कभी डायरी में सैकड़ों बार अंजन - अंजन की माला छापती ।

अंजन का भी हाल अब पहले से ज्यादा खस्ता था । प्रेम का इजहार अब भी जारी था लेकिन तरीका बदल गया था । अब चिट्टी लेकर निशा कबूतरी जाने लगी और जवाबी पर्ची भी लाने लगी । अंजन कभी लिखता

" कल तुम्हारी छोटी ननद के लिए लहंगा खरीदने गए थे , जानती हो अक्की लहंगा देखकर मैं सोच रहा था अगर इसको तुम पहनती तो परी लगती "

कभी पत्र में खाने पीने की हिदायतें भरी होती तो कभी मैथ्स के शोर्ट कट ।

अंजन के सारे दोस्त अक्की के पास से गुजरते तो " नमस्ते भाभी " कहकर जाते ।खुद के लिए भाभी सुनकर अक्की रोमांच से भर जाती और सपनो में गोते खाती फिरती ।

आखिर एक दिन निशा ने धोखे से दोनों को एक रेस्टोरेंट में मिलवा ही दिया । अक्की अब भाग भी नहीं सकती थी, मन को मुट्ठी में दबाए वो अंजन के सामने बैठ गयी ।

" अक्की कैसी हो , मेरी ओर देखोगी नहीं ?"

" अ.... देख रही हूँ । आप कहिये ना !"अक्की का दम फूलने लगा था

" सुनो आई लव यू , मुझसे शादी करोगी ?"अंजन ने सीधे सवाल दागा

"अभी ??????"

" नहीं पगली , पहले हम अपना MBBS पूरा करेंगे , फिर MBBS के फस्ट इयर में हम घर वालो को बता देंगे । अब तुम मन लगाकर बोर्ड की तैयारी करो । हम बोर्ड के बाद मिलेंगे और हाँ अब लैटर भी बोर्ड के बाद लिखूंगा । यही सब बताने के लिये आज तुम्हें यूँ बुलाया है ।मेरे भईया कहते हैं की हमें बिना समय गवाएँ जल्द से जल्द डाक्टर बनना चाहिए ताकि घर वाले मान जाएं है और हम एक हो सकें ।।

अंजन और अक्की ने अपना वादा निभाया और MBBS के फर्स्ट इयर में दोनों की सगाई हो गयी । नौकरी लगने के छ महीने बाद दोनों की शादी भी हो गयी ।अब एक तरफ प्यार की गहरी , ठण्डी बयार बह रही थी तो एक तरफ अक्की की नई परीक्षा चल रही थी । अक्की शाकाहारी थी और अंजन का परिवार माँसाहारी लेकिन अक्की के प्यार में इन सब की जगह नहीं थी उसने मन से माँस खाना और बनाना सीखा ।जैन परिवार से होने के बावजूद उसने अंजन के बंगाली संस्कारों को पूरी तरह अपनाया ।

मांग में हाथ भर सिंदूर भरने से लेकर दुर्गा पूजा जैसे कठिन व्रत रखने तक । उसकी सास - ननदे उससे कभी खुश ना रहती लेकिन अपने अंजन के लिए उसे सब मंजूर था ।उसके आँखों के रेटिना से लेकर दिल तक अंजन खुदा हुआ था और अंजन के भी मस्तिष्क की एक -एक ग्रंथि अक्की हार्मोंस से चलती थी । अंजन परिवार के हर बुरे बर्ताव के समय अक्की के साथ रहा और अक्की को कभी टूटने नहीं दिया । उसने कभी अक्की के खिलाफ अपशब्दों को बर्दाश्त नहीं किया और विद्रोह से नहीं बल्कि अन्य रास्तों से अक्की को मन से अपनाने का दवाब बनाया । धीरे -धीरे अक्की का संयम और अंजन का साथ काम करने लगा और परिवार ने अक्की को दिल से अपनाना शुरू कर दिया ।

अक्की ने जॉब भी छोड़ दी क्योंकि उसकी सास नहीं चाहती थी। ये पहली और आखिर बार था जब उन दोनो में तकरार हुआ । अक्की के जॉब छोड़ने से अंजन बहुत आहत हुआ और उसने 4-5 दिन ना अक्की से बात की ना अपनी माँ से । इतना सब सामंजस्य बैठाने के बाद दोनों का प्रेम और भी परवान चढ़ने लगा । शादी के झंझटो के चलते दोनों अब तक कहीं ठीक से घूमने नहीं जा सके थे इसलिए सुंदर वन जाने का प्रोग्राम बना ।

मगर ईश्वर को इस जोड़े की अभी और परीक्षाएँ लेनी थी । शिव गोरा की तरह बार- बार कठिन प्रेम तपस्या बाकी थी । सुंदर वन में झील के पास घूमते हुए अक्की सावधानी से चूक गयी और मगरमच्छ ने उसका हाथ पकड़ लिया , अंजन पूरी ताकत से उस पानी के राक्षस से भीड़ गया । मगरमच्छ के मुहँ से हाथ निकालने की जद्दों जहद में अक्की तो बच गयी लेकिन मगरमच्छ ने अंजन को पानी के भीतर खींच लिया । अक्की की आँखों के सामने ही उसकी मोहब्बत चीथड़े-चीथड़े हो गयी । वो चौड़ा सीना जिस पर वो सिर रखकर अपनी क़िस्मत पर इतराती थी , अंजर पंजर हो लहू में भीगा था । अक्की ने कब होश खोये और कब उसे बचाया गया उसे कुछ नहीं पता चला । जब आँख खुली तो वो अस्पताल में थी और अंजन को याद करते ही कोमा में चली गयी । पचीस दिन कोमा में रहने के बाद होश तो आ गया लेकिन मन मस्तिष्क जैसे शून्य हो गया ।

" बस ...बस डाक्टर अब और कुछ नहीं बता पाउंगी , जो कुछ भी है आपके सामने है " निशा हिचकियों से रोने लगी ।

मैं स्तब्ध होकर इस हादसे के बारे में सोचता रहा । ऐसे सच्चे, अदभुत , निश्छल प्रेम का इतना भयानक अंत.....ऐसे प्रेमी जोड़े मुश्किल से ही जन्म लेते है । लेकिन अब जो था उसे हमें बचाना था ।

शाम को वैभव अक्की से मिलने गया ।वो बैड पर बैठी थी और पलकों को नीचे किये किसी विचार में खोई सी लग रही थी । कौन आया - कौन गया , उसे इससे कोई सरोकार नही था ।कभी चेहरे पर सुकून के भाव आते थे तो कभी घबराहट के , ना उसे खाने की सुध थी और ना अपनों की ।

हेल्लो आकांक्षा , मैं वैभव " अभिवादन के लिए बढ़े वैभव के हाथ को अक्की ने देखा भी नही , वो यूँ ही स्थिर खोई रही

कैसा महसूस हो रहा है तुम्हें यहाँ ? यहाँ तो लगभग सभी डाक्टर्स तुम्हारे दोस्त हैं , है ना ?

...................................

ओके ..,अच्छा ये बताओ अब ससुराल में सब कैसे हैं ?

...............................

तुम्हें बच्चे बहुत अच्छे लगते है न , चलना चाहोगी यहाँ चाइल्ड वार्ड में ?

......................

देखो आकांक्षा मैं भी तुम्हारे दोस्त जैसा हूँ ,हम लोग एक ही फील्ड से हैं ।एक दूसरे से अपनी मन की बात शेयर कर सकते हैं । हूँ ... मैं अंजन का भी दोस्त था , शायद उसने कभी बताया हो " वैभव ने झूठ के सहारे बात को बढ़ाना चाहा

.....................

अचानक अक्की की माँ जोर जोर से रोने लगी और बड़बड़ाने लगीं " क्या होगा इसका , मैं यहां इसलिये लाई की सभी दोस्त है इसके यहाँ , शायद कुछ बोले ... लेकिन .....

पेशंस रखिये और पेशंट के सामने रोइये नही , उसको हिम्मत दीजिये , मैं पिछली दवाइयाँ चेक करके प्रिस्क्रिप्शन नर्स को दे देता हूँ । फर्क आएगा , समय लगता है ऐसे केसेस में ।

वैभव बाहर आ गया और उसने एंटी डिप्रेशन की दवाओं में कुछ चेंजेस भी किये ।

पंद्रह दिन बीत गए , रोज वैभव जाता लेकिन अक्की एक भी शब्द नही बोलती ।

आज मैं भी वैभव के साथ गया ।अक्की दीवार के किनारे - किनारे बड़ा सम्भल कर चल रही थी ,हम जाकर बैठ गए लेकिन उसे कोई खबर नही हुई । उसकी माँ की पीलियाई रिसती आँखों से हमारी आँखे मिली और फिर उन्होंने अपनी आँखों को झुका लिया । उनकी मुठ्ठियाँ कुर्सी के हत्थे पर कसी जा रही थीं , जब वो खुद को ना रोक पाई तो नजरें दुआ में ऊपर उठीं और बरसात के बोझ से नीचे झुक गयीं । ना जाने उस लाचार दुआ ने खुदा को झिंझोड़ा भी या नही

आकांक्षा , वहाँ क्या कर रही हो ? पहले की तरह कोई नई शरारत.....हूँ

.....................

मैं बात करता रहा , लेकिन कोई जवाब नही आया । वैभव की कोशिश भी काम नही कर रही थी , मुझे जाने क्या सूझा की मैं पूछ बैठा

आकांक्षा तुम्हें पैंथर याद है ?....

...........लेकिन खामोशी टूटी नही .....फिर जोर से टूटी... अक्की बेतहाशा चिल्लाने लगी ..

तुमने कहा था मुझे सम्भल कर चलना - संभल कर चलना , देखो मैं कितनी देर से संभल कर चल रही हूँ , फिर तुम बीच में क्यों आए ... क्यों आए... बोलो ... मेरी गलती थी ... तुम क्यों आए ...

वो हाथ पाँव पटकने और चिल्लाने लगी , मुंह से थूक गिरता रहा , डंडे सा विक्षिप्त हाथ हवा में बल्ली सा उठता रहा ...हम लोगो ने जल्द उसे कंट्रोल किया । नर्स से वैभव ने उसे इंजेक्शन दिलवाया और फिर वो धीरे - धीरे क्यों क्यों क्यों करती हुई गिंगयाने लगी । बेहोशी उसपर असर करने लगी , लेकिन डंडे सा हाथ पूरी बेहोशी आ जाने तक रह - रहकर उठता गिरता रहा , होंठ फड़ फड़ाते रहे

वैभव ने दवाओं में कुछ और फेर बदल किये ।

वैभव क्या लगता है तुम्हें ?

रिस्पांस नही कर रही , जीना नही चाहती । दिमाग और दिल दोनों ही दवाओं और दुआओं पर रिस्पांस नही दे रहे । दवाओं के साइड इफेक्ट भी आ रहे हैं ।खाना लगभग छोड़ चुकी है ,उसे लिक्विड पर कर दो ।नाक से फूड पाइप लगवा दो , वरना ये दवाएं और भी तेजी से नुक्सान देंगी ।

रात में ही उसे फूड पाइप लगाया गया लेकिन उसने खींच कर निकाल दिया , हमने फिर लगाया , उसने फिर निकाल दिया ।

तीन चार दिन यही होता रहा , वो मौका पाते ही फूड पाइप खींच देती , ड्रिप निकाल देती , लेकिन शांत रहती , एक शब्द नही बोलती

फिर मजबूरन हम लोग उसके हाथ बांधने लगे तो वो गुस्से से अपने लंबे बाल नोंच देती । बैड पर यहाँ वहां सर मार देती ।

खाना पूरी तरह ना जाने से स्टूल पास होने में भी दिक्कतें होने लगीं ।हर दूसरे दिन एनिमा दिया जाने लगा । वो बिस्तर पर ही ध्यान मगन यूरिन पास कर देती , जिससे यूरीन इंफेक्शन भी होने लगा । कुछ दिन डाइपर्स इस्तेमाल करने के बाद आखिर उसे कैथीटर भी लगा दिया गया ।

फूड पाइप के बार बार खींचे जाने के कारण नाक और गला अंदर से छिल गए थे इसलिये उसे गले में छेद करके लगाया गया ।एक गायनी भी रोज उसके चेकप के लिये लगाई गयी , जिससे इन्फेक्शंस को रोका जाए । उसने धीरे धीरे हिलना डुलना भी बंद कर दिया था जिससे बैडसोल का भी डर बनने लगा । ना जाने वो किस स्थिति में खुद को ले गयी थी की किसी भी तरह की दवाइयाँ बेअसर होती जा रही थी । उसको देखकर किसी पार्क में पुराने हो चुके टूटे फूटे झूलों सा अहसास होता था जो कभी बच्चों के साथ हँसते खिलखिलाते थे , उनको अपनी बाहों में झूलाते थे ।आज जब मैं और वैभव उससे मिलने गए , वो अस्त व्यस्त अवस्था में दीवार को घूरती मिली ..हम लोग बात करते रहे मगर हमेशा की तरह कोई उत्तर नही आया लेकिन वैभव ने जब पूछा --

आकांक्षा सिर्फ आपसे एक बात और कहनी थी , अंजन हमेशा आपको बहुत अच्छी डॉक्टर बनते देखना चाहता था । सोचिये अगर ऐसा ना होता तो आपके नौकरी छोड़ने पर वो गुस्सा क्यों होता ? और क्यों उसने आपको हमेशा पढ़ाई पूरी करने को प्रेरित किया , वो चाहता तो शुरू से आपको उसके परिवार के अनुरूप बनाने का प्रयास करता जिससे शादी के बाद आपको या परिवार को कोई समस्या ना हो ! सोचिये ,उसकी आखिरी इच्छा ही तो हुई न ये भी ......

अक्की के होंठ थोड़े से थरथराए , उसने कांपती सी नजर उठाकर वैभव को देखा , पुतलियों में एक चमक की लहर उफनी और फिर झाग की तरह बैठ गयी । कुछ क्षणों बाद वो फिर अपने पैरों को ताकने लगी ...

वो आँखे किस इच्छा से उफनी ये तो समझ नही आया लेकिन उन भूरी बड़ी आँखों के स्पर्श से दिल अंदर तक चीर सा गया । मुझे उम्मीद नही रही की अपने अंजन के बिना अक्की ज्यादा जी भी पाएगी लेकिन जब तक पूरी तरह रात या पूरी तरह सुबह का फैसला नही होगा हम सभी फिर उसे इस संसार में खींच लाने का प्रयास करते रहेंगे और जाने कैसे इस विचार के आवेग में मेरा डाक्टरी पाषाण ह्रदय गर्म बारिश से भीगने लगा.............

संजना तिवारी

आंध्र प्रदेश