Y – क्यों संजना तिवारी द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Y – क्यों

"y" – क्यों

कई दिनो बाद आज भीनी-भीनी सी धूप खिली थी और ठंडी हवाओं का ज़ोर भी कुछ कम था । इंस्पेक्टर आशीष से मिलने का इरादा करके मैं गोलघर थाने जा पहुँचा ।

"गुड मॉर्निंग इंस्पेक्टर आशीष "

"अरे गुप्ता जी , आइये भई ! बड़े दिन लगाए इस बार आने में ?" आशीष मुस्कुरा कर बोले

" बस इंस्पेक्टर साहब इन दिनो सर्दी के कारण संस्था में बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ चलती रहती है । " मैंने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा

" हाँ गुप्ता जी सर्दी का कहर तो ज़ोरों पर है । खैर कहिए कैसे आना हुआ ? " इंस्पेक्टर आशीष कॉन्स्टेबल को चाय के लिए कहकर मुझसे मुखातिब हुए

" कुछ नए बच्चे आए है संस्था में उनही का परिचय दर्ज करवाने आया हूँ " मैं अभी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की इंस्पेक्टर आशीष का फोन बजने लगा

"माफ कीजिए गुप्ता जी , मुझे जाना होगा ! गोलघर कूड़े के खत्ते के पास एक बच्चे की लाश पायी गयी है । मुझे तफतीश के लिए जाना होगा । " वे खड़े होते हुए बोले

"इंस्पेक्टर अगर कोई असुविधा न हो तो मैं भी साथ चलना चाहूँगा " जाने क्यों मेरे मुँह से निकल गया

" जरूर चलिये , असुविधा कैसी ! "

हम लोग बीस मिनट में ही गोलघर के कूड़े खत्ते के पास जा पहुँचे । स्थानीय लोगो की भीड़ को हटाकर जब हम लाश के पास पहुँचे तो पाया वो मरा नहीं था । कुछ साँसे बाकी थी । औंधे मुँह पड़ा वो हड्डियों के ढ़ेर सा शरीर 13-14 वर्ष के लड़के का था । खाल हड्डियों से चिपकी हुई थी और कूड़े के खत्ते से ज्यादा उल्टी की बदबू उसकी देह से उठ रही थी । उसे उठाकर हास्पिटल भेजा गया और पुलिस आस –पास के लोगो से पूछताछ में जुट गयी । मुझे जाने क्या उत्सुकता थी की मैं भी उस लड़के के साथ हास्पिटल जाने वाली वैन में बैठ गया ।

ढाई घंटे बाद डाक्टर जब आई सी यू से निकले , तो मेरे पूछने पर डाक्टर ने बताया ---

" क्या हुआ है डाक्टर साहब इस बच्चे को ? बचेगा या .......? "

" देखिये उम्मीद कम ही समझिए । इसे नशे की लत है ये तो पक्का है , इसके पेट से नशीली दवाई की काफी मात्रा मिली है , पर गम्भीर बात ये है की उसका गुप्त स्थान काफी घायल पाकर जब हमने अल्ट्रासाउंड किया तो हम सब चौंक गए । बच्चे की आंतों में एक बोतल दिख रही है जिससे उसकी आँतों को काफी नुकसान हुआ है । बाकी कुछ मैं औपरेशन के बाद ही कह पाऊँगा । " कहकर डाक्टर औपरेशन कक्ष की ओर चले गए

" मैं स्तब्ध रह गया ये कैसा वहशीपन है और वो भी इतने छोटे बच्चे के साथ " पुलिस केस से संबन्धित सभी औपचारिकताएँ पूरी करके चली गयी पर मैं ..... मैं तो जैसे जड़ हो गया था ।

उस बच्चे का अधमरा चेहरा जैसे मुझे बुला रहा था । मैं चाह कर भी वहाँ से जा ना सका और चार घंटे बाद -----------------------

" डाक्टर कैसी स्थिति है " डाक्टर को देख मैं लपका

" बहुत ख़राब मिस्टर गुप्ता । हम बचाने की पूरी कोशिश कर रहे है , प्लीज़ आप भी जाकर आराम कीजिए कब तक बैठे रहेंगे । "

डाक्टर के कहने से मैं भारी मन से घर लौट आया पर सो नहीं पाया ।

अगली सुबह फिर उसे देखने पहुँचा तो पता चला की वो अब बेहतर है पर होश अभी पूरी तरह से नहीं आ पाया है । मुझे थोड़ा दिलासा मिला और अब ये क्रम बंध गया , रोज़ नहीं तो हर दूसरे दिन मैं अस्पताल जाने लगा । बच्चे की हालत में सुधार हो रहा था पर वो मानसिक स्तर पर इतना अधिक घायल था की किसी को भी अपने पास देखकर चिल्लाने लगता था । उसका नाम आदि कुछ भी पता न होने के कारण हमने उसे "y" नाम दे दिया । तकरीबन छह महीने में "y" की हालत बहुत बेहतर हो गयी थी । इंस्पेक्टर आशीष से अनुमति लेकर मैं "y" से मिलने पहुँचा ।

पर उसने मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया । मुझे देखकर वो इस कदर सहम और सिमट गया जैसे मैं कोई राक्षस हूँ , और मैं ही क्या वो किसी को भी अपने पास देखकर चिल्लाने लगता था , खासतौर पर पुरुषों को ............

कई दिन लगे मुझे "y" से दोस्ती करने में और उसे ये विश्वास दिलाने में की मैं उसकी मदद करना चाहता हूँ । अंतत: जो कहानी सामने आई वो दिल –दिमाग को निचोड़ देने वाली थी ----------------------------------------------------------------------

"मेरा नाम शेखर है, मैं बिहार के एक छोटे से गाँव से हूँ। माँ कब मरी , मुझे पता नहीं । जब समझने लायक हुआ तो पिता को ही देखा हमेशा शराब के नशे में । रोज़ मार पीट और आधा पेट खाना । किसी तरह गुजर हो रही थी की शहर से मेरे चाचा आए । उन्होने कहा शहर में काम और भर पेट खाना दोनों मिलेगा और मैं उनके साथ यहाँ आ गया । कुछ दिनों तक सब ठीक रहा , भरपेट खाना मिलता रहा और चाचा मेरे लिए काम ढूंढते रहे । चाची मुझे दिन में तीन चार बार एक ताकत की दवा देतीं थी । कुछ दिन बाद उस दवा के न मिलने पर बेचैनी होने लगती थी ।

चाचा ने कहा अगर दवा चाहिए तो हम तुम्हें काम के लिए जहां भेजेंगे तुम्हें जाना पड़ेगा। मैं चला गया साहब पर वहाँ उस आदमी ने मेरे साथ गलत काम किया । मैं बहुत रोया पर चाचा ने मेरी एक न सुनी । धीरे – धीरे ये रोज़ का काम हो गया , कभी – कभी तो कई बार भी । मेरे मना करने पर चाचा-चाची मुझे बहुत मारते थे । खाना नहीं देते थे , और दवाई न मिलने पर तो मैं पागल ही हो जाता था । उस दवाई के लिए हार कर मुझे उनकी बात माननी ही पड़ती थी ।

इस बार मुझे जिस आदमी के पास के पास भेजा गया उसने मुझे बहुत सताया साहब । बहुत मारा , काटा , नोंचा । उसने शर्बत में एक दवा दी और कहा की इसे पीकर सारा दर्द खतम हो जाएगा । दवा पीने के बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा , बस दर्द हो रहा था । मैं खुद को बचा भी नहीं पा रहा था । जब होश आया तो मैं यहाँ था । मुझे सबसे डर लगता है । मेरे साथ गलत काम मत करिएगा साहब ................ मुझे मेरे घर जाना है.........यह कहकर "Y" यानि शेखर ज़ोर – ज़ोर से सिमट कर रोने लगा ।

"नहीं – नहीं रोओ मत ..... अब तुम्हारे साथ कोई कुछ गलत नहीं कर करेगा । "

डरो मत! तुम ठीक हो जाओ , फिर हम हम तुम्हें घर भेज देंगे ।

मैं उसे दिलासा देकर बाहर आया, पर खुद अंदर तक काँप गया । क्या होगा इस बच्चे का ? शरीर के घाव तो फिर भी भर जाएँगे पर मन के घावों का क्या होगा ? अब क्या ये कभी किसी पर विश्वास कर पाएगा ? एक स्वस्थ मानसिकता के साथ समाज में भागीदार हो पाएगा ?

मैंने निश्चय कर लिया "Y" को छोड़ूँगा नहीं उसके स्वस्थ होने पर उसे संस्था ले जाऊंगा और इसे जीवन एक बार फिर नए सिरे से शुरू करने की प्रेरणा दूंगा और साथ ही इसके गुनहगारों को उनके किए का दंड अवश्य दिलाऊँगा । ये दृढ़ निश्चय कर मैं फिर एक बार थाना गोलघर की ओर बढ़ गया...............

संजना तिवारी (आंध्राप्रदेश)

Ph. 9533718860

8985088566