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चिपकी चमेली

चिपकी चमेली

उदासियों का पीपल अपनी शाखाएँ बढ़ाता जा रहा था और आक्सीजन की कमी उसे तड़पाने लगी थी । जीवन ने एक बार फिर उसे लड़खड़ाते कदमों के सहारे छोड़ दिया था । पहले घर छूटा ....फिर राज्य....साथ ही छूट गयी अपनी भाषा की मिठास .....अपने फूल ... अपनी सर्द गरम रिमझिम करती हवाएँ ......और उसका .....हाँ उसका बड़बोलापन । यहाँ वो दूसरी बार अबोली हो गयी थी , दीवारों को ताकती वो अपने पहली बार अबोले हो जाने के गम से लस्त - पस्त , दूसरी बार अबोले हो जाने के दुख को तोलती रहती ।

नौ वर्ष पूर्व विवाह उपरांत उसे , ससुराल से सौगात में मिला था अबोलापन । ये उसके लिए ये कोई नई बात नहीं थी , इस रोग से ग्रस्त उसने अपनी बहुत सी बहनों और सहेलियों को देखा था । इसी कारण उसने जल्द ही दवा और दुआ से खुद को दुरुस्त कर लिया था लेकिन इस बार का अबोलपन कुछ ज्यादा घातक था ।

वो भारत माँ के हाथो से छूटकर पैरों में आ बसी थी । उसके पति का ट्रांसफर दिल्ली से सीधा आन्ध्रप्रदेश के एक मण्डल में हो गया था । परिवार तो छूटा ही छूटा साथ भाषा – रहन सहन –खान पान सब बदल गया । बच्चे छोटे थे ,छुटका तो मात्र छ महीना और बड़का तीन वर्ष , उनसे वो बतियाये भी तो क्या ?? माचिस की डिब्बी समान मात्र तीन किलोमीटर का मण्डल , दो सड़के और एक गुचुक सा हाइवे , उसे बाहर निकलने पर भी घुटन का एहसास दिलाता । लोगों का अधकचरा / टूटा फूटा हिन्दी और अँग्रेजी का ज्ञान और वो तेलुगू में अंडा !!!! समाज और एक स्वस्थ वार्तालाप के अभाव ने उसे बेचैन कर दिया था । देवा अधिदेव – पतिदेव जब शाम को घर लौटते तो उसकी जुबान ऐसे दौड़ती जैसे सुपर फास्ट एक्स्प्रेस । पतिदेव की बोलने की भड़ास तो ऑफिस स्टाफ के साथ ही निकल जाती सो वे कुछ देर सुपर फास्ट एक्स्प्रेस के सफर को झेलते और फिर किसी भी अंजान स्टेशन पर ऐसे उतर जाते की ट्रेन को भान भी ना होता । गंतव्य पर पहुँच कर मुसाफिर को नदारत पाकर वो झल्ला जाती और सोचती कल से इनसे बात नहीं करूंगी । जैसे दिन चुप वैसे शाम चुप , बिना बोले कोई मर थोड़े जाऊँगी ।

धीरे –धीरे ये अकेलापन रोग का रूप लेने लगा । बेवजह सरदर्द , बुखार रोज का काम हो गया । दवाइयों के सेवन और दिन भर बिना खाए पिए रहने की उसे आदत होने लगी । पल मे गुस्सा , पल भर मे ढेर सा प्यार उसके व्यक्तित्व की विशेषता बनने लगा । बच्चे माँ से डरने लगे , जाने कब माँ कौन सा रूप धर लें ।पर जल्द ही बच्चों के व्यवहार ने उसे एहसास दिलाया की वो खुद में कुछ ज्यादा ही घुट रही है और इसे अभी ना रोका गया तो कोई मानसिक प्रभाव हो सकता है । अगर उसने खुद को ही खो दिया तो बच्चों का क्या होगा ?

उसने खुद को खुद से समझाना शुरू किया “ अरे मन लगाना इतना मुश्किल भी तो नहीं । “

कई तरह के अभियान एक साथ उसके जीवन में चलने लगे, प्रथम पाक कला – आइडिया फेल हो गया , उसे यहाँ अपने मन माफिक सब्जियाँ और सामान ना मिल पाता ....वो झल्लाती फिर उपलब्ध चीजों से नई रेसिपी का निर्माण करती । साउथ के डोसे , इडली , रसम , उत्तपम अब उसके किचन में सजने लगे लेकिन अपना भोजन तो अपना ही होता है । वो साग , पालक , तोरी , टिंडे को सपनों में देखा करती और समोसे , बर्गर उसे सपनों में ही तृप्त कर जाते । फिर बागवानी शुरू हुई पर वो भी फेल हुई , साउथ की लाल मिट्टी उन सब्जियों के लिए उपजाऊ साबित ना होती जिन्हे वो अपनी क्यारी में फलते देखना चाहती । फूलों की तो जैसे शामत आ गयी । गुलाब भी तेलुगू और गेंदा भी तेलुगू रूप धरे खिलता । परिणाम स्वरूप बागवानी को भी टाटा बाय बाय हो गयी , हाँ उसका गुस्सा जरूर सांतवे आसमान तक जाता । पहली खेती में मन माफिक फसल ना पाकर शायद किसान भी ऐसे ही गुर्राता होगा .....तीसरा अभियान टीवी , गाने और मोबाइल से बतियाना .... ये कुछ जमा तो लेकिन मण्डल में करंट के दर्शन जरा कम होते और जब होते तो घर के काम बुक्का फाड़े बैठे होते । अब पतिदेव ने भी फोन के बढ़ते बिल को देखते हुए तुरंत पाकिस्तान बाउंड्री का निर्माण कर दिया , साथ ही मिश्री से शब्दों में उसकी बोलती हमेशा के लिए बंद कर दी

“ क्या अक्कू तुम भी ना , फालतू की बातों में अपना टैलेंट खराब कर रही हो , साथ में पैसा भी । यार समझो जब ट्रांसफर आएगा तो पैसा चाहिए ना री-लोकेशन के लिए । मैं बात करने से मना थोड़े कर रहा हूँ , रुको तुम्हारा आज ही फेसबुक अकाउंट बनाता हूँ । घर पर फ्री में चैट करना और फोटो भी भेज सकती हो । “

“ ठीक है , कोई नहीं जी । वो तो बस यूं ही जी नहीं लगता तो बतिया लेती हूँ । अब दोनों बेटे है , एक भी बेटी होती तो मेरे लिए भविष्य की सहेली तैयार हो जाती । मैं तो अपना आने वाला समय सोच कर घबराती हूँ , कल को जब ये लड़के भी अपनी दुनिया मे बीजी हो जाएंगे तो ये सहारा भी छूट जाएगा । “

“ कुछ पढ़ लिया करो ?” पतिदेव सुझाव देने लगे

“ क्या पढ़ूँ ? तेलुगू बुक्स ??? यहाँ हिन्दी कुछ मिलता है क्या ? मैं तो हिन्दी अखबार की शक्ल भी भूल चुकी हूँ । “

“ ओहो यार बाहर निकलो , थोड़ी तेलगु सीख लो । सहेलियाँ बना लो “

“ वाह क्या विचार है ! अब आपके तो कभी भी कहीं भी ट्रांसफर आते रहेंगे, आखिर कौन कौन सी भाषा सीखूंगी मैं और जो भी हो हर किसी को संतोष अपनी भाषा में ही बोल कर होता है । क्यूँ न मैं फिर से पढ़ना शुरू कर दूँ ?”

“ ओके एज योअर विश , इग्नू से भर देते हैं । क्या पढ़ोगी ?”

“ हिन्दी .... बस हिन्दी .....आप हिन्दी से एम ए भर दीजिये “

“ ओके अक्कू , नाऊ बाय , सी यू इन दी इवनिंग । “

जल्द ही अक्कू ने एम ए हिन्दी भर दिया , किताबे हाथ आई लेकिन पंख पैरों मे लग गए । कभी वो प्रेमचंद की उंगली पकड़ गाँव – गाँव घूमती तो कभी महादेवी वर्मा के कंधे पर सिर रख नीर भरी दुख की बदली के नीचे भीगती । मीरा उसे बिन घुंघरू गिरधर गोपाल की गोपियों में शामिल कर लेती । भारतेन्दु का हिन्दी जागरण उसे खुद के हिन्दी जागरण से कम न लगता । निर्जीव किताबों में कितनी साँसे होती है इसका अनुमान केवल अक्कू जैसे ही जान पाते हैं । पढ़ते – पढ़ते उसका लिखने का शौक हौले से उसके जीवन में जगह बनाने लगा ।उसने सोचा क्यूँ ना उन बच्चो को हिन्दी ज्ञान देना शुरू करूँ जो पढ़ाई खत्म होने पर दिल्ली या मुंबई आदि जगह जाकर हंसी का पात्र बनते हैं । उसने आस पास से कालेज के लड़के लड़कियों को मुफ्त हिन्दी ज्ञान देना शुरू किया और खुद तेलगु सीखना भी ।

सरस्वती जी अक्कू के घर आने को तैयार हो गईं , बच्चे बढ्ने लगे । दूर रहने वाले बच्चे फेसबुक चैट बाक्स के जरिये सही हिन्दी सीखने को बढ्ने लगे ,साथ ही अक्कू की कविताएं और कहानियाँ कई पत्र पत्रिकाओं में आने लगी । दूर दराज से हिन्दी सीखने वाले बच्चों में एक इंजीनियरिंग का छात्र वोमशी कृष्णा था । अक्कू उसे कई दिनो से चैट बाक्स में हिन्दी सुधारने के टिप्स दे रही थी । उन्ही टिप्स में से एक था हिन्दी सीरिलस और गाने देखना , और जो ना समझ आए उसे पूछना । इसी क्रम में वोमशी ने चिकनी चमेली गाने को याद किया और चैट बाक्स में लिखा था । छुट्टियों में घर जाने की तैयारियों की व्यस्तता में अक्कू उस मैसेज को देख ना सकी । चिन्नई जाने के रास्ते में फ्री होते ही वो अपने चैट बाक्स को चैक करने लगी । तभी उसे वोमशी का मैसेज नजर आया .....

अद्यापिका जी । मेने एक अपनी पशन्द का गाना आपको लिखा है , आप उसे चैक करें ...

चिपकी चमेली ...चिपकी चमेली ...चुप के रखेली ....

यूं तो अक्कू इस तरह की हिन्दी सुनने और पढ़ने की आदि थी लेकिन चिपकी चमेली की संज्ञा पर वो हंसी ना रोक पाई । उसे यूं हँसते देख पतिदेव भी पूछने लगे .....

“ भई क्या हुआ , काहें इतना हंस रहीं है ?”

“ कुछ नहीं ये देखिये एक बच्चे ने गाना लिखा है चिपकी चमेली ...... हा हा हा हा ‘

“ अरे वाह , जरा सोचो ये गाना गर यूं ही होता और कैटरीना कैफ दीवार पर चिपक चिपक कर चिपकी चमेली बनती तो ......’

‘ हा हा ॥हे राम बस कीजिये मेरा पेट फट जाएगा ॥‘

‘ न ना जरा सोचो चिपकी कैटरीना इन छिपकली मूड ....वाह और रितिक इन मच्छर मूड .... इमैजन करो अक्कू ....”

‘ ओह नो ॥ प्लीज स्टॉप इट .... मेरा मुंह थक गया है हँसते हँसते ... कैटरीना ...चिपकी चमेली ....”

तभी चैट बाक्स में फिर मैसेज आया –

‘ मैम आप कहाँ है ?’ मैसेज देखकर अक्कू सकते में आ गयी ।

“ कहाँ हूँ मतलब वोमशी ?’

“ मैम प्लीज बताइये ... मे कूच गलत नहीं बोलेगा ( गलत नहीं सोचता हूँ )“

“ मैं ट्रेन में हूँ ... बोलो ...?”

“ आप चिन्नई की ट्रेन में हैं क्या “

“ हद हो गयी ... तुम जासूसी कर रहे हो क्या ?”

“ नो मैम प्लीज टेल मी”

“ यस आई एम ............”

तभी सामने की बर्थ से एक सभ्य सा युवक उठा और उसने अक्कू के चरण स्पर्श करके प्रणाम कहा ।

“ मे वोमशी कृष्णा मैम ॥“

कुछ समय के लिए वो और उसके पतिदेव सन्न रह गए । जिस पर इतनी देर से हंस रहे थे वो सामने ही बैठा था ....और उसने प्रणाम बिलकुल उसी तरह से किया था जिस तरह अक्कू ने उसे नौर्थ के परिवारों के संस्कारों में बताया था ।

अक्कू का ह्रदय गदगद हो उठा । वोमशी ने अपनी गुरु का मन जीत लिया था । सारे रास्ते वे तीनों हँसते – हँसते गए । अपनी हिन्दी का सही मतलब जानने पर वोमशी भी हँसते हँसते लोट-पोट हो गया ।

आंध्रा के अबोलेपन ने अक्कू को नए अहसासों से तरोताजा कर दिया था , उसके मन में बार बार गूँजता रहता था ......

“हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती

साहिल से डर के नैया पार नहीं होती ......... । “

संजना तिवारी

आंध्राप्रदेश

08985088566

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