कहानीः—
मजमा
शहर के मध्य स्थित सबसे चहल—पहल वाली जगह है— वीर विनय चौक। उन्नीस सौ पैसठ के भारत पाक युद्ध में शहीद स्थानीय निवासी सेकेंण्ड लेफ्टी विनय कुमार कायस्था की पावन स्मृति में इसका नामकरण हुआ था। आज भले शहर की भौगोलिक संरचना में उल्लेखनीय विस्तार हो चुका है। पर कभी बाजार, अस्पताल,कोर्ट—कचहरी,स्कूल—कालेज कही जाना हो, तो इससे होकर ही गुजरना पड़ता था। फलस्वरूप यहॉ दिन भर भीड़—भाड़ व गहमा गहमी बनी रहती थी। ‘क्राउड—कैपसिटी‘ को भांप कर प्रारम्भ में कुछ फल वालो ने यहां ठेले लगाना चालू किया जो आज प्रशासन की मिली भगत से अघोषित फलमण्डी की शक्ल ले चुका है। समाज में आये भौतिकवादी बदलाव के चलते मेडिकल स्टोर्स,मोबाइल शाप,शाइबर कैफे,चिकन बिरयानी सेन्टर,जूस कार्नर के साथ ही साथ चाय,पानी के बतासे व चाट के स्टाल अब यहॉ के लोगो की दैनिक जरूरत बन चुके है, जिन पर ग्राहको की अच्छी तादाद होती है। पर थोक के भाव में खुल गयी पान के ढाबलियो के तो कहने ही क्या? जिन पर देर रात तक ग्राहक मडराते रहते हेै। बौद्ध पर्यटन स्थल श्रावस्ती के नजदीक होने की वजह से अच्छी संख्या में विदेशी पर्यटक यहॉ खरीददारी करते अकसर दिख जाते हेै, जिनमे विदेशी युवतियां स्थानीय लोगो के लिए हमेशा से कौतूहल व आकर्षण का सम्मिश्रण होती है। वैसे तो करतब—तमाशा दिखाने के लिए मजमा जुटाते नट—मदारी भी गाहे—बगाहे यहॉ दिख जाते थे। पर लोकतंत्र की रस्सी पर संतुलन साधे चल रही राजनीति ने जब अचानक हैरत अंगेज कलॉबाजी खायी और श्वेत लिबास तले एक से बढ़कर एक घाघ मदारीनुमा चरित्र पलने लगे, तो उन बेचारो को मैदान छोड़ भागना पड़ा। और फिर आये दिन शुरू हुआ यहां राजनैतिक नुक्कड़ सभाओ का आयोजन चक्का जाम। धरना प्रदर्शन।
इस वक्त भी यहॉ एक चुनावी सभा चल रही थी। सूरज ठीक सिर पर था। उमस भरी गर्मी हलकान किये थी। पूरा चौराहा पोस्टरो, कट आउटो, बैनरो व झंडियो से अटा पड़ा था। सुसज्जित मंच पर तिल रखने की जगह न थी। सभी मुख्य अतिथि को मुॅह दिखाने की होड़ में थे। अनुभवी मंच संचालक ने छुटभैय्ये व मझोले वक्ताओ को एक—एक मिनट का समय देकर बेहद सस्ते में निपटा दिया था। चैनलो—अखबारो में छाये रहने वाले पार्टी के कद्दावर राष्ट्रीय नेता समर सिंह मुख्य अतिथि की हैंसियत से सभा को सम्बोधित कर रहे थे,
‘‘... इस अलोकप्रिय सरकार के पिछले दो बरसो में शासनकाल में व्याप्त अराजकता, भष्टाचार, मॅंहगाई से प्रदेश की जनता त्राहि—त्राहि कर रही है... उसने अब परिवर्तन का मन बना लिया है.. प्रदेश भर में इसबार हमारी आंधी चल रही हेै... विरोधियों की जमानत तक नही बचेगी...‘‘
प्रमुख विपझी दल के जनप्रिय, विनम्र, पेशे से अध्यापक प्रत्याशी को वह जातिवादी, कायर, नंपुशक जैसी उपाधियो से विभूषित करने में वह जरा भी परहेज नही कर रहे थे। हां, मंच पर बगल में हाथ जोड़े खेडे अपने हिस्ट्रीशीटर, माफिया सरगना प्रत्याशी को किसी से न दबने वाला बताकर वह सामने खड़ी जनता को अतिरिक्त बेशर्मी से भरोसा दिला रहे थे कि चुनाव जीत लेने के पश्चात् वह अपनी जन्मजात दबंगर्ई का उपयोग सिर्फ व सिर्फ अन्याय के विस्द्ध लडने जैसे जनहित कार्यो में ही करेगा।
मुख्य वक्ता के एक—एक सवांद पर लोग रह—रहकर तालियां पीट रहे थे। लफंगे से दिख रहे कुछ युवक नारे लगा लगाकर गला फाड़े डाल रहे थे। इस अप्रत्याशित जनसमर्थन से आनन्दित हो सिंह साहब ‘ओवर फ्लो‘ की स्थिति में पहुॅच चुके थे। राजनीति में अपराधियो की घुसपैठ के साक्षात स्वरूप को गोद में बिठाये वह दहाड़ने लगे थे,
‘‘... जंगलराज खत्म होगा। अपराधी या तो प्रदेश छोड़कर भाग जायेगे या फिर जेल के अन्दर होगे... आप सब हमारे प्रत्याशी को जिताकर भेजिए, फिर देखिएगा किसी माई के लाल में हिम्मत नही होगी आपकी बहू—बेटियो की तरफ आंख उठाकर देखने की। सब के मान, सम्मान, सुरक्षा का वचन देते है हम...‘‘ विडम्बना ही है कि लाखो के सुरक्षा की गारण्टी उस भयातुर शख्स के दम पर ली जा रही थी , जिसमें असुरक्षा की भावना इतनी प्रबल थी कि दो सरकारी गनरो के रहते उसने आसपास दर्जन भर निजी अंगरक्षको की फौज खड़ी कर रखी थी।
अन्ततः उन्होने घोषणा की , ‘‘ आप लोग इतनी बड़ी संख्या में आये, अपना काम—धाम छोड़कर.... मैं दिल से सबका आभार व्यक्त करता हूॅ। इसी के साथ अब मैं अपनी वाणी को विराम देता हूॅ.... जय हिन्द! जय भारत!! ‘‘
भाषण खत्म हुआ। ‘हमारा नेता कैसा हो—समर सिंह जैसा हो‘ ‘ समर तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है‘ ‘ अभी तो ये अगड़ाई है, आगे बड़ी लड़ाई है‘ के नारो से वातावरण गूॅजने लगा था। प्रत्याशी महोदय से कुछ मंत्रणा करते वह सीढ़ियां उतरने लगे थे। मंच से जिसे अच्छी तादाद में देख वह गदगद हो उठे थे। उनकी महत्वाकांक्षा कुंलाचे भरती मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुॅची थी। वही सम्मानित जनता—जनार्दन अब जैसे अनावश्यक भीड़ में तब्दील हो गयी थी, जिसे अभद्र ढ़ग से धकियाते ब्लैक कैट कमान्डोज नेताजी के लिए रास्ता बना रहे थे... भाषण में उडे़ली गयी कृत्रिम आत्मीयता अपमान के गुब्बार में खो गयी थी। अफरातफरी कुछ क्षणो में थम गयी थी। और अपने भारी भरकम शरीर को ले नेताजी सफारी में समाकर ‘मिनरल वाटर‘ गटकने लगे थे। गाड़ी का ए0सी0 पहले से ही ऑन था। उधर, तीन घण्टे तक तपती धूप—गर्मी झेलने वाले पार्टी कार्यकर्ता अब एक अदद सरकारी नल की तलाश में थे।
दर्जन भर लग्जरी गाड़ियो का काफिला अब वीर विनय चौक से रूखसत हो चला था। प्रत्याशी के वाहन के पीछे चल रही दो ब्लैक स्कार्पियो में उनके निजी सुरक्षाकर्मी थे। सभी की रायफले गाड़ी से बाहर झांक रही थी... आम जन को ‘भय मुक्त‘ करने के लिए या विरोधियो को ‘भय युक्त‘ करने के उद्देश्य से—समझना कठिन न था। गाड़ियो की स्पीड बता रही थी कि सब बड़ी हड़बड़ी में थे। हो भी क्यो न, चुनावी सीजन चल रहा है। धंधे का पीक टाइम है। किसी दूसरे चौराहे पर पहुॅच उन्हे ऐसा ही एक और जोरदार मजमा जो लगाना है।
शहर की सामाजिक संस्था ‘ पैगाम ‘ के संयोजक श्री आजाद सिंह और उनके कई बुद्धिजीवी सहयोगी पिछले कई बरसो से यहॉ शहीद विनय की प्रतिमा स्थापना के लिए युद्ध स्तरीय प्रयास कर रहे है। पर गनीमत है, अभी तक ऐसा हो नही पाया। वरना अपने ‘सपनो के भारत ‘ में ठेले वालो से हफ्ता वसूलती पुलिस, विदेशी पर्यटको के मंहगे कैमरो के आगे भीख मॉंगते भारतीय बच्चो के झुंड और लोकतंत्र के नाम पर बार—बार ठगे जाते निरीह देश वासियो को देख अमर शहीद की पत्थर की ऑखो में भी ऑसू आ जाते.....।
—प्रदीप मिश्र
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