एक बेटी का ससुराल से अपनी माँ को पत्र Rashmi Tarika द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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एक बेटी का ससुराल से अपनी माँ को पत्र

Rashmi Tarika

rashmitarika760@gmail.com

मेरी प्यारी माँ ,

सादर प्रणाम ...

माँ , ईश्वर से आपकी कुशल कामना करते हुए आज मन ही मन मैं आप का शुक्रिया कर रही थी ।जानती हो क्यूँ माँ ...? माँ, यूँ तो बेटी माँ की ही परछाई होती है ,उसके अपने वज़ूद का अक्स होती है इसीलिए शायद आप मेरे दिल के करीब रही हैं और हमेशा रहेंगी।माँ ,आपकी हर बात पर मेरा विश्वास दृढ रहा क्यूँकि आपने हमेशा ही मेरा सही मार्गदर्शन किया है।जब भी कभी घबराई या खुद को दोराहे पर खड़ा पाया ,आपने मुझे उचित राह दिखाई।आपकी एक बात जो हमेशा से अपनाई ,"कि समस्याओं से घबराओ नहीं ,अपितु उनका निवारण ढूँढो या उनका सामना करो ।" जानती हो माँ , मैंने आपकी यही बात धरोहर स्वरुप अपनी बेटी के मन में रोपित कर दी है।

माँ , मैं भी ज़िन्दगी के उसी मोड़ पर खड़ी हूँ जहाँ आप एक दिन खड़ी थीं जब आपने मेरा विवाह किया था।मुझे आज भी याद है कि आपकी और पिताजी की पलकें मेरे विदा होने के एहसास से बार बार नम हो जाती थीं।तब मैं और छोटी बहनें आपसे कैसे कहती थीं कि ," आपकी तो गँगा जमुना तैयार रहती हैं बहने के लिए ।" माँ ,आज उसी एहसास से मैं गुज़र रही हूँ जब से मैनें आपकी नातिन "अनिशा "का विवाह किया है।अनिशा तो जबकि इसी शहर में है लेकिन बेटी दस कदम दूर हो या सौ कदम दूर ,एक बार विदा हो जाए तो वो पराई अमानत हो जाती है।आप ही कहती थीं न ये बात...? आज अनिशा से मिलकर भी ये एहसास कि वो मुझसे दूर जा चुकी है , मन को भिगो देता है । फिर भी बस लबों से यही दुआ निकलती है कि बस वो हमेशा सुखी रहे ।आपको बार बार भावुक कहना हम भाई बहनों का शगल हुआ करता था ,आज वही हम भाई बहन अनिशा की विदाई को लेकर बार बार भावुक हो रहे थे।

माँ ,ज़िन्दगी हमें बहुत कुछ सिखाती है लेकिन एक माँ के रूप में जो हमें सीखने के अनुभव मिलते हैं उससे बेहतर कुछ नहीं सीख सकते।आपने हमें जो भी समझाया ,जब भी समझाया आज मैं उसे अपनी बेटी को समझा रही हूँ चाहे वो परिवार में तालमेल बिठाने की बात हो या पति के हर कदम पर साथ देने की बात हो ।बड़ों का सम्मान , छोटों से प्यार ,परिवार की एकता जैसे सब संस्कार जो आपने दिए वही अनिशा ने अपनाये हैं।जानती हो माँ , बहुत समझदार है आपकी नातिन या हर माँ को अपने बच्चे ही समझदार लगते हैं ..? माँ बेटी को तो मैंने जहाँ तक सम्भव हुआ उसे एक नारी के रूप ,उसकी शक्ति ,उसकी ममता ,सादगी जैसे हर रूप की महत्ता समझाई है।दुआ करती हूँ कि वो अपने व्यव्हार से अपने ससुराल में सबका दिल जीतती रहे।बस चिंता मुझे आपके नाती आयुष की रहती हैं जो विदेश में अपनी पढाई कर रहा है।जानती हो माँ ,उसके बिना भी जीवन अधूरा सा लगता हैं।बेटी के सुख की कामना करती हूँ तो बेटे के उज्जवल भविष्य और सुरक्षा की दुआ करती हूँ। आयुष अपने जीवन के उस मोड़ पर खड़ा है जहाँ उसे सही मार्गदर्शन की अधिक अवाश्यक्ता है क्योंकि एक गलत कदम ज़िन्दगी बदल देता है। बस ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि उसे हमेशा सद्बुद्धि देना ,सद्मार्ग पर चलाना। माँ, एक बात बताओ न .. "ये माँ का दिल क्यूँ इतना तड़पता है ? हर पल ,हर धड़कन अपने बच्चों की खैर ,सलामती माँगती रहती है माँ ! "बच्चे दूर हों या पास बस उनके इर्द गिर्द ही अपनी ख्वाइशों का ताना बाना बुनती रहती हैं।माँ...बेटी अपने घर तो बेटा विदेश में ...दोनों ही अपनी अपनी ज़िन्दगी संवार रहे हैं...लेकिन एक माँ ,एक पिता क्या करें । घर काटने को दौड़ता है।इन्हीं बच्चों से घर की चहल पहल होती है न।आज तीन कमरों के इस घर में हम एक कमरे में ही कैद होकर रह गए हैं ।अनिशा और आयुष के कमरों में जाती हूँ तो दिल कचोटता है लेकिन फिर से उनके सुख और लंबी आयु की मंगल कामना करते हुए वापिस अपने कमरे में लौट आती हूँ।माँ ,जानती हो ..आजकल सब कहते हैं कि तुम तो आज़ाद हो जिम्मेवारियों से कि बेटी ससुराल और बेटा विदेश ।ये क्या बात हुई माँ ..! एक माँ के दिल से पूछे कोई कि ये आज़ादी नहीं ये मजबूरी है जब हमें अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं ।एक माँ का दिल कभी आज़ाद या फ्री नहीं होता न ।जब बच्चे घर होते हैं तब उनसे जुड़े कार्यों में व्यस्त रहती है और जब बच्चे बाहर होते हैं तब माँ उनकी सलामती की दुआएँ माँगने में व्यस्त रहती है ,उनके आने के इंतज़ार में व्यस्त रहती है ।उनकी ख्वाइशों को कब पूरा करेगी ,यही मंसूबे बनाने में व्यस्त रहती हैं।हाँ ,माँ जीवन के इस परिवर्तन के साथ कुछ सुखद परिवर्तन भी होते हैं जब बेटी की शादी के साथ साथ हमें दामाद के रूप में एक बेटा मिलता है।आज याद आता है कि आप हमेशा कहती थीं कि मुझे दामाद के रूप में हीरे जैसे बेटे मिले हैं ।आप का आशीर्वाद भरा हाथ हमेशा दामाद के सर पर रहता था।माँ , आपके समय में दामाद अच्छे बेटे साबित होते थे ,लेकिन आज समय बदल गया है ।आज दामाद बेटे के साथ साथ दोस्त भी बन कर रहते हैं। आज प्रांजल मुझे दामाद कम बेटा और दोस्त अधिक लगता है अपने अच्छे व्यवहार के कारण । परिवर्तन सुखद हैं तो बढ़िया है न ! अब तो बस अरमान है कि जब भी मेरे आयुष की पत्नी आये वह भी मेरी सखी , मित्र बनकर रहे बेटी के साथ साथ।माँ , आज रिश्तों के ये सकारत्मक पहलू तभी देख पाते हैं क्योंकि हम सकारत्मक पहल करते हैं।आप ही कहती हैं न कि जो हम देते हैं वही लौट कर हमारे पास आता है।माँ ,जितनी बातें मुझे याद थीं ,उन्हें मैंने अनुभव के आधार पर बच्चों को सिखाया और समझाय।उम्र के साथ अनुभवों में बढ़ोतरी होती है न ।सोचती हूँ , हम इतने परिपक्व कैसे हो जाते हैं लेकिन ये भी तो सत्य है न कि पीढ़ी दर पीढ़ी उम्र रिश्तों को बनाना सिखाती है तो रिश्ते ही अनुभव देते हैं ।

माँ , मैं जल्द ही आपके दामाद जी के साथ आप सब से मिलने आ रही हूँ और भी बहुत सी बातें करनी हैं माँ आपसे .. और आपके हाथों के बने भरवाँ करेले भी तो खाने हैं । एक बार फिर आपकी वही बेटी बनकर अपनी पुरानी फ़रमाइशें करना चाहती हूँ ।

"आपकी बेटी ... जिसे मेरे भाई बहन यानी आपके बाक़ी के बच्चे ,मुझे " ममा'स डॉटर " कहकर चिढ़ाते हैं ... आज भी । मैं हूँ ही अपनी ममा की डॉटर ... रश्मि । "