Ek ma ka apni vidaai ki hui beti ko patra books and stories free download online pdf in Hindi

एक माँ का अपनी विदाई की हुई बेटी को पत्र

Kavita Verma

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प्रिय बेटी मनु

ढेर सारा प्यार

समय कैसे पंख लगा कर उड़ जाता है अभी कल ही की बात तो लगती है जब तुम्हारे आने की दस्तक हुई थी और हमारी दुनिया महक उठी थी। उन नौ महीनों में पल पल तुम्हारे साथ जीते तुम्हारी हर हरकत हर करवट को अपने भीतर महसूस करते बस जल्द से जल्द तुम्हे देखने की तुम्हे गोद में लेने की ख्वाहिश होती थी। ज्यों ज्यों वो दिन करीब आता गया एक अजब सी कसक मन में समाती गई कि अब तुम मुझसे दूर हो जाओगी। मेरे अलावा भी सबके पास जाओगी। इस कसक में ये डर था कि कहीं तुम्हे पल पल बढ़ते देखने का कोई पड़ाव छूट ना जाये। तुम्हे देखने की और तुम्हारे खुद से थोड़े दूर होने की इसी कश्मकश के बीच आखिर वह दिन आ ही गया जब तुम आँखें मूंदे मुठ्ठियाँ भींचे गुलाबी कम्बल में लिपटी मेरी गोद में आ गई। तुम्हारी पहली झलक बिलकुल वैसी थी जो तुम्हे देखने से पहले दिल दिमाग में बन गई थी।

तुम्हारे आने के बाद दिन रात सुबह शाम का चक्र सिर्फ तुम्हारे आस पास घूमता था। वो तुम्हारा पहली बार मुस्कुराना ऊँगली पकड़ लेना बैठने की कोशिश करना पलंग से उतरने को लटक जाना माँ या पा कहना। हर छोटी बात बहुत बड़ी बन जाती थी जिस पर मैं और तुम्हारे पापा घंटों चर्चा करते निहाल हो जाते थे। तुम्हारे बोलना शुरू करने पर तुम्हारे तुतलाये शब्द हमारे बोलचाल में शामिल हो गए। दलचालुम मच्छंग कीचडी जैसे शब्द तो आज भी बोले जाते हैं।

स्कूल का तुम्हारा पहला दिन कितने दिन पहले से हमें चिंता में डाल गया था । कुछ घंटे घर से दूर अपनों से दूर कैसे रहोगी ? किसी चीज की जरूरत होगी और तुम अपनी बात ना कह पाई तो ? कोई तुम्हारी बात ना समझ पाया तो ? लेकिन तुम हँसते हँसते स्कूल गई और खिलखिलाते वापस आई। तुम्हारी इस खुशमिजाजी ने तुम्हारे प्रति एक विश्वास दिया कि तुम हर जगह हर हाल में खुश रहने वालों में से हो।

पढाई लिखाई खेल प्रतियोगिता सबमे अव्वल रहते अपनी छोटी बड़ी हर बात हमसे साझा करते तुम बड़ी हो रही थीं। कई बार तुम्हारा नजरिया तुम्हारी निर्णय लेने की क्षमता हमें चौका जाती तो कभी कभी अपने निर्णयों से हमें बाहर रखना हमें विचलित भी कर जाता। सही गलत की समझ तुममे विकसित हो रही थी। कभी किसी असमंजस में तुम सलाह लेती तो कभी किसी सलाह को ख़ारिज कर अपने निर्णय लेतीं तुम बड़ी और आत्मनिर्भर हो रही थीं।

स्कूल कॉलेज के बाद अपनी पहली नौकरी के लिए तुम अकेले ही उस सुदूर प्रदेश में चली गई बिना किसी डर किसी झिझक के। अब तुम शादी करके एक नयी दुनिया बसाने जा रही हो। ख़ुशी के साथ एक अंजाना डर भी है और ये डर तुम्हारे पहली बार स्कूल जाने स्पोर्ट्स कैम्प में जाने या पहली बार नौकरी पर बाहर जाने के डर जैसा होकर भी बहुत अलग है। पसंद तुम्हारी थी जिसमे हम सबकी पसंद भी शामिल हो गई। वैसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर हमारी पसंद में तुम्हारी पसंद शामिल होती बस तुम्हारी पसंद होना सबसे ज्यादा जरूरी था।

मुझे विश्वास है अपनी नई दुनिया में नए और अनजान लोगों को तुम अपने व्यवहार से जल्दी ही अपना बन लोगी उनका प्रेम और विश्वास जीत लोगी। मुझे अपने दिए हुए और तुम्हारे अपनाए हुए संस्कारों पर भरोसा है। नया माहौल नया परिवेश नए रीति रिवाज सबमे ढलने में समय लगता है। लोगों को जानने उनकी अपेक्षाओं को समझने के लिए वक्त देना पड़ता है। वे भी तुम्हे समझ सकें तुम पर अपना पूरा विश्वास जता सकें इसके लिए उन्हें भी समय देना होगा। याद है जब तुमने नई नई नौकरी ज्वाइन की थी ऑफिस की कार्यप्रणाली समझने लोगों का व्यवहार पोस्ट की अपेक्षाएं समझने में वक्त लगा था। शुरू शुरू में तुम झुंझला जाती थीं परेशान भी होती थीं पर नौकरी छोड़ने की बात पर अपना सारा साहस फिर से बटोर कर हमें हिम्मत देती थीं कि चिंता मत करो मैं सब ठीक कर लूंगी। वो तो प्रोफेशनल था पर वहाँ सब भावनात्मक होगा तो ऐसे में अगर कोई तुम्हारी बात ना समझ सके तुम्हारी भावनाएं आहत हों तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी ना हों तो हताश मत होना थोड़ा समय देना।

जिंदगी में कई बार समझौते करने पड़ते है रिश्ते बनाना सरल होता है पर निभाना कठिन। कई बार अपनों की ख़ुशी के लिए मन को मारना भी पड़ता है और ये हमेशा दो तरफ़ा होता है। पर हम अपने बारे में जानते हैं दूसरों के बारे में नहीं समझते। अपनों की कोशिशों को भी ध्यान से देखना समझना। अपनी जगह उनको और उनकी जगह खुद को रख कर देखोगी तो कई गफ्लते दूर होंगी और तुम सामने वालों को अच्छे से समझ सकोगी।

बड़ों को सम्मान देना उनके रहन सहन खान पान के तरीकों को समझ कर उन्हें अपनाना उनके रीति रिवाजों को अपनाना। मैं जानती हूँ तुम्हे अपने कैरियर के साथ ही इस सब के साथ भी सामंजस्य बैठाना होगा। एकदम से किसी को ना कह कर उनका दिल ना दुखाना लेकिन अगर तुम अपनी भरपूर कोशिशों के बावजूद भी ना कर पाओ तो अपनी परेशानी उनके सामने जरूर रखना। हमारे समाज में बहू से बहुत उम्मीदें की जाती है पर जब तक अपनी बात रखोगी नहीं तो वो लोग कैसे समझेंगे?

इन सबके बावजूद भी अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता मत करना। सम्बन्ध रिश्ते की मर्यादा अपनी जगह है लेकिन तुम्हारा आत्मसम्मान हमेशा सबसे ऊपर होना चाहिए।

अब वो तुम्हारा घर होगा लेकिन हमेशा याद रखना ये घर भी हमेशा तुम्हारा रहेगा। कभी भी ये विचार मन में मत लाना कि शादी होने से तुम पराई हो गई हो। तुम हमारी बेटी हो हमारा अंश हो हमेशा हमारी हो और हम हमेशा तुम्हारे मम्मी पापा। कभी भी कोई भी तकलीफ हो कोई बात मन को दुःख देती हो किसी का व्यवहार गलत लगता हो हमें उसी तरह फोन करना जैसे कॉलेज से लौटते जब गाड़ी पंक्चर हो जाती थी तब अधिकार पूर्वक पापा को फ़ोन कर देती थीं और पापा तुरंत पहुँच जाते थे। हम हमेशा बस एक फोन कॉल जितनी दूरी पर ही होंगे।

सही गलत की समझ तुममे है इसलिए किसी भी गलत बात गलत व्यवहार को सहन करना तुम्हारी मजबूरी नहीं है। तुम्हारी हर सही बात पर हमारा समर्थन तुम्हारे साथ है और रहेगा। तुम हमेशा हमारे दिल में हो और रहोगी हमें कभी अपने से दूर मत समझना।

इस विश्वास के साथ अपनी नई दुनिया में अपने कदम रखो सदा सुखी रहो खुश रहो और ढेर सारी खुशियाँ बाँटों।

तुम्हारी मम्मी

कविता

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