टीस Sanjay Kumar द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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टीस

कहानी

टीस

संजय कुमार

सुबह का समय। कुसुम ने ज्योंही पेस्ट ब्रश पर लगाया और ब्रश करने के लिए दांतों पर रखा ही था कि दरवाजे पर थाप के साथ चिरपरिचित राय जी...दूध वाले की आवाज सुनाई पड़ी.....दीदी जी दूध ले ली...हींइ....। आती हूँ ,कहकर कुसुम किचेन से भगौना लेकर दरवाजे की ओर बढ़ी। दूध देने के बाद राय जी ने एक ठोंगा बढ़ाते हुए कहा....दीदी जी, कजरी के बेटा भईल बा...लड्डू बा, खाइब......राय जी के चेहरे पर हल्की झेंप के साथ खुशी उजागर थी। कुसुम को ठोंगा बढ़ाया। कुसुम ने हूँ कहा......... और ठोंगा ले लिया। भगौना को किचेन में रख, बालकोनी में आ कर वह सामने मैदान में राय जी की झोपड़ी की ओर देखने लगी। राय जी के झोपड़ी के आगे उसके बच्चे खेल रहे थे....झोपड़ी से रेडियो पर तेज आवाज में बज रहे गाने से पूरा माहौल...उत्सवी लग रहा था। कुसुम के मन के भीतर एक अजीब-सी टीस उभरी। सुबह की ठड़ी हवा के झोंकों के बावजूद कुसुम के चेहरे पर पसीने की कुछ बूंदे उभर आई। भारी मन से वापस वॉश बेसिन पर आ कर ब्रश करने लगी। वह अनकही टीस अभी भी कुसुम के मन में चुभन पैदा कर रही थी।

कुसुम की सुकांत के साथ शादी हुए छह साल हो गये थे। कुसुम मां नहीं बन पायी थी। जब कुसुम ब्याह कर आयी थी उसके दो माह बाद ही कजरी को ब्याह कर राय जी ने लाया था। पहले ही साल कजरी ने प्यारी-सी बच्ची को जना था। राय जी खुश था....लक्ष्मी आने की खुशी में पूरे अपार्टमेंट में मिठाई बांटी थी। दूसरे साल कजरी को बेटी ही हुई थी और छह साल बाद उसके घर बेटा हुआ था। हर बार की तरह इस बार भी राय जी ने कुछ ज्यादा ही उत्साह से मिठाई बांट कर अपनी खुशी जाहिर की थी।

अखबार पर नजर गड़ाये सुकांत को चाय का प्याला देती हुई कुसुम ने राय जी की खुशी से उसे अवगत कराया। सुकांत चाय का एक घूंट लेने के बाद, प्याला बीच में ही छोड़ कर धीरे से उठा और उसने कुसुम के माथे को सहलाते हुए कहा.....यह सब भाग्य की बात है.... ......तुम निराश मत हो ! बस अपने आप पर विश्वास रखो। सुकांत ने कुसुम के चेहरे को पढ़ लिया था। अपना बच्चा नहीं होने की स्थाई पीड़ा से कुसुम को वह निकालने की कोशिश कर रहा था। डाक्टर, वैद्य, ज्योतिष और भगवान के दरबार से हो आये थे दोनों। कुसुम और सुकांत सभी तरह के मेडिकल चैकअप भी करा चुके थे। किसी में कोई गड़बड़ी नहीं थी। डाक्टर भी परेशान थे कि कुसुम, मां क्यों नहीं बन पा रही है। राय जी के बच्चे की खबर सुन कर आज कुसुम स्वंय की रिक्तता से परेशान हो उठी थी। सुकांत को उसने कह भी दिया कि तबीयत ठीक नहीं लग रही है आज वह आफिस नहीं जायेगी। सुकांत के आफिस जाने के बाद वह खूब रोयी। उसके अंदर की टीस बार बार एहसास करा रही थी....बच्चा नहीं होने के पीछे अपने को दोषी मान वह स्वयं को कोसे जा रही थी। आज कुसुम ने तय किया कि कुछ भी हो आज सुकांत के आफिस से घर आने पर अपने अंदर की टीस को बाहर निकाल कर रहेगी.....चाहे इसके लिए उसी कोई भी सजा सुकांत क्यों न दें। वह बच्चे के बिना नहीं रह सकती। कुसुम जानती थी कि बच्चा नहीं होने की बात पर सुकांत भी उदास हो जाता था। लेकिन, कभी उसने या उसके परिवार के सदस्यों ने कुसुम को उलाहना नहीं दी दिया था। सुकांत और कुसुम साफ्टवेअर इंजीनियर हैं। सुकांत के खुद के चाहने पर ही नौकरी पेशा कुसुम से शादी हुई थी। हालांकि सुकांत के घर वाले शादी के पक्ष में तो थे लेकिन बहू के नौकरी करने के पक्ष में नहीं थे। वहीं, कुसुम ने भी शादी की बातचीत के दौरान सुकांत को साफ-साफ कह दिया था कि वह नौकरी नहीं छोड़ेगी, उसे अपने कैरियर से लगाव है। हां, वह अपने पत्नी-धर्म का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरतेगी और घर व आफिस को संभाल लेगी। हुआ भी वही, शादी के बाद कुसुम ने घर और आफिस को बाखूबी संभाला। एक ही शहर में दोनों के नौकरी करने से अलग-अलग रहने की समस्या भी नहीं आयी। जहां कुसुम ने घर-बार को संभाला वहीं सुकांत ने भी कुसुम को हर क्षण अपना स्नेह सहयोग दिया। शादी के एक सप्ताह बाद ही एक दिन सोने से पहले सुकांत ने कुसुम से उसके मां बनने के प्रसंग को लेकर उसकी इच्छा जाननी चाही थी। कुसुम ने साफ कहा था कि दो साल के बाद सोचूंगी। अभी तो उम्र ही क्या हुई है और थोड़ा कैरियर तो बना लूं। सुकांत ने कुछ बस इतना भर कहा-...जैसी तुम्हारी इच्छा। वह उठकर बालकोनी में आ गया और खुले आसमान में तारों को टिमटिमाते हुए देखने लगा था।

शादी के तीन माह बाद कुसुम को लगा कि वह ‘कनसिव’ कर गई है। सुकांत को बिना बताये ‘प्रिगनेंसी टेस्ट किट’ लाई। स्वयं टेस्ट भी किया। कुसुम की परेषानी रिपोर्ट के पाजेटिव होने ने बढ़ा दी थी। उसने सुकांत को बिना बताये डाक्टर से चेकअप करवाया और फिलहाल बच्चा नहीं चाहने की अपनी इच्छा से अवगत कराया। डाक्टर ने सलाह दी कि पहला बच्चा है, आने दो.......। लेकिन कुसुम किसी भी कीमत पर अभी बच्चा नहीं चाह रही थी। छोटे बच्चे की तरह वह जिद पर अड़ गई। हालांकि डाक्टर ने भू्रण-हत्या से अपने को अलग कर लिया और एक बार फिर सोचने की सलाह कुसुम को दी। डाक्टर के इंकार से विचलित कुसुम ने घर आते ही अंतरजाल के माध्यम से बच्चे को गिराने की दवा की खोज की और.................।

काल-बेल के बजते ही कुसुम का पूरा शरीर सिहर उठा- सुकांत के आने का समय था। सुकांत ने घर में घुसते ही उसे बाहों का सहारा देकर पूछा अब कैसी तबीयत है ? कुसुम ने हल्की आवाज में थोड़ा ठीक है कहा । मुंह हाथ धोने के बाद चाय का प्याला देते समय कुसुम ने धीरे से कहा कुछ बात करनी है....। हाँ......बोलो कह कर सुकांत टी.वी. खोल समाचार लगा कर चाय पीने लगा। कुसुम ने भर्राई आवाज में कहा मुझे कुछ कहना है। हां...हां.......कहो सुन रहा हॅू... कह कर सुकांत समाचार देखने लगा। एक क्षण शांत रहने के बाद आंखे बंद कर उपर की सारी घटना एक ही सांस में कुसुम कह गई। जब उसने आंखें खोली तो सामने सुकांत नहीं था। सुकांत चाय के प्याले को टेबल पर रख कर बालकोनी में खड़ा था और खुले आसमान में टिमटिमाते तारों को निहार रहा था। षायद दूर टिमटिम करते इन तारागणों को निहारते हुए उसे काफी सुकून मिलता था। कुसुम ...पुनः चुपचाप सोफे पर आंखे बंद कर बैठी रही। सुकांत ने लौटकर जब उसके सर को धीरे से सहलाया और सांत्वना दी। कोई बात नहीं....जो हो गया उसे याद करने से क्या फायदा.....और थोड़ा ठहर कर कहा- लेकिन, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि तुम ने कैरियर के लिए वह किया जो जीवन के लिए आवश्यक था । फिर तुम्हारे और उन लोगों में क्या अंतर है जो लड़के की चाहत में ही सही भू्रण हत्या करते हैं किसी को दुनिया में आने से रोकते हैं। खैर, तुम्हें अपराध बोध हुआ यह सबसे बड़ी बात है। जो हो गया वह दुःखद था अब उसका स्मरण कोई अर्थ नहीं रख्ता। अब हमें....एक नयी जिंदगी की शुरूआत करनी है। बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जो अनाथ है, चाहो तो किसी एक को गोद लेकर उसे एक नयी जिंदगी दे सकती हो,और एक नया जीवन पा सकती हो। सुकांत की बातों ने कुसुम की टीस पर मरहम का काम किया। दूसरे दिन सुबह सुकांत को चाय का प्याला देते समय कुसुम ने कहा ....आज आफिस से छुट्टी ले लो......अपने बच्चे को घर लाने हम अनाथालय चलेंगे...................सुकांत ने कुसुम के चेहरे पर छलक आई वात्सत्य-भाव से उपजी खुशी को पढ़ लिया थाऔर निहाल हो उसे बांहों में भर लिया।

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संजय कुमार

समाचार संपादक

दूरदर्शन पटना

पटना-800001, बिहार। मो-09934293148

ईमेल-sanju3feb@gmail.com

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पुस्तक प्रकाशन-

1.तालों में ताले अलीगढ़ के ताले, 2.नागालैंड के रंग बिरंगे उत्सव, 3.पूरब का स्वीट्जरलैंडःनागालैंड, 4. 1857:जनक्रांति के बिहारी नायक, 5.बिहार की पत्रकारिता तब और अब, 6.आकाशवाणी समाचार की दुनिया, 7.रेडियो पत्रकारिता और 8.मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे, 9. मीडिया: महिला जाति और जुगाड़ (प्रेस में) और 10. मीडिया में दलित(प्रेस में)।

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पुरस्कार-

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा ‘‘नवोदित साहित्य सम्मान’’, भारतीय साहित्य संसद द्वारा 1857 जनक्रांति के बिहारी नायक के लिये ‘‘बहादुरशाह जफर सम्मान, करूणा मैत्री सम्मान 2014 सहित कई सम्मान प्राप्त।

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सम्पर्क-संजय कुमार, फ्लैट संख्या-303, दिगम्बर प्लेस, डाक्टर्स कालोनी, लोहियानगर, कंकडबाग, पटना-800020, बिहार। मो- 09934293148