विज्ञान
प्रस्तुतिः शंभु सुमन
बगैर इंक फोटो प्रिंट कैमरा
फिर से आने वाला है पोलाराइड कैमरे का दौर
सेल्फी, वेल्फी और डिजिटल कैमरे के बेहद लोकप्रिय दौर में अपनी तस्वीरें देखने का आनंद भले ही सुखद हो, लेकिन जो अनुभूति चिकने ब्रोमाइड पेपर पर छपी हुई तस्वीर को निहारने में होती है वैसा असर डिजिटल कैमरे, कंप्यूटर या स्मार्टफोन के स्क्रीन पर देखने से नहीं हो पाता है। एक से बढ़कर एक सुविधाओं वाले डिजिटल कैमरे के आने और विभिन्न मेगा पिक्सल वाले फ्रंट, रीयर और बैक कैमरे वाले स्मार्टफोन की लोकप्रियता ने लोगों में फोटोग्राफी के प्रति भी काफी हद तक दीवानगी पैदा कर दी है। आज हर उम्र के सामान्य से सामान्य लोेग भी विभिन्न मौके को अपने कैमरे में कैद करने को इच्छुक रहते हैं। उनकी कोशिश होती है कि कोई भी यादगार लम्हा संजोए जाने से वंचित न रह जाए। आज कैमरा एक दुर्लभ वस्तु नहीं रहा, और न ही तस्वीरों लेने से लेकर उन्हें सहेजने-संभालने की ज्यादा झंझट है। एक-दो नहीं, बल्कि सैंकड़ों-हजारों की संख्या में तस्वीरें संग्रहित करने के डिजिटल तरीके उपलब्ध हैं। और तो और, यह कई मामलों के लिए एक जरूरत और मददगार भी बन गया है।
ऐसे में अपने स्मार्ट फोन से सेल्फी लेने वाल कोई एक जोड़ा क्षणभर के लिए सोचता है, काश! इसका एक प्रिंट भी स्नैप लेते ही बन जाता, तो बहुत अच्छा होता। ताकि वह अपने प्रिय की तस्वीर को उपहार स्वरूप अपने हस्ताक्षर सहित तुरंत भंट कर पाता। माना कि प्रिंट बनाने में कोई विशेष मुश्किल नहीं है, लेकिन स्नैप की तरह वह चंद मिनटों में नहीं मिल सकता है। अच्छे और मनपसंद प्रिंट के लिए स्टुडियो तक जाना पड़ता है, जहां से डिजिटल पिं्रट निकलवानी होती है। यह काम थोड़ समय लेने वाला धैर्य भरा होता है। बहुत जल्द ही यह समस्या भी दूर होने वाली है, क्योंकि पोलाराइड की वापसी हो चुकी है। पोलाराइड, यानि स्नैप करें और चंद सकेंडों में प्रिंटेट तस्वीर प्राप्त करें। सत्तर के दशक में आया पोलाराइड कैमरा लोगों के जेहन में अभी भी बसा हुआ है, जो डिजिटल कैमरे के आने तक लोकप्रिय बना रहा। यही पोलाराइड कैमरा इस बार डिजिटल कैमरे के रूप में प्रिंटिंग तकनीक की नई सुविधाओं के साथ बाजार में आ चुका है। इसके बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कैमरे के साथ प्रिंटिंग की वैसी तकनीकी सुविधा भी दी गई है, जिसमें न तो स्याही का इस्तेमाल होता है और न ही कलर इंक का कार्टेज या रिबन लगाए जाते हैं। इसके जरिए एक मिनट के भीतर 2 गुणा 3 इंच अर्थात बटुए के आकार की तस्वीर तुरंत प्रिंट होकर बाहर निकल आती है। यानि कि स्नैप लें, और प्रिंट करें का झटपट खेल चमत्कृत करने जैसा होता है।
जर्मनी के बर्लिन में 4 से 9 सितंबर तक चलने वाले आईएफए 2015 की प्रदर्शनी में इस पोलाराइड डिजिटल कैमरे का भी प्रदर्शन किया गया। आयोजक द्वारा इस बारे में कई खूबियंा गिनाई र्गइं और आने वाले दिनों में इसके लोकप्रिय होने की संभावनाएं तलाशी गईं। लोगों में भी इस 10 मेगापिक्सल कैमरे के प्रति गजब की ललक देखी गई, जिसमें 32जीबी तक डाटा संग्रहित करने की क्षमता का एक माइक्रो एसडी कार्ड लगाया गया है। यह कमैरा न केवल तुरंत फोटो खींच सकता है, बल्कि उसकी ब्रोमाइड पर रंगीन प्रिंट देने में भी सक्षम है।
एक स्नैप के बाद फोटो के प्रिंट होकर पूरी तरह से बाहर निकलने में करीब एक मिनट का समय लगता है। यह ठीक उसी तरह से बाहर निकलता है, जिस तरह एक कलर लेजर प्रिंटर से प्रिंट आउट होता है। इसी के साथ तस्वीर को जरूरत के मुताबिक आसानी से कंप्यूटर, इंटरनेट से मिलने वाली सुविधाओं, क्लाउड या सोशल साइटों के मंच पर भी सीधे-सीधे अपलोड किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फोटो प्रिंट के लिए इसमें जिंक यानि जीरो इंक कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है, जिसपर स्यान, पीला और मेजेंटा रंगों के रसायान पहले से कोटेड होते हंै। ध्यान रहे यही तीन मूल रंग होते हैं, जिनसे बाकी के रंग या उनके शेड बन जाते हैं। छपने से पहले यह कार्ड सामान्य चिकने ब्रोमाइड पेपर की तरह सफेद दिखता है।
पोलाराइड स्नैप नाम के इस कैमरे का निर्माता एक जानेमाने औद्योगिक डिजाइनर राॅबर्ड ब्रूनर के नेतृत्व की कंपनी एम्मयूनिएशन है। ब्रूनर इससे पहले एडोब, बीट्स बाय ड्रे, स्क्वायर, लिफ्ट, ओबी वल्र्डफोन और विलियम्स-सोनोमा के लिए डिजाइनिंग का काम कर चुके हैं। यह कैमार बाजार में कम से कम 99 डाॅलर अर्थात करीब 6315 रुपये में उपलब्ध है तथा इसे आॅनलाइन एमेजन पर भी बेचा जा रहा है। कैमरे के अतिरिक्त 50 ंिजंक पेपर के पैकेट की कीमत 29.99 डाॅलर यानि करीब 1900 रुपये रखी गई है। इस कैमरे की अन्य दूसरी विशेषताओं में एक फोटो बूथ एप के साथ खुद तस्वीर लेने का टाईमर का लगा होना भी है, जिससे केवल दस सेकेंड में छह तस्वीरें ले सकती हंै। साथ ही सेल्फी लेने में भी मदद कर सकता है। इसमें लगी वाईफाई की सुविधा से तस्वीरों को तुरंत कहीं भी आसानी से भेजी जा सकती है।
इस कैमरे की डिजाइनिंग पोलाराइड कलर स्पेक्ट्रम के तकनीक के आधार पर की गई है। हालांकि तुरंत फोटो लेने और उसका प्रिंट लेने की अवधारणा पोलाराइड के द्वारा करीब 75 साल पहले ही विकसित की गई थी। इस बारे में पोलाराइड के स्काॅट हार्डी ने प्रदर्शनी के दौरान उपस्थित लोगों को विस्तार से बताया। मूलरूप से सन् 1937 में स्थापित पोलाराइड दशकों से कैमरा और फोटोग्राफी संबंधी सामानों के निर्माण के लिए जाना जाता है। वर्ष 1943 में पोलाराइड के संस्थापक इडविन लाण्ड को तुरंत प्रिंट होनेे वाली तस्वीर का आइडिया उनकी तीन साल की बेटी के सवाल से मिला। एक बार उनकी बेटी ने पूछा, ‘स्नैप की तस्वीर वह तुरंत क्यों नहीं देख सकती है?’ यह बात उनके दिमाग में घर कर गई और वे इस क्षेत्र में नया करने में जुट गए। उन्हें सफलता चार साल बाद मिली और उन्होंने तुरंत प्रिंट किए जाने वाला कैमरा विकसित किया। देखते ही देखते यह कैमरा काफी लोकप्रिय हो गया। खासकर टूरिस्टों और नवविवाहित जोड़े इसक जमकर उपयोग करने लगे। यहां तक कि यह समाचार पत्र-पत्रिकाओं और दूसरे शोधार्थियों के लिए भी महत्व की चीज बन गया। कारण इससे तस्वीर के प्रिंट हाने वाले समय की बचत होने लगी और रील के प्रोसेसिंग के झंझट से भी मुक्ति मिल गई। पासपोर्ट साइज फोटो तुरंत बनवाना आसान हो गया। जबकि रीली के खीचं गए कैमरे में तस्वीरें तब तक कैद रहती थीं, जबतक कि उसकी रासायनिक प्रक्रिया अपनाकर धुलाई और ब्र्रोमाइड पेपर पर सही तरीके प्रिंट न कर लिया जाए। कई बार प्रोसेसिंग की गड़बड़ी की वजह से अच्छी स्नैप ली गई तस्वीर की गुणवत्ता में कमी आ जाती थी।
वैसे पोलाराइड कैमरे का उपयोग 1980 के आते-आते काफी कम हो गया था। कारण तबतक वीडियो और डिजिटल कैमरे ने दस्तक दे दी थी। वर्ष 1990 आते-आते तो लोग इसे ठीक इसी तरह से भूल गए जैसे पेजर, ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन सेट और कंप्यूटर की फ्लापी या सीडी को भूला दिया गया। अक्टूबर 2001 में पोलाराइड कैमरे ने अंतिम संास ली, लेकिन एक साल बाद पोलाराइड ब्रांड का लाइसेंस दूसरे उत्पादों के लिए मिल गया। हालांकि इसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गई और इसने 2008 दीवालिया घोषित कर दिया। इस घोषणा के बाद पोलाराइड की संपत्ति कई कंपनियों ने खरीद ली। इस क्रम में सीएंडए मार्केटिंग के स्नैप ने पोलाराइड लाइसंेस को 2009 में हासिल कर लिया।
बहरहाल, पोलाराइड एक बार फिर से वन स्नैप, वन प्रिंट आइडिया के साथ लोगों के सामने है। इससे प्रिंट होन वाली छोटे आकार की तस्वीरें बदलते हुए व्यावसायिक दौर के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं। अगर यह पर्स में रखे जाने वाली या मेजपर छोटे से फोटो एलबम में यादगार तस्वीर के तौर पर भावनात्मक रूप की जुड़ी हो सकती हैं, तो इसके कुछ व्यावसायिक या दूसरे तरह के उपयोग भी हो सकते हैं। जैसे स्टीकर, विजिटिंग कार्ड आदि। बीते जमाने के पोलाराइड तस्वीर की तुलना में इस तस्वीर की गुणवत्ता डिजिटल प्रिंटिंग तकनीक की वजह से बहेतर होने का दावा किया गया है। साथ ही तस्वीर लंबे समय सुरक्षित भी रहती है और इस पर दाग-धब्बे नहीं पड़ते हैं।
कैसे होती है स्याही बिना प्रिंटिंग
पोलाराइड स्नैप डिजिटल कैमरे में तस्वीर लेने की तकनीक एक सामान्य डिजिटल कैमरे की तरह ही होती है। इसमें बदलाव केवल प्रिंटिंग तकनीक के साथ किया गया है। यह कहें कि एक डिजिटल कैमरे में फोटो प्रिंट करने की सुविधा जोड़ दी गई है। इस फोटो प्रिंट की खूबी यह है कि इसमें रंगों की स्याही कोई कार्टेज नहीं लगाया जाता है। यह स्याही बगैर प्रिंटिंग की तकनीक पर कार्य करता है। यानि कि कैमरे के साथ जुड़े प्रिंटर के तकनीक की बात करें तो यह कैमरे के आकार के साथ जुड़ा होता है। इस हिस्से में जिंक पेपर लगाए जाते हैं, तीन मूल रंगों-स्यान, पीला और मेजेंटा के क्रिस्टल का सूखा लेप विभिन्न स्तरों पर लगा होता है। हालांकि यह दिखने में सफेद सामान्य चिकने पेपर जैसा ही होता है। इसपर कई परतें चढ़ाई जाती हैं, जो मूल आधार की परत पर काफी बारीकी से कोट की होती हैं। इसपर की गई पोलिमर की कोटिंग नमी, यूीवएम एक्सपोजर और धुंधलाने या दाग-धब्बे पड़ने से बचाता है। इन सभी परतों की मोटाई मानव के केश जितनी ही होती है।
कैमरे में स्नैप के बाद प्रिंट का आॅप्शन चुना जाता है। तब इसमें लगा प्रिंटर का हिस्सा एक सेकेंड मंे ही काफी गर्म हो जाता है। जिससे पेपर पर कोट किए गए रंगों के क्रिस्टल टूटने लगते हैं और एक-दूसरे मिश्रित होकर स्थायी रंग बना देते हें। तुरंत ही ये रंगों के क्रिस्टल तस्वीर के अनुरूप विविध रंगों के साथ पूरे पेपर पर फैल जाते हैं। जैसे ही पेपर बाहर निकलने लगता है, इसके ठंडा होने पर मिश्रित रंग ठोस बन जाते हैं और खूबसुरत तस्वीर उभर आती है। इस तरह से बाहर निकलने वाली तस्वीर काफी चमकदार, अच्छी गुणवत्ता लिए होती है, जो लंबे समय तक नहीं धुंधलाती है।
कैसे-कैसे कैमरे
सबसे पहले कैमरा ईराकी वैज्ञानिक इब्न-अल-हजैन के द्वारा 1015 से 1021 के दौरान किया गया। तब कैमरा आॅब्स्क्योरा के रूप में आया। बाद में अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट बाॅयल और उनके सहायक राबर्ट हुक ने सन् 1660 के दशक में एक पोर्टेबल कैमरा विकसित किया। बाद में सन् 1685 में जोहन जान द्वारा विकसित किया गया कैमरा और ज्यादा व्यावहारिक बन गया था। अलग-अलग दौर में इसमें व्यापक बदलाव होता रहा। आॅब्स्क्योर से लेकर डिजिटल कैमरे में हर पल के यादगार बना लेने की अद्भुत क्षमता है तो इसके सफर में भी कई यादगार पहलू जुड़े हैं।
आब्स्क्योर कैमराः पहले किस्म का यह कैमरा करीब एक कमरे के आकार का था। समय के साथ इसमें व्यापक बदालव आए और इसका आकार छोटा होता चला गया। सन् 1816 तक निप्से ने इसमें कई बदलाव किए।
कैलोटाइप्स: निप्से की मृत्यु के बाद सन् 1839 में उनके सहयोगी लुईस डैगुरे ने पहली बार प्रैक्टिकल फोटोग्राफिक प्रोसस बनाया। इसे डैगुरियोटाइप का नाम दिया गया। बाद में 1840 ईस्वी में हैनरी फॉक्स ने कैलोटाइप्स नामक एक नई प्रासेस विकसित की। इसके जरिए एक फोटो की काई प्रतियों बनाई जा सकती थीं।
फिल्म का कैमरा : पहली बार कैमरे में फिल्म का उपयोग जार्ज ईस्टमैन ने किया। उनके द्वारा बनाए गए कैमरे को कोडक का नाम दिया गया। यह बाजार में 1888 में आया, जिससे 100 तस्वीरें लिए जा सकते थे। इसमें फिल्म बदलने की भी सुविधा थी। इसी फिल्म के इजाद के साथ मूवी कैमरे का भी आविष्कार हुआ।
टीएलआर: वर्ष 1928 में पहली बार रिफ्लेक्स कैमरे का इजाद किया गया, जो काफी लोकप्रिय हुआ।
एसएलआर: कैमरे का यह प्रकार 1933 में आया, जिसमें 127 रोल फिल्म लगी हुई थीं। बाद में 135 फिल्म्स के रोल वाला कैमरा आया।
पोलारॉइड कैमरा: वर्ष 1948 में आया यह एक बिल्कुल ही नया कैमरा आया, जिसे एडविन लैंड ने बनाया था। इसकी लोकप्रियता सत्तर के दशक में बनी। इसमें तुरंत पिक्चर्स निकल आते थे।
डिजिटल कैमरा: यह पहले के सभी कैमरे से काफी अलग है, जिसका इस्तेमाल इनदिनों धड़ल्ले से होता है। इनमें फिल्म का इस्तेमाल नहीं होता था। इनमें फोटो डिजिटल मैमोरी कार्ड में सेव होता था। इनमें ब्लूटूथ, वाईफाई आदि से फोटो शेयर की सुविधा भी है।
प्रस्तुति: शंभु सुमन
255/4 मुनीरका, नई दिल्ली
पिन 110067
मोबाइल—9871038277
Email: