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अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट: मशीन और मानव का मेल

प्रस्तुति: शंभु सुमन

अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट:

मशीन और मानव का मेल

एक तरफ वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और तकनीशियनों का प्रयास मशीन के साथ इंसानी मेल बिठाने की है, तो दूसरी तरफ इस तरह से तैयार अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट से होने वाले खतरों को लेकर भी आशंका है, जो इंसानों के ही खिलाफ हो सकते हैं। मशीन बनाम मानव के बीच ही जंग जैसी स्थिति बन सकती है। इस बारे मंे जानेमाने विज्ञान लेखक लोगान स्टीरयोंज ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2040 से अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट मानवता के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर सकता है। उन्होंने इसे हत्यारा मशीन की संज्ञा देते हुए दुनिया भर के नेताओं को इसके विरूद्ध अभी से ही समुचित व्यवस्था कर लेने को कहा है, क्योंकि भविष्य के रोबोट अगर बड़े पैमाने पर सैन्य ड्रोन की तरह इस्तेमाल किए जा सकते हैं, तो वे पृथ्वी पर अपने रहने की मांग भी कर सकते हैं। वजह होगी रोबोट की तेजी से बढ़ती संख्या।

रोबोट के दिन-प्रतिदिन बदलते स्वरूप, उपयोग और तेजी से होते उत्पादन को लेकर अनुशंधानकर्ताओं, वैज्ञानिकों, दूसरे बुद्धिजीवियों समेत युवाओं में चिंता का विषय बन गया है कि इसका आनेवाले दिनों में अंजाम किस हद तक असहनीय और उत्पीड़क हो सकता है। इंटरनेशनल फेडरेशन आॅफ रोबोटिक्स (आईएफआर) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अगले दो सालों में चीन इकलौता देश होगा, जहां पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा लगभग 42,8000 रोबोट हो जाएंगे। इनमें बड़ पैमाने पर अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट भी होंगे जो न केवल इंसानी काम करने में सक्षम होंगे, बल्कि दुस्कर कार्य को भी सफाई के साथ अंजाम देने के काबिल समझे जाएंगे। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, विभिन्न सरकारी गैर सरकारी संस्थान, रेस्तरां आदि से लेकर युद्ध के मैदान तक में इसकी पहुंच चैंकाने वाली सबित होगी। इस संदर्भ में साइंस फिक्शन के जाने माने लेखक और साफ्टवेयर डेवलपर लोगानी स्टीरयोंज ने अपनी हाल की एक पुस्तक ‘ए होम फार रोबोट्स आॅर एल्स अर्टिलेक्ट वार - रोबोट के लिए एक घर या किसी निर्मित युद्ध की जगह’ में चिंता जताने के साथ-साथ चेतावनी भी दी है कि आने वाले 24 से 39 सालों के दौराना दुनिया में उतने ही रोबोट होंगे जितनी जनसंख्या इंसानों की होगी। इसे उन्होंने मानवता के लिए खतरा बताया है। उनका कहना है इससे युद्ध जैसी भयावह स्थितियां उत्पन्न होने से इनकार नहींे किया जा सकता है। यह एक तरह से निर्मित युद्ध शैली के जन्म लेने जैसा संघर्ष भरा हो सकता है।

इस बारे में सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है कि जब मानव जाति से बहुतायत में रोबोट की संख्या होगी, जिनमें अल्ट्रा इंटेलिजेंट रोबोट भी होंगे, वे आपसे पर्याप्त जगह की मांग करेंगे। इसी के साथ उन्होंने चेतावनी दी है कि सैन्य रोबोट से भविष्य में कभी भी जंग की आशंका बन सकती है और तब ये जानलेवा मशीन के सिवाय और कुछ नहीं होंगे। यह वैश्विक युद्ध आग की तरह फैल सकता है, जिसका अनुमान 2040 या 2050 में होने की है।

विश्व की जनसंख्या के वेबसाइट वल्र्ड काउंट के हवाले से लोगान का कहना है कि प्रतिदिन अगर 350हजार मानव शिशु का जन्म होता है, तो उस अनुसार 130मिलियन आबादी सालाना एक फीसदी के दर से बढ़ती है। अब अगर आईएफआर की रिपोर्ट को देखें तो वर्ष 2014 में विभिन्न सेवाएं और औद्योगिक जगत के लिए काम करने वाले विश्व में करीब पांच मिलियन रोबोट का उत्पादन हुआ था। इनमें 11,000 सैन्य सेवाओं के रोबोट थे। इसका करीब 13 फीसदी के दर से उत्पादन होने से वर्ष 2040 में करीब 230 हजार सैन्य रोबोट होने का अनुमान है और वर्ष 2053 में इसका उत्पादन एक मिलियन सालान की दर से होने लगेगा, जिसकी तुलना आधे मिलियन सक्रिय अमेरिकी सैन्य कर्मियों से की जा सकती है।

लोगान ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि एक बड़ी विडंबना बताते हैं कि एक मानव दूसरे मानव पर अपना प्रभुत्व हासिल करने के लिए मशीनी सेवक का उपयोग कर रहा है। अब यदि ये सेवन एक दूसरे को नष्ट नहीं करने का निर्णय लेते हैं, तो यह पूरी दुनिया चलाने वालों के लिए एक दिलचस्प कदम हो सकता है। वे लिखते हैं,‘ चक्रवृद्धि ब्याज का हिसाब करने वाले कैलकुलेटर का उपयोग कर और दरों में स्थिरता का भरोसा रखते हुए अनुमान लगाएं तो पाएंगे कि करीब 25 सालों के बाद सालाना रोबोट का उत्पादन मानव शिशु के जन्म के बराबर हो जाएगा। लोगान की चेतावनी के अनुसार मानव रहित सेन्य हार्डवेयर और ड्रोन में बढ़ोत्तरी कई नए खतरे को जन्म दे सकता है। मजबूत मशीनों और इंसानों के बीच टर्मिनेटर शैली में युद्ध हो सकता है। मानव जाति की और आयु 70 साल की है, जबकि वल्र्ड फैक्ट बुक के मुताबिक रोबोट का जीवन करीब 10 साल का हो सकता है। इसलिए मानव की तुलना में सातगुना अधिक रोबोट उत्पादन पर जोर दिया जाएगा।

यदि रोबोट के उत्पादन का यही ट्रेंड बना रहा तो जैसे-जैसे रोबोट की संख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे इनसे संबंधित समस्याएं में भी बढ़ोत्तरी होगी। यानि कि करीब 55 साल के बाद 2070 में कहीं ऐसा न हो कि रोबोट में आपसी विद्रोह जाए और इंसान उसके विद्रोही तेवर को झेलने का मजबूर बन जाए। रोबोट के निर्माण में लगी कंपनियां में स्विट्जरलैंड की एबीबी, जर्मनी की कुका, जापान की यास्कावा और फेनुक की ऐसी मुख्य हैं। इन सभी के चीन में प्लांट हैं। यहां तक कि यूरोपीय कार कंपनियां फाक्स वैगन और डैमलर भी चीन में रोबोटिक्स के विकास पर काफी निवेश कर चुकी है।

बहरहाल, अमेरिका में इन दिनों दूर से ही रोबोट को नियंत्रित करने के लिए शोध चल रहा है। इस सिलसिले में नई प्रयोगशाला रोबोटेरियम विकसित की जा रही है। सौ रोबोट की क्षमता वाले इस रोबोटोरियम से दूर रहकर ही रोबोट का नियंत्रण किया जा सकेगा। इससे जुड़ने वालों में मुख्य तौर पर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अतिरिक्त हाई स्कूल के छात्रों ने भी प्रयोग के तौर कोड और डेटा फीड किया है। वे वीडियो के जरिए रोबोट की गतिविधियों को काबू में कर दिखाया है। वैसे रोबोटोरियम वर्ष 2017 से काम करने लगेगा। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में घातक स्वचालित रोबोटिक हथियारों पर चर्चा हो चुकी है। ह्यूमन राइट्स वाच के आयुध विभाग के निदशक स्टीव गूस के अनुसार प्राणघातक रोबोट अंतरराष्ट्रीय कानून के कई सिद्धांतों और आधारभूत तथ्यों के अनुरूप खतरनाक है। इस खतरे से बचने के लिए स्वचालित हथियारों पर समय रहते प्रतिबंध लगा दिया जाए। उल्लेखनीय है कि गूस का संगठन अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अप्रैल 2013 से ऐसे घातक रोबोट को रोकने के लिए अभियान छेड़े हुए है।

कैसे-कैसे बुद्धिमान रोबोट

सैनिक रोबोटः रूसी रोबोट एटमी हथियारों की रक्षा करेंगे और बैलिस्टिक मिसाइल छोड़ेंगे। इस बारे में पिछले साल 17 दिसंबर को रूस की सामरिक मिसाइल सेने के कमांडर सिर्गेय काराकाएफ ने पत्रकारों को बातया कि उनकी सेना में काम करने वाले रोबोट टोह लेने से लेकर तोपल एम एवं यार्स नामक मिसाइल संचालन और फौजियों की विभिन्न तरह से सहायता कर सकते हैं। परीक्षण के दौर से गुजर रहे इस मोबाइल रोबोट का नाम भेडि़या रखा गया है, जो अंधेरे में भी अदृश्य लक्ष्य को पहचान कर उनपर 35 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से फायरिंग कर सकता है। ये रोबोट एक सचमुच के फौजी की तरह ताकतवर, भारी और साहसी हैं, जो चेनदार पहियों पर चलते हैं। इस तरह केे ये गश्त लगाने से लेकर सैन्य ठिकानों की सुरक्षा और फायरिंग करने, सामरिक दस्ते की मदद करने और सभी दूसरे काम करने में सक्षम हैं।

साथ ही यह दावा किया गया है कि चैथी और पांचवीं पीढ़ी के रोबोट न केवल बैलेस्टिक मिसइलों के अलावा सामरिक मिसाइल के फौजियों के हर तरह के आदेश मानने को तत्पर रहेंगे ओर एटमी युद्ध की स्थितियों में रेडियो इलेक्ट्रानिकी दबाव को पार करते हुए मिसाइल लांचर का सीधे संचालन करने में सक्षम होंगे। अर्थात जब मिसाइल हमले की पूर्व सूचना देने वाले उपकरण दे रहे हों या आपदा की पूर्व चेतावनी दे रहे हों तब रोबोट खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होंगे कि इस विकट स्थिति में क्या करना है।

सोशल रोबोटः पिछले दिनों सिंगापुर में मनुष्य से सबसे अधिक मिलते-जुलते रोबोट नादीन का अनावरण किया गया, जिसकी न केवल नर्म त्वचा है, बल्कि भूरे और चमकीले बाल हैं। उसे सिंगापुर में नानियांग टेक्नीकल कालेज में बतौर सेक्रेट्री लगाया गया है। इसके शोधकर्ताओं की मानें तो यह तमीज से मिलने वालों से हाथ मिलाती है, उनसे बातें करती है और अविष्कारकों से मिले सुंदर चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए आगंतुकों का स्वागत करती है। इसकी आंख के जरिए संपर्क बनाया जा सकता है और यह न केवल अपने मिलने वालों को भूलती और न ही उनकी बातों को याद करने के लिए सिर खुजलाती है। और तो और उसे कोई जरा भी अपमानित नहीं कर सकता। छेड़ने की हिम्मत करने वाले को सीधा थप्पड़ जड़ देती है। नादीन के आविष्कारक नादिया सालमेन का कहना है कि यह एक तरह का सोशल रोबोट है, जिसका इस्तेमाल वेबकैम के जरिए बच्चों और वृद्धों की देखभाल करने एवं चिकित्सा जगत में किया जा सकता है।

किलर रोबोटः बीते साल अगस्त में बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के कंप्यूटर वैज्ञानिक स्टीवर्ट रसेल ने ’घातक स्वशासी हथियार’ पर प्रतिबंध लगाने के बारे में खुला पत्र लिखा। टर्मिनेटा जैसे रोबोट दक्षिण कोरिया की ओर से इस्तेमाल होने वाले सैमसंग के सेंट्री रोबोट है, जो असामान्य गतिविधियों को चिन्हित कर निर्देश मिलने पर गोली मार सकता है।

मशीन और मानव

  • स्वास्थ्य से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर रोबोटिक कंकालों पर शोध किए गए हैं। इसकी मदद से बीते दश कमे इंसान के शरीर की हरकतें करने वाले रोबोटिक हाथ, पैर ओर कई तरह के केकाल विकसित किए गए हैं। इस तरह का आइला नाम की यह मादा रोबोट के कई प्रयोग सफल हुए हैं, जो केवल केवल उद्योग-धंधों में ही उपयोगी पाया गया है, बल्कि इसे अंतरिक्ष में भी इस्तेमाल करने योग्य बनाया गया है।
  • जर्मनी में एक्सो-स्केलेटन पर काम करने वाला डीएफकेआई नाम का आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस रिसर्च सेंटर 2007 में शुरू किया गया। वहां के वैज्ञानिकों ने रोबोटिक हाथ और उसका रिमोट कंट्रोल सिस्टम बनाने की दिशा में काम किया है।
  • डीएफकेआई ने 2011 से दो हाथों वाले एक्सो-स्केलेटन पर काम शुरू किया.। दो साल तक चले इस प्रोजेक्ट में अनुशंधानकर्ताओं को इंसानी शरीर के ऊपरी हिस्से की कई बारीक हरकतों की अच्छी नकल कर पाने में कामयाबी मिली।
  • केवल जर्मन ही नहीं, रूसी शोधकर्ताओं ने भी रिमोट कंट्रोल सिस्टम वाले एक्सो-स्केलेटन बनाने में सफलता पाई है। डीएफकेआई ब्रेमन के शोधकर्ताओं को 2013 में रूसी रोबोट को देखने का अवसर मिला। इसके अलावा रूसी वैज्ञानिक भी आइला रोबोट पर अपना हाथ आजमा चुके हैं।
  • दुनिया की दूसरी जगहों पर विकसित किए गए सिस्टम्स के मुकाबले डीएफकेआई के कृत्रिम एक्सो-स्केलेटन के सेंसर ना केवल हथेली पर लगाए गए, बल्कि वाहं के ऊपरी और निचले हिस्सों पर भी लगाने मंे सफलता मिली। नतीजतन रोबोटिक हाथ का संचालन बेहद सटीक और असली सा हो गया। इसमें काफी जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स इस्तेमाल किया गया।
  • डीएफकेआई 2017 से रोबोटिक हाथों के साथ साथ पैरों का एक्सो-स्केलेटन भी पेश कर लेगा। यह इंसान की लगभग सभी शारीरिक हरकतों की नकल कर सकेगा। अब तक एक्सो-स्केलेटन को पीठ पर लादना पड़ता था, लेकिन भविष्य में रोबोट के पैर पूरा बोझ उठा सकेंगे।
  • इन एक्सो-स्केलेटनों का इस्तेमाल लकवे के मरीजों की सहायता के लिए भी किया जा रहा है। ब्राजील में हुए 2014 फुटबॉल विश्व कप के उद्घाटन समारोह में वैज्ञानिकों ने इस तकनीकी उपलब्धि को पेश किया था। आगे चलकर इन एक्सो-स्केलेटन में बैटरियां लगी होंगी और इन्हें काफी हल्के पदार्थ से बनाया जाएगा।
  • फिलहाल इन एक्सो-स्केलेटन की अंतरिक्ष में काम करने की क्षमता का परीक्षण त्रिआयामी सिमुलेशन के द्वारा किया जा रहा है। इन्हें लेकर एक महात्वाकांक्षी सपना है कि ऐसे रोबोटों को दूर दूर के ग्रहों पर रखा जाए और उनका नियंत्रण धरती के रिमोट से किया जा सके। भविष्य में खतरनाक मिशनों पर अंतरिक्षयात्रियों की जगह रोबोटों को भेजा जा सकता है।
  • प्रस्तुतिः शंभु सुमन

    12, जनपथ

    नई दिल्ली-11

    9871038277

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