धार्मिक कौन Neelima Sharrma Nivia द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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धार्मिक कौन

धार्मिक कौन ??

याद कीजिये अपनी दादी नानी को . सुबह सवेरे मंदिर की घंटी या अरदास या प्रार्थना से जाब आपकी नींद खुलती थी अगर बत्ती का धुँआ घर भर में एक पवित्र वातावरण सा मन को आल्हादित करता था | आज उस तरह पूजा पाठ ना होता हो शायद फिर भी अधिकतर महिलाए ही पूजा पाठ अधिउक करती नजर आती हैं . घर पर कोई भी आयोजन हो उसमी सबसे अधिक जुड़ाव घर की स्त्री का होता हैं . अपने आस पास नजर डालिए किसी मंदिर ,गुरद्वारे चर्च में जाइये तो देखने को मिलेगा कि श्ह्र्दा भाव से हाथो में धार्मिक पुस्तक लिय कोई न महिला हाथ जोड़े इश्वर के समक्ष नतमस्तक नजर आएगी | मन ही मन प्रार्थना के मन्त्र पढ़ती , अरदास करती , तस्बीह पर नाम जपती महिलाए अक्सर हर दुसरे घर में नजर आती हैं बहुत सोचा कि महिलाएही ऐसा क्यों करती हैं पुरुष बहुत कम ऐसा करते नजर आते तो कुछ मुख्य बिंदु सामने आये

१. धर्मभीरुता ------ महिलाए स्वभाव से भीरु प्रवृति की होती हैं . अपने मन की असुरक्षा उसे इश्वर के सामने नतमस्तक होने पर मंजूर कर देती हैं . अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा वैसा हुआ तो क्या होगा का डर भूलने के लिय वह इश्वर चरणों में खुद को व्यस्त करदेती हैं

२. अपनों की चिंता ---

महिलाए बहुत भावुक होती हैं खुद को कुछ भी हो जाए उनको परवाह नही होती परन्तु उनके किसी अपने का जरा भी बुरा न हो इसके लिय वो मन ही मन इश्वर के सामने सर झुकाए रहती हैं .

३. संस्कार - हर धर्म में बचपन से बच्चो को ईश आराधना के संस्कार दिए जाते हैं और संस्कारों को स्त्रीया लडकिया बहुत जल्दी आत्म सात कर लेती हैं अपनी माँ बहन दादी नानी को जिस पूजा पाठ करते देखती हैं बिना कोई कारण जाने उस पूजा को पीढियों तक हंस्तारित करती हैं .

४. अन्धविश्वासी होना - स्त्रीयों में अंध विश्वासी होने का प्रतिशत ज्यादा होता हैं बीमारी मुकदमा परेशानी हो स्त्रिया उनका सार्थक हल ढूढने की बजाय सिर्फ ईश भक्ति से समाधान खोजती हैं जो समाज के लिय कैंसर बन जाता हैं नर बलि जादू टोन तंत्र मन्त्र इसी का परिणाम हैं

५. सुकून शांति - महिलाए अपने मन को सुकून महसूस करती हैं जब वो खुद को इश्वर के नजदीक पाती हैं . जीवन की आपा धापी में तनाव पूर्ण जीवन शैली में इश्वर के सानिध्य में बिठाये कुछ लाम्हे उनको सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं .

६. समस्याओं की खोज _ कहते हैं जब सब दरवाज़े बंद हो जाते तो इश्वर एक नया दरवाज़ा खोल देता हैं बस इसी विश्वास से स्त्रियाँ जब हर तरफ से विश्वास खो बैठती हैं तो ईश आराधना में खुद को भूल जाती हैं फिर मन शांत होने पर उनको समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता मिलती हैं .

७. दिन की सुन्दर शुरुवात - घर एक मंदिर होता हैं और हर दिन एक नया दिन इसलिय हर नए सूरज का स्वागत वोह सकारात्मक भाव से करती हैं ताकि पूरा दिन सकरातामाक्ता बनी रहे

८. आधुनिक जीवन शैली - आधुनिक जीवन शैली की देन हैं तनाव डिप्रेशन ..... देखा गया हैं इन बीमारियों का इलाज़ अगर दवा के साथ दुआ से भी किया जाये तो असर जल्दी होता ईश अराधना रोजाना करने वाली स्तरीय अवसाद की कम शिकार होती या जल्द ही उबर जाती

९. दिखावा - आजकल मंदिर गुरूद्वारे जाना अरदास करना भंडारे करना सेवा करना एक फैशन भी बन गया हैं \\ पुरुष कम कर लाये तो महिलाए सामाजिक कार्यो के साथ साथ धार्मिक आयोजन करा कर दिखावा भी करती

१० . मुराद मन्नत हेतु - बच्चो के लिय अच्छा कैरियर चुन'ना हो या पति की उन्नति हेतु प्रार्थना करती महिलाए अनेक व्रत पूजा करती हैं इसलिय नही कि स्वार्थ हैं बल्कि घर परिवार के प्रति बहुत अधिक जुड़ाव अपने अपनों की चिंता स्त्री का त्याग ममता की पर्याय होना उनको इश्वर के समकक्ष खड़ा कर देता हैं

११. मनोरंजन का साधन कुछ महिलाए धर्म में भी मनोरंजन महसूस करती हैं कीर्तन भजन में उनका मन बहुत रमता हैं . हर तीज त्यौहार पर ऐसे आयोजन में भाग लेना उनको सुकून देता उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग होता .

इश्वर आराधना करना बुरी बात नही हैं सबको अपने अपने धर्म के मुताबिक़ इश्वर की आराधना करनी चाहिए परन्तु अंध विश्वास से दूर रहना चाहिए . आपका धार्मिक होना तभी तक सही होता जब तक वो मानव मात्र के लिय नुकसान दायक न हो . अपने फायदे के लिय बलि देना तंत्र मन्त्र करना , दुसरे धर्म को भला बुरा कहना नाजायज कृत्य हैं एक महिला जो माँ बनकर इश्वर के समकक्ष हो जाती हैं वही अपने बच्चो को आने वाली सभ्यता को सही से धर्म के मार्ग पर शिक्षित कर सकती हैं

ख़ुशी का कोई पल हो या दुःख का कोई मार्मिक लम्हा | मन खुद –ब- खुद अपने इष्ट को याद करने लगता हैं | शिशु के जन्म के समय घर के बुजुर्ग सबसे पहले उसके कान में अपना धार्मिक मन्त्र फूकते हैं तो कही शिशु की जिव्हा पर सन सबसे पहले इश्वर का नाम लिखा जाता हैं ताकि उमर्भार उसको इश्वर के अस्तित्व का भान रहे उसकी सत्ता पर विश्वास कायम रहे | कोई तो ऐसी एक सर्वोच्च संस्था हैं जिसके हाथो हमारे सुख दुःख भाग्य प्रारब्ध तय होते हैं | विधि का विधान कह कर इश्वर के हर फैसले को स्वीकार किया जाता हैं | और जब कोई मुराद पूरी हैं तो अपने अपने धर्म संस्कारों के अनुसार शुकराना भी किया ज़ाता हैं |

याद कीजिये अपनी दादी नानी के समय को या अपनी माँ को | सुबह सवेरे मंदिर की घंटी या अरदास या प्रार्थना से जब आपकी नींद खुलती थी\\ अगर- बत्ती का धुँआ घर भर में एक पवित्र वातावरण सा मन को आल्हादित करता था | आज उस तरह पूजा पाठ ना होता हो| आज घर भर में उस तरह से कर्मकांड और संस्कार नही होती हो लेकिन शायद फिर भी अधिकतर महिलाए ही घर भर में पूजा पाठ अधिउक करती नजर आती हैं . घर पर कोई भी आयोजन हो उस में सबसे अधिक जुड़ाव सक्रियता घर की स्त्री का होता हैं . अपने आस पास नजर डालिए किसी मंदिर ,गुरद्वारे चर्च में जाइये तो देखने को मिलेगा कि धार्मिक भाव से हाथो में धार्मिक पुस्तक लिय कोई न महिला हाथ जोड़े इश्वर के समक्ष नतमस्तक नजर आएगी | मन ही मन प्रार्थना के मन्त्र पढ़ती , अरदास करती , तस्बीह पर मनके घुमाती महिलाए अक्सर हर दुसरे घर में नजर आती हैं | पुरुष वर्ग भी धार्मिक होता हैं उनकी धार्मिक विश्वास की बहुत सी कहानिया प्रचलित हैं परन्तु महिलाए ज्यादा धर्मभीरु होती हैं | बहुत सोचा कि महिलाएही ऐसा क्यों करती हैं पुरुष बहुत कम ऐसा करते नजर आते तो कुछ मुख्य बिंदु सामने आये

१. धर्मभीरुता ------ महिलाए स्वभाव से भीरु प्रवृति की होती हैं . अपने मन की असुरक्षा उसे इश्वर के सामने नतमस्तक होने पर मंजूर कर देती हैं | अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा ? वैसा हुआ तो क्या होगा ? का डर भूलने के लिय वह ईश्वर चरणों में खुद को व्यस्त कर प्रार्थना करती सबकी खैर मांगती हुयी सर को झुका कर इबादत करती हैं |

२. अपनों की चिंता ---

महिलाए बहुत भावुक होती हैं खुद को कुछ भी हो जाए उनको परवाह नही होती परन्तु उनके किसी अपने का जरा भी बुरा न हो इसके लिय वो मन ही मन इश्वर के सामने सर झुकाए रहती हैं .

३. संस्कार - हर धर्म में बचपन से बच्चो को ईश आराधना के संस्कार दिए जाते हैं और संस्कारों कोस्त्रियाँ / लडकिया बहुत जल्दी आत्म सात कर लेती हैं अपनी माँ बहन दादी नानी को जिस पूजा पाठ करते देखती हैं बिना कोई कारण जाने उस पूजा को पीढियों तक हंस्तारित करती हैं .

४. अन्धविश्वासी होना - स्त्रीयों में अंध विश्वासी होने का प्रतिशत ज्यादा होता हैं बीमारी मुकदमा परेशानी हो स्त्रिया उनका सार्थक हल ढूढने की बजाय सिर्फ ईश भक्ति से समाधान खोजती हैं जो समाज के लिय कैंसर बन जाता हैं नर बलि जादू टोना तंत्र मन्त्र इसी का परिणाम हैं

५. सुकून शांति - महिलाए अपने मन को सुकून महसूस करती हैं जब वो खुद को इश्वर के नजदीक पाती हैं . जीवन की आपा धापी में तनाव पूर्ण जीवन शैली में इश्वर के सानिध्य में बिठाये कुछ लाम्हे उनको सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं . ध्यान लगाने को इश्वर के नाप का जप करना और अपने अंतर्मन को शुद्ध करने के लिय नौस अन्तर्यामी सत्ता के सामने झुकना हर स्त्री का स्वभाव होता हैं |

६. समस्याओं की खोज _ कहते हैं जब सब दरवाज़े बंद हो जाते तो इश्वर एक नया दरवाज़ा खोल देता हैं बस इसी विश्वास से स्त्रियाँ जब हर तरफ से विश्वास खो बैठती हैं तो ईश आराधना में खुद को भूल जाती हैं फिर मन शांत होने पर उनको समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता मिलती हैं .

७. दिन की सुन्दर शुरुवात - घर एक मंदिर होता हैं और हर दिन एक नया दिन इसलिय हर नए सूरज का स्वागत वोह सकारात्मक भाव से करती हैं ताकि पूरा दिन सकारात्मकता बनी रहे

८. आधुनिक जीवन शैली - आधुनिक जीवन शैली की देन हैं तनाव डिप्रेशन ..... देखा गया हैं इन बीमारियों का इलाज़ अगर दवा के साथ दुआ से भी किया जाये तो असर जल्दी होता ईश आराधना रोजाना करने वाली स्त्रियाँ अवसाद की कम शिकार होती या जल्द ही ट्रॉमा से उबर जाती हैं |

९. दिखावा - आजकल मंदिर गुरूद्वारे जाना अरदास करना भंडारे करना सेवा करना एक फैशन भी बन गया हैं \\ पुरुषकमा कर लाये तो महिलाए सामाजिक कार्यो के साथ साथ धार्मिक आयोजन करा कर दिखावा भी करती |

१० . मुराद मन्नत हेतु - बच्चो के लिय अच्छा कैरियर चुन'ना हो या पति की उन्नति हेतु प्रार्थना करती महिलाए अनेक व्रत पूजा करती हैं इसलिय नही कि स्वार्थ हैं बल्कि घर परिवार के प्रति बहुत अधिक जुड़ाव अपने अपनों की चिंता स्त्री का त्याग ममता की पर्याय होना उनको इश्वर के समकक्ष खड़ा कर देता हैं

११. मनोरंजन का साधन कुछ महिलाए धर्म में भी मनोरंजन महसूस करती हैं कीर्तन भजन में उनका मन बहुत रमता हैं . हर तीज त्यौहार पर ऐसे आयोजन में भाग लेना उनको सुकून देता उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग होता .

इश्वर आराधना करना बुरी बात नही हैं सबको अपने अपने धर्म के मुताबिक़ इश्वर की आराधना करनी चाहिए परन्तु अंध विश्वास से दूर रहना चाहिए . आपका धार्मिक होना तभी तक सही होता जब तक वो मानव मात्र के लिय नुकसान दायक न हो . अपने फायदे के लिय बलि देना तंत्र मन्त्र करना , दुसरे धर्म को भला बुरा कहना नाजायज कृत्य हैं एक महिला जो माँ बनकर इश्वर के समकक्ष हो जाती हैं वही अपने बच्चो को आने वाली सभ्यता को सही से धर्म के मार्ग पर शिक्षित कर सकती हैं | और धार्मिक वातावरण का सकारात्मक वातावरण घर पर बना कर बच्चो में अछे संस्कार भर कर उत्तम सामाजिक भाविष्य का निर्माण कर सकती हैं | एक सकारात्मक समाज ही उत्तम देश और फिर विश्व का निर्माण करता हैं |

(c) नीलिमा शर्मा निविया