मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है लेकिन जब चिंतन चिंता में बदल जाये तो खतरनाक है। ज्यादातर लोग चिंता में ही जीते हैं चिंतन में नही। दरअसल जो हो रहा है उसके बारे में चिंता करने के वजाय उससे सबक लेकर खुद को इस दलदल से बाहर निकलना ही बुद्धिमानी है। भूत ओर भविष्य की चिंता में जो वर्तमान का समय नष्ट हो रहा है वो समय स्वयं को भी भूत ही बना लेता है। बाकी हमारे पास शून्य भविष्य रह जाता है। हमें बन्द दरवाजे को नहीं देखना है, खुले द्वार को देखना है। कैसे होगा , यह नही सोचना है,बल्कि कैसे करना है यह सोचना चाहिए और सही मार्ग का अनुकरण करके हमें अपने जीवन को एक नई ऊंचाई देनी चाहिए।
सुप्रभात।