नशे की रात - भाग - 3 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नशे की रात - भाग - 3

राजीव ने अनामिका को कॉलेज में आते जाते देखकर पसंद किया है ऐसा सुनकर अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, "ऊपर वाले का भी जवाब नहीं है संजीव साहब। हमने तो अभी उसके विवाह के विषय में सोचना भी शुरू नहीं किया था। लगता है अनु का भाग्य बहुत अच्छा है।"

संजीव ने कहा, " अरे अरुण जी अनामिका को देखने से पहले राजीव के लिए पता नहीं कितने रिश्ते आए होंगे पर वह सबके लिए साफ-साफ इनकार कर देता था। उसकी मॉम ने एक दिन परेशान होकर उससे पूछा कि अरे राजीव, इतने अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे हैं तू उन सबके लिए मना क्यों कर देता है। क्या तुझे शादी करनी ही नहीं है। तब उसने क्या कहा था, अरे सरगम तुम ही बताओ आगे की बात। " 

सरगम ने हंसते हुए कहा, "मैं उससे कहती थी कि क्या तू बादलों से किसी अप्सरा को लेकर आएगा तो वह कहता था मॉम बादलों से नहीं, देखना किसी दिन इसी धरती से ढूँढ कर ले आऊंगा और बस पिछले हफ्ते ही आकर कहा मॉम मुझे मेरी अप्सरा मिल गई है। अब आप जानो मैं तो उसी से शादी करूंगा।"

सरगम की बात सुनकर अरुण और वैभवी हंस दिए।

तब संजीव ने कहा, "अब अरुण साहब आप ही बताइए भला अपने बेटे की ख़ुशी से बढ़कर और क्या हो सकता है ।"

अरुण और वैभवी को वहाँ सरगम और संजीव का व्यवहार बहुत ही अच्छा लगा। घर में बहुत सकारात्मक वातावरण था।

वे जब बाहर निकले तो निकलते समय संजीव ने पूछा, "अरुण जी क्या जवाब है आपका, शहनाई बजवाई जाये?"

अरुण ने खुश होते हुए कहा, "बिल्कुल संजीव जी।"

तब सरगम ने कहा, "फिर दो मिनट रुकिए।"

उनका इशारा समझते हुए वही लड़की एक प्लेट में मिठाई ले आई।

सरगम ने अपने हाथ से वैभवी को मिठाई खिलाते हुए कहा, "अब तो आप मेरी समधन बन गई है बस कुछ देर और बैठिए," कहकर सरगम ने उन्हें रोक लिया। उसी समय पंडित को फ़ोन करके मुहूर्त भी निकलवा लिया गया।

वैभवी और अरुण अपने साथ बहुत सारी ख़ुशी लेकर घर पहुँचे और उन्होंने डोर बेल बजाई।

अनामिका का दिल धड़क रहा था। वह चाहती थी रिश्ता ना हो। उसने लपक कर दरवाज़ा खोला लेकिन अपने मम्मी पापा के खुश चेहरों ने उसे आभास करा दिया कि ये लोग तो शादी पक्की करके ही आए हैं।

वैभवी ने अनामिका को सीने से लगाते हुए कहा, "राज करेगी मेरी बेटी राज। अनु बहुत ही अच्छे लोग हैं। ऊपर वाले ने तुझे बहुत ही अच्छा भाग्य देकर भेजा है, वरना घर बैठे ऐसा रिश्ता कहाँ मिलता है।"

"पर मम्मी उन्हें मेरा पता कैसे चला? मेरा मतलब है अपने घर उनका रिश्ता आया ही कैसे?"

"अंदर चल सब बताते हैं। क्या बाहर ही सब पूछ लेगी?"

वे सब अंदर आ गए। उसके बाद वैभवी ने अनामिका को पूरी बात बताई। उनकी बातें सुनने के बाद अनामिका के पास कोई चारा नहीं था। उसका दिल टूट गया। उसका आगे पढ़कर अपने पिता का हाथ बंटाने का सपना भी टूट गया।

वैभवी ने कहा, "अनु दो-चार दिन में वे लोग हमारे घर आने वाले हैं। राजीव भी आएगा, वह बहुत ही हैंडसम है। उनके घर में उसकी बहुत बड़ी तस्वीर लगी हुई है।"

अनामिका बिना कुछ कहे उसके कमरे में चली गई। उसे राजीव के विषय में सुनकर कोई ज़्यादा ख़ुशी नहीं हुई थी बल्कि उसे तो लग रहा था कि खामखाँ गले पड़ गया है।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः