नशे की रात - भाग - 9 (अंतिम भाग) Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नशे की रात - भाग - 9 (अंतिम भाग)

राजीव दंग होकर अनामिका को घर से बाहर जाते हुए देख रहा था। इस समय उसका पूरा नशा उतर चुका था। लेकिन उसे इस सब में अपनी कोई भी गलती नहीं दिखाई दे रही थी क्योंकि यह सब तो उनकी हाई प्रोफाइल ज़िंदगी में आम बात थी।

अरुण और वैभवी के साथ अनामिका घर से बाहर निकल गई। बाहर निकलकर अरुण ने जैसे ही वैभवी की तरफ़ देखा तो नज़र मिलते ही वैभवी की आंखें नीचे झुक गईं। झुकी हुई आंखों से उसने कहा, "मुझे माफ़ कर देना अरुण।"

उसके बाद वैभवी ने अनामिका की तरफ़ देखकर कहा, "मेरी गलती की वज़ह से तेरा जीवन दुख से भर गया। अपने छोटे-छोटे सपनों के टूटने से मैं, इतने बड़े प्यार से भरे अनमोल उपहार की इज़्ज़त ना कर पाई जो पूरी ज़िन्दगी मुझे अरुण से मिलता रहा। मेरा मन कभी किसी सोने के हार की लालसा में अटका तो कभी कीमती साड़ी की चमक में, कभी महंगे इत्र की ख़ुशबू में उलझा तो कभी बहुत सुंदर बंगले की चाह में भटका। मैं ग़लत थी बेटा, मेरी असली दौलत, मेरा असली उपहार तो तुम्हारे पापा का प्यार, उनका मेरा ख़्याल रखना था। यदि मुझे बुखार आ जाए तो पूरी रात बार-बार उठकर मेरे माथे को छूना। घर के काम में मेरा हाथ बंटाना और हर रात को मेरे सर पर हाथ फिरा कर प्यार से यह पूछना कि वैभवी कैसा था आज का दिन? यदि मैं रूठ जाऊँ तो मेरी मन पसंद आइसक्रीम लाकर मुझे मनाना। अनामिका यही तो है मेरी असली धरोहर जिसका आज मुझे एहसास हो रहा है लेकिन इतनी बड़ी क़ीमत चुकाने के बाद। मैं अब कभी तुझे उस आलीशान महल में नहीं भेजूंगी। अब मैं तेरी शादी तेरे पापा जैसे किसी और अरुण से करवाऊँगी।"

उधर रात को जब राजीव के पापा मम्मी संजीव और सरगम घर वापस आए तो अनामिका घर पर नहीं थी। लेकिन उसके हाथ की लिखी एक चिट्ठी उन्हें मिली। सरगम ने घड़ी किए हुए काग़ज़ को उठाया।

उस पर लिखा था, "सॉरी माँ मैं आपको बिना बताए इस घर से हमेशा-हमेशा के लिए जा रही हूँ। रात को मेरे साथ जो भी हुआ बहुत ग़लत था। मैंने अपने आपको उस समय तो बचा लिया लेकिन हर रात मैं इतने तनाव में नहीं रह सकती क्योंकि हो सकता है कि कभी मैं आपके बेटे से जीत ना पाऊँ। मैं अपने पति के साथ प्यार से समर्पण करना चाहती थी। अपना तन मन सब कुछ सौंप देना चाहती थी। इसीलिए तो आपके घर की गृह लक्ष्मी बनकर आई थी परंतु ज़ोर जबरदस्ती से मैं एक शराबी को अपना सर्वस्व नहीं देना चाहती थी। केवल एक ही रात की बात होती तो मैं उसे एक और मौका ज़रूर देती। लेकिन सुबह आपके जाने के बाद जब पूरे होश में उसके विचार सुने तो मेरा दिल टूट गया। मैं समझ गई कि इसकी तो रोज़ ही शराब पीने की आदत है। लड़कियों के साथ सोने की आदत है इसीलिए मैं जा रही हूँ। मैंने अपने लिए ऐसा जीवनसाथी नहीं चाहा था।"

"जाते-जाते आपको कहना चाहती हूँ माँ कि आप इतना पैसा कमा कर क्या करेंगी जब आपके घर का चिराग ही खुश ना हो। वह क्यों इतनी शराब पीता है आपने कभी सोचा है, कभी जाना है? आपके पास उसके लिए समय ही नहीं है। सुबह आपके पास इतना समय भी नहीं था कि आप कमरे में बंद अपने बेटे का दरवाज़ा खोलकर उससे मिल लें। मुझे प्यार के दो बोल, बोलकर समझाएँ कि बेटा अब कभी ऐसा नहीं होगा। मैं आपके घर केवल 24 घंटे ही थी और मुझे सब समझ में आ गया और आप वर्षों में भी नहीं समझ पाईं कि आप पैसा कमा रही हैं लेकिन प्यार वह आपके घर से कहीं खोता जा रहा है। मुझे तलाक चाहिए, आपकी दौलत में से मुझे एक पैसा भी नहीं चाहिए। आपके दिए गहने भी मैं यहीं छोड़ कर जा रही हूँ, हो सके तो अपने बेटे को थोड़ा समय दीजिए। शायद उसकी ज़िन्दगी संवर जाए क्योंकि आपके कमाये धन से तो उसका जीवन बिगड़ ही रहा है।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
समाप्त