नशे की रात - भाग - 7 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नशे की रात - भाग - 7

सरगम और संजीव को अब तक नहीं मालूम था कि अनामिका सोफे पर सो रही है। तैयार होने के बाद ऑफिस जाने के लिए जैसे ही वे दोनों बाहर आए, ड्राइंग रूम में सोफे पर अनामिका को सोता देख सरगम के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

वह संजीव की तरफ़ देखने लगी तो उन्होंने कहा, "उठाओ उसे, घर में सभी काम करने वाले आ चुके हैं। यह क्या बेहूदगी है? यह कोई सोने की जगह है क्या?"

सरगम ने आवाज़ लगाई, "अनु उठो? यहाँ क्यों सो रही हो? क्या हो गया?"

अपनी सास की आवाज़ सुनकर अनामिका की नींद खुल गई। वह उन्हें अपने सामने खड़ा देखकर हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसने खड़े होकर सरगम और संजीव के बड़ी ही नम्रता से पांव छुए।

सरगम ने पूछा, "क्या हुआ अनु? यहाँ क्यों सो रही थीं? राजीव कहाँ है," कहते हुए उन्होंने उसके कमरे की तरफ़ झांका।

अनामिका ने पूछा, "मम्मी जी, आपका बेटा क्या हर रात को इसी तरह शराब में धुत्त होकर घर लौटता है?"

"यह क्या बकवास कर रही हो अनु तुम?"

"मम्मी जी यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है। पहले आप बताइए क्या राजीव रोज़ नशे में धुत्त होकर घर वापस लौटता है?"

सरगम और संजीव एक दूसरे का मुंह देखने लगे क्योंकि इस बारे में वे दोनों ही अनजान थे। उनकी व्यस्ततम ज़िन्दगी में राजीव के लिए कभी समय ही नहीं रहा। प्यार तो बेशुमार था पर समय की बड़ी ही कमी थी। उन्हें तो ख़ुद नहीं पता था कि राजीव रात को कितने बजे घर वापस आता है और कैसे आता है। राजीव से उनकी मुलाकात ना तो रात को और ना ही सुबह ऑफिस जाने से पहले हो पाती थी। राजीव का सब काम काज शुरू से नौकरों के भरोसे ही चल रहा था।

अनामिका दंग होकर उनके शून्य चेहरों को देख रही थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं था कि माता-पिता यह तक नहीं जानते कि उनका बेटा शराब पीता है।

उसने कहा, "मम्मी जी आपका बेटा कमरे में बंद है। मैंने बाहर से चटकनी लगाई है क्योंकि वह शराब के नशे में धुत्त होकर मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। अब आप चाहें तो दरवाज़ा खोलकर उसी से पूछें कि कल क्या हुआ था? और यह भी पूछें कि क्या वह शराब पीता है क्योंकि शायद आप लोग तो यह भी नहीं जानते?"

सरगम तुरंत ही उसके कमरे की तरफ़ जाने लगी तो संजीव ने कहा, "अरे सरगम, आज सिंघानिया साहब आने वाले हैं। उनके साथ कितनी महत्त्वपूर्ण मीटिंग है। इस सब में हमें देर हो जाएगी, कहीं करोड़ों का प्लॉट हाथ से निकल ना जाए। ये सब घरेलू बातें छोड़ो और चलो। उसे रात को आने के बाद समझाएँगे। वैसे भी अभी वह सो रहा होगा, सोने दो उसे।"

फिर अनामिका की तरफ़ देखते हुए उन्होंने कहा, "अनामिका तुम भी जो चाहे करो, जिस काम में तुम्हें ख़ुशी मिलती है वह करो। यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है निपटा लेंगे।"

अनामिका कुछ भी ना कह पाई। सरगम के क़दम वापस पलट गए और वे दोनों ऑफिस जाने के लिए निकल गए।

अनामिका फिर निढाल होकर सोफे पर बैठ गई। उसे अपनी मम्मी का वह वाक्य याद आ रहा था जब उन्होंने कहा था, "अनामिका तुझे दुनिया का हर सुख मिलेगा। तेरा हर सपना पूरा होगा। कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी।"

वह फूट-फूट कर अकेले ही रोने और मन ही मन कहने लगी, "मुझे तो प्यार चाहिए मम्मा सच्चा प्यार जैसा पापा आपसे करते हैं। यहाँ सभी लोग अपनी-अपनी अलग दुनिया में रहते हैं, मानो किसी को किसी से कोई मतलब ही नहीं है। मेरे लिए प्यार के दो शब्द भी ना बोले गए उनसे। काश वे मुझे दिलासा देते, मुझे यह आश्वासन देते कि बेटा अब हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे। "

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः