नशे की रात - भाग - 4 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

श्रेणी
शेयर करे

नशे की रात - भाग - 4

अनामिका अपने कमरे में जाकर निढाल होकर लेट गई। इस समय उसका मन अशांत था। उसे लग रहा था मानो राजीव उसके आगे बढ़ने के रास्ते में रोड़े की तरह आकर खड़ा हो गया है लेकिन इस बात से बेफिक्र उसके पापा मम्मी तो विवाह की योजनाएँ बनाने में व्यस्त थे।

इसी तरह दो दिन निकल गए और तीसरे दिन सुबह-सुबह ही सरगम का फ़ोन आया।

"हैलो वैभवी।"

"हैलो सरगम जी।"

"अरे वैभवी सबसे पहले तो तुम मुझे सरगम जी कहना छोड़ो। अब हमारा बराबरी का रिश्ता है, केवल सरगम ही कहा करो।"

"ठीक है सरगम जी," कहते हुए वैभवी हंसने लगी तो सरगम भी हंस दी।

सरगम ने कहा, "वैभवी हमने तो अब तक हमारे बेटे की खूबसूरत अप्सरा को देखा ही नहीं है। यदि तुम्हें कोई दिक्कत ना हो तो क्या हम आज शाम को तुम्हारे घर आ सकते हैं? "

"अरे सरगम कैसी बातें कर रही हो। दिक्कत कैसी, आ जाओ और हाँ रात का भोजन आप लोग हमारे साथ ही करना, ठीक है?"

"हाँ ठीक है, साथ ही भोजन करेंगे। आप लोगों ने भी अभी तक राजीव को कहाँ देखा है?"

वैभवी ने कहा, "लेकिन राजीव का फोटो ज़रूर देखा है हमने और फिर आप दोनों इतने अच्छे दिखते हैं तो राजीव भी वैसा ही तो होगा।"

सरगम ने हंसते हुए कहा, "चलिए रात को मिलते हैं।"

शाम को सरगम, संजीव और राजीव तीनों ही अरुण के घर आए। वैभवी ने सारी तैयारी करके रखी थी। उन्होंने बहुत ही आदर सत्कार से उन्हें बिठाया। राजीव की तरफ़ देखकर वैभवी सोच रही थी, "कितना अच्छा दिखता है, मेरी अनामिका खुश हो जाएगी। बिल्कुल टक्कर की जोड़ी रहेगी, कोई किसी से कम नहीं।"

जब अनामिका ड्राइंग रूम में आई तो सरगम और संजीव उसे देखते ही रह गए। राजीव तो पहले ही उसे देख चुका था, एक नहीं कई बार। जब से उसने अनु को पहली बार देखा था, तब से यह सिलसिला रुका ही नहीं था। परंतु इससे अनामिका पूरी तरह से अनजान थी क्योंकि राजीव कभी भी उसके सामने नहीं आया था।

काफ़ी समय तक सब साथ में बैठे गपशप करते रहे। शादी की बातें चलती रहीं।

सरगम ने कहा, "राजीव जाओ अनामिका के साथ कहीं घूम आओ, बातचीत कर लो।"

"ठीक है मम्मी," कह कर उसने अनामिका की तरफ़ देखा, तो वह उठकर खड़ी हो गई।

फिर वे दोनों घूमने के लिए निकल गए। रास्ते में उन्होंने एक दूसरे से बातचीत का सिलसिला शुरू किया।

अनामिका ने कहा, "राजीव दरअसल मैं अभी आगे और पढ़ाई करना चाहती हूँ। इतनी जल्दी शादी ..."

"अरे अनामिका कुछ भी नहीं बदलेगा। तुम्हें जितना पढ़ना है, पढ़ सकती हो। कोई तुम्हें किसी बात के लिए रोकेगा नहीं और टोकेगा भी नहीं। हमारे घर पर तुम्हें काम का भी कोई टेंशन नहीं लेना होगा। तुम आराम से पढ़ने के लिए समय निकाल सकोगी।"

अनामिका अपने पापा मम्मी के कारण मना ना कर सकी क्योंकि वे हाँ कर चुके थे। अब यह उनकी इज़्ज़त का सवाल था। कुछ देर साथ घूम कर फिर वह वापस घर आ गए। अब तक इधर भी सब तरह की बातचीत हो चुकी थी, सब तय हो चुका था। साथ में डिनर करने के बाद सरगम, संजीव और राजीव अपने घर जाने के लिए उठे। तब सरगम ने शकुन के तौर पर हीरे की पेन्डेन्ट वाली चैन, इयरिंग के साथ अनामिका को दी।

अनामिका ने कहा, "अरे आंटी अभी इस समय यह क्यों?"

सरगम ने कहा, "तुम्हें कुछ भी देने के लिए समय की कोई पाबंदी नहीं हो सकती अनु। मैं तुम्हें बिल्कुल अपनी बेटी की तरह रखूँगी। तुम किसी बात की चिंता मत करना।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः