नशे की रात - भाग -1 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नशे की रात - भाग -1

अनामिका एक मध्यम वर्गीय परिवार की बहुत ही खूबसूरत लड़की थी। उसके पापा अरुण और मम्मी वैभवी ने सीमित साधनों में भी उसे बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था। वह सिविल इंजीनियर थी, उसने ख़ूब मेहनत और लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की थी। वह अपने पापा का हाथ बंटाना चाहती थी। वह जानती थी कि उसके पापा की कमाई ज़्यादा नहीं है फिर भी उन्होंने ख़ुद के सपनों में, ख़ुद की ख़्वाहिशों में काट-कसर करके उसे पढ़ाया लिखाया था और एक बहुत ही अच्छा जीवन दिया था। उन्होंने उसकी ज़रूरतों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। पढ़ाई पूरी होते से ही अनामिका के लिए एक बहुत रईस ख़ानदान से रिश्ता आया।

उस रिश्ते के लिए अनामिका ने मना करते हुए कहा, "पापा अभी से शादी ...? अभी मुझे आगे और पढ़ाई करना है; फिर आपका हाथ बंटा कर आपके लिए भी कुछ करना है।"

"हमारे लिए ...?"

"हाँ पापा यह मेरे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण सपना है। अभी आप इस रिश्ते के लिए मना कर दो।"

बीच में वैभवी ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "अनु ऐसे रिश्ते बड़े ही भाग्य से मिलते हैं और तेरे लिए तो रिश्ता ख़ुद ही आया है। हमने तो अभी तक कहीं भी इस तरह की बात नहीं की है।"

"पर मम्मी ...!"

"पर वर मत कर अनु, तुझे नहीं पता माँ-बाप की जिम्मेदारी के बारे में। अरे जवान बेटी को घर पर रखना ठीक नहीं है और फिर इतना अच्छा रिश्ता है तो मना क्यों करें? आज नहीं तो साल-दो साल में तेरा ब्याह करना ही है फिर ऐसा रिश्ता नहीं मिलेगा। अरे यह रिश्ता हाथ से निकल गया तो फिर ..."

"तो फिर क्या मम्मी ...? क्या यही एक आखिरी रिश्ता है?"

"अरे पगली जीवन भर समझौता करना पड़ता है। क्या बचपन से तू मुझे नहीं देख रही," कहते हुए वैभवी की आंखें भर आईं।

वैभवी के मुंह से आज पहली बार इस तरह की बात सुनकर अरुण भौंचक्का रह गया।

वैभवी ने आगे कहा, "तुम नहीं जानतीं अनु ना जाने मेरे कितने सपने संघर्ष की आग में जल कर राख हो गये, मैंने ऐसा तो नहीं चाहा था। जीवन भर अपने सपनों को टूटते हुए देखना, अपने मन को मारना आसान नहीं होता बेटा। इसीलिए तुम्हें समझा रही हूँ।"

अरुण को तो आज तक इस बात का एहसास ही नहीं हुआ था कि वैभवी अंदर ही अंदर घुटती रहती है। आज उसे यह बहुत ही बड़ा झटका लगा था। उसे अपनी कमजोरी का एहसास हो रहा था कि वह अपनी पत्नी को खुश नहीं रख पाया।

अनामिका ने अरुण की तरफ़ देखा और फिर वैभवी की तरफ़ देखते हुए नाराज होकर कहा, "मम्मी आप यह क्या कह रही हो? इतना कुछ करते हैं पापा हमारे लिए। आपको कितना प्यार करते हैं और हर इंसान तो लखपति करोड़पति नहीं हो सकता ना? मम्मा आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए था।"

इस बात का एहसास होते ही वैभवी ने अरुण के पास आकर बैठते हुए कहा, "सॉरी अरुण मेरा वह मतलब नहीं था। मेरे मुंह से सिर्फ़ अनु को समझाने के लिए ही ऐसे शब्द निकल गए, मुझे माफ़ कर दो। देखो ना इतने रईस घर से रिश्ता आया है पूरा जीवन सुखी रहेगी। उसे कभी भी किसी कमी का एहसास नहीं होगा बस इसीलिए ..."

अरुण ने अपनी आंखों से आंसू पोछते हुए कहा, "तुम ठीक कह रही हो वैभवी । प्यार चाहे कितना भी हो परंतु सपनों को पूरा करने की क्षमता यदि नहीं है तो प्यार अधूरा ही रह जाता है। मैं समझ सकता हूँ तुमने अनामिका को समझाने के लिए ऐसा कह दिया, कोई बात नहीं। अच्छा तो अनु बेटा अब हम इस रिश्ते के लिए हाँ कह देते हैं।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः